सभार डॉ योगेश भारद्वाज
*भगवान का भरोसा……*
गर्मी की भरी दोपहरी का समय था, यात्री रेल गाड़ी के डिब्बे में परेशानी में बैठे थे। बहुत सारे अमीर यात्रियों के साथ एक साधू वेषधारी भी यात्रा कर रहा था।
अमीर लोग साधू को कुछ दिए बिना खाना-पीना, हँसी-ठहाके कर रहे थे और साधू का मजाक बना रहे थे। साधू शांत स्वाभाव से बैठा सब देख रहा था, न ही उसे चिढाने पर क्रोध आ रहा था और न ही वो खाने को कुछ मांग ही रहा था।
रेल्वे स्टेशन आने पर अमीर यात्री उतर कर ठंडा पानी खरीद रहे थे, कुल्ले थूक रहे थे और साधू का मजाक बना रहे थे और तरह तरह के संवादों से उसे ताने दे रहे थे “साधू का वेष बना लेने से कोई साधू नहीं हो जाता, भगवा पहन लेने से कोई ज्ञानी नही हो जाता।
जब गरीबों के पास पैसे न रहे तो अच्छा है, भगवा का नाटक कर लेना चाहिए, मुफ्त खाने को मिल जाता है, कमाने की जरूरत क्या है, भीख भी मिल जाती है और लोग पहनने को कपडा भी दे देते है, घुमने को पैसा भी मिल जाता है, लोगो को बेवकूफ बना के पांव भी छुआ लो तो क्या कम है।” और भी न जाने क्या क्या बोल रहे थे !!!
मगर साधू किंचित भी विचलित नहीं हो रहे थे।
अगले ही स्टेशन पर एक सुन्दर वेशधारी वणिक गाड़ी में चढ़ा। उसके हाथ में पानी से भरा कुंजा और खाने का डिब्बा और मिठाई का डिब्बा था। उसने आते से ही साधू को प्रणाम किया और बोला स्वामी जी ये प्रसाद आपके लिए प्रभु श्रीराम ने भेजा है। उसके ऐसे व्यव्हार से अन्य यात्री उसे अचरज भरी नजरो से देख रहे थे।
साधु ने वो प्रसाद लेने से इंकार कर दिया और शांत शब्दों में कहा की “महानुभाव शायद आपको कोई गलत फहमी हो गई है, मै वो व्यक्ति नहीं हूँ जिसके लिए ये आप भोग लाये है, क्योंकि में तो आपको पहचानता भी नहीं।”
वणिक ने उत्तर दिया “नहीं स्वामी जी मुझे प्रभु श्री राम ने आपके ही लिए भोग लेने का आदेश दिया है और मै आपको अच्छी तरह पहचान गया हूँ कि आप ही स्वामी विवेकानंद जी है। मुझे भगवान् ने स्वप्न में आकर आपके लिए भोग लाने का आदेश दिया है।”
सब कुछ जानकर स्वामी विवेकानंद जी की आँखों से स्नेह से भरी अश्रुधारा निकल पड़ी और रेल के अन्य यात्री अपनी गलती पे शर्मिन्दा होकर स्वामी जी के चरणों में गिर पड़े और क्षमा याचना करने लगे।
स्वामी जी ने मीठे और शांत शब्दों में सबको क्षमा करते हुए बोले, “अपने पैसों पे नाज नहीं करना चाहिए, बल्कि अपनी विनम्रता और दयालुता पर नाज़ करना चाहिए। क्योंकि भगवन पे भरोसा रखने वाले को कभी नुकसान नहीं होता न ही कोई परेशानी परेशान करती है। भगवान् ने सबके भाग्य में खाना लिखा है। एक चींटी से लेकर हाथी तक के सभी जीव भूखे उठते जरुर है मगर भूखे सोते नहीं है। अत: भगवान का भरोसा करो कर्म करो कर्म के फल की चिंता मत करो। अच्छे का फल अच्छा और बुरे का फल बुरा ही होता है।”
ये थे सादगी से भरे स्वामी विवेकानंद जी कहीं भी अपना परिचय अपना नाम बताकर नहीं देते थे वरन अपने प्रवचन से लोगो के ह्रदय में बस जाते थे।हम भारत वासी तो केवल इसी बात पे गर्व करते है की विवेकानंद जी ने भारत की भूमि पर जन्म लेकर इस धरती को पावन कर दिया।
मैं स्वामी विवेकानंद जी को शत शत नमन करता हूँ। जिन्होंने भारत माँ का नाम अपने कर्मो से अमर कर दिया। जहाँ जहाँ भारत का नाम आता है पहला नाम स्वामी विवेकानंद जी का आता है।
ऐसे सहनशील भारत पुत्र को मै प्रणाम करता हूँ।
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