Saturday, July 27, 2024
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बहुत चतुर हैं, नशा परोसने वाले कारोबारी, वैध कारोबार और समाजसेवा की कंबल के अंदर बेख़ौफ़ पी रहे हैं घी

याद है आपको ? पिछले वर्ष 22 दिसम्बर को नशे की अंधेरी गलियों में भटकती युवा पीढ़ी और बीमार भविष्य की आशंका से चिंतित वर्तमान (अभिवावक और बुद्धिजीवियों) की चर्चा कर मैंने आपको बताया था, कि इस धंधे में कैसे सफेदपोशों और पुराने शातिरों द्वारा चाँदी काटी जा रही है।

उस लेख से हमारे प्रान्त में तो कुम्भकर्णी नींद नहीं टूटी, लेकिन पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की कालियाचक पुलिस ने तकरीबन पाँच लाख की फेंसीडील सिरफ के साथ एक आदमी को गिरफ़्तार कर लिया था। जी हाँ फेंसीडील सिरफ पाकुड़ में एक ट्रांसपोर्ट से मंगाया जाता है, आमतौर पर ट्रांसपोर्ट कम्पनियों पर इतना विश्वास रहता है, कि उन्हें जाँच या जाँच के नाम पर किसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। फिर ट्रांसपोर्ट में अगर भेजने वाले और रिसीभ करनेवाले भी एक ही गुट के लोग हों और ट्रांसपोर्ट भी अपना ही हो , तो सूचना के लीक होने की संभावना भी शून्य हो जाती है। यहाँ तो ट्रांसपोर्ट में थोक में ये नशीला पेय पदार्थ दवा की चादर ओढ़े पहुँच जाती है, लेकिन यहाँ से इसे पश्चिम बंगाल भेजने का तरीका काफ़ी रईशजादाना है। छोटी चार चक्के वाली बंगाल और खाशकर सिलीगुड़ी के ज़्यादातर नम्बर वाली गाड़ियों से ये खेपें पहुँचाई जाती है। मेरे सूत्रों के अनुसार ऐसी लक्ज़री छोटी प्राइवेट गाड़ियों पर दो या उससे ज़्यादा आदमी रात में ऐसे समय मे निकलते हैं, कि बस वो निकल लेते है आसानी से, ठीक इसी प्रकार यही गाड़ियाँ उधर से विभिन्न तरह के ड्रग्स की खेप लेकर पाकुड़ आते हैं, कभी कभी इन गाड़ियों में एक आध महिलाएं और बच्चों को भी आते जाते साथ ले लिया जाता है, कि सन्देह से परे ….बस समझ लो भैया।

इन लोगों के पाकुड़ में ठहरने की व्यवस्था स्टेशन के पास के एक ऐसे होटल में किया जाता है, या फ़िर एक व्यक्तिगत विवाह भवन के कमरों में किया जाता है, कि सामान्यतया किसी आम आदमी को कुछ समझ में नही आता, या यह कहें कि उनके काम और समझ से परे की बात पर उनका ध्यान नही जाता, और प्रशासन या पारखी नजरें उन तक पहुँच नही पातीं। इस धंधे में स्थानीय तौर पर ऐसे लोग जुड़े हैं, जो ऐसे अबैध धंधों के पुराने खिलाड़ी है, और इतना पैसा बना चुके हैं, कि कभी कभी समाजसेवी का लीबादा भी ओढ़ लेते हैं, और वैध धंधों की ख़ूबशूरत दीवारें तो अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिए उन्होनें बना ही रखा है।
22 दिसम्बर को मैंने आपसे क्या कहा बताया था, एक नज़र यहीं इसी पेज पर नीचे फ़िर से डाल लें—

पाकुड़  जिला मुख्यालय के अभिवावकों और बुद्धिजीवियों में इन दिनों एक चिंता और चर्चा आम है, कि नगर के नवयुवक आहिस्ते से नशे के चंगुल में इस क़दर फँसते जा रहे हैं, कि आनेवाले वर्षों में एक सम्पूर्ण पीढ़ी बर्बादी के जबड़ों में सिमट जाएगा। उल्लेखनीय है,कि पाकुड़ पत्थर, बीड़ी और अब कोयले उद्योग के लिए मशहूर तो रहा है, लेकिन जितना यह वैध उद्योगों के लिए मशहूर रहा है, उतना ही अवैध उद्योगों के लिए बदनाम भी। पश्चिम बंगाल से गलबहियां खेलतीं इस जिले की सीमाएं बंग्लादेश की सीमाओं से भी काफ़ी नजदीक है। स्वाभाविक रूप से ऐसे में तस्करी इस इलाके में एक बड़ी समस्या रही है। पहले भी सी आर, भी सी पी और अवैध हथियार सीमापार से आते थे, बदले में आयोडाइड नमक सहित अन्य कई सामग्रियों को उस पार भेजा जाता था, उसके बाद सूता सहित अन्य सामग्रियों का विनिमय तस्करी इस पार-उस पार होता था, आज के दिनों में नशे की विनिमय तस्करी हो रही है।

सूत्रों के अनुसार बतातें चलें कि इन दिनों इस पार से तस्कर फेंसीडील सिरफ बंग्लादेश भेज रहे हैं और उस पार से ड्रग्स की अवैध आयात कर रहे हैं। इस धंधे में नगर और आस पास के पुराने तस्कर सहित कई सफेदपोशों की संलिप्तता की ओर सूत्र इशारा करते हैं। नक़ली नोटों सहित अन्य बस्तुओं के पुराने खिलाड़ी इस नशे के कारोबार में लगे हैं और स्थानीय भटके हुए युवाओं को इस नशे के भवँर जाल में उपयोग कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं।

पिछले दिनों शहर के बुद्धिजीवियों ने सोसल मीडिया पर इशारों ही इशारों में नशे की जाल में जकड़ते युवाओं पर चिंता जताते हुए, पीढ़ी के बर्बाद होने की आशंका व्यक्त की, साथ ही मीडिया को भी आड़े हाथों लेते हुए नाराजगी जताई, जो स्वाभाविक भी है। लेकिन मीडिया के लोगों की मजबूरी पर किसी आलोचक की नज़र नही जाती। मीडिया के पास कलम तो है, लेकिन सुरक्षा के लिए हथियार नहीं है। अवैध खनन पर लिखने पर माफ़िया धमकियाँ देते हैं, अपनी पहुँच का उपयोग कर निष्पक्ष मिडिया को करते हैं मानसिक रूप से प्रताड़ित।

खैर इस पर अपनी बात बाद में जरूर रखूँगा, लेकिन फ़िल्वक पाकुड़ में नशे की गिरफ्त में जाते पूरी युवा पीढ़ी एक चिंता का विषय तो बन ही गया है। पुलिस और प्रशासन की नज़र भी इस सामाजिक समस्या और नशे के अवैध कारोबार की ओर बरबस खींच ही गया है। मीडिया ने भी अपनी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए इस ओर अपनी शोध शुरू कर दी है।

इधरअनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अजित कुमार बिमल ने कहा कि पुलिस नशीले पदार्थ बेचने वालों पर पैनी नजर रख रही है। अगर कोई व्यक्ति या सिंडिकेट इस तरह का काम कर रही है तो इसकी इसकी सूचना दें, पुलिस कार्रवाई करेगी। किसी भी सूरत में नशीले पदार्थ बेचने वालों को बर्दाश्त नही की जाएगी। लेकिन इसकी सूचना दे कौन ये बड़ा सवाल है ? आख़िर पुलिस का अपना सुचना तंत्र क्या करता है, क्या इस मामले में भी मीडिया ही मुखबिर बने ?
आनेवाले दिनों में शायद इस अवैध कारोबार के खिलाड़ियों के चेहरों से पुलिस नक़ाब खींचने में सफ़ल हो जाए।

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