मुफस्सिल थाना पाकुड़ में Puja तथा ED जाँच की गहमागहमी के बीच एक अवैध चालान का मामला दर्ज। काण्ड संख्या-128/22धारा -467/468/420/34आई पी सी पर अखबार रंगे। ख़ूब लिखा गया। मेसर्स राहुल मेटल्स, प्रोपराइटर गोपी साधवानी पिता स्व.चंदूमल साधवानी पर कलम ख़ूब गरजे। लेकिन अब तो प्रशासन के साथ कलम भी ख़ामोश नज़र आ रहा है। पुलिस तथ प्रसाशन की तहकीकात कहाँ तक सधती है, ये तो वक़्त बताएगा।
आश्चर्य है, जो चलान ऑन लाइन निकाला ही नहीं गया। उसी एक नम्बर की चालान पर अलग अलग गाड़ियाँ पत्थर कैसे ढो रही थी ? ग़ज़ब ये है, कि वो चालान ऑन लाइन नहीं निकला था। उसी नम्बर के चालान पर कई गाड़ियाँ पत्थर लेकर एक ही चेक पोष्ट से गुजरती रही। मतलब साफ़ है कि सभी गाड़ियों के पास जब चलान थे, तो क्लोन चलान बना होगा। इस पर मैंनें ही कई बार लिखे थे। लेकिन कभी जाँच नहीं हुई।
किसी अखबार में ये सवाल नहीं उठा कि साहेबगंज का चालान पाकुड़ में कैसे ? एकदम उलटे रूट पर! ऐसे ही पाकुड़ के क्लोन चलान साहेबगंज के कोटालपोखर रुट पर भी चलता है।
खैर एक से एक चलान माफिया, डॉन सरीखे यहाँ दशकों से सक्रिय हैं। उसी मुफस्सिल थाने के थाना कांड संख्या 83/12/4/2008 तथा 124/ 14/6/2008 के पुलिस डायरियों को अगर खँगाल कर देखा जाय तो राख से रसूख़ तक पहुँचने वाले कई लोगों की कलई खुल जाएगी। मैं ED से अनुरोध करूँगा कि इन थानाकांडो को भी अपनी गिरफ्त में लेकर जाँचे। इतने माल कई अचानक बने मालदारों के पास जप्त होंगे कि……।
अवैध चालानों की कुंडली तथा पाकुड़ और साहेबगंज के खदानों की मापी घनफुट में निकले हिसाब से कर लिया जाय। तो गबन किये गए पैसों से झारखंड की 5 साल की बजट बन जाय। अभी बहुत कुछ खुलेगा। बस ED खंगालती जाए, राज निकलते जाएँगे।
बंगाल के तर्ज पर चल रही झारखंड सरकार के कारनामे देख ऐसा लगता है कि भारत एक देश नहीं। बल्कि हरेक राज्य अपनेआप में एक देश है। जिसका अपना कानून है।
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि ED की नोटिश पर जितने भी माइनिंग ऑफिसर ने हाज़री बनाई। उन सभी को राज्य स्तर पर स्पष्टीकरण पूछा गया है कि किससे आदेश लेकर वे ED के सवालों का जवाब देने गए।
अब सभी हाज़री बनानेवाले MO बगली झाँक रहे हैं।
ग़ज़ब तमाशा है, राज्य सरकारें अगर केंद्रीय एजेंसियों को सहयोग न करे तो इसे विडम्बना ही माना जायेगा। खैर ये माइनिंग चलान के मामले में बड़े पूर्व माफ़िया अब तो सत्ताधारी पार्टी के मूर्धन्य पदों पर विराजमान हैं। कोई इनका क्या बिगड़ सकता है, जब सइयां ही कोतवाल हैं। खुलेगा राज और बहुत। डीसी पकुड़ दागों से बचने की जुगत में बहुत कुछ कर रहे हैं। बड़े जनप्रतिनिधियों ने डीसी के ट्रांसफर को जी जान एक कर दिया है, लेकिन कोई नया डीसी पकुड़ आना नहीं चाह रहा।
देखा जाय वर्तमान डीसी पर लक्ष्मीपुत्रों का वजन ज़्यादा भारी पड़ता है, या …….
इसे भी पढ़े-
ED के ख़ौफ़ से धीरे धीरे खुल रहे खनन से जुड़े कई राज, अब चालान की चलन पर भी पड़ी प्रशासनिक नज़र