puja singhal के साथ Railway कर्मचारियों की तिजोरियाँ भी ED की होगी पैनी नज़र
Puja Singhal और Illegal mining की कहानी पाकुड़ के लिए ED के छापेमारियों का मोहताज़ नहीं रहा है। तकरीबन 125 साल पुराना सन्थाल परगना के पत्थर खनन का सफ़र दाग़दार रहा है। घपले घोटाले तथा राजस्व चोरी मानो यहाँ जन्मशिद्ध अधिकार बन गया हो। कितनी शिकायतें सरकारी फाइलों में धूल फाँक रही, गिनना मुश्किल है। दशकों से रेल और उद्योगकर्मी की मिलीभगत अजगर की तरह लील रहा सरकारी राजस्व।
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कुछ दिनों पहले बिहार भेजे गए पत्थरों का चालान यानी झारखंड सरकार की रॉयल्टी जमा न करने की ख़बरों के छपने के बाद इस घपले में शामिल रेलवे कर्मी और पत्थर उद्योग के घपलासुरों का सुर बिगड़ गया था। खनन विभाग ने भी इससे जुड़े कागज़ात रेल से माँगा था, लेकिन अब तक उसे ढूँढने की औपचारिकताएं हो रही हैं। लेकिन हलक सूखा हुआ नज़र आ रहा है।
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ये तो बस पाकुड़ के मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग के एक या दो कम्पनी का मामला भर है, लेकिन अगर ठीक से पाकुड़, बड़हरवा, मिर्जाचौकी, बाकूडी जैसे रेलवे सिडिंगों को खंगाला जाय तो अब तक रेलवे और माइनिंग विभाग को खरबों का चुना लग चुका है। एक तरह का चालान ही किया जाता है पेश रेल साइडिंग से रेलवे और प्राइवेट लोगों का भी पत्थर जाता है। खदानों से जो पत्थर चेली के रूप में निकलता है, वो क्रशरों में पीस कर विभिन्न आकार (साइज) का बनता है। चेली जो खदान के लीज एरिया से निकलकर क्रशर तक पहुँचता है, उसका न्यूनतम रॉयल्टी चलान होता है। फिर विभिन्न साइज़ के पत्थरों का अलग-अलग रॉयल्टी होता है, जो कभी कभी कई गुना ज्यादा होता है। खदानों से निकले चेलियों के रिटर्न पर ही, विभिन्न साइजों के पत्थरों का चालान ऑन लाइन निकालने की औपचारिकतायें पूर्ण करने पर निकालने की अनुमति दी जाती है। स्वाभाविक रूप से विभिन्न आकारों के पत्थरों का दाम भी चेली से ऊँचा होता है, तो रॉयल्टी भी ज़्यादा होगा और सेलटैक्स या अब जीएसटी-एसजीएसटी ज़्यादा होगा, लेकिन विभिन्न साइजों के पत्थरों को चेली चलान पर ही रेलवे में लोडकर चलता कर दिया जाता। जिसे रेलवे कर्मी नो साइज़ लिख कर चलता कर देते हैं। रेलवे को तो मशीन मेड के साथ हैंडमेड मिला कर भी चुना या चपत लगाया जाता है।
रेल कर्मचारियों की भी है मिलीभगत
नतीजा खनन विभाग के साथ जीएसटी-एसजीएसटी सभी को चपत झेलनी पड़ती है और उद्योपतियों के साथ रेलकर्मी मलाई चाट जाते हैं। अभी बिना चलान के जो बिहार पत्थर भेजा गया है। उसका आरआर माँगने के बाद भी खनन विभाग को रेल कर्मचारियों द्वारा उपलब्ध न कराया जाना और ढूँढने का बहाना बनाया जाना, उसी नो साइज़ के चेली चालानों की व्यवस्था का प्रयास जान पड़ता है। बंगलादेश गया पत्थर भी है इसी संदेह के घेरे में सन्थाल परगना से बंगलादेश गए पत्थरों का भी यही हाल है। इनकी रॉयल्टी भी संदेह की सीमा में है। Pooja और ऐसे ही पूजनीय लोगों की गुप्त तिजोरियाँ कहीं…. ! एक बात तो तय है कि रेलवे के लोग भी इसमें जरूर संलिप्त रहे हैं। अब देखना ये है, कि होता क्या है ? अजगर की तरह कुंडली मारे रेल और उद्योगकर्मी दंडित होते हैं, या सब ढाक के तीन पात सावित होता है।