Friday, November 22, 2024
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ग़ज़ब का जलवा है भैया हमारे शहर में माफियाओं का ! जिंदा को मृत बनाना तो बाएं हाथ का है खेल , और छापने में तो पूछिए मत।

एक अख़बार प्रभात मंत्र जिसका मैं नियमित पाठक हूँ ,में अचानक एक ख़बर ने ध्यान खींचा। पूरी ख़बर पढ़ डाली । पता चला कि एक जीवित व्यक्ति को मृत बता कर उसकी जमीन बेच डाली गई।
पत्रकार क़ासिम जी ने पूरी रिपोर्ट लिखने में काफ़ी खोज , शोध और मेहनत की , तथा स्वाभाविक रूप से उठते सवालों के साथ रिपोर्ट लिख डाली थी। अखबार प्रभात मंत्र ने भी प्राथमिकता के साथ इसे प्रकाशित किया था।
हँलांकि एक पत्रकार की ईमानदार मेहनत से ये मामला तो सामने आ गया , लेकिन ऐसे कितने ही मामले फाइलों में यहाँ दब जाते हैं , जो कभी निकल नहीं पाते।
मुझे अचानक इस ख़बर से वर्षों पुरानी बात याद आ गई। बात सन 2012 की है। स्थानीय कोषागार में एक जाँच वरीय अधिकारियों के आदेश पर चल रही थी , जिसमें ये बात खुलकर आ रही थी कि स्टाम्प पेपर के घोटाले की कोई बड़ी कहानी , स्टाम्प बेचने वालों के रजिश्टरों में दर्ज है।
स्टम्प भण्डारियों के रजिस्टर जैसे जैसे कोषागार में जाँच के लिए आ रहे थे , एक ही नम्बर के कई स्टम्प निर्गत पाए जा रहे थे।
जबकि कोषागार से तो स्टम्प बेचने वालों को एक नम्बर के एक ही स्टम्प दिये जाते होंगे , तो फिर ऐसा हो कैसे रहा था !
इस सवाल का उस समय जवाब ढूँढना मुश्किल था , लेकिन अभी तो यहाँ के गाँव गाँव में छपते जाली लॉटरी को देख सब समझ में आ रहा है। हँलांकि नकली रुपये जब छप कर आया करते थे, तो स्टम्प पेपर का उसी तर्ज पर छप कर आना कोई बड़ी बात नहीं थीं।
आख़िर हर्षद मेहता भैया ऐसे ही थोड़े नाम और पैसे कमा गये।

खैर ये जाँच चल ही रहा था कि अचानक एक दिन पूरा मामला ठप्प पड़ गया। ऐसी ख़ामोशी इस मामले पर पड़ गई कि लाख प्रयासों के बाद भी ग़ज़ब का ठहराव आ गया और फिर कालांतर में मामला पूरी तरह दब गया।
खो गई एक और घपले की कहानी , फाइलों की धूल भरी जुबानों के बीच कहीं , जो आज तक अनकही रह गई।
ठीक उसी तरह जीवित को मृत बताकर जमीन बेच देने की ये कहानी भी अनकही रह जाती अगर पत्रकार क़ासिम जी तह तक नहीं पहुँचते।
पत्रकार और अख़बार प्रभात मंत्र को बहुत बहुत धन्यवाद।

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