Friday, July 26, 2024
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फर्जी कम्पनियों के नाम पर गटक गये करोड़ों , ग़ज़ब का बुना गया जाल , झारखंड के देवघर से कोलकाता तक के गड़बड़ सफ़र में दिल्ली , हैदराबाद तक के लोग हैं शामिल।

पिछले दिनों मैं बीमार पड़ा। इलाज़ के लिए कोलकाता गया। एक अस्पताल में इलाज हुआ। अभी ठीक हूँ।
लेकिन वहाँ इलाज के दौरान एक भद्र (सभ्य ) व्यक्ति से मुलाकात हुई। उन्होंने मुझे पहचान लिया कि मैं झारखंड से हूँ, और पत्रकार हूँ ।
मेरे साथ चाय पीने के दौरान उन्होंने बातचीत में मेरा विश्वास जीता और उन्हें भी मुझ पर विश्वास आया। वापस आने के बाद मेरा इलाज के लिए वहाँ कई बार आना जाना हुआ। फोन पर भी हमारी बातें होतीं रहीं।
पिछली बार जब मैं वहाँ गया तो , मुझे उस भद्र मानुस ने सबूतों के साथ एक बात साझा की जो चौकाने वाली थीं।
वे सभी कागज़ात जिसकी फ़ोटो कॉपी मुझे सौंपी गई , सभी प्राइवेट बैंकों के स्टेटमेंट टाइप के थे। जो काफ़ी संदेहास्पद कहानी बयां कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि एक बिल्डर ने जिनका होटल झारखंड के देवघर , पश्चिम बंगाल के तारापीठ और दीघा जैसे धार्मिक टूरिस्ट जगहों पर है , ने 2009 में दक्षिण कोलकाता 700025 में एक तीन तल्ला पुराना मकान खरीदा। हँलांकि वहाँ 2013 तक कुछ बनाया नहीं, पर गुल खिलाने के लिए उस पते पर 20 से 30 फर्जी कम्पनियाँ बना लीं। ( पूरा पता अगले आलेख में डालूँगा ) क्योंकि ये बंगाल के मुखिया के नाक के नीचे स्थित है।
हँलांकि भगवान विष्णु के एक अवतार के पालनकर्ता माता श्री के नाम पर 16 गणेशचन्द्र एवेन्यू के 7 वें फ्लोर , कोलकाता 13 में एक लिमिटेड कंपनी है , उसके कर्ता धर्ता आभास अग्रवाल (काल्पनिक नाम) के द्वारा ही इन सब कारनामों को अंजाम दिया गया है कि प्राइवेट बैंकों से करोड़ों के ऋण (लोन) लेकर फर्जी कम्पनियों को ट्रांसफर कर दिया गया। ये ट्रांसफर के समयों , चेकों के नम्बर आदि को गहराई से देखा जाय तो कई संदेह पैदा करते हैं।
फर्जी कम्पनियों को बाद में तथाकथित दिवालिया घोषित कर दिया गया, और बैंकों के पैसों का राम नाम सत्य है कर दिया गया।
आपको आश्चर्य होगा कि सभी फर्जी कम्पनियों के डायरेक्टर मंडल में मालिक के नोकर , ड्राइवर और ऐसे कर्मचारियों को रखा गया था, जिनसे उनके वेतन के झाँसे में कहीं भी हस्ताक्षर लिया जा सके। बेचारे उन कर्मचारियों को तो यह भी पता नहीं होता कि वे किसी फर्जी ही सही , बड़ी कम्पनी के डायरेक्टर हैं।
एक जानकारी के अनुसार किसी अन्य मामले में शायद ED इस पूरी कहानी की पटकथा लिखने और गबन के डायरेक्टर को रडार में रखे हुए है, लेकिन फर्जी कम्पनियों और बैंकों के लोन को गटकने के मामले तक अभी तक जाँच एजेंसियों से अनछुए हैं।
कुछ बैंकों के 2009 से 2013-14 तक के कागज़ात को खंगाला जाय तो , चौकाने वाले मामलों का खुलासा होगा। सूत्र के सूचनानुसार दिल्ली, और हैदराबाद की कम्पनी भी इससे संलिप्त हैं। इसमें वहाँ के भी कई लोकल लोग शामिल हैं । सबका नाम आहिस्ते से सामने आएगा।
भाई जहाँ केंद्रीय सुरक्षा घेरे में माफियाओं द्वारा ED और CBI तक सुरक्षित नहीं रह पाता , वहाँ हम जैसों को तो बहुत सोचना होगा और चाहिए भी।
अभी कागज़ात का अध्ययन ऑन वे है। कम्पनियों के नाम, फर्जी कम्पनियों के नाम , तारीखों के साथ लेन देन और ट्रांफर के डिटेल्स इसी पेज पर परोसने का काम करूँगा। भाई एकाउंट और व्यवसायिक इकोनॉमिक्स के डिग्रीधारी की छत्रछाया में तकरीबन एक हजार करोड़ के गबन का जो मामला है।
ऐसे जालों के बुनावट के धागों को खोलने में हम शब्दों के बुनकर को वक़्त तो लगेगा😊

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