न जाने कितनी ज़िंदगियाँ लील चुकी है,पाकुड़ के पत्थर खदान !
ऊपर के चित्रों में जो सुरसा की तरह मुँह बाए धरती के सीने पर ये खाइयों जैसे सैकड़ों फूट गहरे खदान दिख रहे हैं , ये एशिया प्रसिद्ध काले पत्थरों को उगलने वाले खदान हैं।
इन खदानों ने कितने व्यवसायियों और उन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराने वालों सरकारी और गैर सरकारी अमलों को कड़ोरों रुपये उगल कर दिए हैं , इसकी कल्पना करना भी असम्भव है।
अगर आप इन खदानों के मालिकों और इनसे जुड़े आज तक पदस्थापित सरकारी अमलों की सम्पत्तियों की बृहत उच्च स्तरीय जाँच या अवलोकन करें , तो देश विदेश में इसके तार जुड़े मिलेंगे।
सैकड़ों उदाहरण है , पर ये खदान कितनी ज़िंदगियाँ लील चुकी हैं, अब तक ये अंदाज़ा लगाना तक मुश्किल है। पालतू पशुओं की तो छोड़ दें , इंसानों को भी निगलने में इन पाताल छूती गड्ढों को कोई परहेज़ नही है।
दुखद और चिंता की बात ये है, कि इसी तरह के एक खदान ने एक मालिक तक को ही लीलने से नही छोड़ा। कुछ दिनों पहले प्रदीप भगत नाम के एक पत्थर व्यवसायी अपने ही खदान में मोटरसाइकिल से फिसल कर गिर गये, और दुखद अंत को प्राप्त हो गये । कितने ही लोग असुरक्षित और खनन नियमों को अँगूठा दिखनेवाले खदानों में अपनी जान गवाँ चुके हैं, लेकिन हर जान की एक क़ीमत लग जाता है यहाँ।
ऊपर खदानों को देखिए न , माइंस और मिनरल एक्ट, तथा खान सुरक्षा के तमाम नियमों को ताख़ पर रख कर खुले खदानों की खुदाई से कितने लोगों को ख़ुदा की ख़ुदाई बचा सकती है, एक ग़लती हुई नही कि ख़ुदा के प्यारे होने से कोई नही बचा सकता।
नियमों के अनुसार मोटे तौर पर हर पाँच फुट की खुदाई पर पाँच फीट चौड़ा एक बैंच होना है, और ऐसे ही बैंचों की क्रमबद्धता के साथ सीढ़ी नुमा खनन का नियम है। खदान के किनारे बृक्षारोपण और सुरक्षित घेराबंदी आवश्यक है, सड़क से नियत दूरी पर ही खनन करने का नियम है।
लेकिन चित्रों में देखिए कहीं बेंच नही दिखता, एकदम सैकड़ों फीट सीधी खड़ाई लिए खुदाई है। यहाँ ऊपर जिन खदानों का चित्र है, वो बिलकुल मुख्य सड़क के किनारे है। कहाँ का है, मैं जगह का नाम नही बता रहा, क्योंकि वसूली चालू हो जाएगी।