आपने मेरा ड्रग्स पर लिखा आलेख पढ़ा होगा, पूरे आलेख से ये बात तो समझ में आ गई होगी कि पाकुड़ के युवा कल के वर्तमान, आज का भविष्य किस क़दर नशे की आग़ोश में हाँफ रहा है। कुछ लोगों की समृद्धि की भूख हमारे भविष्य से किस क़दर खेल रहा है।
इधर पुलिस की सक्रियता से कुछ लोग गिरफ्तारी की जद में आये। पुलिस की इस सफलता को लोगों ने सर आँखों पर लिया , लेकिन जितना जल्दी सफलता सर आँखों पर चढ़ा , उतनी ही जल्दी उतर भी गया।
कारण बना ड्रग्स व्यवसायियों की रणनीति में बदलाव। अब ये नशे की पुड़िया हाउस वाइफ के ग्रुपों के हाथों थमा दिया गया। बेरोजगार युवाओं और कम कमाई वाले जरूरतमंद युवकों की पत्नियों को पुड़िया बाजार में खपाने की जिम्मेदारी दे दी गई। इससे दो फायदे इन तस्करों को हो रहा , पहला तो मुँहमाँगी कीमत , और दूसरी कि आसानी से पुलिस की गिरफ्त से बचाव। ये विषकन्याएँ ऐसी हैं कि उनपर शक करना भी आसान नहीं।
एक सवाल पुलिस से लाज़मी बनता है कि थाना के सामने के विभिन्न नामों से जाने वाले बाजारों में आसानी से इन ज़हर के पूड़ियों का मिल जाना , और दूसरा सवाल ये कि बाहर से आनेवाले , तथा आसपास के इलाकों से आनेवाले रेगुलर तथा शौकिया नशेड़ियों को आसानी से पुड़िया मिलने के जगहों का पता रहना , आश्चर्यजनक है , जबकि पुलिस थानों के नाक के नीचे इस रँगीन नशे की पूड़ियों का गंध तक न मिलना !
क्या ये सवाल बेमानी है ? बंगला में एक कहावत है कि ” सोरसा तेय भूत तो नेय ” । मतलब सरसों से ही भूत झाड़ने की विधि के दौरान , कहीं सरसों में ही तो भूत बैठा नहीं है। मतलब कि …….
खैर इस नशे के चँगुल में फँसे नवजवानों का और उनके परिजनों का भविष्य तो अंधकार में है ही , लेकिन नशे के तस्करों के चँगुल में फँसे डेलिभरी हाउस वाईफों का क्या होगा ?
अभी चुनाव में प्रशासन और पुलिस व्यस्त है लेकिन उसके बाद ? और हमेशा सरसों में भूत नहीं हुआ करता भाई।
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आलेख के अंत मे लिखा था कि समाज के ऐसे कोढों से निपटने के लिए पुलिस को उत्तरप्रदेश की नीति अपनानी चाहिए। अगर कहें सही तो हाँ ऐसा ही करना चाहिए, क्योंकि परिवार, समाज, प्रदेश और देश के लिए तैयार होती इस निकम्मी फसल को संवारने के लिए थोड़ी अंगुलियों को टेढ़ी तो करना पड़ेगा।
पुलिस को अपने ख़ुफ़िया सूचना तंत्र से ये पता लगाना होगा कि समाज के कौन कौन से युवा ऐसे नशें की गिरफ़्त में है, उन्हें उठाकर आवश्यक हो तो थर्ड डिग्री इस्तेमाल कर ड्रग्स की गंगोत्री का पता लगाना होगा। जब ऐसे स्थानीय गंगोत्री का पता चल जाय, तो फिर इन गंगोत्रीयों को जन्म देने वाले जहरीले ग्लेशियर का पता लगाना आसान हो जाएगा।
पुलिस को सूचना तंत्र को मजबूत कर ऐसे कदम उठाने होंगे, और हमारे जैसे पत्रकारों को अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर कंस्ट्रक्टिव जनर्लिज्म, और समाज को सकारात्मक भाव से पुलिस को मदद कर इस जहरीले रैकेट पर विराम लगाना होगा। यहाँ समाज के सभी वर्गों को सकारात्मक रवैया अख्तियार करना होगा।
वरना सोचें कि हमारी अगली पीढ़ी नशें की गिरफ़्त में कैसे एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकता है? एक कैसा भविष्य हम समाज, प्रदेश और देश को परोस जाएँगे। जिस पीढ़ी के कदम लड़खड़ाते रहेंगे, पलकें बोझिल और दिमाग सुप्त रहेगा, वो कैसा भविष्य होगा !