Monday, November 11, 2024
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सोनार बंगला कहे जाने वाली भूमि, घोटालों का परिचायक बनी

जे जाय लोंका, सेय रावोण होय

संस्कृति की सममृद्वत्ता पर जब भी बात उठती है, बंगाल की छवि स्मृत हो जाती है। आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या क्रांतिकारी वीरों की गाथा में न जाने कितने नाम अनायास ही नज़रों के सामने बंगाल से उकर आते हैं। अभी सोशल मीडिया पर एक बात वायरल है, कि अंडमान के सेलुलर जेल में कालापानी की सज़ा में बंद 600 कैदियों में अकेले बंगाल के 400 क्रांतिकारी वीर शामिल थे, लेकिन आज जब हम बंगाल की जेलों में झाँकते हैं तो वर्तमान सरकार के कई कर्ता धर्ता और उनके नजदीकी जेल की रोटी तोड़ते नज़र आते हैं। एक समय नैतिक मूल्यों को सर उठा रखने वाले आदर्शों के बंगाल को ये क्या हो गया कि अनैतिक घोटालों की एक लंबी कड़ी और सूचि शर्मसार करता दिखता है।

कभी सोनार बंगला कहा जाने वाले पश्चिम बंगाल को आख़िर किसकी नज़र लग गई, कि धान के इस कटोरे में स्वर्ण पिलीमा के बीच नगर निगम नियुक्ति घोटाला, शिक्षक भर्ती घोटाला, प्रधानमंत्री आवास घोटाला, वर्तमान में नारदा-शारदा घोटालों की कालिमा के धब्बों की कड़ी को आगे बढ़ाता बरबस दिखता है।

बाम पंथ के लाल झंडे नीचे पोषित 34 वर्षों के सरकार के बाद जब 2011 में ममता बनर्जी की सरकार आई, तो संघर्षो में पली बढ़ी ममता के ममत्व के नीचे माँ माटी और मानुष के नारों से उम्मीदों की एक आस जगी थी, लेकिन आज ममता सरकार के 25 महत्वपूर्ण लोग घोटालों के जाँच दायरे में हैं। सरकार के मंत्री और उनके सहयोगी जेल में या जेल के रास्ते पर नज़र आते हैं।

प्राथमिक शिक्षक भर्ती घोटाले को अगर सरसरी निगाहों से देखें तो 36 हजार शिक्षक कोलकाता उच्च न्यायालय के 12 मई 2023 के आदेश से निलंबित हैं। 36 हजार शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक रही है। तकरीबन 250 करोड़ रुपये के शिक्षक बनने और बनाने के लिए लेनदेन किये गए। पश्चिम बंगाल वर्तमान सरकार के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी फिलवक्त जेल में हैं, उनके सहयोगी और एक नजदीकी अर्पिता मुखर्जी के घर से 20 करोड़ जप्ती के बाद जेल गमन कर चुकी हैं तो कई लोग जेल या जेल के रास्ते हैं। पूर्व मंत्री की बेटी सहित कई लोग जो सरकार के लोगों से जुड़े या सत्तारूढ़ पार्टी के नेता या कार्यकर्ता हैं, शिक्षक नियुक्ति घोटाले की सूचि में हैं।

इसी घोटाले की जाँच के क्रम में ईडी को नगर निगम नियुक्ति घोटाले का सूत्र अयान सील की संलिप्तता मिली। उच्च न्यायालय कोलकाता ने सीबीआई को नगर निगम में हुई नियुक्ति घोटालों की जाँच ईडी के जाँच के आधार पर दिया। मतलब साफ़ है कि पश्चिम बंगाल में जहाँ भी हाथ जाँच एजेंसियाँ डालतीं है, पिटारे से एक और घोटाले की फुफकार सुनाई पड़ती है। नगर निगमों में लिपिकों और सफ़ाई कर्मियों की बहाली में ईडी के अनुसार तकरीबन 200 करोड़ के अवैध लेन देन का दावा है।

प्रधानमंत्री आवास योजना में भी घोटाले का पिटारा खुल चुका है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के वरीय अधिकारियों ने मालदा जिले के गाँवों का दौरा कर पाया कि प्रधानमंत्री आवास योजना में बड़े पैमाने पर अनियमितता है। समृद्ध, समर्थ और जिनके पास पहले से अपना मकान है, उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिया गया है। सुविधा शुल्क के एवज में मकानों को दोमहल बनाने तथा पहले से उपलब्ध मकानों को और स्पेसस बनाने के लिए योजना का लाभ रेवड़ियों की तरह बाँटा गया है।

कहते हैं 2028 में हुए शिक्षक नियुक्ति घोटाले में एक हजार 2 व्यक्ति थे, जो न तो परीक्षा में शामिल हुए या फ़िर अपेक्षाकृत कम नम्बर पर उनकी नियुक्ति हो गई और उनसे ज्यादा नम्बर लाने वाले आसमान निहारते रह गए। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि नियुक्तियों के घोटालों में बंगाल ने कैसे रेकॉर्ड तोड़ घोटाले किये हैं।

घोटालों का शिक्षक नियुक्ति, नगर निगम नियुक्ति एवं प्रधानमंत्री आवास योजना घोटाले कोई नई बात बंगाल के लिए नहीं है, बल्कि कोयला, पशु तस्करी, शारदा चिटफंड, रोज बैली और नारदा स्टिंग जैसे घोटालों की कड़ी ने ममता बनर्जी सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किये हैं।

13 सौ करोड़ के कोयले की काली कमाई में तीन दर्जन से अधिक ऐसे नाम सीबीआई के खाते में दर्ज हुए हैं, जो न सिर्फ नामचीन हस्तियाँ रहीं हैं बल्कि ममता के भतीजे और तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजीरा बनर्जी भी सीबीआई और इडी के पूछताछ के दायरे से गुजरे।

पशु तस्करी मामले में नेता, अफसर, पुलिस, सुरक्षा बल आदि सभी ने मिलकर 20 हजार करोड़ डकार लिए। 40 हजार करोड़ रुपए की कमाई देनेवाले शारदा चिटफंड घोटाले में 25 हजार करोड़ के घोटाले की बात सामने आई। इसमें भी जेनेटरी व्यक्तियों की संलिप्तता सामने आईं।

रोज वैली 464 करोड़ के घोटाले की कहानी कह गया, तो नारदा स्टिंग ऑपरेशन और घोटाले ने ऑन एयर कइयों के शराफ़त के कपड़े उतारे, जो जनता के उद्धार के संकल्प के साथ जनता के द्वारा चुने गए थे।

आश्चर्य ये है कि जिस बंगाल की धरती रवींद्रनाथ टैगोर, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, खुदीराम बोस और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे सुपुत्रों की जननी रही है, उसी बंगाल की धरती पर दाग लगनेवाले ऐसे कुपुत्रों को कैसे बर्दाश्त कर सकता है। 

वामपंथ के लाल झंडे में 34 वर्षों तक लिपटे बंगाल ने ममता के ममत्व की आँचल की छाँव में समृद्ध, शांत और सुसंस्कृत बंगाल की अपेक्षा की थी, लेकिन “जे जाय लोंका, सेय रावोण होय” (जो लंका जाता है, वही रावण बन जाता है) बंगाल की जनता ये सवाल स्वयं से ही पूछ रही है, ख़ुद को वहाँ की आम जनता ठगा ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

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