Monday, November 11, 2024
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ग्राम विकास में स्थानीय लोगों की सहभागिता जरूरी: दिब्यमान

ग्राम विकास की संकल्पना करना स्थानीय स्तर की सहभागिता के बिना संभव नहीं -विश्व दिव्यमान दुबे (शिक्षक सह ग्रामीण विकास पलामू )

ग्राम विकास भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है,आजादी के पहले से ही ग्रामीण विकास एवं उनकी अर्थव्यवस्था को कुचला जा रहा है आज ग्रामीण विकास हाल बदतर हो गयी है, सरकारें ग्रामीण विकाश को छोड़ शहरी विकास की ओर ज्यादा ध्यान दें रही है यही कारण है की लोग आज गावं छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहें है, रोजगार का अवसर भी लगभग गावं में समाप्त होने के कगार पर है, नए नए टेक्नोलॉजी का असर ग्राम विकास में साफ साफ देखा जा सकता है, आज खेती के लिए आधुनिक वस्तुएँ और औजारों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिस कारण रोजगार के अवसर भी ख़त्म हो गयी है, दूसरी तरफ अगर देखे तो शहरीकरण भारत के लिए आज एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। यह वो प्रक्रिया है जिसमें लोग अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करते हैं। शहरीकरण मुख्य रूप से उच्च आय और उत्पादकता के साथ जुड़ा हुआ है। जहां यह समाज को बड़े और कुशल श्रम बाजार उपलब्ध कराता है वहीं लेनदेन की लागत को भी कम करता है। यही कारण है कि लोग शहरीकरण से आकर्षित हुए हैं। किंतु शहरीकरण के संदर्भ में कुछ मिथक भी हैं। दरअसल शहरीकरण के शुरूआती दौर में नीति निर्माताओं ने कृषि निवेश और ग्रामीण भूमि सुधार के बजाय पूंजी-गहन औद्योगिकीकरण और शहरी बुनियादी ढांचे पर ज़ोर दिया, जिससे शहरीकरण प्रभावी हुआ तथा ग्रामीण विकास असंतुलित हो गया। किंतु यह दौर हमेशा ऐसा ही नहीं चला। हालांकि शहरीकरण के कुछ नकारात्मक प्रभाव, जैसे प्रदूषण, यातायात क्षेत्र में भीड़-भाड़, जीवन यापन की उच्च लागतें आदि सामने आये किंतु इसने देश के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा दिया जिसमें ग्रामीण क्षेत्र का आर्थिक विकास भी शामिल है। शहरीकरण और ग्रामीण क्षेत्र आपस में जुड़े हुए हैं। शहरीकरण और ग्रामीण-शहरी अनुपात के बीच दो-तरफ़ा संबंधों के लिए लेखांकन करते समय, हम पाते हैं कि शहरीकरण (या सबसे बड़ी शहर की आबादी) शहरी-ग्रामीण असमानताओं को बढ़ाती है। किंतु वहीं कुछ ऐसे आंकड़े भी सामने आते हैं जिन्हें देखकर यह लगता है कि उच्च स्तर पर, शहरीकरण से शहरी-ग्रामीण असमानताओं को कम करने की उम्मीद की जा सकती है। यह वही है जिसकी हम उम्मीद करते हैं क्योंकि शहरीकरण से न केवल शहरी निवासियों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि समतुल्य श्रम प्रवाह और बराबर आय होने के कारण ग्रामीण आबादी भी विकास को साझा करती है।शहरीकरण के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब केवल कृषि तक ही सीमित नहीं है। शहरीकरण ने कई गैर-कृषि रोज़गारों को बढ़ावा दिया जिन्होंने भारत के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी दी। पिछले दो दशकों के दौरान, ग्रामीण भारत में गैर-कृषि गतिविधियों में काफी विविधता आई है। जिसने भारत के शहरों और ग्रामीण इलाकों को इतने करीब कर दिया है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। शहरी खर्च में 10% की वृद्धि ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार में 4.8% की वृद्धि को बढ़ावा देती है। आपूर्ति श्रृंखला पूरे देश में मज़बूत होने के कारण, शहरी मांग बढ़ने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिल सकता है। ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था उत्पादन संबंध, उपभोग संबंध, वित्तीय संबंध और प्रवास संबंध के माध्यम से एक दूसरे से सम्बंधित हैं। पिछले 26 वर्षों में एक अर्थमितीय दृष्टिकोण के अध्ययन से पता चलता है कि शहरी उपभोग व्यय में 100 रुपये की वृद्धि से ग्रामीण घरेलू आय में 39 रुपये की वृद्धि होती है। जिस प्रणाली के माध्यम से यह होता है वह ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार को बढ़ाती है। आंकड़ों की मानें तो पिछले दशक में देखी गई शहरी घरेलू खपत वृद्धि दर यदि निरंतर बनी रहती है तो ग्रामीण क्षेत्रों में 63 लाख गैर-कृषि रोज़गार उत्पन्न हो सकता है। पिछले एक दशक में शहरी अर्थव्यवस्था में 5.4% की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था औसतन 7.3% बढ़ी है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़े बताते हैं कि 2000 में भारत की जीडीपी (GDP) में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का 49% हिस्सा था जबकि 1981-82 में यह 41% और 1993-94 में यह 46% था।ग्राम विकास में स्थानीय स्तर की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है चाहे वो योजनाओं को सुचारु ढंग से अपनाने की बात हो या उसे उचित ढंग से इम्प्लीमेंट करवाने की बात हो इनकी भूमिका अहम होती है इसलिए पंचायतीराज का भी गठन किया गया, गावं की सरकारें यानि स्थानीय लोग अपने जरुरत के हिसाब से योजनाए को बनाकर ग्राम स्तर से होते हुए राज्य एवं केंद्र स्तर तक भेजा जाय और उसी अनुसार ग्राम विकास का नींव रखी जाय.सरकार को भी जनता के हित के लिए योजना की सफलता और निरंतरता, उस योजना जनता द्वारा अपनाने और सहभागिता पर निर्भर करती है| अत: प्रत्‍येक स्तर पर जनता की सहभागिता सुनिश्चित करना चाहिए|स्थानीय सरकार की व्यवस्था 30 वर्ष से अधिक पुरे कर लिए है और आज भी इनकी दुर्दशा ये है की ये विकास की नींव अपने दम पर नहीं रख पाते बल्कि दिये हुए योजनाओं का बोझ और उनको इम्प्लीमेंट कराते कराते पुर 5 वर्ष ख़त्म हो जाती है पुनः वही चुनावी प्रक्रिया से होकर गुजरनी पड़ती है यही सच्चाई है, ऐसे में विकास की बात करें तो न तो स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, सिंचाई, पानी, रोजगार पर खरे उतर पाते है आज भी जर्ज़र सड़क, पलायन के लिए मजबूर लोग और विकास की आश लगाए बैठे ग्रामीणों की सपना कब तक पुरी होती है. या सपना ही रह जाता है देखने वाली बात है, सरकार को समय समय पर केंद्र स्तरीय एवं राज्य स्तरीय जाँच 15 वां वित्त हो या मनरेगा सभी को कराना चाहिए तभी विकास का सही मूल्यांकन हो पाएगा, कुटीर उद्योग, रोजगार, शिक्षा आदि पर ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए ताकि हरेक संभव विकास की सीढ़ी चढ़ पाय पांचयती राज मजबूत हो सके.लोग स्वरोजगार की ओर बढ़ सके सपनों की ऊँची उड़ान भर सके, ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधरेगा तभी भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार होने की संभावना है. इसलिए सरकार को इस ओर ध्यान देनी चाहिए ताकि जिस संकल्पना के साथ पांचयती राज का सपना देखा गया था वो पूरा हो सके और भारत हृदय गावों में बसता है इसलिए इसे स्वच्छ और सुन्दर बनाने में सबकी भूमिका अत्यंत आवश्यक है ग्रामीण विकास संभव है.ग्रामीण विकास के महत्व को स्थानीय सरकार को समझनी होगी, मुखिया, वार्ड, प्रमुख आदि को अपना कार्य को समझना होगा और अपनी शक्तियों का प्रयोग ग्रामीण विकास में लगानी होगी सबको मिलकर कार्यशाक्तियों का प्रयोग करना होगा, समय समय पर प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी जिला स्तरीय देनी होगी तभी विकास संभव है,सरकार को स्थानीय सरकार की कार्यशाक्तिया को बढ़ानी होगी ये अपने स्तर से योजना को बना कर केंद्र और राज्य तक भेजे और इस पर मुहर लग सके.अपने स्तर से कार्य को करें,ग्रामीण विकास में भूमिका निभा सके,निष्पक्ष एवं पारदर्शिता के साथ काम हो,सरकार कमिटी इस पर गठन करें, विकास की संकल्पनाय हो.

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