पाकुड़ के मालपहाड़ी रेलवे पत्थर लोडिंग प्लॉट पर प्रशासन ने करवाई कर जब सख्त चेहरा दिखाया। तो पत्थर व्यवसायी व्यवस्था पर अंगुली और मजदूरों की भुखमरी की बात उठाने लगे। मजदूरों को भड़काने लगे। तथा उनकी भूख पर राजनीति करने लगे। लेकिन ये भूल गए कि व्यवस्था पर ये दोहरा सवाल उठा रहे हैं।
सरकारी सुविधाओं को जिला प्रशासन अंतिम व्यक्ति तक पहुँचा रहे हैं। है कि नहीं। राशन-मुफ़्त वाला राशन और भी बहुत कुछ। ऐसे में दो-चार दिनों में मजदूर भुखमरी तक कैसे पहुँच गए ? आधे दर्जन से ज़्यादा मजदूर संगठन जो मजदूरों के लिए तथाकथित ढंग से खड़े हैं। क्या मजदूरों को राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं- सुविधाओं तथा व्यवसायियों से मिलने वाले अधिकार नहीं दिला पा रहे ?
ऐसा तो नहीं होगा, कि काम बंद होने पर मजदूर यूनियन मजदूरों को मिनीमम वेजेज़ नहीं दिला पा रहे होंगे। सरकारी तंत्र सरकारी सुविधाओं और योजनाओं को भी मजदूरों तक नही पहुँचा रहे ऐसा भी नहीं होगा। स्वयं मालिक अपने मजदूरों की विपरीत परिस्थितियों में साथ न दे ऐसा भी नहीं होगा। तो फिर व्यवसायी एक ओर अपने व्यवसाय के कागज़ातों के आसानी से न बनाने। और मजदूरों के दो दिनों में भुखमरी तक पहुँच जाने की बात कर सरकारी तंत्र पर दोहरा आरोप नहीं लगा रहे। सोचना होगा और सभी को सोचना चाहिए। और श्रमविभाग ?