आसमान को ऊँचाइयों की क्या बात करें हम,
पेट की गहराइयों में खो गया है आदमी
फरवरी मार्च और अप्रैल का महीना सरकार के विभाग और जिम्मेदारियां इतनी बेरहम हो जाती हैं कि हमें जीने नही देती।
इन्ही दिनों बच्चों की परीक्षाएं
टेक्स भरने के लिए नोटिशें
नगरपालिका ,बिजली विभाग , बैंक जैसे सभी बेरहमों के प्रेम पत्र और न जाने क्या क्या !
हे भगवान फिर बच्चों का रिएडमिशन, किताबें ड्रेस
सच में जीने पर भी सोचना पड़ जाता है
लेकिन सरकारें इन विषयों पर क्यों नही सोचती ?
मैं ये नही कहता कि सब माफ़ कर दो लेकिन सोचो यार
किश्तों में मारो
ये हक़ है आपको कि आप चाहे जो करें
मगर क़त्ल भी करें तो जरा प्यार से
खाश कर हम जैसे लोगों के लिए बड़ी समस्या है सरकार
क्योंकि ठहरे मुफ़सील पत्रकार और स्वाभिमानी बनने के ढोंग में विज्ञापन भी नही उठा पाते, अख़बार और टी भी वालों के कोर्ट पेंट , ए सी , बंगला, ठाट बाट सब हमारे खून पर ही चलते हैं । किसी तरह पमरिया , बन्दी चारण के तर्ज़ पर अपना जीवन बसर करते हैं , ताकि हमारे मालिकों को खून मिल सके।
और हाँ मेरा पारिवारिक बैकग्राउंड भी ऐसा है, कि अगर कहीं नॉकरी ….पार्ट या फूल टाइम जॉब भी मांगने जाते हैं, तो कोई विस्वास ही नही करता … हंस कर ठहाकों के साथ प्रेम से चाय वाय पिलाते हुए ये कह कर टाल जाते हैं कि आपको और नोकरी मज़ाक मत कीजिये साहब , देश विदेश ……………..
खैर टाल जाते हैं ,अब उनको कैसे समझाये कि हमको तो यही हमी होने ने मारा है
कभी बेबशी ने मारा
कभी बेकशी ने मारा
किस किस का नाम लूँ
मुझे हर किसी में मारा
बस सरकार और हालात से विनम्र प्रार्थना है कि हम जैसे बीच में लटके न अमीर न गरीब बन सके लोगों को जरा किश्तों में मारें तो बड़ी कृपा होगी।
मेरे जैसे मेरे सभी मित्रों को समर्पित
साथ ही भगवान से यह प्रार्थना भी कि कोई मित्र मेरे जैसा न हों।
बेदर्द महीने और कलम के सिपाहियों का ज़ख्म
बस हाथ की लेखनी ही काफ़ी है नन्दलाल परशुराम सर के लिए
*हिन्दुस्तान के संपादक ओमप्रकाश अश्क जी गोड्डा आए और नए व्यूरो चीफ अनिमेष भाई को बनाए। वे बोले कि केवल नंदलाल बाबू की खबर हाथ से* *लिखी होगी बाकी को टाइप कर खबर भेजनी* *है*
*पल्लव, गोड्डा*
नंदलाल परशुरामका जी के साथ सौतेला व्यवहार की बात दिल्ली हिन्दुस्तान के संपादक के पास भी पहुंच गया। वहां से आदेश आया कि गोड्डा के पुराने व्यूरो को हटाकर नया व्यूरोचीफ बनाया जाय। इसी क्रम में हिन्दुस्तान धनबाद के तत्कालीन संपादक ओमप्रकाश अश्क साहब गोड्डा आये और *अनिमेष भाई को नया व्यूरो चीफ बनाए। गोड्डा आने* *पर अश्क साहब नए व्यूरो चीफ अनिमेष जी से बोले कि नंदलाल बाबू के हाथ से लिखी खबर को केवल टाइप करा देना* है। बाकी संवाददाताओं को अपने से टाइप कर खबर भेजनी है। इस तरह इस वार की लड़ाई मेें भी अपने को इश्मार खान समझने वाले पत्रकार भाई को मुंह खानी पड़ी।
*नया व्यूरो चीफ अनिमेष जी छोटा भाई ऐसे सब दिन रहा है। वे* *बोलते भैया आपने चाणक्य जैसा रॉल अदा कर मुझे चंद्रगुप्त मौर्य बना दिया है। आपको मेरी ताज की हिफाजत सब दिन करनी है। मैंने अनिमेष भाई को* उसी समय वचन दिया कि जो सही है, उसके साथ पल्लव हर समय खड़ा ही नहीं, किसी भी हद तक लड़ने के लिए भी तैयार है। आप शान से हिन्दुस्तान में लिखिएगा। मेरी अगर कहीं जरूरत होगी तो एक बड़े भाई के रूप में हमेशा आपके आगे खड़ा रहूंगा।
जब अनिमेष जी व्यूरो चीफ हिन्दुस्तान का बन गए तो नंदलाल बाबू को काफी इज्जत करने लगे। वे सदा उसे चाचा कहकर ही संबोधित करते। वे खुशी मन से पत्रकारिता करने लगे। नंदलाल बाबू बोलते कि जब भी पत्रकारिता में मुझे दिक्कत हुई तो आप संकटमोचन बनकर आगे आए पल्लव जी। आप पहले तो किसी को छेड़ते नहीं, लेकिन जो आपको बेवजह छेड़ा, उसको आपने कभी छोड़ा भी नहीं। *नंदलाल बाबू मुझे सब दिन हिम्मती और जीवट इंसान कहते थे। सच भी यही है कि मेरा एक* *हाथ अगर इंद्रजीत तिवारी थे तो दूसरा हाथ नंदलाल बाबू थे। नंदलाल बाबू के नहीं रहने से मेरा एक हाथ जरूर टूट* *गया। पर मैं आपको भरोसा दिलाता हूं दादा, कि आपकी अदृश्य प्रेरणा शक्ति मुझे कभी कमजोर होने नहीं देगी।*
*नोट – आज नंदलाल बाबू का श्राद्ध कर्म संपन्न हाे रहा है। वैसे तो इनपर लिखने के लिए मेरे पास कई महीनों का खजाना है। पर कल का आलेख नंदलाल बाबू पर अंतिम होगा। विनम्र श्रद्धांजलि दादा।*
पत्रकार के साथ एक संत भी थे नन्दलाल परशुराम
नंदलाल परशुरामका पत्रकार के साथ एक संत भी थे
संतमत आश्रम कुप्पाघाट के संतसेवी जी महाराज भी इनके कमरे में पधारे थे
पल्लव, गोड्डा
नंदलाल परशुरामका पत्रकार के साथ संत भी थे। वे महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के शिष्य भी थे। शान्ति संदेश जैसी पत्रिकाओं में भी नंदलाल बाबू लिखते रहे। महर्षि मेंही के शिष्य संतसेवी जी महाराज उनके बैठक खाना में कई वार आए। वहीं बैठक खाना जिसमें गद्दा लगा रहता था और नंदलाल बाबू उसी पर बैठकर समाचार लिखते रहते थे। संत सेवी जी महाराज को नंदलाल बाबू साहब कहा करते थे। एक वार संतसेवी जी महाराज उनके बैठक खाना में आने वाले थे। वे बोले पल्लव जी, कल साहब अपनी बैठक खाने में पधारने वाले हैं। आप जरूर आइएगा। इनके कहने पर मैं वहां पर गया और नंदलाल बाबू ने संतसेवी जी महाराज से परिचय भी कराये। बोले यह युवा लड़का पत्रकार है और बेवाक लिखता है साहब। उन्होंने मुझे भी आशीर्वाद दिया और संतसेवी जी बोले कि उसके हक के लिए जरूर लिखते रखना जिसकी बात कोई नहीं सुन रहा हो। तुम्हारी कलम से अगर किसी एक बेवश, लाचार, निरीह का भी उपकार हो रहा हो तो लाख विरोध के बाद भी तुम डरना नहीं, लिखते रहना। ऐसे लोगों काे भगवान खूद मदद करते हैं। ऐसे कार्य करोगे तो तुम्हें खूद अनुभव होगा कि मेरी मदद कोई परोक्ष रूप से कर रहा है। भले ही वह तुम्हें न दिखे। नंदलाल बाबू को भी आशीर्वाद दिए । वे संतसेवी जी महाराज को कभी साहब कहते तो कभी सरकार कह कर संबोधित करते। यह तस्वीर तभी कि है जब संतसेवी जी महाराज नंदलाल बाबू के बैठक खाना से निकल रहे थे। साहित्य पर भी नंदलाल बाबू की गजब की पकड़ थी। गोड्डा के साहित्य साधक पर भी कई आलेख किस्तों में मैंने प्रभात खबर में लिखी, जब इस अखबार का मैं हीरो था।
संतसेवी जी की बात और नंदलाल बाबू की हिदायत का परिणाम रहा कि जब मेरी खबर छपी तो स्कूल से अपनी बीमार मां के लिए अंडा छिपाकर लाने वाले बच्चे की मां की जिंदगी बच गई। वहीं थैलेसीमिया से पीड़ित गरीब बच्चे जिसको खून दिलाने के लिए कोरोना काल मेे उसका पिता साईकिल चलाकर 300 से अधिक किलोमीटर की दूरी तय करता है। मेरी खबर छपने और बंगलौर में पढ़े जाने के बाद उस बच्चे को बंगलौर की एक संस्था ने एक बड़े अस्पताल में करीब 37 लाख की सहायता से बोन मेरो ट्रांसप्लांट करा दिया। सचमुच यह दैविक प्रेरणा का ही परिणाम है। नंदलाल बाबू भले हमारे बीच नहीं रहे, पर उनकी प्रेरणा हमारी कदम कभी भी डगमगाने नहीं दे। यही प्रार्थना भगवान से करता हूं।
पत्रकारों की पूंजी होती है स्वाभिमान : स्व.परशुराम
डीसी को भी गलती माननी पड़ी थी नंदलाल परशुरामका से
पल्लव, गोड्डा
दैनिक प्रदीप के बाद मौत आने के दिन तक दैनिक हिन्दुस्तान के मान्यता प्राप्त पत्रकार रहे नंदलाल परशुरामका बाहर से जरूर सरल थे, पर जब कलम और स्वाभिमान की बात होती थी तो वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते थे। बात 1995 की है। एमपी चुनाव में किसी छपी समाचार को लेकर डीसी नंदलाल बाबू से नाराज थे। गोड्डा गांधी मैदान स्थित टाउन हॉल के पास एमपी चुनाव की मतगणना हो रही थी। प्रशासन की ओर से मतगणना स्थल तक जाने के लिए पास की व्यवस्था किया गया था। नंदलाल बाबू को भी पास निर्गत किया गया था। वे जैसे ही मतगणना कक्ष में पहुंचे तो वहां पर बैठे तात्कालीन डीसी एस एन गुप्ता ने अनादर करने के ख्याल से पूछ दिया कि आप कौन हैं? और कैसे यहां तक आ गए? नंदलाल बाबू पहले तो चौके पर तुरंत बोले कि मैं हिन्दुस्तान हिन्दी का निज संवाददाता हूं और आपके द्वारा जारी पास के मिलने के बाद ही यहां समाचार संकलन करने आया हूं। बाद में उन्हें बैठने के लिए कहा गया पर स्वाभिमान पर लगी चोट के बाद नंदलाल बाबू वहां से तुरंत लौट गए। उस समय नंदलाल बाबू जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष भी थे। उसने अपनी बात पत्रकार संगठन में रखा। इंद्रजीत तिवारी ने मोर्चा संभाला और बाद में जाकर डीसी को नंदलाल बाबू से गलती मांगनी पड़ी। नंदलाल बाबू ने वार्ता के समय डीसी को कहा कि आपसे समाचार संकलन के दौरान भेंट होती रहती थी। आप सदा कहते थे कि आइए परशुरामका जी बैठिए और एका- एक उस दिन आपने सबों के सामने कहा कि आप कौन हैं और यहां तक कैसे आए? यह मेरे स्वाभिमान के खिलाफ था। नंदलाल बाबू ने कहा कि पत्रकार के पास स्वाभिमान ही पूंजी होती है। इसे के सहारे वे जीते- मरते हैं। यही कारण है कि इसके आगे आप कौन कहे, बड़ी- बड़ी हस्ती को भी पत्रकारों को सम्मान देना पड़ता है। पत्रकारिता में लोग सम्मान पाने को लेकर ही आते हैं। आज कुछ लोग इस सम्मान को गिरवी रखकर अपना स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रशासन की जी हजूरी करते हैं। मैं इसमें से नहीं हूं डीसी साहब
गुरुकर्ज उतारा नहीं जा सकता,उनकी अर्थी को दिया पल्लव ने कंधा।
नंदलाल परशुरामका जितने सरल थे उतनी ही लेखनी उनकी मजवूत थी
बिना कोई परिचय पत्र का ही मुझे ले गए थे पत्रकार सम्मेलन में
पल्लव, गोड्डा
बात वर्ष 1991-92 की है। उस समय कुकरमुत्ते की तरह इतने पत्रकार सड़कों पर नहीं उग आए थे। दैनिक हिन्दी में जिले भर में एक ही पत्रकार काम करते थे। नंदलाल परशुरामका जी हिन्दुस्तान, इंद्रजीत तिवारी द टाइम्स ऑफ इंडिया, अभय पालिवार नवभारत टाइम्स, दिवाकांत राजू आज, कृष्णानंद बहादुर हिन्दुस्तान टाइम्स, सीताराम राय जनशक्ति, श्यामानंद वत्स सहित कुछ गिने- चुने पत्रकार ही पत्रकारिता में थे। उस समय दैनिक अखबार में लिखना आसान नहीं था। मैं हाजीपुर से निकलने वाले अखबार अनुगामिनी में हाथ पैर मार रहा था। सुरेंद्र मानपुरी साहब अनुगामिनी के संपादक थे। खबर कागज के पन्नांे पर लिखकर डाक से भेजता था। अधिकांश बड़े दैनिक अखबार के पत्रकार भी यही करते थे। खबर में दम होता था। लेखनी दूर से ही झलक जाती थी। उस समय की चार लाईन की छपी खबर आज के चार पन्नों पर भी भारी होता था। पत्रकारों के प्रति समाज से लेकर प्रशासन में गजब का सम्मान था। नंदलाल बाबू बहुत ही शालीनता से खबर लिखेते थे। मैं इनके पास जाकर बैठता था और कुछ खबर लिखकर दिखलाता था। नंदलाल बाबू और इंद्रतजीत तिवारी साहब मुझे पत्रकारिता में बहुत प्रोत्साहित करते रहते थे। छोटी अखबार में खबर छपती थी तो भी प्रशासन के लोग युवा होते हुए भी सम्मान करते थे। उस समय गोड््डा के डीसी एस एन गुप्ता थे। डीडीसी विमल कीर्ति सिंह थे। एसपी बीएन मिश्रा थे। बोमियो वारी जिला जन संपर्क पदाधिकारी थे। पत्रकार सम्मेलन विधानसभा की तरह होता था। पदाधिकारियों को भय रहता था कि पत्रकार उसके विभाग के खिलाफ कोई प्रश्न वहां पर न उठा दे। उठाए प्रश्नों पर अगले पत्रकार सम्मेलन में कार्रवाई की रिपोर्ट दी जाती थी। मैं नया- नया पत्रकारिता में पैर रख रहा था। कोई परिचय पत्र भी नहीं था। नंदलाल बाबू और इंद्रजीत तिवारी फिर भी मुझे पत्रकार सम्मेलन में ले गए और वहां भी मैं पहली वार कई तीखे प्रश्नों को पूछा। प्रशासन के लोग उसी समय समझ गए कि यह लड़का चुप रहने वाला नहींे है। नंदलाल बाबू ने हाथ पकड़ा तो कल यानि 5 मार्च 2022 को मैंने उनकी अर्थी में कंधा देकर सारे रास्ते चिल्लाता रहा। पत्रकार नंदलाल परशुरामका अमर रहे।
मजदूर की मेहनत ने पत्थरों की ओट में खिला दिया गोल्डमेडलिष्ट फूल
पाकुड़ सदर प्रखंड के रहसपुर के मजदूर सुल्तान शेख ने ये सावित कर दिया है, कि मजदूर मजबूर नहीं होता, वो चाह ले तो किसान बनकर दुनियाँ का पेट भरने के लिए धरती चीर कर अनाज ऊगा दे, गगनचुंबी इमारत बना दे, केनल खोदकर नदियाँ बहा दे, या फिर अपने आँगन की गोद मे समाज, शहर,राज्य और देश को रोशन करनेवाला कोहिनूर पाल ले।
हाँ ये कर दिखाया है मजदूरी करनेवाले सुल्तान ने मेहनत और अच्छी परवरिश के बलपर सुल्तान ने ऐसी सुलतानी दिखाई कि अपने आँगन में बेटे अबू तालिब को ऐसा चिकित्सक गढ़ दिया कि झारखंड के राज्यपाल ने गोल्ड मेडल से नवाजा।
मजदूर के बेटे ने पिता की नाकाफ़ी कमाई और आये दिन अभाव के कंकडिले राह पर चल कर अपनी प्रतिभा का ऐसा लोहा मनवाया कि उसके पिता के साथ सम्पूर्ण पकुड़वासी गौरव का अनुभव कर रहे हैं।
अब पाकुड़ के पथरीली जमीन पर पत्थरों की ओट से एक ऐसा डॉक्टर फूल खिला है, जिसके हाथ मे उनकी काबिलियत की गवाही देता चमचमाता गोल्डमेडल है।
तालिब ने डॉक्टर की पढ़ाई में लिया है गोल्डमेडल।