Tuesday, March 11, 2025
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पाकुड़ जिले के बरमसिया गांव में हाल ही में एक महत्वपूर्ण खोज सामने आई है। भूविज्ञानी डॉ रणजीत कुमार सिंह एवं रेंजर रामचंद्र पासवान के संयुक्त प्रयास ने खोज निकाला जीवाश्म।

पाकुड़ जिले के बरमसिया गांव में हाल ही में एक महत्वपूर्ण खोज सामने आई है। भूविज्ञानी डॉ. रणजीत कुमार सिंह और वन रेंजर रामचंद्र पासवान ने संयुक्त रूप से यहां पर एक जीवाश्मकृत (पेट्रिफाइड) जीवाश्म की खोज की है, जो क्षेत्र के भूवैज्ञानिक और जैविक इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

इस खोज के दौरान, टीम ने एक विशाल वृक्ष के जीवाश्मकृत अवशेषों को पहचाना, जो लाखों वर्ष पूर्व के हो सकते हैं। यह खोज न केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय समुदाय के लिए भी गर्व का विषय है, क्योंकि यह क्षेत्र की प्राचीन प्राकृतिक विरासत को उजागर करता है।

डॉ. सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में और भी अनुसंधान की आवश्यकता है ताकि जीवाश्म की सटीक आयु और उसके पर्यावरणीय संदर्भ को समझा जा सके। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस क्षेत्र को संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियाँ भी इस महत्वपूर्ण विरासत का अध्ययन और सराहना कर सकें।

वन रेंजर रामचंद्र पासवान ने स्थानीय समुदाय से अपील की है कि वे इस क्षेत्र की सुरक्षा में सहयोग करें और किसी भी अवैध गतिविधि से बचें जो इस महत्वपूर्ण स्थल को नुकसान पहुँचा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि इस खोज से क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।

इस खोज के बाद, राज्य के पुरातत्व और वन विभाग ने संयुक्त रूप से इस क्षेत्र का विस्तृत सर्वेक्षण करने की योजना बनाई है ताकि और भी महत्वपूर्ण जानकारियाँ एकत्रित की जा सकें और क्षेत्र की जैव विविधता और भूवैज्ञानिक इतिहास को संरक्षित किया जा सके।

पाकुड़ जिले के बरमसिया गांव में हाल ही में एक महत्वपूर्ण खोज सामने आई है। भूविज्ञानी डॉ. रंजीत कुमार सिंह और वन रेंजर रामचंद्र पासवान ने संयुक्त रूप से यहां पर एक जीवाश्मकृत (पेट्रिफाइड) जीवाश्म की खोज की है, जो क्षेत्र के भूवैज्ञानिक और जैविक इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

इस खोज के दौरान, टीम ने एक विशाल वृक्ष के जीवाश्मकृत अवशेषों को पहचाना, जो (10 से 14 . 5 करोड़) 100 से 145 मिलियन वर्ष पूर्व के हो सकते हैं। यह खोज न केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय समुदाय के लिए भी गर्व का विषय है, क्योंकि यह क्षेत्र की प्राचीन प्राकृतिक विरासत को उजागर करता है।

डॉ. सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में और भी अनुसंधान की आवश्यकता है ताकि जीवाश्म की सटीक आयु और उसके पर्यावरणीय संदर्भ को समझा जा सके। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस क्षेत्र को संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियाँ भी इस महत्वपूर्ण विरासत का अध्ययन और सराहना कर सकें।

वन रेंजर रामचंद्र पासवान ने स्थानीय समुदाय से अपील की है कि वे इस क्षेत्र की सुरक्षा में सहयोग करें और किसी भी अवैध गतिविधि से बचें जो इस महत्वपूर्ण स्थल को नुकसान पहुँचा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि इस खोज से क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।

इस खोज के बाद, भू वैज्ञानिक वैज्ञानिक व प्रकृति पर्यावरण के शोधार्थी व अन्य इस क्षेत्र का विस्तृत सर्वेक्षण अध्ययन करने की योजना बनाई है ताकि और भी महत्वपूर्ण जानकारियाँ एकत्रित की जा सकें और क्षेत्र की भू वैज्ञानिक हलचल घटना पर्यावरण संरक्षण
जैव विविधता और भूवैज्ञानिक इतिहास को संरक्षित किया जा सके।
डॉ रणजीत कुमार सिंह, मॉडल कॉलेज राजमहल साहिबगंज झारखंड के साथ पाकुड़ के और आसपास के महत्वपूर्ण संरक्षित जीवाश्म स्थलों का दौरा किया। उन्हें आसपास के क्षेत्र में मौजूद लकड़ी के जीवाश्मों के संरक्षण और परिरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से। कई दशकों से स्थानीय ग्रामीण यह सोचकर जीवाश्म लकड़ी की पूजा करते हैं कि यह आसपास की चट्टानों से अलग है, लेकिन अब पिछली एक सदी में भारत के भूविज्ञानी विशेष रूप से डॉ रणजीत कुमार सिंह भू वैज्ञानिक और दुनिया भर के गोंडवाना पौधे जीवाश्म शोधकर्ताओं ने गोंडवाना वनस्पतियों और जीवाश्म लकड़ी की व्यवस्थित रूप से पहचान की और उन्हें वर्गीकृत नहीं, झारखंड की इन अनूठी जीवाश्म लकड़ी को अगली पीढ़ी, भूविज्ञानी शोधकर्ताओं और इस क्षेत्र के विज्ञान और वैज्ञानिक समझ में रुचि रखने वाले आम लोगों के लिए संरक्षित और संरक्षित करने की सख्त जरूरत है। इसे देखते हुए, सीपीजीजी के बैनर तले बीएसआईपी ने आम लोगों, राज्य और केंद्र सरकार के संयुक्त प्रयास से अनूठी जीवाश्म लकड़ी के संरक्षण के संबंध में झारखंड वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी श्री मनीष तिवारी के साथ भू-विरासत विकास योजना का प्रस्ताव रखा। डॉ रणजीत कुमार सिंह
स्थानीय ग्रामीणों, प्रशासकों, वन विभाग, झारखंड राज्य के इकोटूरिज्म के साथ बातचीत की और इस क्षेत्र में एक अलग जियोपार्क कैसे विकसित किया जा सकता है, इस पर चर्चा हो , जिसमें इस क्षेत्र में पैलियोबोटैनिकल अनुसंधान की अपार संभावनाओं को देखते हुए भू-स्थलों के व्यवस्थित विकास के लिए अपने अनुभव और ज्ञान को साझा किया ऐसे जीवाश्म वनों का विरासत मूल्य अद्वितीय है और उन्हें उनकी प्राकृतिक स्थितियों में संरक्षित करने की आवश्यकता है, इसलिए यूनेस्को द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकृत मानदंडों को ध्यान में रखते हुए एक बड़े भू-पार्क का प्रस्ताव किया जाएगा।

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