पश्चिम बंगाल के बंगलादेश सीमा क्षेत्र से लगे एक स्थान के स्थानीय भारतीय अल्पसंख्यक भाई की बात मैं मोटे तौर पर आपसे साझा करता हूँ । पत्रकार के स्वभाव वस मैंनें उनसे पूछा कि आपके क्षेत्र में घुसपैठ होता है , या नहीं।
उन्होंने बताया कि जब तक हमारे देश में वोट की राजनीति होगी , तब तक घुसपैठ रुकने वाला नहीं है।
उनकी इन बातों ने मुझे उन्हें और कुरेदने के लिए मजबूर कर दिया , और उनकी बातों से जो मुझे समझ में आया , वो ये कि घुसपैठ से वे भी खुश नहीं हैं , सिर्फ़ विरोध की वे हिम्मत नहीं जुटा पाते। मोठे तौर पर उन्हें भी ये बात शालती है कि उनके हिस्से के संसाधनों को वोट के लालच में हमारी राजनीति घुसपैठियों में बाँट देते हैं।
खैर इस विषय और बात चीत पर अलग से आलेख लिखूँगा , लेकिन एक बात जिसका मुझे सकून मिलता है , कि 1990 से लगातार जिस प्रकार मैं समय समय पर घुसपैठ पर लिख और कह रहा था , और उस समय पत्रकार बिरादरी भी मेरी हँसी उड़ाते थे , उसपर आज राजनीति पत्रकारिता सहित सब चिंतन कर रहे और कह रहे हैं।
एक बार फिर से देश की राजनीति में घुसपैठियों का मुद्दा इनदिनों विशेष चर्चा का विषय बन गया है।ऐसे घुसपैठ एक पुराना मुद्दा है , लेकिन झारखंड उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों राज्य के वरीय अधिकारियों को निर्देश दिया कि जिलों से घुसपैठ और घुसपैठियों पर रिपोर्ट तलब कर न्यायालय को अवगत कराया जाय।
उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ दिनों पहले चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि घुसपैठ अगर इसी तरह जारी रहा तो एक दिन बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएंगे।
हाँलाकि संसद में भी समय समय पर घुसपैठ पर सांसद निशिकांत दुबे कई बार आवाज उठा चुके हैं। गृहमंत्री भी संसद में घुसपैठ पर बोल चुके हैं।
लेकिन देश के उच्च न्यायालयों के घुसपैठ पर चिंता जाहिर करने और इसपर रिपोर्ट तलब करने के बाद से ये मुद्दा और ज्यादा तूल पकड़ लिया है।
न्यायालय के ऐसे मामले में दखल कोई नई बात नहीं है , इससे पहले पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर पाकुड़ नगर थाने में कांड संख्या 11/94 तत्कालीन थाना प्रभारी डी एन विश्वास एवं डीएसपी ऑलिभर मिंज पर एक मामला दर्ज हुआ था, जिसमें 18 बंगलादेशियों को छोड़ देने का आरोप लगा था।
पाकुड़ नगर थाना के 1991 में थानकाण्ड संख्या 512 , 514 और 518 इस आरोप की गवाही देता है कि छात्र नेता धर्मेंद्र सिंह और रामप्रसाद सिंहा के दबाब पर 18 घुसपैठियों को पकड़ा गया और फिर अवैध तरीके से छोड़ भी दिया गया। इसके विरोध में छात्रनेता द्वय ने तत्कालीन अविभाजित बिहार के पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और क्री डब्लू जे सी 220 /92 दर्ज कर गुहार लगायी।
25 नवम्बर 93 को माननीय उच्च न्यायालय पटना ने डीजीपी बिहार को दोनों पुलिस अधिकारियों पर मामला दर्ज करने का आदेश दिया।
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि घुसपैठ कोई नई बात नहीं , इसपर सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता भी कोई नई बात नहीं , तथा माननीय न्यायालयों की चिंता और उसपर निर्देश भी कोई नई बात नहीं रह गई है।
इधर विशेष साखा ने भी झारखंड सरकार को ये आगाह किया था कि अवैध घुसपैठिये संथालपरगना में आदिवासियों की जमीन हड़प रहे हैं। बंगलादेशी अवैध घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनकी जमीन हड़प रहे हैं। कई घटनाओं ने इन बातों पर अपनी मुहर भी लगाई है।
खैर सबसे बड़ी बात ये है , कि साप्रदायिक , संस्कृति एवं भाषाई समानता का निर्माण कर असम , बिहार , झारखंड और बंगाल के कुछ जिलों को बंगलादेश में मिलाने की एक दीर्घकालीन योजना पर एक अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र चल रहा है। इधर झारखंड के संथालपरगना का खनिजों से परिपूर्णता ने इस अंतरराष्ट्रीय साज़िश को और ज़्यादा तेजी और बल दे दिया है , परिणामस्वरूप घुसपैठ में तेजी तथा आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की स्पीड काफ़ी बढ़ गई है।
लेकिन राजनैतिक दलों के लिए यह मुद्दा हमेशा सुविधा के अनुसार चर्चा का विषय बनता है , लेकिन याद रखें सुविधानुसार ही । अभी चूँकि निकट भूत में दो दो उच्च न्यायालयों ने इस विषय पर अपनी बात कही है, इसलिए यह मामला तूल पकड़ा है , वरना देश में करोड़ों का घुसपैठ होना कोई साधारण बात नहीं है।