मेरे मित्र उमानाथ पांडे ने मुझे सब्सिडी पर जो समझाया , मैं चाहता हूँ आप भी थोड़ा समझने की कोशिश करें–
आइये, आज एक कहानी दृष्टान्त के माध्यम से आप सबों को ये समझाते चलें कि देश में मुफ्तखोरों के लिये बनाये जाने वाली तुश्टिकरण की नीतियाँ, कर दाताओं और उद्द्यमीयों को कहीं राष्ट्र आस्था के प्रति उदासीन तो नहीं बना रही !!??।।
सरकार द्वारा दी जा रही राहत पैकेज को ऐसे समझें।
एक बार 10 मित्र जिनमें कुछ फटेहाल, कुछ ठीक ठाक और कुछ सम्पन्न लग रहे थे, एक ढाबे में खाना खाने गए।
बिल आया 100 रु। 10 रु की थाली थी।
मालिक ने तय किया कि बिल की भागीदारी देश की कर प्रणाली के अनुरूप ही होगी।
इस प्रकार –
पहले 4 बेहद गरीब (बेचारे) .. फ्री
5वाँ गरीब ………….1रु
6ठा कम गरीब ………3रु
7वाँ निम्न मध्यम वर्ग ….7रु
8वाँ मध्यम वर्ग ………12रु
9वाँ उच्च वर्ग ………..18रु
10वाँ अति उच्च वर्ग.. 59रु
दसों मित्रों को ये व्यवस्था अच्छी लगी और वो उसी ढाबे में खाने लगे।
कुछ समय तक रोज़ इन दसों को आते देख कर ढाबे का मालिक बोला – “आप लोग मेरे इतने अच्छे ग्राहक हैं सो मैं आप लोगों को टोटल बिल में 20 रु की छूट दे रहा हूँ ।”
अब समस्या ये कि इस छूट का लाभ कैसे दिया जाए सबको? पहले चार तो यूँ भी मुफ़्त में ही खा रहे थे।
एक तरीका ये था कि 20 रु बाकी 6 में बराबर बाँट दें तो भी बात नहीं बन पा रही थी, अगर ऐसा करते तो ऐसी स्थिति में पहले 4 के साथ 5वां भी फ्री हो जाता और 5 वां ₹2.33 और 6ठा ₹0.67 घर भी ले जा सकते थे मुफ्त खाने के अलावा। पर ढाबा-मालिक ने ज़्यादा न्याय संगत तरीका खोजा ।
नयी व्यवस्था में अब पहले 5 मुफ़्त खाने लगे।
6ठा 3 की जगह 2 रु देने लगा… 33%लाभ।
7वां 7 की जगह 5 रु देने लगा…28%लाभ।
8वां 12 की जगह 9 रु देने लगा…25%लाभ
9वां 18 की जगह 14₹ देने लगा…22%लाभ। और
10वां 59 की जगह49₹ देने लगा.. सिर्फ 16%लाभ।
बाहर आकर 6ठा बोला, मुझे तो सिर्फ 1 रु का लाभ मिला जबकि वो पूंजीपति 10 रु का लाभ ले गया।
5वां जो आज मुफ़्त में खा के आया था, बोला वो मुझसे 10 गुना ज़्यादा लाभ ले गया।
7वां बोला , मुझे सिर्फ 2 रु का लाभ और ये उद्योगपति 10 रु ले गया।
पहले 4 बोले, जो कि मुफ्त में खा रहे थे …..अबे तुमको तो फिर भी कुछ मिला हम गरीबों को तो इस छूट का कोई लाभ ही नहीं मिला ।
ये सरकार सिर्फ इस पूंजीपति, उद्योगपति व सम्पन्न व्यक्ति के लिए काम करती है ..मारो ..पीटो ..फूंक दो….इस हरामी को और सबने मिल के दसवें को पीट दिया।
यह सम्पन्न व्यक्ति (10 वां) पिट-पिटा के इलाज करवाने सिंगापुर, आस्ट्रेलिया चला गया।
अगले दिन वो ना ही उस ढाबे में खाना खाने आया और न ही लौटकर भारत आया।
और जो 9 थे उनके पास सिर्फ 40 रु थे जबकि बिल 72 रु का था। अब वो उस बिल को चुकाने में अक्षम थे। ऐसी हालत में या तो उन्हें भूखा रहना पड़ेगा या तो सरकार को सब्सिडी और बढ़ाना पड़ेगा जो कि देश के आर्थिक अवस्था को और ज्यादा कमजोर करेगा।
मित्रों अगर हम लोग उन बेचारे सम्पन्न लोगों को यूँ ही पीटेंगे तो हो सकता है वो किसी और ढाबे पर खाना खाने लगे (दूसरे राज्य/ देश में चला जाए) जहां उसे कर व राहत पैकेज प्रणाली हमसे बेहतर मिल जाए।
ये है कहानी हमारे देश के कर प्रणली, बजट व राहत पैकेज की..
मुफ़्त राशन, मुफ़्त शिक्षा, मुफ़्त बिजली पानी मुफ़्त सायकल, मुफ़्त लैपटॉप, मुफ़्त इलाज, मुफ़्त घर….
सरकार मुफ़्तख़ोरी की आदत लगा रही हैं जनता को … देश ऐसे नहीं चलते… दुनिया में कुछ भी मुफ़्त नहीं मिलता किसी न किसी को तो क़ीमत चुकानी होगी ।
उद्योगपतियों, पूंजीपतियों व करदाताओं को चाहे जितनी गाली दीजिये पर सच्चाई यही है कि इन्हीं करदाताओं के योगदान से देश चल रहा है ।
अता: आप सबों से आग्रह है कि एक ईमानदार मंथन करें और खुद से पूछें कि आखिर ये मुफ्तखोरी देश हित में कितना उचित है????