पाकुड़ । राजापड़ा महल्ले में स्थित नित्यकाली मंदिर सिर्फ़ पाकुड़ ही नहीं, बल्कि तंत्र साधकों के बीच दूर दूर तक विख्यात है। स्वाभाविक रूप से तंत्र साधकों से जुड़े लोग नित्यकाली काली के दर्शन करने आते रहते हैं। बंग्ला सन 1222 यानी सन ई. 1700 के उत्तरार्ध में बना यह मंदिर अपने अंदर एक गूढ़ इतिहास और कई किंवदंतियों को समेटे हुए है।
तांत्रिक विधि से स्थापित यह मंदिर पाकुड़ की समृद्ध इतिहास की कहानी, मंदिर के अंदर स्थित मूर्तियों की ज़ुबानी ही सुनाती बरबस नज़र आ जातीं हैं।
नित्य पूजन लेने वाली माँ नित्यकाली की दक्षिणामूर्ति शिव सहित एक ही काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है। माँ के पैरों तले लेटे शिव की मूर्ति गुप्तकालीन मूर्तिकला प्रतिबिंब सा है, तो माँ की मूर्ति मध्यकालीन ऐतिहासिक मूर्तिकला का परिचायक सा दिखता है। काली की मूर्ति के ठीक सामने आँगन की दूसरी ओर गणेश की मूर्ति स्थापित है। स्वस्तिक की तरह दिखनेवाले मंदिर का आँगन में हर तरफ सफ़ेद और काले पत्थरों के 34 शिवलिंग स्थापित हैं, जिसे तांत्रिक मान्यताओं के अनुसार विभिन्न भैरव की उपाधि प्राप्त है, लेकिन सामान्य श्रद्धालुओं के लिए ये शिवलिंग के रूप में मात्र पूज्य हैं, जबकि तंत्र साधक जो गुप्त रूप से मंदिर में सामान्य वेशभूषा में आकर पूजा करते हैं , इन शिवलिंगों की पूजा विभिन्न भैरवों के रूप में करते हैं।
इस मंदिर की स्थापना से सम्बंधित कई कहानियां प्रचलित हैं। कहते हैं कि राजा पृथ्वी चन्द्र शाही ने जब मोहनपुर से राजापाड़ा में राजवाड़ी एवम अपनी प्रजा सहित राजकर्मचारियों के लिए एक छोटे कस्बे का निर्माण कराया तो , आम जनजीवन के लिए सभी आवश्यक व्यवस्था को मूर्तरूप दिया , तालाब, सड़क, नालियाँ यहाँ तक कि श्मशान तथा कब्रिस्तानों तक की व्यवस्था का प्रावधान रखा। इसी क्रम में एक रात राजा शाही को माँ नित्यकाली ने स्वप्नादेश दिया कि राजवाड़ी के बगल में एक निश्चित स्थान पर खुदाई करवाओ , वहीं एक बड़ा काला सा शिलाखंड निकलेगा , उसे बनारस के एक नियत मूर्तिकार से मूर्ति का निर्माण करा कर मेरा पँचमुंडासन पर स्थापना कर मंदिर बनवाओ।
उधर बनारस में भी उस नियत मूर्तिकार को भी पाकुड़ आकर मूर्ति बनाने का आदेश स्वप्न में माँ ने दे रखा था। सुबह जब तक राजा राजपुरोहित से इस स्वप्नादेश की चर्चा करते , बनारस के वो मूर्तिकार राज प्रासाद में पहुँच चुका था। स्वयं तंत्र के अच्छे जानकार रहे राजा शाही ने पूरी व्यवस्था के साथ वर्तमान में स्थित कालिसागर तालाब के पास खुदाई करवाई, स्वप्नादेशानुसार काला शिलाखंड मिला और मंदिर का निर्माण भी हुआ। ऐसी ऐतिहासिक कहानियों को समेटे यह मंदिर आज भी पाकुड़ के समृद्ध इतिहास की कई कहानियां कहता और गढ़ता खड़ा है।
आस्था के इस ऐतिहासिक प्रतीक से जुड़ी अनेक कहानियां कहता मन्दिरों के शहर पाकुड़ में अन्य पंथ के भी कई गवाह उपस्थित हैं, क़स्बे से नगर बने इस शहर को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समृद्ध बनाता है। हम समय समय पर इन ऐतिहासिक गलियारों से अपने पाठकों को रु-ब-रु कराते रहेंगे।