झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन चुनाव के पहले से जेल में हैं। ईडी ने उन्हें जमीन की तथाकथित (सवित होने के पहले तक) हेरा-फेरी के मामले में कई सम्मन भेजने और पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था। अब तक उन्हें न्यायालय से भी लाख प्रयासों के बाद राहत नहीं मिली है।
खैर झारखंड में तमाम विशेष कानूनों के बाद भी जमीन की हेराफेरी अब आम बात हो गई है।
संथालपरगना के पाकुड़ जिले में सदर अंचल पाकुड़ और जिले में धान का कटोरा कहे जाने वाले महेशपुर अंचल में सेलेबुल जमीन बहुत ज्यादा है। अनुसूचित ननसेलेबुल जमीन में तो अनगिनत गड़बड़झाला है , लेकिन सेलेबुल सामान्य जमीन में भी गड़बड़झाले की कहानी अनगिनत है।
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उदाहरण के तौर पर कई दशकों पहले जानकारों ने अपनी पीढ़ियों को बताया था, कि खतियानी रैयत कालिदास गुप्त , तारापद गुप्त और पँचनन्द गुप्त के नाम पर जमीन थी।
जमीन तो काफी था , लेकिन कुछ जमीन पर उनलोगों ने राधाकृष्ण की एक मंदिर बना रखा था। उस समय पाकुड़ नगर स्वयं वीरान बियावान जंगली इलाका था। भक्ति रस में डूबे गुप्त परिवार ने शायद अपना परिवार नहीं बढ़ाया होगा।
खैर जो भी हुआ हो जमीन पिपासुओं की नज़र अंचल कार्यालय कर्मी के सहयोग से कालांतर में उस टूटे-फूटे खपड़ैल के तथाकथित मंदिर पर पड़ी , और फिर उसे गटकने की जुगाड़ भी लग गया। और भगवान कृष्ण को भी चुना लगा गये ये जमीन पिपासु ।
सबसे पहले उस जमीन को मंदिर की जमीन नहीं है , ये सवित करने के लिए जो जो सम्भव था , किया गया और फिर सदर प्रखंड के ही इलामी और पितम्बरा गाँव के मौजा पर अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा मोटेशन के लिए दिये गए आवेदन पर ही दूसरे के सेलडिड को संलग्न कर अन्य दूसरे के नाम पर मोटेशन कर जमीन जबर्दस्ती प्रशासन के सहयोग से कब्ज़ा कर लिया गया।
जबकि जमीन जिन आवेदनों पर मोटेशन किया गया , वो आवेदन अन्य जमीन के लिए था , लेकिन आवेदन संख्या सहित अन्य कई कागज़ी गवाह सवाल उठा रहे हैं।
जिस राज्य के मुख्यमंत्री जमीन मामले में जेल जाने और इस्तीफा देने को मजबूर हो जाएं , उसी राज्य में आँचलों में किस तरह अनियमितता होतीं हैं , इसका प्रमाण तो मैंनें इसी पेज पर महेशपुर में हुए एक जमीन घपले की कहानी कह दिया था।
आश्चर्य है कि माखनचोर नन्दकिशोर श्री कृष्ण की जमीन तक चुराने से लोग नहीं हिचकते , ऐसे में ये जमीन माफ़िया इनडायरेक्ट में हम जैसे लोगों को जान मारने तक की धमकी भी दे ही डालते हैं ।
अगर मुझे या मेरे परिवार को किसी तरह की हानि होतीं, या पहुँचाई जाती हैं, तो उसके डिजिटल सबूत और नाम जाँच के दौरान जाँच एजेंसियों को मिल ही जायेंगे , लेकिन पाकुड़ में पिछले लगभग एक दशक में इतना जमीन घोटाला हो चुका है, कि झारखंड के कोई भी घोटाला पानी माँगता नज़र आएगा।
लेकिन ऐसे मामले प्रकाश में लाने का मतलब हमेशा जाँच के नाम पर स्थानीय तौर पर सिर्फ 😀😀😀 हाँ हाँ पाठक समझ ही रहे हैं😊