एक फ़िल्म आई थी , “टार्ज़न” आप सभी ने देखी होंगी। टार्ज़न आदमी का बच्चा होने के बाद भी जंगल मे जानवरों के साथ पला बढ़ा। शेर से भी टार्ज़न नहीं डरता था। उसके साथ भी वह लुका-छिपी खेल जाता था।
झारखंड के साहेबगंज जिला के पत्थर और परिवहन के जंगल मे भी ऐसा ही अनेको टार्ज़न (ये किसी का नाम नही, एक बलशाली जंगली आदमी की परिकल्पना का द्योतक है) है , जो ED जैसे शेर से भी नहीं डरता , और एक ही परिवहन चलान पर कई बार पत्थर ढो डालता है। ऐसे में सरकारी राजस्व को चुना लगाया जाता है। पाकुड़ जिले में भी चेक पोष्ट पर गड़बड़ियाँ होतीं हैं, लेकिन जिले के मुखिया के कड़े रुख़ के कारण इसपर थोड़ा अंकुश है, लेकिन पाकुड़ सीमा क्षेत्र से उसपार साहेबगंज की ओर झाँकने पर चलान को चलता कर एक ही चलान पर कई ट्रिप पत्थर ढोने वाले सक्रिय दिखते हैं।
Puja singhal मामले के बाद सबसे ज़्यादा छापे और करवाई ED ने साहेबगंज में ही की , बावजूद इसके पाकुड़ से लगे सीमाई इलाके के साहेबगंज जिले के चेकनाकों पर चालानों की इंट्री पहली खेप में नहीं की जाती , दूसरे , तीसरे या फिर चौथे ट्रिप में इंट्री की जाती है। इसकी गवाही चालानों के कटने और इंट्री के समय के मिलान देता है।
पत्थर के अवैध परिवहन पर इस पेज को जब मैं लिख रहा था तो साहेबगंज के कोटालपोखर थाना में 39 लोगों के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया गया। इस विषय में बताया गया कि एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर अधिकारियों और पुलिस की मुभमेंट की ट्रेसिंग शेयर कर अवैध परिवहन किया जाता था। पुलिस ने इस मामले को खंगालना शुरू कर दिया है।
लेकिन सोचने की बात है कि अवैध पत्थर परिवहन के जंगलों के टार्जनों के हिम्मत का अंदाजा लगाया जा सकता है कि, जिस मामले पर ED जैसी केंद्रीय एजेंसी जाँच कर रही है, उस अवैध पर ऐसे लोग कैसे इतनी हिम्मत कर पाते हैं !
ऐसे लोगों के लिए सरकार और प्रशासन बदनाम होते हैं। जबकि कानूनन सभी व्यवस्था है कि लोग ईमानदारी से अपना व्यापार कानून के दायरे में कर सकें , लेकिन पैसों की भूख अगर किसी मे बेसुमार पैदा हो जाये और वो कुछ भी करने के लिए तैयार रहे तो कोई क्या करे ?
फ़िल्वक पूरा इलाका हतप्रभ है कि सबकुछ छोड़कर जाने के लिए आख़िर और और-और की भूख इन अवैध के “टार्जनों” को कहाँ तक ले जाएगा !
अवैध पत्थर परिवहन के जंगल मे हैं कई सक्रिय “टार्ज़न”।
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