ड्रग्स एडिक्टेटों की कहानी की तीसरी कड़ी: मैं आपको थोड़ा बैक गियर में ले चलता हूँ। बात तकरीबन 1998-99 सन की है। पाकुड़ कोर्ट केम्पस में चाय की दुकान चलाने वाले मेरे एक मित्र के भतीजे के लिए ओ पोजेटिव ब्लड चाहिए था। संयोग से मेरा यही ग्रुप है। एक दिन चाय पीने के दौरान उसने मुझसे चर्चा की। मैंनें कहा कि मेरा तो है, मैं देने को भी तैयार हूँ। मैंनें उससे कहा यार मैं शराब बहुत पीता हूँ, तुम्हारा भतीजा कम उम्र का है, कहीं मेरे अल्कोहलिक खून से उसका बुरा न हो जाय🤔।
मैंनें उसे कहा मुझे एक दिन का समय दो, चिकित्सक से बात करूँ कि मैं बिना किसी हानि पहुँचाये उस बच्चे को ब्लड डोनेट कर सकता हूँ या नहीं। मैंनें अपने और उसने हिरणपुर मिशन के चिकित्सकों से बात की। चिकित्सकों ने सप्ताह भर शराब छोड़ने के बाद ब्लड डोनेशन की अनुमति दी। मैंनें ऐसा ही किया, और कई महीनों तक एक के बाद एक बार कई बार उसे ब्लड डोनेट किया। वो बच्चा आज भी स्वस्थ एवं जीवित है।
ये वास्तविक कहानी मैंनें इसलिए बताया कि आज भी ब्लड डोनेशन के अब कई ग्रुप तक बन गए हैं। पाकुड़ में ‘एक पहल‘ की पहल ने ब्लड बैंक को जिंदा कर ब्लड डोनेशन का एक ऐसा माहौल बना दिया कि आज लीगल रूप से इंसानियत फाउंडेशन, मीरा फाउंडेशन ने अनगिनत लोगों की जान ब्लड डोनेशन से बचाई है। ये लोग स्वस्थ लोगों के ब्लड डोनेशन से स्वस्थ ब्लड के द्वारा गरीबों का भला कर रहे हैं।
लेकिन कुछ नर्सिंग होम यहाँ ऐसे हैं, जो ड्रगिष्टों और गलत काम मे लिप्त लोगों से ब्लड खरीदकर बीमारों में और बीमारी बाँट रहे हैं। दशकों से ऐसे नर्सिंग होम बीमार और नशेड़ियों से ब्लड खरीद कर, उन्हें नशे और दुर्व्यसन के लिए पैसे मोहय्या करा रहे हैं, तो दूसरी ओर बीमारों में और बीमारी बाँट कर ऐसे नर्सिंग होम चाँदी काट रहे हैं।
बहुत जरूरी है कि नशेड़ियों को चिन्हित कर, उनके ब्लड और यूरिनल टेस्ट करा कर, उनमें वयाप्त ड्रग्स के प्रकार का पता लगाया जाय और ड्रग्स की गंगोत्रीयों के रास्ते उसके उद्गम ग्लेशियर तक पहुँचा जाय।
मैं तो सिर्फ जाँच के तरीकों की ओर इशारा भर कर सकता हूँ, बाँकी तो भगवान मालिक।
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