शनिवार (29 जून) को अहले सुबह अन्नपूर्णा कालोनी निवासी एक महिला शनिदेव के मंदिर से पूजा कर वापस घर आ रही थी , कि एक उचक्के ने महिला के गले से सोने का चेन झपट लिया।
स्वाभाविक रूप से सुबह सुबह हर एक आदमी के पीछे सुरक्षा में पुलिस तो नहीं रह सकती। रातभर गश्ती करने के बाद मनुष्य होने के नाते पुलिस को भी फ्रेस और फ़ारिक होने का मानव सुलभ अधिकार तो है , लेकिन ये झपटमार उचक्कों को फ्रेस होने के समय भी अपराध करने से कोई गुरेज़ नहीं होता।
पीड़िता अन्नपूर्णा कालोनी निवासी अवकाश प्राप्त व्यख्याता एस एस मिश्रा की पत्नी हैं। धार्मिक स्वभाव की महिला ने घर आकर घटना की जानकारी अपने घर में दी। इसी दिन सुबह ही प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी इलाज के लिए राँची बाय रोड निजी वाहन से जाने वाले थे। पुलिस को सूचना दे कर वे लोग राँची चले गए , आख़िर इलाज़ कराने की आवश्यक आवश्यकता थी।
लेकिन एक सवाल जो पीछे छूट गया कि शहर में अहले सुबह ये उचक्के कहाँ से और किन परिस्थितियों में उपज आये !
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इसका एक मात्र कारण है , नशे की लत , और उसमें भी ड्रग्स जैसे गम्भीर और घातक लत में अपराध तक करने को तैयार ऊंघते भविष्य वाले युवा वर्ग।
यहाँ कुछ ऐसे युवा उपज गये हैं , जो ब्राउन शुगर जैसे घातक ड्रग्स के चँगुल में फँस गये हैं , और इतने मंहगे नशे की लत अपराध का द्वार भी खोल देता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यहाँ के ऐसे युवा ऐसे अपराध के लिए ट्रैकिंग करते हैं और आसपास के इलाकों के अपने नशेड़ी साथियों को हायर कर ऐसे अपराधों को अंजाम देते या दिलाते हैं।
नशेड़ियों की भाषा में ये BS यानी ब्राउन शुगर एभिल इंजेक्शन की काँच वाली शीशी में मिलाकर कागज़ या पेपर जला कर गर्म करते हुए हिलाते हैं। ऐसे में BS उस एभिल में पूर्णतया घुल जाता है , और फिर श्रीचं तथा निडिल से मस्कुलर इंजेक्ट कर लेते हैं।
आहिस्ते आहिस्ते आहिस्ते ये मस्कुलर इंजेक्शन शरीर में घुलता है और दिनभर की ख़ुमारी बनाये रखता है।
ये नशा बहुत ही खर्चीला है। इस एक डोज के प्रकरण में लगभग एक हजार से इग्यारह सौ का खर्च आता है। हर ड्रगिष्ट 24 घण्टे में लगभग दो डोज तो ले ही लेता है।
घर से सौ पचास के मिलने वाले पॉकेट मनी में चाय-पानी , सिगरेट और फिर बाइक के फ्यूल का खर्च तो निपटना मुश्किल है , ऐसे में इतना मंहगा नशा न अपराध कराए , ये हो ही नहीं सकता।
अब उन अपराधियों की ख़ुमारी के लिए ऐसे ही झपटमार चेन के साथ लोगों की चैन भी लूट जाएँगे।
हाँ नशा मुक्ति का नारा सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है , लेकिन इन झपटमारों का नाड़ा टाइट किये बिना ?
ऊँ हूं ये न हो सकेगा।