30 अप्रेल को ही रेलवे के मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग पर प्रदूषण अनापत्ति प्रणाम पत्र की समय सीमा हो गई है खत्म। तो फिर कैसे हो रहा है लगातार इंडेन्ट तथा लोडिंग ?
झारखंड में ED, Puja ,अवैध खनन तथा इस उससे जुड़े मामलों, अधिकारियों एवं व्यवसायियों की कुंडली खंगाल रही है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है की पाकुड़ के तकरीबन सवा सौ साल पुराना पत्थर उधोग सड़क मार्ग से फरक्का बैरेज बनाने के समय से ही अपना व्यवसाय कर रहा है। इससे पहले और आजतक पत्थर उधोग का सबसे बड़ा माध्यम पाकुड़ स्थित मालपहाड़ी रेलवे साइडिंग क्षेत्र ही रहा है। रेलवे के द्वारा रेलवे को एवं अन्य प्राइवेट कंपनियों को लगातार पत्थर सप्लाई रेलवे रेक के द्वारा ही किया जाता रहा है। रेलवे साइडिंग में कई तरह की अनियमितताएं हैं, अगर सही ढंग से हर पहलू पर इसे खंगाला जाए तो रेल अधिकारियों के साथ साथ व्यवसायियों की कुंडलियों का वह सब पन्ना खुल जायेगा।
जिसमें शनि, राहु, केतु सब ग्रहों की क्रुर दृष्टि का सामना करना पड़ जायेगा। ईडी, सीबीआई सबका माथा घूम जाएगा।और ऐसे ऐसे मामले खुलने लगेंगे की रेलवे डिवीजन में भूकंप सा आ सकता है। नियम है कि रेलवे अपने लोडिंग साइड पर तभी इंडेंट कर सकता है जब उनके पास प्रदूषण क्लियरेंस सर्टिफिकेट हो। चूंकि रेलवे से होने वाली माल ढुलाई भारत सरकार का पूर्ण रूप से एक व्यवसायिक कार्य है। ऐसे में अगर रेलवे ही नियमों के विरुद्ध कार्य करे। तो फिर ईडी या कोई भी जांच एजेंसियां प्राइवेट रूप से कार्य करने वाले अवैध खनन एवं सम्प्रेषण पर कैसे डंडा चला सकता है ! झराखण्ड में इन दिनों इस मामले पर सरकार गिरने और गिराने तक की बात हो रही है।
सांसद और विधायक ट्यूटर पर सरकार के विरुद्ध ट्यूटर ट्यूटर खेल रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो ईडी अवैध खनन की जांच नही बल्कि कोई घनघोर बारिश लेकर चली आई है।और सारे के सारे नेता बरसाती मेढक की तरह टार्टराने लगे है। अगर ईडी को जांच करनी ही है और उसे केंद्र सरकार का तोता भी नही साबित होना है। तो ईडी सबसे पहले वृहत पैमाने पर होने वाले रेलवे के पत्थर डिस्पैच को खंगाले। ऐसा हम इस लिए कह रहे हैं, कि पाकुड में रेलवे साइडिंग मालपहाड़ी में लिया गया प्रदूषण अनापत्ति अनुज्ञप्ति जो रेलवे के द्वारा ही लिया जाता है। उसकी समय सीमा 30 अप्रैल को ही खत्म हो गई है। बावजूद इसके इंडेंट जारी है, लोडिंग हो रही है और पत्थरों का सम्प्रेषण लगातार किया जा रहा है। क्या यह अवैध नही?
इस बाबत जब चीफ यार्ड मास्टर से सवाल किया गया तो उन्होंने मामले अपने ऊपर से टालते हुए वरीय अधिकारी पर फेंक दिया।
सीनियर डीसीएम जो रेलवे के डिविजनल स्तर के पदाधिकारी है को जब पूछा गया तो उन्होंने सवाल को एक मोड़ देते हुए उल्टे यह कहा कि पाकुड़ मालपहाड़ी बहुत ही पुराना रेलवे साइडिंग है। आप जानते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि झारखंड सरकार को इसके लिए पत्र लिखा गया है।
अब सवाल उठता है कि अगर उन्होंने पत्र लिखा भी है तो बिना क्लियरेंस मिले इंडेंट लोडिंग कैसे जारी है? इसके लिए राज्य या रेलवे किसी के भी अधिकारी जिम्मेदार हों लेकिन काम तो अवैध ही हो रहा है। क्या इसपर ईडी का डंडा लहराएगा ? यह यक्ष प्रश्न है।