पाकुड़। एक ही गोत्र के दो जिले पाकुड़ के रास्ते चल पड़े साहेबगंज के विभिन्न चार स्टोन लोडिंग रेलवे साइडिंग पर एक बड़ी अनिमितता प्रकाश में आया है । इन स्थानों से 623 रैक स्टोन बिना माइनिंग चलान के बंगलादेश और बिहार भेजे जाने का चर्चा जोरों पर है। रेलवे के वरियतम जोनल एवं मंडल के अधिकारियों के पत्राचार से ये मामला खुलने और सामने आने की बात कही जा रही है।
इस बाबत जानकारी के अनुसार साहेबगंज डीएमओ ने तकरीबन 25 व्यवसायियों को पत्राचार कर 1 सौ 23 करोड़ का जुर्माना भी किया है, हाँलाकि डीएमओ बिभूति कुमार को कई बार फोन करने के बाद भी उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। ऐसे में क्या ये मामला ढाक के तीन पात ही सावित होगा? ये बड़ा सवाल है, क्योंकि पाकुड़ में ऐसा हो चुका है। सवालों और ख़बर्नबिशों के फोन से नज़र बचाना क्या किसी बड़ी मिलीभगत की ओर इशारा नहीं करता! कम से कम इतिहास तो इसी ओर इशारा करता है।
पुराना है गडबड़ी का इतिहास
रेलवे के भीजिलेंस ने पाकुड़ लोटामारा कोयला लोड रेलवे साइडिंग पर विगत दिनों कोयला लोड मालगाड़ी से ओभर लोड कोयले उतारने का निर्देश दिया। बाद में उसी मालगाड़ी को सूचना के आधार पर साहेबगंज जिले के एक स्टेशन पर रोक भीजिलेंस ने ओभरलोड कोयला खाली करवाया।
हाँलाकि फ़िलवक्त 40 लाख फाइन किया गया है, लेकिन रेलवे भीजिलेंस को और भी रेलवे सेक्शनों में करवाई करनी होगी, क्योंकि पहले निर्देश का पालन न करना एक संगीन अपराध है तथा ओभरलोड से पाकुड़ से पंजाब तक कि रेलवे ट्रेक को संभावित हानि को नकारा नहीं जा सकता।
ऐसे झारखंड और खासकर पाकुड़ में इसे नकारा नहीं जा सकता कि इस तरह की अनियमितता यहाँ हमेशा होता आया है। उदाहरण के तौर पर राज्य के वन विभाग द्वारा की गई एक करवाई पर नज़र डालिये। पाकुड़ में वन विभाग ने बिना ट्रांजिट परमिट के कोयला की ढुलाई कर रहे मालगाड़ी की 59 बोगियों को जब्त करने का इतिहास रहा है। यह कारवाई जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी सौरभ चंद्रा के निर्देश के आलोक में तत्कालीन वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने की थीं।
कोयले से लदे मालगाड़ी की बोगियों को गार्ड को हैंड ओवर कर दी गई थी। बिना परमिट के मालगाड़ी से कोयला ढुलाई मामले में पश्चिम बंगाल पावर डेवलोपमेन्ट कॉपोर्रेशन के साइड इंचार्ज राम विलास हांसदा को हिरासत में लिया गया था।वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने बताया था कि बिना ट्रांजिट परमिट के कोयला ढुलाई रेल मार्ग से नही किये जाने को लेकर जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी द्वारा पाकुड स्टेशन मास्टर के जरिये हावड़ा डिवीजन के डिविजनल मैनेजर को पत्र लिखा गया था। बावजूद कोयले की ढुलाई कर सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाया जा रहा था।
राजस्व को पहुँच रहा नुकसान
सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का काम सरकारी अमले और जुमले कर रहे है। जिस विभाग और विभाग के अधिकारियो को शत प्रतिशत राजस्व वसूली में अपनी भूमिका निभानी है वे ही पाकुड़ में कोयला का अवैध परिवहन करवाने में संरक्षक की भूमिका निभा रहे है।
पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड स्थित पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक पश्चिम बंगाल पावर डेवलॉपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को आवंटित किया गया है। आवंटित इस कोयला खदान में कोयला का उत्खनन कर उसका परिवहन बीजीआर माइनिंग एंड इंफ्रा लिमिटेड कर रही है। सरकार ने कोयले को वनोपज मानते हुए इसके परिवहन के लिए ट्रांजिट परमीट की अनिवार्यता सुनिश्चित की है।
सरकार ने प्रति मीट्रिक टन 58 रुपए राजस्व भी कोयले के परिवहन के विरूद्ध निर्धारित किया है। कोयले का परिवहन करने के पहले ट्रांजिट परमीट लिया जाना है, लेकिन पाकुड़ अमड़ापाड़ा लिंक रोड पर पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक से लोटामारा रेलवे साइडिंग तक कोयले की ढुलाई करने वाली कंपनी सरकार के इस आदेश की धज्जी उड़ा रही है। सरकार के आदेश की अनदेखी को लेकर जिले में वन विभाग ने कोयला से लदे आधा दर्जन से ज्यादा वाहनो को जप्त करने की कार्रवाई भी की बावजुद बिना ट्रांजिट परमीट के आज भी कोयला का परिवहन बदस्तूर जारी है।
कोयले के इस अवैध परिवहन का एक आश्यर्चजनक पहलु यह भी है कि जिस विभाग को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 42 का अनुपालन कड़ाई से सुनिश्चित कराना है। उस विभाग के अधिकारी और कर्मी ही बगैर ट्रांजिट परमीट के कोयला से लदे वाहनो को सुरक्षा घेरे में ले जा रहे है।
वन विभाग ने झारखंड वनोपज नियमावली 2020 के आलोक में विधि संवत कार्रवाई करने को लेकर पुलिस अधीक्षक को भी पत्राचार किया था, बावजुद जिले की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकार ने बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला के परिवहन को न केवल संज्ञेय अपराध बल्कि गैर जमानतीय भी माना है।
ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि पाकुड़ जिले में किसके संरक्षण और इशारे पर बिना ट्रांजिट परमीट कोयले का परिवहन कर सरकार के राजस्व को क्षति पहुंचाने का काम हो रहा है। इधर पिछले वर्षों में पाकुड़ के विभिन्न थानों में हुए एफआईआर को खंगाले, तो ये साबित हो जाता है, कि कोयला तस्करी जिले में होती है। तस्करों द्वारा प्रस्तुत कागज़ातों को अगर गहराई से देखें और विवेचना करें तो यह भी साबित होता है, कि इसमें भी बड़े पैमाने पर ओल-झोल है।
अब सवाल उठता है, कि ये कोयला सरकार द्वारा दिए गए खनन पट्टों वाले खदानों से तो आते नहीं हैं, क्योंकि उन कम्पनी वालों की अपनी सुरक्षा के बाद पुलिस सुरक्षा भी उन्हें प्राप्त है। ऐसे में ये भी सावित हो जाता है, कि कोयला से भरे पड़े इस इलाके में अवैध खनन कर ये कोयला लाया जाता है। इसमें कई स्तर पर लोगों की मंडली है, जो संगठित तौर पर ईमानदारी से इस बेमानी के कार्य को अंजाम देते हैं। इस कार्य में सबसे पहली मंडली, जंगल में कहाँ खनन करना है, जहाँ कम लागत में आसानी से खनन कर कोयले को गाड़ी में लोड करना, आस पास की आबादी को भी खुश रखते हुए लोड गाड़ी को जंगली खनन स्थान तक ले जाने तथा मुख्य सड़क तक ले आने के लिए एक मंडली काम करती है।
स्वाभाविक रूप से ये पहली मंडली इलाके से पूरा परिचित होती है और बख़ूबी काम करने का तजुर्बा इनके पास होता है।जैसे “ओरमा” नामक जगह पर हो रहे अवैध कोयला खनन को देख कर इन परतों को खोला और समझा जा सकता है।मुख्य सड़क पर आते ही दूसरी मंडली अपना दायित्व सँभालने लगती है।
हँलांकि ये अवैध कोयला विभिन्न रूटों से पश्चिम बंगाल के विभिन्न स्थानों पर जाता है, इसलिए खाँकि, खादी और तलवार से तेज कलमकारों की स्नेहिल छाँव तले कोयला लदी गाड़ियाँ सरपट दौड़ती है। अमड़ापाड़ा, हिरणपुर, कोटालपोखर, गुमानी, महेशपुर, पाकुड़िया, पाकुड़ सहित पश्चिम बंगाल की विभिन्न मंडली एक अरसे से पाकुड़ के वनोपजों और मिनरल्स की तस्करी करते हैं। अचानक प्रशासन के सक्रिय होने पर इन दिनों रात के अंधेरे होने वाले अंधेर पर मानो कुठाराघात हो गया हो।
ये बताना भी जरूरी है, कि जंगलों के जिन इलाकों में ये अवैध खनन होता है, वो इलाके नक्सलियों का भी प्रभाव क्षेत्र रहा है। ऐसे में इन अवैध कारोबार का हिस्सा उनतक भी निश्चित ही पहुँचता हो इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए इस मामले की प्रोफेशनली उच्चस्तरीय जाँच होनी चाहिए। पाकुड़ के इतिहास से क्या साहेबगंज के वर्तमान और फिलवक्त पाकुड़ में चल रहे सबकुछ ठीक है, की छाँव में क्या सबकुछ ठीक भी है? यक्ष प्रश्न है।