Thursday, November 21, 2024
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भारत का भविष्य अभी और कितने ही “मणिपुर” की राह पर है अग्रसर

मणिपुर जल रहा है, खून बह रहा है, अस्मत तार तार हो रहा है। याद रखें ये सब इंसानी खून और अस्मत है। तार तार अस्मत करते और खून बहाते कौन हैं, ये भी तथाकथित इंसान ही हैं।

हमलावर कुकी समाज के म्यामांर से आये परिवर्तित कैथोलिक ईसाई हैं, जिन्हें यहाँ बसने में अंग्रेजी शासन काल से उत्तर पूर्व के चर्च सीएन ने बसने में मदद की। इनके साथ परिवर्तित मैतेई भी हैं, लेकिन इनके निशाने पर हिन्दू वैष्णव मैतेई हैं। हाँलाकि अब मार खाते खाते ये भी आक्रामक हो गए हैं, लेकिन हमलावरों का उद्देश्य क्या है? पूरे मणिपुर को चर्च के अधीन लाना, जैसे नागालैंड, मिजोरम और मेघालय की मूल संस्कृति को बिलुप्त कर ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया है।

जब अंग्रेज आये वैष्णव सनातनी सीधे साधे बहुमूल्य सम्पदा वाले देश से अलग थलग सरल सम्पदा से समृद्ध लोगों को लूटना अंग्रेजों का उद्देश्य रहा था। आम लोगों के लिए परमिट और स्वयं खुलकर यहाँ रहना, शेष देश से इन्हें काटे रखना और अपना लूट और फुट डालो राज करो और अलगाववाद का बीजारोपण करने के एजेंडे को लागू रखना, जो सौ साल बाद भी जिंदा रहे की मंशा के साथ करना। धर्म बदलकर ईसाई बनाकर उन्हें एस टी का दर्जा और सरकारी सुविधाएं दी। परिवतिर्त समाज को कुकी और वैष्णव लोगों को मैती कहा जाने लगा। कुल मिलाकर वैष्णव समाज के लगातार विरोध करने के कारण इस क्षेत्र के विभाजन में असमर्थ रहे लेकिन भविष्य में विभाजन की बीज बो गए ब्रिटिश शासन। लेकिन धर्म परिवर्तन करा कर हिंदुओं की संख्या परिवतिर्त ईसाइयों कामयाब रहे। 90 प्रतिशत भूभाग पर मणिपुर में परिवर्तित लोगों का कब्जा हो गया और 10 प्रतिशत पर ही मैती यानी वैष्णव रह गए। अफ़ीम की खेती जैसे गलत कारोबार परिवर्तित लोगों से करा कर अंग्रेज मालामाल होते रहे।

आज़ादी के बाद भी मैती को राजा बोध चन्द्र सिंह के कहने के बावजूद 10 प्रतिशत भूभाग में रहने वाले मैती समाज को एस टी का दर्जा नहीं मिल पाया। स्वाभाविक रूप से उन्हें वो सुविधाएं नहीं मिली। असंतोष स्वाभाविक था और है। खैर महाराष्ट्र के नागपुर से नगालैंड की आदिवासी बाहुल्य अधिसूचित क्षेत्र में कालांतर में ईसाई मिशनरियों ने सेवा की आड़ में धर्म परिवर्तन का खेल चलता रहा। आदिवासी समाज अपने भोलेपन के कारण धर्मांतरण के शिकार होते रहे।अभी मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार मैती समाज को इस टी का दर्जा देने की बात कही। मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने अवैध रूप से आये लोगों और अफ़ीम की खेती पर प्रशासनिक डंडों की बात कही। तस्करों का पूरा गैंग और उनसे लाभान्वित होने वाले राजनैतिक तथा मीडिया के लोगों को मानो साँप सूँघ गया और सपोलों ने मणिपुर को जलाना शुरू कर दिया।

ये जो भी आज हो रहा है अंग्रेजों की दूरदृष्टि वाली नीति और कुकृत्यों का परिणाम है। अंग्रेजों को पता था कि हिन्दू और मुसलमानों को लड़ा कर भारत के टुकड़े किये जा सकते हैं। उन्होनें पाकिस्तान बना कर कर भी दिया, लेकिन इतने पर वे सन्तुष्ट नहीं रहे, उन्हें भारत के टुकड़े टुकड़े करने हैं, और उन्होंने सौ दो सौ साल पहले से इसकी पृष्ठभूमि तैयार कर रखी है, इधर बंगलादेशी घुसपैठ और नागपुर टू नागालैंड के अधिसूचित कॉरिडोर को ईसाई लैंड बनाने पर साज़िश चल रही है। और रह रह कर सरकार के विरुद्ध आग लगाई जाती रही है।

अब मैंने कहा कि संथालपरगना भी इसी राह पर है

पिछले कुछ वर्षों से खुलेआम सुनने को मिला भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह। इसमें कोई नई बात नही है, कि भारत के टुकड़े करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय शक्तियां और साजिशें तकरीबन एक शताब्दी से ज्यादा समय से सक्रिय हैं। अब इसमें ये इंशा अल्लाह शब्द जो जुड़ा है ये एक नई साजिश है, इसे समझना ज्यादा जरूरी है। मुझे लगता है कि पहले भारत के टुकड़े करने की साजिश में इंशा अल्लाह को ही समझने की कोशिश करें।

भारत के टुकड़े करने के नारे के साथ जो इस मज़हबी नारे को जोड़ा गया वो सबसे पहले जे एन यू में हुआ और वहां नारे लगाने वालों में सिर्फ़ उमर खालिद ही नही बल्कि कन्हिया भी था। कन्हिया के साथ कितने सारे ही हिन्दू लड़के लड़कियां भी थीं। क्या किसी हिन्दू घर मे इंशा अल्लाह शब्द का प्रयोग सिखाया जाता है? नही और सिर्फ यही जवाब होगा, नहीं।
भारत के टुकड़े करने के लिए, सबसे ज्यादा जरूरी है, कि पहले यहां की ज़मीन और वातावरण में एक ऐसा ज़हर घोला जाय कि हर दिलों में दूरियां बढ़े और हर नज़र एक दूसरे को शक, वहम और सशंकित आशंका से देखे।

वर्षो से आतंकवाद और घुसपैठ को झेल रहे भारत में इस इंशा अल्लाह जैसे मज़हबी शब्द का भारत के टुकड़े करने जैसे नारों के साथ जोड़ कर आसानी से ऐसा ज़हर घोला जा सकता है और अंतरराष्ट्रीय साज़िश कर्ताओं ने बड़ी सफलता के साथ इसे जे एन यू के आंगन से इसे यहाँ परोस दिया। अब गाहे बगाहे ये दोनों नारे भारत के अलग अलग हिस्से में सुनने को मिल रहे हैं और हर राष्ट्र भक्त इसे एक मज़हबी नारा समझ कर एक मजहब विषेष और उसे मानने वालों को दूसरी नज़र से देख रहे हैं और स्वाभाविक रूप से स्वयं को शक की निगाह से घूरे जाने से एक प्रतिक्रियात्मक मानसिकता पैदा हो रही है। शाजिश करनेवाले भारत के टुकड़े करने के लिए समाज और दिलों टुकड़े करने में सफ़ल हो गए।

सवाल उठता है कि भारत के टुकड़े करने की क्या है अंतर्राष्ट्रीय शाजिश और ये कब से चल रहा है और इसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किनका हाथ है। आंकड़ो, विज्ञापनों और पीतपत्रकारिता के इस दौर में किसी की नज़र इस और क्यों नही जाती ये समझ से परे है।

अंग्रेजों में कई सदी हम पर साशन किया, बड़े बेआबरू हो कर उन्हें इस सोने की चिड़ियाँ को आज़ाद कर जाना पड़ा, जाते जाते उन्होंने देश के टुकड़े कर दिए। लेकिन उन्होंने इतने पर ही सन्तोष नही रखा। इस देश के कालांतर में और भी टुकड़े होते रहें, इसका बीज वो बो गए और उस बीज को कई किनारों और तरीकों से उसे सींचना भी जारी रखा।

अंग्रेज़ो को पता था कि इस देश मे अब बहुत दिन रहा और राज नही किया जा सकता, इसलिए उन्होंने अपने शोषक मानसिकता के बाद भी, मिशनरियों की आड़ में सेवा कार्य शुरू किया। ये सेवा कार्य महाराष्ट्र के नागपुर से नागालैंड के एक विशेष कॉरिडोर में ही ज्यादा जोर से सिमटा रहा।ऐसा इसलिए कि इस इलाके में भारत की संस्कृति की रीढ़ आदिवासी समुदाय के लोग रहते है। भारतीय संस्कृति के मूल वाहक, भोले भाले, स्वभाव से ईमानदार और भौतिक विकास की अंधी दौड़ में सबसे पीछे रह गए इस आदिवासी समाज को धर्मातरण के द्वारा नागपुर से नागालैंड के इस कॉरिडोर को अलग कर एक अलग लेंड का पहचान दिलाना और फिर एक अलग ईसाई राष्ट्र बनवाना। अंग्रेजो ने अपनी फुट डालो राज करो की नीति को यहाँ से जाने के बाद भी कायम रखा।

सवाल उठता है कि इस अंग्रेजों की नीति के साथ इस इंशा अल्लाह का क्या नाता है! जब मज़हब के नाम पर भारत के टुकड़े हो चुके थे, इतिहास गवाह है कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं और बंग्ला भाषी मुसलमानों के साथ पश्चिमी पाकिस्तान कैसा दोयम दर्जे का व्यवहार करता था। भारत की शेरनी इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश के नाम से एक अलग राष्ट्र का अस्तित्व दिलवाया। ये टीस आज भी पाकिस्तान को है।

उधर तालिवान सहित पाकिस्तान के आतंकियों को फलने-फूलने में अमेरिका ने भरपूर सहयोग दिया ये दुनियां से छिपा नही है। इन आतंकी संगठनों ने बंगलादेश में भी अपनी गतिविधि शुरू की जो आज तक कायम है।

इधर भारत की वोटबैंक की राजनीति के कारण बंगलादेश से घुसपैठ शुरू हो गया, जो बदस्तूर जारी है।

अगर बंगलादेश से घुसपैठ के इलाके को देखा जाय तो असम, बंगाल, बिहार और झारखण्ड का इलाका प्रभावित है बंगलादेश के एक बुद्धिजीवी तत्कालीन कुलपति ढाका विस्वविद्यालय डॉ शाहीदुज्जमा ने एक सम्भावना को टटोलते हुए एक नीति बनाई कि भारत का एक बड़ा भूभाग जो बंगलादेश के सीमाई इलाके से लगा हुआ है, उसे घुसपैठ के द्वारा मुसलिम बहुल बना कर संस्कृति और भाषाई आधार पर काट कर बंगलादेश में मिलाने का प्रयास होना चाहिये और ये है भी कि सीमाई क्षेत्र में हमारी संस्कृति और भाषा बंगलादेश से मेल खाती है। हमारे यहाँ की वोटबैंक की राजनीति ने बंगलादेश के इस मंशा को बल दिया और घुसपैठ की इस सीमाई क्षेत्र में क्या स्थिति है, किसी से छिपी नही है।

इस नीति पर भारत को तोड़ने वाले पश्चिमी षडयंत्रकारियो की भी नज़र गई और उन्होंने भी घुसपैठ कराने वाले और भारत को अस्थिर कर तोड़ने की मंशा रखने वाले आतंकियों को और सींचना शुरू किया। क्योंकि इससे पश्चिमी षड्यंत्र नागपूर से नागालैंड तक की अलग एक और ईसाई बहुलता वाले राष्ट्र बनाने की मंशा भी पोषित होगी।

लेकिन पश्चिमी षड्यंत्र पर किसी की नज़र न जाये, इसके लिए उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद और अलगाववादी सोच को अपने तरीके से सींचा और जहाँ जैसे जरूरी समझा उसे इस्तमाल किया।

और हमारे यहाँ के तथाकथित बुद्धिजीवी, प्रगतिवादी सोच की ढोंग रचने वाले लालची लोग और स्वयंसेवी संस्थाएं एक आतंकी के लिए नारे लगाते और लगवाते है भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह।

ये नारे लगाने वाले लोग ईश्वरीय सत्ता को नही मानते तो ख़ुद को बामपंथी कहने वालों देश को ये तो बताओ कि इस टुकड़े करनेवाली अपनी मंशा में अल्लाह को लाने का हक किसने तुम्हे दिया और तुम अल्लाह का नाम लेकर यहाँ विद्वेष किस मंशा और किसके इशारे पर कर रहे हो?

हमे सोचना होगा कि भारत के टुकड़े करने की बात सिर्फ़ पाकिस्तान या वहाँ के आतंकी नही सोचते, बल्कि पाश्चात्य सभ्यता और देश भारत के टुकड़े करने का बीज बहुत पहले बो गए हैं और उसे इस्लाम के नाम पर कुछ भटके हुए तथाकथित इस्लामिक आतंकी नेताओं के कंधों पर बंदूक रख कर चला रहे हैं।

इन सारी बातों और अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों को अगर समझने का प्रयास किया जाय, तो देश के अलगाव, विघटनकारी एवं देश के अन्दर गृहयुद्ध की परिस्थियों को जन्मदेनेवाले तत्वों के विषय मे समझा जा सकता है।

पाकुड़ और सन्थाल परगना का क्षेत्र ऐसे ही षड्यंत्री ताकतों का केंद्र बना हुआ है। लेकिन ये घुसपैठ और संथालपरगना में जहाँ आदिवासी संस्कृति के साथ साथ, ईसाई मिशनरियों की मजबूत पकड़ है, वहाँ बंगलादेशी घुसपैठियों ने शादी की आड़ में जमीन हथियाने और धर्मांतरण का रास्ता अख्तियार कर ईसाई समाज से भी पंगा ले लिया है, जिसकी आशा या परिकल्पना किसी को नहीं थी। इसके साथ बहुत कुछ जुड़ा हुआ है, चाहे वह औद्योगिक विस्फोटक, अमोनियम नाइट्रेट, कोयला, पत्थर आदि की कालाबाजारी हो या फिर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की सक्रियता और एन आई ए जैसे केंद्रीय एजेंसियों की पाकुड़, सहेबगंज सहित बंगाल, बिहार असम आदि राज्यों में पैनी नज़र।

लेकिन सबसे विडम्बना की बात है कि हमारी राजनीति वोट बैंक की राजनीति में अपने अंग रहे लोगों की सुविधाएं अन्य देशों के नागरिकों को तो देने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसकी कीमत हमें अपने ही बीच शंका और आशंका को ढोते हुए भुगतना पड़ रहा है। ये कब समझा जाएगा, कब हम समझ पाएंगे? वह दिन दूर नही जब संथालपरगना, पश्चिम बंगाल, बिहार और असम के कुछ जिले मणिपुर की तरह जल उठे। पूरे देश में पश्चिमी डिप्लोमेटिक आतंकवाद, इस्लामिक आतंक की आड़ में भारत के टुकड़े टुकड़े करने पर तुले हैं और हम हिन्दू मुसलमान खेल रहे हैं।

गृह युद्ध की रणनीति को समझने के लिए एक और बात पर ध्यान देने की जरुरत है, क्या आपने इस बात पर गौर किया है, कि राष्ट्रीय उच्च पथों पर जगह जगह चौराहों पर अव्यस्थित घनी आवादी अवैध निर्माण और अतिक्रमण कर बनाये गये हैं, हालाँकि कुछ जगहों पर सड़क चौड़ीकरण में ये हटाए भी गए हैं। रेलमार्गों पर नज़र डालें तो रेललाइनों के किनारे संकरी गलियों वाली ऐसी ही आवादी पूरे भारत मे नज़र आती है। हवाई अड्डों के आसपास भी तंग झोपडपट्टियाँ दिख जाती रहीं हैं।

ऐसा क्यों? ताकि गृहयुद्ध के दौरान सेना और फोर्स के आवागमन को बाधित किया जा सके। शायद इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर केंद्र सरकार ने न सिर्फ़ पर्याप्त हवाई युद्धक समान ख़रीदे और खरीद रहे हैं, बल्कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बने और बंद पड़े हवाई अड्डों को पुनर्जीवित किया, नए भी बनाये, जिससे फोर्स और आवश्यक सामानों को निर्बाध लाना ले जाना सुलभ हो।

यह देश एक रंगीन गुलदस्ता है, किसी भी रंग की अनुपस्थिति गुलदस्ते को फीका करेगा, ये कभी हम, हमारी राजनीति, हमारी पीत पत्रकारिता समझ पाएंगे ऐसा विस्वास है। इंशा अल्लाह, हे राम, प्रभु यीशु अब तो तुम्ही जानो। ऐसे हजारों हजार वर्षों से भारत है और रहेगा।

कृपासिंधु तिवारी बच्चन

            

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  1. अति उत्तम प्रस्तुति। सम्पूर्ण घटनाओं का एक सटीक एवं संक्षिप्त विवरण।
    धन्यवाद।।

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