डीसी को भी गलती माननी पड़ी थी नंदलाल परशुरामका से
पल्लव, गोड्डा
दैनिक प्रदीप के बाद मौत आने के दिन तक दैनिक हिन्दुस्तान के मान्यता प्राप्त पत्रकार रहे नंदलाल परशुरामका बाहर से जरूर सरल थे, पर जब कलम और स्वाभिमान की बात होती थी तो वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते थे। बात 1995 की है। एमपी चुनाव में किसी छपी समाचार को लेकर डीसी नंदलाल बाबू से नाराज थे। गोड्डा गांधी मैदान स्थित टाउन हॉल के पास एमपी चुनाव की मतगणना हो रही थी। प्रशासन की ओर से मतगणना स्थल तक जाने के लिए पास की व्यवस्था किया गया था। नंदलाल बाबू को भी पास निर्गत किया गया था। वे जैसे ही मतगणना कक्ष में पहुंचे तो वहां पर बैठे तात्कालीन डीसी एस एन गुप्ता ने अनादर करने के ख्याल से पूछ दिया कि आप कौन हैं? और कैसे यहां तक आ गए? नंदलाल बाबू पहले तो चौके पर तुरंत बोले कि मैं हिन्दुस्तान हिन्दी का निज संवाददाता हूं और आपके द्वारा जारी पास के मिलने के बाद ही यहां समाचार संकलन करने आया हूं। बाद में उन्हें बैठने के लिए कहा गया पर स्वाभिमान पर लगी चोट के बाद नंदलाल बाबू वहां से तुरंत लौट गए। उस समय नंदलाल बाबू जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष भी थे। उसने अपनी बात पत्रकार संगठन में रखा। इंद्रजीत तिवारी ने मोर्चा संभाला और बाद में जाकर डीसी को नंदलाल बाबू से गलती मांगनी पड़ी। नंदलाल बाबू ने वार्ता के समय डीसी को कहा कि आपसे समाचार संकलन के दौरान भेंट होती रहती थी। आप सदा कहते थे कि आइए परशुरामका जी बैठिए और एका- एक उस दिन आपने सबों के सामने कहा कि आप कौन हैं और यहां तक कैसे आए? यह मेरे स्वाभिमान के खिलाफ था। नंदलाल बाबू ने कहा कि पत्रकार के पास स्वाभिमान ही पूंजी होती है। इसे के सहारे वे जीते- मरते हैं। यही कारण है कि इसके आगे आप कौन कहे, बड़ी- बड़ी हस्ती को भी पत्रकारों को सम्मान देना पड़ता है। पत्रकारिता में लोग सम्मान पाने को लेकर ही आते हैं। आज कुछ लोग इस सम्मान को गिरवी रखकर अपना स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रशासन की जी हजूरी करते हैं। मैं इसमें से नहीं हूं डीसी साहब
पत्रकारों की पूंजी होती है स्वाभिमान : स्व.परशुराम
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