एक समय पाकुड़ के लिए ऐसा भी था, जब साहित्य और संस्कृति, गीत और संगीत के अनेक मंच थे, और आये दिन इससे जुड़े लोग ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया करते थे।
साहित्य के मंचों पर कविताएं, गजल कही जातीं थी, संगीत के मंचों पर गीत गाये जाते थे, रविंद्र एवं नज़रुल की गितियाँ सुरों और वाद्ययंत्रों के साथ लहरतीं थीं। एशिया प्रसिद्ध पत्थरों की ओट में रंगों के जादूगर स्वर्गीय वैद्यनाथ जय सवाल की जीवंत पेंटिंग आज भी एकांत एवं स्वप्न में पाकुड़ की कलाप्रेमियों से पूछता है, कहाँ खो गए वो पाकुड़ के लोग, वो महकता मंच और हमारी साहित्य, संगीत की महफ़िलें!
लेकिन एक लंबे अंतराल के बाद पाकुड़ के आँगन में पढ़े-लिखे, खेले-कूदे और शब्दों को बुनने सीखनेवाले “डॉ आर. के. नीरद” ने मानो पाकुड़ को एकबार फिर से झकझोर कर उठाया और निद्रा से उठाकर बताया कि, उठो तुम्हारा अतीत सिर्फ़ पेट की गहराइयों तक सीमित नहीं बल्कि, हे पाकुड़ तुम्हारा तो सृजनशीलता के असीमित आसमान तक उड़ने की चिंतन वाला इतिहास रहा है।
इसी प्रयास में डॉ आर के नीरद ने अपनी सम्पादित पुस्तक के साथ साथ सात और पुस्तकों के बिमोचन के लिए पाकुड़ के आँगन और मंच को चुना।
ऐसे ही पिछले मंगलवार को एक कार्यक्रम ने पाकुड़ को एकबार फिर अपने अतीत से परिचित कराया।
हिंदी के प्रख्यात समालोचक-साहित्यकार प्रो. मनमोहन मिश्र की चौथी पुण्यतिथि पर मंगलवार को पाकुड़ में प्रो मनमोहन मिश्र स्मृति न्यास द्वारा संगोष्ठी का आयोजन योग भवन में हुआ। कार्यक्रम के शुभारंभ से स्वर्गीय प्रो. मनमोहन मिश्र प्रोफेसर स्वर्गीय श्रीकांत तिवारी एवं स्वर्गीय पत्रकार कुमार रवि दिगेश (दिगेश त्रिवेदी) की तस्वीर पर साहित्यकारों ने श्रद्धासुमन अर्पित कर किया। इसके बाद प्रो. मनमोहन मिश्र की पत्नी कृष्णा देवी, डॉ. कृपाशंकर अवस्थी, प्रो. रामजन्म मिश्र, त्रिवेणी प्रसाद भगत, डॉ. आर.के नीरद सहित अन्य साहित्यकारों ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में कई लेखकों और कवियों की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। दूसरे सत्र स्मृति आचमन में प्रो. मनमोहन मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर व्याख्यान शुरू हुआ। प्रो. मनमोहन मिश्र के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए देवघर से आए हुए सर्वेश्वर दत्त द्वारी ने कहा कि उनके बारे में कहने के लिए शब्द काफी कम पड़ जाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रो. मिश्र वाचिक परंपरा के साहित्यकार ही नहीं, बल्कि साधक भी थे। उनमें बालसुलभ चंचलता थी। कहा कि देवघर में बच्चे से लेकर 80 वर्ष के व्यक्ति तक उनके मित्र थे। हम उनके हमेशा ऋणी रहेंगे।
दुमका के वरिष्ठ कवि शंभुनाथ मिस्त्री, अरुण कबीर, डॉ. आरके नीरद, डॉ. अमरेंद्र सुमन, विद्यापति झा, दुर्गेश चौधरी, अंजनी शरण, नंदन झा, जामताड़ा के देवेश आत्मजयी, पश्चिम बंगाल के आसनसोल से कवि नवीनचंद्र सिंह, देवघर से डॉ. शंकर मोहन झा, उमाशंकर राव ‘उरेंदु’, अनिल कुमार झा, सर्वेश्वर दत्त द्वारी, हिमांशु शेखर झा, गोड्डा से डॉ. मनोज कुमार राही, रामगढ़ रांची से सरोज झारखंडी, बिहार के बांका से परमानंद प्रेमी, पोडैयाहट से अर्पणा कुमारी, साहिबगंज से विजय कुमार भारती सहित अन्य ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
मौके पर डॉ. रामजन्म मिश्र, डॉ. अरेंद्र सिन्हा, डॉ. शंकर मोहन झा, डॉ. अनिल कुमार झा, विजय कुमार भारती, त्रिवेणी प्रसाद भगत सहित अन्य ने भी अपनी स्मृतियां साझा की। वरिष्ठ पूर्व पत्रकार ओमकार भगत, कसीनाथ साह को मंच ने सम्मानित भी किया।
अंग सहित अन्य प्रदेशों से आये कवियों ने काब्य पाठ कर समां बाँधा, मंच संचालन पत्रकार कृपासिन्धु तिवारी “बच्चन” एवं आर के नीरद ने अलग अलग सत्रों में की। रामरंजन सिंह ने स्वागत भाषण एवं धन्यवाद ज्ञापन गंगाधर मिश्र ने किया।
सम्पूर्ण कार्यक्रम की व्यवस्था तथा आगन्तुकों के स्वागत, भोजन एवं आवासीय व्यवस्था भी आंनद मिश्र “छोटू” ने की थी।
कुल मिलाकर साहित्य के दीवानों के इस मेले ने पाकुड़ की धरती पर एकबार फिर साहित्यिक अँगड़ाई ली।