Saturday, July 27, 2024
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उसे देखना भी नहीं चाहते , और फिर नज़र भी उसी पर रखते हो !

पत्थर उद्योग के लगभग 130 साल के इतिहास में लुत्फुल हक़ एक ऐसा पत्थर व्यवसायी निकला जिसे समाजसेवा के लिए देश विदेश में विभिन्न संस्थाओं ने सम्मानित किया।

इससे पहले पत्थर व्यवसाय से जुड़े लोगों पर लोग हमेशा अवैध और गलत तरीके से काम करने का आरोप लगाते आये हैं। ऐसा नहीं है कि पत्थर व्यवसाय में गलत नहीं होता हो। स्वयं मैंनें इस व्यवसाय में होने वाले अवैध कार्यो पर दर्जनों बार सबूत के साथ लिखा है।

खैर हमेशा से अवैध के लिए बदनाम रहे इस उद्योग से जुड़े लुत्फुल हक़ की समाजसेवा को जब दुनियाँ सराहने लगी , और उन्हें सार्वजनिक मंचों पर सम्मानित करने लगी , तो दो – तीन प्रतिक्रिया देखने को मिलने लगी।
पहली तो यह कि गरीब गुरवा लोग उन्हें खुलेआम दुआएं देने लगे।
दूसरी ये कि जो पत्रकार उनको सम्मानित करने , और गरीबों से मिलने वाली दुआओं पर लिखने लगे तो कुछ ज्वलनशील पदार्थों के आरोपी चित्कार निकलने लगे।
तीसरी यह कि लुत्फुल हक़ पर भी अवैध का आरोप लगाने लगे।
और एक सबसे बड़ी बात ये हुई कि कुछ लोग इस मंशा को पालने लगे कि सिर्फ़ गरीबों की सेवा क्यूँ !
मतलब साफ़ कि उन्हें भी …….
🤣🤣🤣 आश्चर्य है कि ऐतिहासिक ढंग से कोई पत्थर व्यवसायी गरीबों को प्रतिदिन स्टेशन पर भोजन करा रहा है , इतना ही नहीं बीच बीच में उन गरीबों के साथ वहीं खड़े होकर स्वयं भी वही भोजन खा रहा है , तो महत्वाकांक्षा पालने वाले आएं न ! वहाँ खाने से किसी को रोका तो नहीं जाता।
कुछ विशेष की अभिलाषा क्यूँ भाई !

पाकुड़ के इतिहास में रानी ज्योतिर्मयी के असीमित दैनिक भंडारे के एक युग के बाद व्यक्तिगत रूप से एक व्यवसायी द्वारा ऐसा किया जाना गौरव की बात नहीं ?

रानी ज्योतिर्मयी की तुलना सिर्फ़ रानी जी ही हैं।

मैं रानी जी की तुलना नहीं कर रहा। रानी ज्योतिर्मयी ने सम्पूर्ण पाकुड़ को शिक्षा, खेल तथा अन्य इतना कुछ दिया है कि पाकुड़ की पीढ़ियाँ उनका कर्जदार रहेगी।

खैर वो लुत्फुल हक़ की पुरस्कारों और सम्मानों से बरनोल के आकांक्षी सोसल मीडिया पर सक्रिय लोगों को सिर्फ़ एक कहावत के रूप में कहना चाहूँगा ” देख पड़ोसन जल मर ”
रही बात मेरे जैसे लोगों की , तो हाँ कोई पुरस्कृत-सम्मानित होगा तो लिखेंगे, और लिखते रहेंगे😊 ।

सिर्फ़ लुत्फुल हक़ नहीं कोई भी समाजसेवा करेगा, सम्मानित होगा , तो पत्रकार लिखेंगे। पहले ये सोसल मीडिया और सभी खबरों को जगह दे पाने वाले अख़बार नहीं थे , तो ऐसी खबरें जगह पाने से छूट जातीं थी।

समाज की सेवा पहले भी पाकुड़ में लोगों ने की , जैसे तात्कालीन छात्र नेता धर्मेंद्र सिंह , रामप्रसाद सिन्हा और एक पत्रकार की तिकड़ी ने तकरीबन पाँच सौ गरीब परिवार की लड़कियों की शादी में अपना योगदान दिया, दस हजार से ज़्यादा लोगों का इलाज़ करवाया , हजारों आपसी विवादों को आपस में ही सुलझवा दिया।

उस समय ये कई कमियों के कारण प्रकाश में नहीं आया। संस्थाओं की भी कमी थी , पुरस्कृत भी नहीं हुए।

अब सब कुछ है , दुनियाँ एक क्लिक पर उपलब्ध है। किसी भी कीमत पर लुत्फुल हक़ की समाजसेवा को और उनकी समाजसेवी होने को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में उनसे जलन और शिक़वा शिकायतें क्यूँ भाई ?  , नहीं नहीं कोई सभ्य समाज इसे और ऐसे लोगों को नहीं स्वीकार सकता🙏🏻

राजनैतिक नारे को पति-पत्नी के “प्रेम” और विश्वास का अमर संदेश बना दिया माननीय कल्पना सोरेन ने🙏🏻

“हेमंत है तो हिम्मत है” पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में इस नारा ने झामुमो गठबंधन को ग़ज़ब की सफलता दिलाई। हाँलाकि ये नारा बाद में विपक्षियों के लिए एक व्यंग बन गया।
इसमें अस्वाभाविक भी कुछ नहीं था। पूजा सिंघल मामले से लेकर कई ऐसे मामले आये , जिसने सरकार की आलोचना के लिए इस नारे को व्यंग की पँक्ति में खड़ा कर दिया।
साहेबगंज के एक साहित्यकार मिलन के आयोजन में इस नारे का जन्म हुआ। बाद में नारे के जन्मदाता को कटाक्षों का सामना करना पड़ा।लेकिन साहित्य और साहित्यकार विचलित कब हुआ है ?

साहित्यकार किसी सम्प्रदाय या दल विशेष के नहीं होते। इनकी एक अलग विशेषता होती है, कि जहाँ इन्हें सम्मान से बुलाया जाता है , वहाँ सबके हित की बात परोसने ये पहुँच ही जाते हैं। वहीं एक विचारधारा के आग्रह पर मित्र सम मेरे बड़े भाई और विख्यात साहित्य सेवक सच्चिदानंद ने अचानक इस नारे को जन्म दिया और ये नारा चल पड़ा।
जब ये नारा चल पड़ा तो सरकार बनने के बाद भी पक्ष विपक्ष ने अपनी अपनी सुविधानुसार इसका प्रयोग अपनी बात कहने किया।
पत्रकारों ने भी समाचारों को परोसने में इस नारे का प्रयोग किया।
ये नारा सकारात्मक और नकारात्मक रूप से बुलंद होता गया।
पिछले दिल्ली प्रवास के दौरान युगल चित्र के साथ जब माननीय विधायक कल्पना सोरेन ने अपने X पेज पर इस नारे का प्रयोग किया , तो मुझे इस नारे ने सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
अपने गुरुस्वरूप रामजनम मिश्रा के फेसबुक वॉल पर जब ये देखा कि अखबारों में भी इस X ट्वीट पर कहा गया है, तो मैं भी स्वयं को रोक नहीं पाया।
हमारे देश में विवाह बंधन को सात जन्मों का साथ कहा जाता है। एक राजनैतिक नारा कैसे पति पत्नी के बीच के विश्वास और उनसे उपजी हिम्मत का पर्याय बन सकता है , ये कल्पना जी ने सवित कर दिया।
पहले इस नारे को जन्म देने वाले और इसके प्रयोग करने को नकारात्मक रूप से परिभाषित किया जाता था , मैं भी भर्मित हो इसे चापलूसी की पराकाष्ठा मानता था।
लेकिन माननीय कल्पना जी द्वारा इस नारे का इस तरह प्रयोग ने कम से कम मेरे लिए तो दृष्टिकोण परिवर्तन का माध्यम बन गया।
एक साहित्यकार जब कोई सृजन करता है तो उसकी प्रसवपीड़ा वही समझ सकता है।
बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ, लेकिन उक्त नारे को जन्म देने वाले पर लगे आरोपों को पीछे मुड़कर देखने के बाद मुझे हिम्मत नहीं होती।
दक्षिण पंथी होने का नामदार रहा मैं , इस विषय पर ज्यादा कहकर गालियाँ सुनना नहीं चाहता , लेकिन साहित्य के साथ मेरा परिचय का अनुभव कहता है कि शब्दों और उक्तियों के सही प्रस्तुतिकरण से अर्थ का अनर्थ तथा अनर्थ का भी विशाल अर्थ निकल आता है।🙏🏻

आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वोट बैंक पर आधारित लोग छोड़ रहे “आजसू” , आलमगीर अब भी अडिग।

*आजसू जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो से पाकुड़ विधानसभा पर ध्यान आकृष्ट कराया।*

*पाकुड़ विधानसभा में एनडीए गठबंधन का उम्मीदवार मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगा।*

पूर्व विधायक एवं आजसू के केंद्रीय स्तर के नेता ज़नाब अकिल अख्तर ने जनभावना को कारण बताकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे की भूमिका पहले से ही बनाई जा रही थी। आम लोगों में भी चर्चा थी कि शायद ऐसा ही हो , और हो भी वही गया।
पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या के अनुपातिक समीकरण को देख , और आजसू का भाजपा के साथी होने , तथा एनडीए का हिस्सा होना ही इसका सबसे बड़ा कारण है , लेकिन पार्टी के जिला अध्यक्ष आलमगीर आलम इससे इतर पार्टी और एनडीए के साथ अडिग खड़े हैं। इस बाबत वे पार्टी सुप्रीमो से भी मिले।
जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो जी के रांची स्थित आवासीय कार्यालय में मुलाकात कर उन्हें गुलदस्ता भेंट कर सम्मानित किया। आलमगीर ने पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में ज़मीनी आजसू कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाये जाने हेतु आदरणीय आजसू केंद्रीय अध्यक्ष श्री सुदेश महतो जी का ध्यान आकृष्ट कराया। पत्रकारों के सवाल पर आजसू जिला अध्यक्ष आलमगीर आलम ने कहा कि आजसू पार्टी से श्री अकिल अख्तर जी का इस्तीफा दिए जाने से पाकुड़ विधानसभा में आजसू पार्टी की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। आजसू जिला अध्यक्ष आलमगीर आलम ने कहा की सांगठनिक क्षमता और आजसू पार्टी की नीतियों और विचारधारा के साथ– साथ झारखंड के सबसे लोकप्रिय नेता की राजनीति कौशल तथा दक्षता को पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में जन-जन तक पहुंचा है। उन्होंने ये भी कहा की मैं हर वक्त मुसीबत और दुख में जनता के साथ खड़ा रहा हूं। जिसके वजह से मुझे कई बार केस मुकदमा की परेशानियां उठानी पड़ी फिर भी मैं डिगा नहीं। आजसू सुप्रीमो श्री सुदेश महतो ने विश्वास दिलाया कि पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में एनडीए गठबंधन का उम्मीदवार पूरी ताकत और मजबूती से चुनाव लड़ेगी। साथ में जिला प्रवक्ता शेकसादी राहमातुल्ला, केंद्रीय समिति सदस्य विजय कुमार साह और बुद्धिजीवी मंच के वरिष्ट कार्यकर्ता मो सादेक आली भी मौजूद थे।

एक बार फिर पाकुड़ के गौरव समाजसेवी लुत्फुल हक़ नेशनल गौरव के पुरस्कार से नवाज़े गये ।

प्राइड ऑफ नेशन अवार्ड से नवाजे गए समाजसेवी लुत्फुल हक

:–कर्नाटक के पूर्व सीएम जगदीश शेट्टर, पद्मश्री डॉ. सीएन मंजुनाथ व अभिनेता गुलशन ग्रोवर ने किया सम्मानित

पाकुड़। पाकुड़ के जाने-माने और मशहूर समाजसेवी लुत्फुल हक को प्राइड ऑफ नेशन अवार्ड 2024 से नवाजा गया है। बेंगलुरु के पांच सितारा होटल में एशिया टुडे के द्वारा आयोजित प्राइड ऑफ नेशन अवार्ड 2024 का रंगा रंग कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उक्त कार्यक्रम में देश के जाने माने चिकित्सक, व्यवसाई, समाजसेवी, कलाकार, शिक्षाविद सहित जानी-मानी हस्तियां मौजूद थे। कार्यक्रम में बतौर चीफ गेस्ट कर्नाटक के पूर्व चीफ मिनिस्टर जगदीश शेट्टर, सांसद पद्मश्री डॉ. सीएन मंजुनाथ, बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता गुलशन ग्रोवर मौजूद थे। अतिथियों ने समाजसेवी लुत्फुल हक को समाजसेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने को लेकर अवार्ड से नवाजा। अतिथियों ने अपने संबोधन में कहा कि एशिया टुडे के द्वारा प्रत्येक वर्ष अलग अलग देशों में अपने अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वालों को खोज कर निकालना और एक मंच पर लाकर खड़ा करना काफी कठिन काम है। एशिया टुडे ने इस तरह के कार्यक्रम कर बहुत ही अच्छा काम किया है। कहा काफी वर्षों से देख रहा हूं कि एशिया टुडे ने देश के साथ-साथ विदेश में भी सामाजिक कार्यों के अलावा अलग अलग क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वालों को प्रोत्साहित करने का काम कर रहा है। श्री शेट्टर ने कहा कि लुत्फुल हक झारखंड राज्य में जो समाजसेवा का काम कर रहे है, वह बहुत ही सरहनीय है। वहीं कार्यक्रम में मौजूद देश के जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ सह पदंश्री डॉ. सीएन मंजुनाथ ने कहा कि लुत्फुल हक समाजसेवा के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहे है। आपके द्वारा यह काम रुकना नहीं चाहिए। जो इंसान निःस्वार्थ से काम करते है, उनकी जिंदगी में कमी कभी नहीं होगी। वहीं सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता गुलशन ग्रोवर ने भी लुत्फुल हक के कार्यों की सराहना की है। इधर लुत्फुल हक अवार्ड पाकर काफी खुश हुए। उन्होंने कहा कि यह अवार्ड गरीबों के नाम करता हूं। हालांकि अवार्ड पाकर खुशी तो मिलती है, लेकिन खुशी तब अधिक और हो जाती है, जब भूखे पेट गरीब और जरूरतमंद को भोजन कराते है। उन्होंने कहा कि पाकुड़ रेलवे स्टेशन पर निरंतर चलने वाले भोजन कार्यक्रम जब तक ईश्वर ने जिंदगी दी है, तबतक चलता रहेगा। इसके लिए जो भी बाधाएं आएगी सब मिलकर दूर करेंगे।
साभार पत्रकार राणा मक़सूद

घुसपैठ एक समस्या , लेकिन उसपर देश में राजनीति उससे भी बड़ी समस्या।

पश्चिम बंगाल के बंगलादेश सीमा क्षेत्र से लगे एक स्थान के स्थानीय भारतीय अल्पसंख्यक भाई की बात मैं मोटे तौर पर आपसे साझा करता हूँ । पत्रकार के स्वभाव वस मैंनें उनसे पूछा कि आपके क्षेत्र में घुसपैठ होता है , या नहीं।
उन्होंने बताया कि जब तक हमारे देश में वोट की राजनीति होगी , तब तक घुसपैठ रुकने वाला नहीं है।
उनकी इन बातों ने मुझे उन्हें और कुरेदने के लिए मजबूर कर दिया , और उनकी बातों से जो मुझे समझ में आया , वो ये कि घुसपैठ से वे भी खुश नहीं हैं , सिर्फ़ विरोध की वे हिम्मत नहीं जुटा पाते। मोठे तौर पर उन्हें भी ये बात शालती है कि उनके हिस्से के संसाधनों को वोट के लालच में हमारी राजनीति घुसपैठियों में बाँट देते हैं।
खैर इस विषय और बात चीत पर अलग से आलेख लिखूँगा , लेकिन एक बात जिसका मुझे सकून मिलता है , कि 1990 से लगातार जिस प्रकार मैं समय समय पर घुसपैठ पर लिख और कह रहा था , और उस समय पत्रकार बिरादरी भी मेरी हँसी उड़ाते थे , उसपर आज राजनीति पत्रकारिता सहित सब चिंतन कर रहे और कह रहे हैं।

एक बार फिर से देश की राजनीति में घुसपैठियों का मुद्दा इनदिनों विशेष चर्चा का विषय बन गया है।ऐसे घुसपैठ एक पुराना मुद्दा है , लेकिन झारखंड उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों राज्य के वरीय अधिकारियों को निर्देश दिया कि जिलों से घुसपैठ और घुसपैठियों पर रिपोर्ट तलब कर न्यायालय को अवगत कराया जाय।
उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ दिनों पहले चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि घुसपैठ अगर इसी तरह जारी रहा तो एक दिन बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएंगे।
हाँलाकि संसद में भी समय समय पर घुसपैठ पर सांसद निशिकांत दुबे कई बार आवाज उठा चुके हैं। गृहमंत्री भी संसद में घुसपैठ पर बोल चुके हैं।
लेकिन देश के उच्च न्यायालयों के घुसपैठ पर चिंता जाहिर करने और इसपर रिपोर्ट तलब करने के बाद से ये मुद्दा और ज्यादा तूल पकड़ लिया है।
न्यायालय के ऐसे मामले में दखल कोई नई बात नहीं है , इससे पहले पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर पाकुड़ नगर थाने में कांड संख्या 11/94 तत्कालीन थाना प्रभारी डी एन विश्वास एवं डीएसपी ऑलिभर मिंज पर एक मामला दर्ज हुआ था, जिसमें 18 बंगलादेशियों को छोड़ देने का आरोप लगा था।
पाकुड़ नगर थाना के 1991 में थानकाण्ड संख्या 512 , 514 और 518 इस आरोप की गवाही देता है कि छात्र नेता धर्मेंद्र सिंह और रामप्रसाद सिंहा के दबाब पर 18 घुसपैठियों को पकड़ा गया और फिर अवैध तरीके से छोड़ भी दिया गया। इसके विरोध में छात्रनेता द्वय ने तत्कालीन अविभाजित बिहार के पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और क्री डब्लू जे सी 220 /92 दर्ज कर गुहार लगायी।
25 नवम्बर 93 को माननीय उच्च न्यायालय पटना ने डीजीपी बिहार को दोनों पुलिस अधिकारियों पर मामला दर्ज करने का आदेश दिया।
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि घुसपैठ कोई नई बात नहीं , इसपर सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता भी कोई नई बात नहीं , तथा माननीय न्यायालयों की चिंता और उसपर निर्देश भी कोई नई बात नहीं रह गई है।
इधर विशेष साखा ने भी झारखंड सरकार को ये आगाह किया था कि अवैध घुसपैठिये संथालपरगना में आदिवासियों की जमीन हड़प रहे हैं। बंगलादेशी अवैध घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनकी जमीन हड़प रहे हैं। कई घटनाओं ने इन बातों पर अपनी मुहर भी लगाई है।
खैर सबसे बड़ी बात ये है , कि साप्रदायिक , संस्कृति एवं भाषाई समानता का निर्माण कर असम , बिहार , झारखंड और बंगाल के कुछ जिलों को बंगलादेश में मिलाने की एक दीर्घकालीन योजना पर एक अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र चल रहा है। इधर झारखंड के संथालपरगना का खनिजों से परिपूर्णता ने इस अंतरराष्ट्रीय साज़िश को और ज़्यादा तेजी और बल दे दिया है , परिणामस्वरूप घुसपैठ में तेजी तथा आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की स्पीड काफ़ी बढ़ गई है।
लेकिन राजनैतिक दलों के लिए यह मुद्दा हमेशा सुविधा के अनुसार चर्चा का विषय बनता है , लेकिन याद रखें सुविधानुसार ही । अभी चूँकि निकट भूत में दो दो उच्च न्यायालयों ने इस विषय पर अपनी बात कही है, इसलिए यह मामला तूल पकड़ा है , वरना देश में करोड़ों का घुसपैठ होना कोई साधारण बात नहीं है।

सीमा के दोनों ओर की अवैध आवश्यकताओं के तस्कर रखते हैं ध्यान , और आपूर्ति करते हैं नशें के सौदागर।

पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद पुलिस ने फेंसीडील सिरफ की बड़ी खेप पकड़ी। ये फेंसीडील भारत से तस्करी कर बंग्लादेश ले जाया जा रहा था।
फेंसीडील सिरफ में अल्कोहल और नशीली दवाओं की मात्रा इतनी ज्यादा रहती है, कि इसकी खुमारी मझोले शराब की बोतल से कम नहीं होतीं , जिसे भारत मे अद्धा खम्भा के नाम से शराबियों में प्रचलित है ।
नशे के शौकीन बंग्लादेश में भी कम नहीं है , नतीजतन यहाँ से फेंसीडील सिरफ वहाँ भेजा जाता है , जो खाँसी की दवाई के नाम पर आसानी से वहाँ शौकीनों को उपलब्ध हो जाता है।
रही बात शराब की तो इस्लामिक देश होने के कारण वहाँ ये हराम है , और आसानी से शराब वहाँ उपलब्ध नहीं होता।
कुछ कॉस्मेटिक , नमक सहित कई अन्य सामानों और गौ तस्करी के साथ फेंसीडील सिरफ भी बंग्लादेश भारत के सीमाई क्षेत्र से किया जाता है , और वहाँ से ड्रग्स की तस्करी कर सीमा के इस पार लाया जाता है।
फेंसीडील सिरफ झारखंड से भी आपूर्ति की जाती है , जो ट्रांसपोटिंग कम्पनियों के द्वारा झारखंड के सीमाओं पर बसे शहरों में लाया जाता है।
कुल मिलाकर सीमा के दोनों और , एक दूसरे की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर , नशीले पदार्थो की आपूर्ति की जाती है , जो कभी कभी पुलिस की गिरफ्त में आ ही जाती हैं।
ऐसी बरामदगी इस बात के सबूत हैं , कि ऐसा होता आया है। जिसमें सन्देह की सुई कई ओर इंगित करती हैं।

नशे के लिए झपटमार कर रहे अपराध , चेन के साथ चैन भी गवां रहे लोग।

शनिवार (29 जून) को अहले सुबह अन्नपूर्णा कालोनी निवासी एक महिला शनिदेव के मंदिर से पूजा कर वापस घर आ रही थी , कि एक उचक्के ने महिला के गले से सोने का चेन झपट लिया।
स्वाभाविक रूप से सुबह सुबह हर एक आदमी के पीछे सुरक्षा में पुलिस तो नहीं रह सकती। रातभर गश्ती करने के बाद मनुष्य होने के नाते पुलिस को भी फ्रेस और फ़ारिक होने का मानव सुलभ अधिकार तो है , लेकिन ये झपटमार उचक्कों को फ्रेस होने के समय भी अपराध करने से कोई गुरेज़ नहीं होता।
पीड़िता अन्नपूर्णा कालोनी निवासी अवकाश प्राप्त व्यख्याता एस एस मिश्रा की पत्नी हैं। धार्मिक स्वभाव की महिला ने घर आकर घटना की जानकारी अपने घर में दी। इसी दिन सुबह ही प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी इलाज के लिए राँची बाय रोड निजी वाहन से जाने वाले थे। पुलिस को सूचना दे कर वे लोग राँची चले गए , आख़िर इलाज़ कराने की आवश्यक आवश्यकता थी।
लेकिन एक सवाल जो पीछे छूट गया कि शहर में अहले सुबह ये उचक्के कहाँ से और किन परिस्थितियों में उपज आये !

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बुद्धिजीवी, समाज, पत्रकार की सकारात्मक सोच और पुलिस की कड़ाई ही इलाज़ है, नशे में डूबे रुग्ण भविष्य का

बैध धंधों की आड़ में मालामाल हो रहे नशे के कारोबारी, लुट और मिट रहे युवा वर्ग और परिवार

बीमार खून की खरीद बिक्री बाँट रहा बीमारियों का कारवां

नशे के सौदागरों की बदलती रणनीति , सौंदर्य की आँचलों में छुप बाज़ार की सैर करती सुरक्षित पुड़िया और सरसों के ही भूतों से गच्चा खाती पुलिस

इसका एक मात्र कारण है , नशे की लत , और उसमें भी ड्रग्स जैसे गम्भीर और घातक लत में अपराध तक करने को तैयार ऊंघते भविष्य वाले युवा वर्ग।
यहाँ कुछ ऐसे युवा उपज गये हैं , जो ब्राउन शुगर जैसे घातक ड्रग्स के चँगुल में फँस गये हैं , और इतने मंहगे नशे की लत अपराध का द्वार भी खोल देता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यहाँ के ऐसे युवा ऐसे अपराध के लिए ट्रैकिंग करते हैं और आसपास के इलाकों के अपने नशेड़ी साथियों को हायर कर ऐसे अपराधों को अंजाम देते या दिलाते हैं।
नशेड़ियों की भाषा में ये BS यानी ब्राउन शुगर एभिल इंजेक्शन की काँच वाली शीशी में मिलाकर कागज़ या पेपर जला कर गर्म करते हुए हिलाते हैं। ऐसे में BS उस एभिल में पूर्णतया घुल जाता है , और फिर श्रीचं तथा निडिल से मस्कुलर इंजेक्ट कर लेते हैं।
आहिस्ते आहिस्ते आहिस्ते ये मस्कुलर इंजेक्शन शरीर में घुलता है और दिनभर की ख़ुमारी बनाये रखता है।
ये नशा बहुत ही खर्चीला है। इस एक डोज के प्रकरण में लगभग एक हजार से इग्यारह सौ का खर्च आता है। हर ड्रगिष्ट 24 घण्टे में लगभग दो डोज तो ले ही लेता है।
घर से सौ पचास के मिलने वाले पॉकेट मनी में चाय-पानी , सिगरेट और फिर बाइक के फ्यूल का खर्च तो निपटना मुश्किल है , ऐसे में इतना मंहगा नशा न अपराध कराए , ये हो ही नहीं सकता।
अब उन अपराधियों की ख़ुमारी के लिए ऐसे ही झपटमार चेन के साथ लोगों की चैन भी लूट जाएँगे।
हाँ नशा मुक्ति का नारा सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है , लेकिन इन झपटमारों का नाड़ा टाइट किये बिना ?
ऊँ हूं ये न हो सकेगा।

50 वर्ष पुराने इमरजेंसी के इतिहास पर संसद में बहुत कुछ बोला गया , लेकिन कुछ इतिहास आज भी अनकही रह गई हैं , उनमें दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनाने वाली रानी रासमणि भी एक हैं।

दलितों पर राजनीति करने वाली आज की सभी पार्टियों , और दलित नेताओं से एक सवाल बनता है , दक्षिणेश्वर काली मंदिर सहित देश में दर्जनों यादगार काम करने वाली रानी रासमणि के योगदान को इतिहास के पन्नों पर और सिलेबस में जगह क्यूँ नहीं मिली !😢
इसलिए कि वो दलित थीं ?
सवाल कुरेदने वाली है , लेकिन मैंनें बंगला में रानी रासमणि सीरियल जब देखा तो उनके जैसी लोकनायिका और तपस्विनी को देश के लिए योगदान करने के बाद भी कैसे भुला दिया गया ?
ये सवाल मुझे कुरेदते रहा , और उनके योगदान को ढूंढ कर जानने का प्रयास करता रहा।
एक संक्षिप्त विवरण मुझे साभार मिला है , मैं अपने पाठकों से साझा करना चाहता हूँ।
संकलन कर्ता का नाम याद नहीं आ रहा , फिलवक्त मैं उनसे क्षमा याचना करते हुए , पाठकों के समक्ष रखता हूँ। क्योंकि ये जानना लोगों के लिए ज़रूरी है।🙏

क्या आप ऐसी किसी महिला के बारे में जानते हैं, जो हमारी वास्तविक नायिका हैं, आदर्श हैं और गुमनाम भी ?

इस सवाल का जवाब शायद ही मिल सके!
एक अकेली महिला , तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी देश, समाज और संस्कृति को कितना कुछ दे सकती है, बिना इसका श्रेय लेने का प्रयास किये।
सामाजिक आंदोलनों के तत्कालीन पुरोधा राममोहन राय और ईश्वर चन्द्र विद्यासागर तक को खुलकर विद्रोही आंदोलनों में साथ देनेवाली नायिका को क्यूँ इतिहास के पन्नो पर कोई कोनाभर जगह नही मिली ?

हमारी नायिका क्या एक ऐसी महिला नही बन सकती ?
कृपया इसे जरूर पढ़ें।
सभार प्राप्त जानकारियों के अनुसार —

*1.* हावड़ा में गंगा पर पुल बनाकर कलकत्ता शहर बसाया

*2.* अंग्रेजों को ना तो नदी पर टैक्स वसूलने दिया और ना ही दुर्गा पूजा की यात्रा को रोकने दिया

*3.* कलकत्ता में दक्षिणेश्वर मंदिर बनवाया

*4.* कलकत्ता में गंगा नदी पर बाबू घाट, नीमतला घाट बनवाया

*5.* श्रीनगर में शंकराचार्य मंदिर का पुनरोद्धार करवाया

*6.* मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि की दीवार बनवाई

*7.* ढाका में मुस्लिम नवाब से 2000 हिंदुओं की स्वतंत्रता खरीदी

*8.* रामेश्वरम से श्रीलंका के मंदिरों के लिए नौका सेवा शुरू किया

*9.* कलकत्ता का क्रिकेट स्टेडियम इनके द्वारा दान दी गई भूमि पर बना है।

*10.* सुवर्ण रेखा नदी से पुरी तक सड़क बनाया

*11.* प्रेसिडेंसी कॉलेज और नेशनल लाइब्रेरी के लिए धन दिया

क्या इस महान हस्ती को आपके सिलेबस में शामिल किया गया ?

मुझे पूरा विश्वास है कि 99% भारतीय इस महिला को नहीं जानते होंगे 😢

इन महान हस्ती का नाम है *रानी रासमणि* । ये कलकत्ता के जमींदार की विधवा थी। 1793 से 1863 तक के जीवन काल में रानी ने इतना यश कमाया है कि इनकी बड़ी बड़ी प्रतिमाएं दिल्ली और शेष भारत में लगनी चाहिए थी।

*रानी रासमणि* कैवर्त जाति की थी जो आजकल अनुसूचित जाति में शामिल है।

हमारे देश की राजनीति ने और चाटुकार इतिहासकारों ने *रानी रासमणि* को अपेक्षित सम्मान क्यों नहीं दिया, यह तो समझ आता है, किंतु देश के दलित नेताओं ने *रानी रासमणि* को नायिका क्यों नहीं बनाया यह समझ के परे है 🤔

अब वर्तमान केंद्र सरकार से निवेदन करूँगा कि रानी रासमणि पर शोध की व्यवस्था करें। सिर्फ़ पश्चिम बंगाल में वोट नहीं है , वहाँ हमारा समृद्ध इतिहास भी है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे संत और विवेकानंद जैसे राष्ट्रनायक की पृष्ठभूमि तैयार करने वाली रानी रासमणि को देश कैसे भूल गया ?
बार बार ये सवाल मेरे मन में उठता है , मैं सरकारों के सामने भी उठाऊँगा।
सिर्फ़ विवेकानंद जयंती मनाने और मंदिरों में कैमरे के साथ हाज़री बनाने से नहीं होगा , मूल जमीनी आधार को जनता के सामने लाना होगा🙏 बस यही प्रार्थना है।

इस बार बिना हल्ला गुल्ला के होगा गोल , सभी प्रमोटी गैर प्रमोटी के घर और जानपहचान के होंगे चयनित नये खिलाड़ी। हे विनोद पहले से ही रखनी होगी नज़र।

कुछ दिनों पहले राष्ट्रीय पत्रिका भारत वार्ता में एक आलेख बंगाल शिक्षक घोटाले पर प्रकाशित हुआ था। शीर्षक में ही सवाल उठाए गए थे, कि बंगाल में तो करवाई कोर्ट के आदेश पर हुई, लेकिन झारखंड और बिहार में करवाई कब होगी ?
जबकि बिहार में 8 वर्षों से और झारखंड में 12 वर्षों से केंद्रीय एजेंसी जाँच कर रही है । सीबीआई ने कोर्ट में चार्जशीट दायर किया। 25-30 ऐसे आरोपी बनाये गये इस चार्जशीट में जो सीबीआई के अनुसार फर्जीवाड़ा कर अफसर बने हुए हैं। इसमें जेलर , डीटीओ आदि सभी आरोपी बनाए गए थे। अब शायद सम्मन जारी हो।
जेपीएससी प्रथम और द्वितीय में हुई गड़बड़ी के मामले में हाईकोर्ट के के आदेश पर सीबीआई जाँच हुई। जाँच में गड़बड़ी सी जाँच एजेंसी को लगी। ये जाँच आदेश कोर्ट ने 2012 को दिया था। कोर्ट ने नियुक्त पदाधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दिया। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और वहाँ हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लग गया। 6 अप्रेल को सुनवाई के दौरान यह बताया गया कि 12 वर्षों से जाँच पूरी नहीं हो पाई , जिस पर सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि जाँच अभी भी जारी है, इसीपर चार्जशीट दाखिल किया गया है।
जो भी हो ये मामला जाँच में है , और माननीय अदालत में विचाराधीन भी है। जो भी माननीय न्यायालय आदेश देंगे वो होगा। लेकिन जाँच एजेंसी को सोचना होगा कि जाँच में अगर विलम्ब होगा तो न्याय में भी विलम्ब हो जाएगा। विलम्बित न्याय पर पहले भी कानून के जानकारों ने परिभाषित किया है।

इसबार है अलग ढंग से खेल की तैयारी

अब हम जेपीएससी 2024 की परीक्षा पर बात कहना चाहते हैं।

2024 की जेपीएससी परीक्षा की पहली पाली में राष्ट्रीय स्तर तथा दूसरी पाली में राज्य स्तर का जनरल स्टडीज से संबंधित प्रश्न पूछे गए। पहली पारी में प्रश्न उलझे हुए रहे। प्रश्न पत्र मॉडरेट रहा। दूसरी पाली में एक प्रश्न गांव से गांव व शहर से शहर ने सबको चौंकाया था । अभ्यर्थियों को यह प्रश्न समझ में ही नहीं आ रहा था। दोनों 200-200 नंबर के थे। सभी में 100 प्रश्न पूछे गए थे।

विद्यार्थियों को परीक्षा रद्द होने का भी डर सता रहा था
किसी में नेगेटिव मार्किंग नहीं थी। परीक्षा देकर बाहर निकले विद्यार्थियों को परीक्षा रद्द होने का डर सता रहा था। विद्यार्थियों को पता चल गया था कि जामताड़ा व चतरा में पेपर लीक हो चुका था। इसका वीडियो भी वायरल हो गया था।
लेकिन तमाम कुछ उधेड़बुन के बाद भी परीक्षा रद्द नहीं हुई।
जो इस आलेख के द्वारा मैं कहना चाहता हूँ कि इस बार जेपीएससी के 342 भरे जाने वाले सभी पदों पर गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है।
विश्वस्त जानकारी के अनुसार इसबार कुछ चार दर्जन से दो चार ज्यादा या कम ऐसे परीक्षार्थियों की सफलता को निश्चित कर दिया गया है , जो अधिकारी या कर्मचारियों के बेटा-बेटी हैं। इसके लिए कीमत भी इतनी तय की गई है कि इतने कंडीडेट में ही उतनी उगाही हो जाय जितना कि पूरी भीड़ से वसूली में होतीं थीं , और एक हल्ला तथा हंगामा मच जाता था। इसबार अपने बच्चों को सेट करने के लिए अधिकतर प्रमोटी कर्मचारी और अधिकारियों ने परीक्षार्थी कंडीडेट बच्चों को न सिर्फ घरों में नजरबंद कर रखा है, बल्कि मित्रों और मोबाइल से भी तब तक दूर रखा है , जब तक रिजल्ट घोषित हो वे ट्रेनिंग कर वापस न लौट जाएं।
ऐसे विधानसभा चुनाव भी नजदीक है , तो रिजल्ट भी जल्द आ जाये, और फिर कंडीडेट सभी जो सुविधा से सुव्यवस्थित होकर आने वाले हैं, वे सभी तो सरकारी कर्मचारियों के ही घरों के हैं, इसलिए हल्ला तो मचना ही नहीं है।
इसलिए हे पार्थ विनोद (#CBI) आप पहले से ही सतर्क रहें, कि जाँच में विलम्ब न हो।
ऐसे लेन देन भी आधा हो चुका है , चयन की गारंटी के रूप में ओरिजनल सर्टिफिकेट भी गारंटर के पास जमा है।
रिजल्ट के बाद बाँकी बकाया दे कर ओरिजनल सर्टिफिकेट लें और बेटिंग करने पीच पर पहुँच जाएं।

ग़ज़ब का जलवा है भैया हमारे शहर में माफियाओं का ! जिंदा को मृत बनाना तो बाएं हाथ का है खेल , और छापने में तो पूछिए मत।

एक अख़बार प्रभात मंत्र जिसका मैं नियमित पाठक हूँ ,में अचानक एक ख़बर ने ध्यान खींचा। पूरी ख़बर पढ़ डाली । पता चला कि एक जीवित व्यक्ति को मृत बता कर उसकी जमीन बेच डाली गई।
पत्रकार क़ासिम जी ने पूरी रिपोर्ट लिखने में काफ़ी खोज , शोध और मेहनत की , तथा स्वाभाविक रूप से उठते सवालों के साथ रिपोर्ट लिख डाली थी। अखबार प्रभात मंत्र ने भी प्राथमिकता के साथ इसे प्रकाशित किया था।
हँलांकि एक पत्रकार की ईमानदार मेहनत से ये मामला तो सामने आ गया , लेकिन ऐसे कितने ही मामले फाइलों में यहाँ दब जाते हैं , जो कभी निकल नहीं पाते।
मुझे अचानक इस ख़बर से वर्षों पुरानी बात याद आ गई। बात सन 2012 की है। स्थानीय कोषागार में एक जाँच वरीय अधिकारियों के आदेश पर चल रही थी , जिसमें ये बात खुलकर आ रही थी कि स्टाम्प पेपर के घोटाले की कोई बड़ी कहानी , स्टाम्प बेचने वालों के रजिश्टरों में दर्ज है।
स्टम्प भण्डारियों के रजिस्टर जैसे जैसे कोषागार में जाँच के लिए आ रहे थे , एक ही नम्बर के कई स्टम्प निर्गत पाए जा रहे थे।
जबकि कोषागार से तो स्टम्प बेचने वालों को एक नम्बर के एक ही स्टम्प दिये जाते होंगे , तो फिर ऐसा हो कैसे रहा था !
इस सवाल का उस समय जवाब ढूँढना मुश्किल था , लेकिन अभी तो यहाँ के गाँव गाँव में छपते जाली लॉटरी को देख सब समझ में आ रहा है। हँलांकि नकली रुपये जब छप कर आया करते थे, तो स्टम्प पेपर का उसी तर्ज पर छप कर आना कोई बड़ी बात नहीं थीं।
आख़िर हर्षद मेहता भैया ऐसे ही थोड़े नाम और पैसे कमा गये।

खैर ये जाँच चल ही रहा था कि अचानक एक दिन पूरा मामला ठप्प पड़ गया। ऐसी ख़ामोशी इस मामले पर पड़ गई कि लाख प्रयासों के बाद भी ग़ज़ब का ठहराव आ गया और फिर कालांतर में मामला पूरी तरह दब गया।
खो गई एक और घपले की कहानी , फाइलों की धूल भरी जुबानों के बीच कहीं , जो आज तक अनकही रह गई।
ठीक उसी तरह जीवित को मृत बताकर जमीन बेच देने की ये कहानी भी अनकही रह जाती अगर पत्रकार क़ासिम जी तह तक नहीं पहुँचते।
पत्रकार और अख़बार प्रभात मंत्र को बहुत बहुत धन्यवाद।