Sunday, December 22, 2024
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Puja सिंघल एंड ग्रुप ने कर दिया गुड़ गोबर, वरना हिम्मत को भी हिम्मत नहीं थी अवैध खनन रोकने की हिम्मत

रघुवर चचा चुनाव हार गए, अब हेमन्त की हिम्मत की छाँव में अवैध खनन   |   सब कुछ चल रहा था अच्छा, Puja ने खुलवा दी कलई

पाकुड़ में अगर हिम्मतवालों का हिम्मत देखना है। तो यहाँ के पत्थर उद्योग की अवैध खननों की अंधेर गलियों में आपका स्वागत है। पूरे जिले में यूँ अंधेर है। कि हिम्मत को भी हिम्मत नही होती कि इन अवैध खननों पर रोक लगाने की हिम्मत कर ले। कभी – कभी प्रशासन इस पर छापेमारी करता भी है। तो थाने के कागजों को सुहाग की एक बिंदी की तरह बस एक एफआईआर भर दर्ज होती है। और फिर होता कुछ नही। बस बीच वाले ताली बजा कर एक दो दिन अधिकारियों की जय गान कर लेते हैं । और समाचार माध्यमों में अचानक चुप्पियों का डेरा बन जाता है।

मड़वाड़ की मजबूत दीवाल की तरह एक भैया कानून को मुस-ताक़ पर रख कर आराम से बसमता में सरकारी ख़ास जमीन पर भी जमकर खुदाई करते हैं। ‘हेभी’ , हाँ मजबूत बड़ी गहरी और दूर तक जमीन को थरथरा देने वाले विष्फोट को तो यहाँ की पथरीली भाषा मे ‘हेभी’ ही कहते हैं। जो विष्फोट जमीन थर्रा दे । उन्हें अपनी चाँदी के जूतों पर भी तो उतना ही विश्वास होता है।

इधर भगवान का डर नही, उधर ख़ुदाई का ख़ौफ़ नही। और शासन – प्रशासन ? कोई बात नहीं चाचा गए तो अब हिम्मतवाले तो हैं ही, सब सँभल जाएगा। माँ दुर्गा के नाम पर खनन करने वालों की छांव में मित्र जी अपनी मित्रता छोटे बच्चों से भी निभाते हैं। अपने खदान दाग संख्या 388, 389 में ब्लाष्टिंग कर महज़ सौ मीटर की दूरी पर स्थित प्राथमिक विद्यालय और आंगनबाड़ी के नन्हों को बिना झूला के ही जमीन को झूला कर झूले का आनन्द देते हैं।

प्रभु नारायण के दास के बगल में भी समय सीमा खत्म होने के बाद भी मित्र भाई अपनी मित्रता खदान से निभा रहे हैं। मौजा बहिरग्राम – रामनगर में प्लॉट नम्बर 1033 पारष जी के जमीन पर बिना लीज के रो कर हित करने वाले अपने भाई मोह कर हित करनेवाले के साथ एक तथाकथित पत्रकार असत्य का दामन थाम ख़ूब खुदाई में व्यस्त थे। भाई कहते थे।और बड़े गरूर से कहते थे, कि सभी पत्रकार तो हमारे अंदर काम करते हैं। ऐसे में हंस हंस कर आनन्द उठाने वाले भी जमकर कागज़ पर बंद खदानों पर मस्ती में खुदाई का तांडव कर रहे है। ये सिर्फ़ एक जगह की बात नही है। पाकुड़िया के ख़क्सा में बोरिंग वाली गाड़ी लगा कर डीप ब्लाष्टिंग होता और किया जाता था। बगल में आसपास ही बनविभाग के बोर्ड लगे हैं, सम्भव है, वन की जमीन पर ही अवैध खुदाई हो रही हो।

हंलांकि puja कृपा से वहाँ वन विभाग ने रास्ता ही खोद दिया है। प्रशासन के नाक के नीचे कैसे होती है ये अवैध खनन का कारोबार, क्या ये आश्चर्यजनक नहीं ? प्रशासन की करवाई स्वयं इस बात का सबूत है, कि बड़ी बड़ी मशीनों से इस अवैध खनन को दिया जाता है अंजाम। पुलिस लाइन के बिलकुल छलांग भर की दूरी पर गोकुलपुर में कोई भी झाँक आए। अवैध चलान, क्लोन चलान और सरकारी राजस्व को चपत लगाने वाले कई कहानी है।

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता है। भाई इस पत्थर के कारोबार में। खैर नीचे इसके सबूत और उठे सवालों को भी पढ़ लें।

प्रशासन की करवाई बना सबूत

पाकुड़ के मलपहाड़ी थाना क्षेत्र के पिपलजोड़ी मौजा में पिछले 15 मार्च 2021को एक छापेमारी में अवैध पत्थर खदान और कई ट्रक तथा एक पोकलेन भी बरामद किया गया। हँलांकि इतने सामानों और गाड़ी पोकलेन सहित सबकुछ पकड़े जाने के बाद भी एक भी गिरफ्तारी न हो पाना सहज स्वीकार्य नही दिखता है। दर्ज शिकायत में खनन कार्य के चालू रहने की बात कही गई है।और सभी खनन कार्यरत कर्मियों के भाग जाने की चर्चा भी है।

अतकनिकी ढंग से हुई छापेमारी

इस छापेमारी टीम में एक जिला स्तर के पदाधिकारी, एक अनुमंडल स्तर के पदाधिकारी एवं पुलिस बल सामिल थे। खैर ये अवैध खदान 2019 तक समय सीमा खत्म होने तक वैध था। जब तक लीज था, तब तक तो ठीक था। लेकिन अगर लीज की समय सीमा खत्म हो गई थी। तो उस सुरसा की मुँह की तरह खुद चुके खदान को लिजधारी ने भरकर सामान्य समतलीकरण कर उपजाऊ जमीन बना कर उस जमीन के खतयानी रैयत या जमीन सरकारी है, तो सरकार को वापस क्यूँ नही किया ? ये सवाल पूछे भी तो कौन। हर और चाँदी के जूते लहरा दिए जाती है।और स्वार्थजनित ख़ामोशी कायम हो जाती है।

नियमों की उड़ती धज्जियाँ

खनन नियमों एवं लीज के निबंधन के कागज़ात में उल्लिखित शर्तों के अनुसार किसी भी उत्खनन क्षेत्र में उत्खनन समाप्त होने के बाद उस उत्खनित जमीन का समतलीकरण कर उसे पूर्ववत स्थिति में लाकर उसे उस जमीन के मालिक को वापस करना है। चाहे वह जमीन सरकारी, वनविभाग या रैयत का ही क्यूँ न हो। सवाल ये है, कि अगर उस जमीन पर उत्खनन की समय सीमा खत्म हो गई, तो उस जमीन को पूर्ववत स्थिति में लाने के कार्य का अवलोकन करना क्या खनन विभाग की जिम्मेदारी नही ?

सरकार ने माइंस एन्ड मिनरल एक्ट की किताब में विस्तार से सभी बातों पर प्रकाश डालते हुए विभिन्न धाराओं उपधाराओं में समय अंतराल तय करते हुए माइनिंग इंस्पेक्टर, और जिला खनन पदाधिकारी के प्रति खदान में जाकर भौतिक सत्यापन करने और उसपर रिपोर्ट बनाकर चालान निर्गत करने सहित अन्य निर्णय लेने तथा राजस्व उगाही की तमाम बातें कही है। नियमों के अनुसार अधिकारियों का नियत समय पर क्षेत्र भ्रमन का प्रावधान इसलिए किया गया है। कि लिजधारी तमाम नियमों का पालन करें ,और अगर कहीं नियमों का उल्लंघन होता है । तो उसपर अधिकारी रोक और अंकुश लगाकर उसे सुधार सके।

लेकिन यहाँ ऐसा होता नही है। सैकड़ों खदान यहाँ ऐसे हैं, जहाँ लीज का समयसीमा खत्म होने के बाद भी खनन हो रहा है।

दर्जनों जगह ऐसा है। जहाँ खनन के लिए मिले लीज के एरिया से बाहर निकल कर खनन किया जा रहा है। बहुत सारे जगहों पर ग्रामीण सड़कों ने कई बार अपनी जगह और दिशाएं बदलीं है। कारण कि ग्रमीण सड़कों के किनारे स्थित खदानों के खननकर्ताओं ने पत्थर निकालने में कब सड़कें खा ली। और सड़कों ने बेख़ौफ़ खननकर्ताओं के भय से कब अपनी जगह तथा दिशाएं बदल लीं पता ही नही चला। जंगलों और सड़कों के किनारे नियमों को मुँह चिढ़ाती खदानें पाकुड़ और साहेबगंज जिले सहित पूरे संथालपरगना में आपको बरबस ही कहीं भी दिख जाएंगे। लेकिन इनपर कोई अंकुश या करवाई नहीं होतीं। जब कोई वरीय प्रशासनिक और पुलिस पदाधिकारी कड़े तेवर में अपनी नजरें तीखी करते हैं, तो एक आध ऐसी करवाई कर अपने वरीय पदाधिकारी को संतुष्ट करने का प्रयास होता है।

सवाल उठता है ,पदाधिकारियों को अपने विभागीय जिम्मेदारी निभाना पड़ता है।

तो फिर कैसे 2019 में समय सीमा खत्म हुए खदान में इतने ऑपरेटिंग बड़े बड़े उपकरणों के साथ उत्खनन हो रहा था? क्या यही एक ऐसा उदाहरण है ? क्या ऐसे समयसीमा खत्म हुए अन्य खदानों में सबकुछ सामान्य है? क्या उन खदानों के उत्खनित क्षेत्र को भर कर समतलीकरण कर दिया गया है? अगर उन्हें उत्खनन के बाद नही समतल किया गया तो ,उसमें जमा पानी मे मछली पालन की व्यवस्था कर उस जमीन के रैयत के उपार्जन का माध्यम तैयार कर दिया गया है?

इन सवालों को तो हल करना ही होगा। और हाँ अगली बार से छापेमारी भी ट्रेन्ड और प्रोफेशनली करने की आवश्यकता है , ताकि दोषियों में से कुछ एक की भी गिरफ्तारी दिखाई जा सके।

11 अक्टूबर 2021 को

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