नंदलाल परशुरामका जितने सरल थे उतनी ही लेखनी उनकी मजवूत थी
बिना कोई परिचय पत्र का ही मुझे ले गए थे पत्रकार सम्मेलन में
पल्लव, गोड्डा
बात वर्ष 1991-92 की है। उस समय कुकरमुत्ते की तरह इतने पत्रकार सड़कों पर नहीं उग आए थे। दैनिक हिन्दी में जिले भर में एक ही पत्रकार काम करते थे। नंदलाल परशुरामका जी हिन्दुस्तान, इंद्रजीत तिवारी द टाइम्स ऑफ इंडिया, अभय पालिवार नवभारत टाइम्स, दिवाकांत राजू आज, कृष्णानंद बहादुर हिन्दुस्तान टाइम्स, सीताराम राय जनशक्ति, श्यामानंद वत्स सहित कुछ गिने- चुने पत्रकार ही पत्रकारिता में थे। उस समय दैनिक अखबार में लिखना आसान नहीं था। मैं हाजीपुर से निकलने वाले अखबार अनुगामिनी में हाथ पैर मार रहा था। सुरेंद्र मानपुरी साहब अनुगामिनी के संपादक थे। खबर कागज के पन्नांे पर लिखकर डाक से भेजता था। अधिकांश बड़े दैनिक अखबार के पत्रकार भी यही करते थे। खबर में दम होता था। लेखनी दूर से ही झलक जाती थी। उस समय की चार लाईन की छपी खबर आज के चार पन्नों पर भी भारी होता था। पत्रकारों के प्रति समाज से लेकर प्रशासन में गजब का सम्मान था। नंदलाल बाबू बहुत ही शालीनता से खबर लिखेते थे। मैं इनके पास जाकर बैठता था और कुछ खबर लिखकर दिखलाता था। नंदलाल बाबू और इंद्रतजीत तिवारी साहब मुझे पत्रकारिता में बहुत प्रोत्साहित करते रहते थे। छोटी अखबार में खबर छपती थी तो भी प्रशासन के लोग युवा होते हुए भी सम्मान करते थे। उस समय गोड््डा के डीसी एस एन गुप्ता थे। डीडीसी विमल कीर्ति सिंह थे। एसपी बीएन मिश्रा थे। बोमियो वारी जिला जन संपर्क पदाधिकारी थे। पत्रकार सम्मेलन विधानसभा की तरह होता था। पदाधिकारियों को भय रहता था कि पत्रकार उसके विभाग के खिलाफ कोई प्रश्न वहां पर न उठा दे। उठाए प्रश्नों पर अगले पत्रकार सम्मेलन में कार्रवाई की रिपोर्ट दी जाती थी। मैं नया- नया पत्रकारिता में पैर रख रहा था। कोई परिचय पत्र भी नहीं था। नंदलाल बाबू और इंद्रजीत तिवारी फिर भी मुझे पत्रकार सम्मेलन में ले गए और वहां भी मैं पहली वार कई तीखे प्रश्नों को पूछा। प्रशासन के लोग उसी समय समझ गए कि यह लड़का चुप रहने वाला नहींे है। नंदलाल बाबू ने हाथ पकड़ा तो कल यानि 5 मार्च 2022 को मैंने उनकी अर्थी में कंधा देकर सारे रास्ते चिल्लाता रहा। पत्रकार नंदलाल परशुरामका अमर रहे।
गुरुकर्ज उतारा नहीं जा सकता,उनकी अर्थी को दिया पल्लव ने कंधा।
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