क्या थी आशंकाये:-
- अन्य विकल्पों पर चर्चा अपेक्षाकृत कम लागत पर ज्यादा लोगों को पहुँचाता फायदा
- विकल्प हरियाली और फसलों के लिए भी होता अनुकूल
पाकुड़ बायपास रोड की अगर बात करें, तो यहाँ के निवासियों के मस्तिष्क में सहरकोल से प्यादापुर तक बनने वाली प्रस्तावित सड़क की बात आएगी। पाकुड़ विधायक और हेमंत सोरेन सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने अभी कुछ दिनों पहले ही इस बायपास सड़क का निरीक्षण कर शिलान्यास भी किया था। ये सड़क शायद ऐसे में राज्य सरकार के मद से बनना है।
लेकिन पाकुड़ बायपास के नाम से एक नेशनल हाईवे पर भी सर्वे के बाद कागज़ी करवाई देवघर कार्यालय में चल रही है। लेकिन इस हायवे पर जो सर्वे हुआ है वह पहली नजर में देवपुर के ग्रामीणों को त्रुटिपूर्ण लग रही है।
विश्वस्त सूत्र बताते हैं, कि हिरणपुर के रानीपुर मोड़ से ये नेशनल हाइवे हिरणपुर-पाकुड़ सड़क पर चमड़ा गोदाम के पास तारापुर गाँव के पास मिलेगा, फिर यहाँ से उसी सड़क पर आगे बढ़ते हुए देवपुर मोड़ पर हनुमान मंदिर के पास से धानी जमीन को रौंदते हुए तोड़ाय नदी और देवपुर नदी के बीच से होते हुए कालीदासपुर जाएगा।
जबकि ये नेशनल हाइवे अगर हिरणपुर तारापुर से ही एक सड़क पहले से कालीदासपुर के लिए है, जिसमें किसी धानी जमीन की हरियाली बिना प्रभावित हुए ये सड़क निकल सकती है। ये बताना भी लाज़मी होगा कि बरसात के दिनों में तोड़ाई नदी और देवपुर नदी में कुछ घण्टों के लिए ऐसा पानी आता है कि पूरा इलाका जलामय हो बाढ़ का रूप ले लेता है, और अगर ये हायवे देवपुर हो कर जाता है तो एक बाँध के रूप में बरसाती नदियों के पानी को कई दिनों तक रोके रखेगा, जिससे जमीन और फसलों की बर्बादी तय है।
ऐसा भी तीन बेहतर विकल्प मौजूद है, जिससे अपेक्षाकृत कम लागत, कम जमीन के अधिग्रहण एवं कम मुआवजे के भुगतान पर इस सड़क का निर्माण हो जाय, लेकिन सर्वे में इन विकल्पों को अनदेखा किया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सर्वे के दौरान उनकी राय नहीं ली गई।
विकल्प नम्बर एक कि तारापुर के चमड़ा गोदाम के पास से ही मौजूदा हिरणपुर पाकुड़ पथ की दूसरी ओर से एक ग्रामीण सड़क कई गाँव होते हुए कालीदासपुर जाती है, जिसमें धानी जमीन की हरियाली भी बच जाएगी, क्योंकि ये सड़क पथरीली और बंजर जमीन से होते हुए गुजरी है।
दूसरा विकल्प ये है कि देवपुर से आगे बढ़ कर सोनाजोड़ी से समसेरा होते हुए ये सड़क निकली जाय।
तीसरा विकल्प या फिर आगे बढ़कर सहरकोल से निकलने वाली विचाराधीन बायपास से ही इसे जोड़ दिया जाय।
लेकिन कम लागत पर ज्यादा फ़ायदे, अपेक्षाकृत ज्यादा गाँव और लोगों तक पहुँचने के साथ धानी जमीनों को बचाने के विकल्पों को अनदेखा करना समझ से परे की बात लग रही है। अगर सर्वे के अनुसार एन एच 133A के नाम से जाने जाने वाले इस सड़क का निर्माण देवपुर होकर होता है, तो पाकुड़ में एकबार फिर वही गलती दोहराई जाएगी जो फरक्का बैरेज, फरक्का एन टी पी सी और फरक्का ललमटिया कोयला ढोने वाली रेलवे लाइन बनाकर हुई थी।
इन तीनों निर्माणों की अदूरदर्शिता ने पाकुड़ को बाढ़ की वार्षिक विभीषिका से रु ब रु कराया है। देवपुर के किसान और इलाके के लोगों का मानना है कि ठीक यही स्थिति इस इलाके के लिए इस सड़क से होगी। समाजसेवी किसान सर्वजीत सिंह और अन्य इलाके के किसानों का कहना है कि हम अपनी जमीन सरकार के किसी भी विकास कार्य के लिए देने को तैयार हैं, लेकिन हमारी हितों का भी खयाल रखा जाना चाहिए। उनका कहना है कि हम लोग जो अनाज उपजाते हैं, वो हमारे अलावे देशवासियों के भी काम आता है। केंद्र सरकार से और खाशकर नितिन गडकरी से ग्रामीणों की विनती है कि एक बार इस पर पुनर्विचार किया जाय और सर्वे का पुनर्निरीक्षण कराने की कृपा की जाय।