*अब नहीं रहे संथालपरगना के पत्रकारिता के भीष्म पितामह नंदलाल परशुरामका जी*
पत्रकारिता में दधीची की तरह अपनी हड्डी तक गला दिए पत्रकार नंदलाल परशुरामका ने
संतालपरगना में पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहे जाते हैं नंदलाल परशुरामका
*पल्लव, गोड्डा*
उम्र करीब 88 साल। धोती- कुर्ता पहने अभी भी खबर के लिए इधर से उधर जाना। खबर खोजकर प्रकाशित करना ही जिसकी िजंदगी बन गई हो। न आज तक खबर के लिए अपना इमान बेचे न ही ईमानदारी से डिगे। ऐसे ही एक पत्रकार का नाम है नंदलाल परशुरामका। भले ही पत्रकारिता में कितनों भी गिरवट की रंग चढ़ गई हो? पर गोड्डा के नंदलाल परशुरामका को इस रंग ने आज तक नहीं छू पाया। सच कहा जाय तो पत्रकारिता में दधीची की हड्डी की तरह अपनी जिंदगी को गला देने का दूसरा नाम है नंदलाल परशुरामका। पत्रकारिता में संतालपरगना में इतने उम्र के सक्रिय पत्रकार अब कम बचे हैं। संतालपरगना के लोग नंदलाल परशुरामका को पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहते हैं।
कैसे शुरू की पत्रकारिता
नंदलाल परशुरामका के पिता महादेव राम परशुरामका गोड्डा के बहुत अच्छे और नामी पत्रकार थे। बिहार से निकलनी वाली अखबार प्रदीप के वे संवाददाता थे। अपने पिता को समाचार लिखते, वे शुरू से देखते रहते थे। पढ़ाई के दौरान ही वे भी पिता की तरह लिखना चाहते थे। 1952 में ही कभी कविता तो कभी कहानी आगरा से प्रकाशित होने वाली नोंकझांेक तो कभी पंजाव से प्रकाशित होने वाली रंगीला मुसाफिर में भेजने लगे। जब इसकी कविता- कहानी उन दिनों छप जाती तो वे बेहद खुश होते। इसी तरह लिखने का सिलसिला जो जारी हुआ, वह आज तक अनवरत जारी है। पिता महादेव राम परशुरामका जब काम के सिलसिले में बाहर जाते तो नंदलाल परशुरामका ही प्रदीप में पिता के बदले खबर लिख देते। इस तरह नंदलाल परशुरामका को अखबार में लिखने की आदत लग गई। काम के सिलसिले में जब पटना नंदलाल बाबू जाते तो वे उपसंपादक को सीधे समाचार टेबुल तक पहुंचा देते। पिता- पुत्र का चेहरा लगभग मिलने के कारण समाचार संपादक कहते कि आप बहुत सुख गए हैं महादेव बाबू। महादेव राम परशुरामका मोटे- तगड़े थे, जबकि नंदलाल परशुरामका दुबेले-पतले थे। नंदलाल परशुरामका कुछ नहीं बोलते। इस तरह खबर लिखने का सिलसिला जारी रहा।
समाचार संपादक बोले कि संवाददाता आप या यह
नंदलाल परशुरामका अपने पुराने दिनों की याद को ताजा करते हुए बताते हैं कि एकवार पिताजी और मैं दोनो दैनिक प्रदीप के पटना कार्यालय में गया। वहां पर कार्यरत समाचार संपादक रामजी सिंह दोनों को देखकर चौंके, और बोले कि अखबार का संवाददाता आप हैं महादेव बाबू या यह लड़का? यह लड़का तो कई वार कार्यालय आया और खबर दिया। जिसे मैंने छापा है। तब महादेव राम परशुरामका बोले कि यह मेरा लड़का नंदलाल परशुरामका है। मुझे देखते- देखते लिखने सीख गया है। इसलिए जब मैं गोड्डा से बाहर रहता हूं तो यही आपको वहां की खबर लिखकर भेज देता है। तब रामजी सिंह बोले िक कोई बात नहीं? लिखते रहिए और समाचार भेजते रहिए।
1981 में पिताजी के देहांत के बाद प्रदीप से जूट गए नंदलाल परशुरामका
1981 में महादेव राम परशुरामका का निधन हो गया। नंदलाल परशुरामका दैनिक प्रदीप के पटना कार्यालय गए। समाचार संपादक रामजी सिंह बोले कि एक आवेदन आप लिखकर संपादक को दीजिए। उनके कहने पर नंदलाल परशुरामका ने संवाददाता के लिए आवेदन दिया और वे प्रदीप के संवाददाता बन गए। इस तरह वे 1981 से सक्रिय पत्रकारिता में पैर रख दिए। फिर वर्ष 1984 में जब दैनिक प्रदीप हिन्दुस्तान बन गया तो नंदलाल परशुरामका गोड्डा से हिन्दुस्तान के निज संवाददाता बन गए, जो आज तक जारी है।
चोंगा छाप पत्रकारों और पत्रकारिता से काफी दुखी हैं नंदलाल परशुरामका
नंदलाल परशुरामका आज के चोंगा छाप पत्रकारों और पत्रकारिता से काफी दुखी हैं। वे कहते हैं कि पहले पत्रकार बनना आसान काम नहीं था। जिसे भाषा की अच्छी पकड़ होती थी। जो अच्छा लिख पाते थे, तथा जिसका नैतिक बल ऊंचा होता था तभी उसे संपादक पत्रकार बनाते थे। आज तो पत्रकारिता में ऐसे-ऐसे लोग आ रहे हैं जो न दस लाईन शुद्ध लिख सकते हैं न ही पत्रकारिता के कोई भी मापदंड को पुरा करते हैं। अपना मोबाइल निकाले और प्लास्टिक के चोंगा पर कुछ नाम लिखे और चिल्लाना शुरू कर दिए। अगर ऐसे अनाड़ी लोग पत्रकारिता मंे आयेंगे तो उससे अच्छाई की कितनी उम्मीद की जा सकती है? ऐसे तथाकथित पत्रकार तो किसी के लिए भी सौ- दौ में अपना ईमान बेचेंगे ही? पर याद रखिए ऐसे लोग पत्रकारिता में ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पायेंगे। अगर कोई इस धंधा बनाकर कुछ कमाने के लिए, भ्रष्टाचारी बनने के लिए इसमें पांव रखा है तो ऐसे बरसाती मेढ़क कम समय ही टर-टरा पाते हैं और इसकी अकाल मृत्यु होना तय रहता है। यह तो आज तक मैं देख ही रहा हूं।
पत्रकारिता समाज सेवा के साथ तपस्या है
नंदलाल परशुरामका कहते हैं कि पत्रकारिता सब दिन समाज सेवा है। यह तपस्या से कम नहीं है। जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, उसे पत्रकारिता में पैर नहीं रखना चाहिए। कारण पत्रकारिता में पैसा नहीं है, इसमें प्रतिष्ठा है। समाज के हर लोगाें की नजर पत्रकारों पर रहती है। पत्रकार को समाज का आईना कहा गया है। अगर आईना पर ही भ्रष्टाचार का धूल चढ़ा रहेगा तो समाज को वह कैसा चेहरा दिखलाएगा? इसलिए पत्रकार अगर गलत काम में संलिप्त रहने लगता है तो उसकी वर्षों से बनाई छवि मिनटों में मिट जाती है। नंदलाल परशुरामका अभी भी कहते हैं कि देश को, समाज को अभी भी अच्छे पत्रकार की जरूरत है। अभी भी समाज में अच्छे पत्रकार हैं जिसके कारण लोकतंत्र जिंदा है।
छोड़ गए हमें पत्रकारिता के भीष्मपितामह, पत्रकारों में शोक
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