इस अंक में विशेष
- Illegal minning, में Puja की सजी थाली के एक कोने में Railway भी है जाँच के दायरे में।
- ED को खंगालने चाहिए Hawda और Malda DRM ऑफिस के DCM कार्यालयों की फाइलें।
- मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग में सुरक्षा मानकों का ठेंगा दिखाकर किया जाता स्टोन चिप्स लोड।
- अगर जांच होगी तो कई सनसनीखेज खुलासे से नही किया जा सकता इनकार।
पाकुड मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग में प्रदूषण अनापत्ति प्रमाण पत्र (पॉल्युशन क्लियरेंस सर्टिफिकेट)की समय अवधि समाप्त होने के बावजूद लगातार रैक लोडिंग का काम धड़ल्ले से चल रहा है। वहीं रैक लोडिंग में नियमों की धज्जियां भी उड़ाई जा रही है। इस साइडिंग क्षेत्र की कई वीडियो और तस्वीर है। जिसका जिंदा सबूत चौका देने वाली है।
इस खबर के साथ लगा हुआ चित्र आपको अचंभित करेगा। रेलवे सुरक्षा मानकों को अगर देखा जाए तो रेल लाईन पर कोई दूसरा व्हिकल या वाहन अगर चलता है या जाता है तो आरपीएफ उस पर कानूनी कार्रवाई करती है। आप पाकुड़ के मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग पर अगर सिर्फ लोडिंग करने के तरीकों को देख लें तो आपको यहां सुरक्षा नियमो का ठेंगा दिखाते लोग दिख जाएंगे।
पत्थर लोडिंग के लिए जो रेलवे प्लॉट अलॉट किया जाता है वह अप और डाउन लाइन से एक नियत दूरी पर की जाती है। जहां व्यवसायी अपना तैयार माल स्टॉक करके रखे, और मजदूर सुरक्षा नियमों का ध्यान रखते हुए रेल बोगी पर लोड कर दें। लेकिन मालपहाड़ी साइडिंग पर ऐसा कुछ नही दिखेगा। जहां मन तहां तैयार माल को डंप किया जाता है और फिर मजदूरों का रोजगार निगलने वाले डायनासोर बुलडोजर से माल लोड किया जाता है।
चूंकि डंप किया हुआ स्टोन चिप्स रेलवे लाइन पर ही रहता है ऐसे में ये डायनासोर रेल लाइन पर बीछे पत्थरो को भी समेटकर लोड कर देते हैं। अप एवं डाउन लाइन के बीच में आमतौर पर जो भी लाइन होता है वो दूसरे प्लॉट पर जाने वाली गाड़ियों को आगे बढ़ाने के लिए होता है। उस पर किसी भी तरह माल डंप करना या फिर लोडिंग के लिए गाड़ी को खड़ा करना, आदि सब रेलवे सुरक्षा नियमों के विपरीत है लेकिन मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग क्षेत्र में ये बातें आम है, और कहा जाता है कि यह सब अनियमितता नीचे से ऊपर तक सुविधा शुल्क को ठेलते हुए किया जाता है। इस विषय पर कोई भी रेल पदाधिकारी कुछ भी बोलने से कतराते हैं। एक सामान्य सी बात है कि एक आदमी को भी यहां झुठलाते सुरक्षा के कार्यों को देखकर अंदाजा लग जायेगा।
सबसे बड़ा सवाल ये बना हुआ है। कि कई महीने पहले जब पॉल्यूशन अनापत्ति प्रमाण पत्र हो गया है खत्म। तो फ़िर सरकारी नियमों को धता बता कर कैसे हो रहा इंडेन्ट।
2 जून के इस पेज ख़बर पर प्रशासन की बड़ी कार्रवाई, 28 क्रशर सील
पॉल्यूशन सर्टिफिकेट की सीमा अवधि खत्म होने के बाद भी रेलवे साइडिंग में पत्थर उत्पादन और लोडिंग से संबंधित बातों को पढ़ा। प्रशासन गम्भीर हुआ। इसे इतना गंभीरता से लिया है कि एक बार फिर खदानों की नापी नही कर धूल झोंकने का बड़ा प्रयास हुआ। प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए रेलवे साइडिंग में संचालित 28 क्रशरों को सील कर दिया है। मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग में कम से कम 28 क्रशरों को सील कर दिया।
लेकिन रेलवे से कोई सवाल नहीं किया। न ही खदानों से कितना घनफुट पत्थर निकला और कितना डिस्पेच आदि की जाँच की जहमत उठाई। जबकि जिला टास्क फोर्स की टीम के साथ दुमका से प्रदूषण नियंत्रण की टीम भी पहुंची थी। दोनों टीम ने ताबड़तोड़ छापेमारी करते हुए क्रशरों को सील किया। इस दौरान क्रशर मालिकों में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में कई क्रशर मालिक क्रशरों को बंद कर भाग खड़े हुए।
मिली सूत्रों से जानकारी के मुताबिक टीम के पहुंचने की खबर मिलते ही क्रशर में कार्यरत मुंशी, खलासी, मजदूर सारे भाग गए। इस दौरान खासकर क्रशर मालिकों में हड़कंप मच गया। मौके पर पहुंचकर टीम ने एक तरफ से कार्रवाई शुरू की। फिर बारी बारी से क्रशरों को सील कर दिया।
उल्लेखनीय है कि रेलवे साइडिंग में संचालित क्रशरों से प्रोडक्शन किए जाने वाले पत्थर चिप्स मालगाड़ी में लोडिंग होकर दूसरे प्रदेशों और देश में भेजा जाता है। जिसमें कई बार नियमों की अनदेखी के मामले सामने आते रहे हैं। फिर भी क्रशर मालिक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। प्रदूषण से जुड़ी प्रशासन द्वारा निर्गत सर्टिफिकेट की सीमा खत्म हो चुकी है। फिर भी धड़ल्ले से क्रशरों का संचालन जारी था। जिला टास्क फोर्स की टीम में एसडीओ हरिवंश पंडित, जिला खनन पदाधिकारी प्रदीप कुमार साह, सीओ आलोक वरण केसरी, सीआई देवकांत सिंह एवं दुमका से प्रदूषण नियंत्रण विभाग के कई अधिकारी पहुंचे थे।
इन सबके बावजूद जिन लोगों ने पॉल्यूशन सर्टिफिकेट लिए थे, उन्होंने नियमों का पालन किया भी की नही। इसे देखने जाँचने और उसपर FIR या करवाई की बात नहीं हुई।
हद है भाई !
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