Tuesday, September 17, 2024
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प्रणाम का महत्व

महाभारत का युद्ध चल रहा था
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर “भीष्म पितामह” घोषणा कर देते हैं कि –

“मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा”

उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई –

भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए| तब –
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो –

श्रीकृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए –

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि – अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो –

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने –
“अखंड सौभाग्यवती भव” का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!

“वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्रीकृष्ण यहाँ लेकर आये है” ?

तब द्रोपदी ने कहा कि –
“हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं” तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया –

भीष्म ने कहा –

“मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते है”

शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि –

“तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है ” –

” अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती ” –
……तात्पर्य्……

वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि –

“जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है “

” यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो “

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई “अस्त्र-शस्त्र” नहीं भेद सकता –

“निवेदन 🙏 सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।”

क्योंकि:-

प्रणाम प्रेम है।
प्रणाम अनुशासन है।
प्रणाम शीतलता है।
प्रणाम आदर सिखाता है।
प्रणाम से सुविचार आते है।
प्रणाम झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध मिटाता है।
प्रणाम आँसू धो देता है।
प्रणाम अहंकार मिटाता है।
प्रणाम हमारी संस्कृति है।

मजदूर के बेटे ने अपने नाम को किया सार्थक, नाम है विद्याधर

गोड्डा जिला के कंचनपुर ग्राम निवासी पंकज राम के पुत्र विद्याधर कुमार ने यू.जी.सी नेट तथा जे.आर.एफ की परीक्षा में संस्कृत विषय से सफलता प्राप्त की है। विद्याधर कुमार ने 20 वर्ष की आयु में ही जे.आर.एफ परीक्षा उत्तीर्ण की है। इनके पिताजी पंकज राम गोड्डा जिला में ही मजदूर का काम करते हैं।

विद्याधर की सम्पूर्ण शिक्षा झारखंड के हजारीबाग ज़िले से पूरी हुई है। विद्याधर वर्तमान में संत कोलम्बा महाविद्यालय हजारीबाग से शिक्षा शास्त्री की पढ़ाई कर रहे हैं। इससे पूर्व इन्होंने 12 वीं की परीक्षा में भी जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा विनोवा भावे विश्वविद्यालय से स्नातक में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। साथ ही इन्होंने जीवनशतकम् नामक मुक्तककाव्य भी लिखा है।

विद्याधर ने अपनी सफलता का श्रेय माता पिता, तथा उनके शिक्षक अंगिरा महोदया, सुजीत महोदय, राजेश महोदय आदि को दिया हैं। विद्याधर कुमार ने अत्यन्त विकट परिस्थिति और कम संसाधन होने के वावजूद भी अपने लगन एवं परिश्रम से संघर्ष करते हुए लक्ष्य को प्रथम प्रयास में प्राप्त कर अपने सपने को साकार किया।
ईमानदार संघर्ष और मेहनत ने विद्याधर को विद्या को धारण करने के ऐसा योग्य बनाया मानो माँ सरस्वती ने डिग्री नही अपना प्रसाद दिया हो। अशेष बधाई आपको विद्याधर जी।

मीडिया की गिरती साख दोषी कौन, कैसे बनी रहे मीडिया की विश्वसनीयता

आज मैं अपने मित्र शहनवाज हसन के आलेख से प्रभावित होकर उसे ही अक्षरशः इस पेज पर डाल रहा हूँ, मेरी इच्छा है, कि मेरे मित्र पाठक इस आलेख को जरूर पढ़ें

(शाहनवाज़ हसन) आज सुबह आंख खुलते ही दो पत्रकार साथियों के द्वारा भेजे गये मैसेज को पढ़ता हूँ। पहला संदेश देवघर जिला के मधुपुर के पत्रकारों का होता है जिसमें दो पत्रकारों के ऊपर मधुपुर थाना में FIR दर्ज होने की जानकारी दी जाती है, दोनों ही पत्रकारों पर इसलिये FIR दर्ज किया जाता है कि वे लॉकडाउन के उल्लंघन को लेकर समाचार प्रकाशित करते हैं। दूसरा संदेश साहेबगंज से होता है जहाँ एक ऑडियो संदेश के साथ यह जानकारी दी जाती है कि दो पत्रकारों द्वारा किस तरह लोगों को उकसा कर लॉकडाउन का मखौल उड़ाने के लिये सड़क पर उतरने के लिये प्रेरित किया जाता है।

दो अलग अलग संदेश दोनों ही मामलों में मीडियाकर्मियों पर मामला दर्ज किया जाता है। मधुपुर के दो पत्रकार साथियों पर मामला इसलिये दर्ज किया जाता है कि वे एक प्राइवेट कंपनी द्वारा लॉकडाउन के नियमों के उल्लंघन को लेकर समाचार प्रकाशित करते हैं। कंपनी प्रबंधन की ओर से मधुपुर थाना को आवेदन दिया जाता है और यह जानते हुये भी कि प्रबंधन द्वारा झूठा आवेदन दिया जारहा है थाना प्रभारी FIR दर्ज कर लेते हैं। दूसरे मामले में साहेबगंज जिला के बरहरवा के दो पत्रकारों के ऊपर पतना के प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा स्थानीय थाना में लिखित आवेदन दिया जाता है जिसमें दो पत्रकारों पर लॉकडाउन तोड़ने के लिये स्थानीय ग्रामीणों को उकसाने का गंभीर आरोप लगाया जाता है। प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा आवेदन के साथ एक ऑडियो क्लिप भी दिया जाता है जिसमें दो पत्रकार ग्रामीणों को लॉकडाउन तोड़ने के लिये उकसा रहे होते हैं।

दोनों ही पत्रकार हैं, एक कानून तोड़ने वालों की खबर बना रहे होते हैं तो दूसरा कानून तोड़ने के लिये ग्रामीणों को उकसाने का कार्य कर रहा होता है। पहले मामले में कानून का अनुपालन कराने के लिये समाचार बनाने पर उनपर मुकदमा दर्ज किया जाता है तो दूसरे मामले में कानून तोड़ने के लिये उकसाने वाले पत्रकारों पर मामला दर्ज होता है।

आज मीडिया में दो तरह के लोग हैं एक वह हैं जो आज भी पत्रकारिता की साख बचाये रखने के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हैं, दूसरे वह हैं जो मीडिया का टैग लगाकर हर वह कार्य कर रहे हैं चाहे वह नैतिक हो या अनैतिक। ऐसे मीडियाकर्मी केवल मधुपुर और साहेबगंज में नहीं हैं, वे मुंबई और दिल्ली में भी हैं वह गाज़ियाबाद और मुरादाबाद में भी हैं।

एक मशहूर कहावत है ‘गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है’ आज सोशल मीडिया के इस दौर में अगर कोई सबसे अधिक निशाने पर है तो वह है मीडियाकर्मी।
मीडिया जो स्वयं को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहता है,जिसका कार्य लोकतंत्र के तीनों स्तंभ की निगरानी करना है आज पूरी तरह से चरमरा गया है।

चौथे स्तंभ (मीडिया) की इस गिरती साख के लिये दोषी कौन है ?

सोशल मीडिया के साथ साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आज यह समाचार दिन भर ट्रोल करता रहा कि देखिये किस तरह साहेबगंज में दो मीडियाकर्मियों द्वारा सरकार को बदनाम करने के लिये षड्यंत्र रचा गया। इस खबर के ट्रोल करने के साथ उन दो पत्रकारों की खबर कहीं दफन हो जाती है जिसने लॉकडाउन के उल्लंघन को लेकर अपनी जान हथेली पर रख कर खबर बनायी और बदले में उन दोनों पत्रकारों के ऊपर झूठा FIR दर्ज किया जाता है।

आज दिन भर झारखण्ड में एक न्यूज़ चैनल इस खबर को प्रमुखता से चलाते रहे जिन पर गलत खबर चलाकर संप्रदायिकता फैलाने का गंभीर आरोप उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा लगाया गया था जिसके बाद उस चैनल ने उस फर्जी खबर को अपने सभी सोशल मीडिया लिंक से हटा दिया था। खबरिया चैनल की TRP का सवाल था क्योंकि मामल मुख्यमंत्री से जुड़ा हुआ था। फिर ऐसे में उन दो पत्रकारों की खबर की क्या अहमियत हो सकती है जिन्हें सच लिखने की सज़ा झूठे मुकदमे के रूप में मिलती है।

आज मीडिया की साख पर प्रश्नचिन्ह क्यों लग रहा है ? मीडिया शब्द सुनते ही जहाँ लोगों के मन में सम्मान की भावना आती थी वहीं आज पत्रकार सार्वजनिक रूप से स्वयं को पत्रकार कहने से अब कतराने लगे हैं। इसे समझने के लिये मैं आप सभी से अपने एक अनुभव को साझा कर रहा हूँ।

कुछ वर्ष पूर्व मेरे दिल्ली के एक पत्रकार मित्र जो उन दिनों दिल्ली में एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल से जुड़े होते हैं मुझे दूरभाष पर कहते हैं कि आप के लिये हमने बात कर ली है आप हमारे चैनल के लिये बिहार झारखण्ड हेड के रूप में दिल्ली आकर जॉइन कर लें।बड़ा चैनल था इसलिये मैं ने मीडिया हाउस में कहीं नौकरी न करने की कसम(इस विषय पर कभी फुर्सत से लिखूंगा कि मैं किसी मीडिया हाउस में नौकरी नहीं करने की कसम किस लिये खायी थी,जिस कसम पर आज भी मैं सख्ती से क़ायम हूँ) के कारण थोड़ा असमंजस में था इसलिये अपने शुभचिंतकों के कहने पर आधे अधूरे मन से दिल्ली नोयडा स्थित चैनल के आलीशान दफ़्तर पहूंचता हूँ।मुझे मेरे मित्र बताते हैं जिस कुर्सी पर वह आज बैठे हैं पिछले सप्ताह तक उनके जॉइन करने से पूर्व विनोद दुआ बैठा करते थे।मुझे आलीशान बहुमंजिला दफ्तर दिखाया जाता है जहाँ लगभग 300 से अधिक मीडियाकर्मी काम कर रहे होते हैं।चाय कॉफी के बाद मुझे मेरे मित्र चैनल के चेयरमैन के चैंबर में ले जाते हैं।मेरे बारे में मेरे मित्र चैयरमैन को पहले ही सब कुछ जानकारी दे दी होती है।चेयरमैन बहुत विनम्रता से सारी बात करते हैं और प्रबंधन से जुड़े एक व्यक्ति को बुलाकर एक अग्रीमेंट बनाने के लिये कहते हैं।मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या आप के चैनल में नियुक्ति पत्र के स्थान पर अग्रीमेंट किया जाता है।चेयरमैन के चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान आती है वह कहते हैं लगता है आप को चैनल के सम्बंध में पूरी जानकारी नहीं दी गयी है।मैं चेयरमैन से कहता हूं थोड़ा स्पष्ट कहें कि मुझे आप दो राज्यों का अपने चैनल का प्रमुख बना रहे हैं तो मुझे आप वेतन क्या देंगे।मेरे इस प्रश्न से वह एकदम से मुझ पर भड़क जाते हैं और मेरे मित्र से कहते हैं पहले आप इन्हें पूरी बात समझायें उसके बाद मेरे पास आयें।मेरे मित्र मुझे लेकर अपने चैंबर में आते हैं और मुझ से चैनल का फंडा समझाते हैं।वह कहते हैं हजारों करोड़ का चैनल है उसके अपने खर्चे हैं इसलिये अब पत्रकारों को वेतन पर नहीं रखा जाता है बल्कि उन्हें चैनल में साझेदारी दी जाती है।मैं भी हैरान था हजारों करोड़ के चैनल में साझेदारी की बात हो रही थी।मेरे मित्र ने बताया कि मुझे चैनल को प्रतिवर्ष 2 करोड़ रुपये देने होंगे और प्रसारण से लेकर सभी पत्रकारों के वेतन का भुगतान मुझे ही करना होगा।मैं अपने मित्र पर भड़क उठा, मैं ने कहा यह पैसे मेरे पास कहाँ से आयेंगे, चैनल का प्रसारण पत्रकारों का वेतन और चैनल मालिक को पैसे कहाँ से दूंगा। वह मुझे समझाने लगे आप टेंशन नहीं लें सब मैनेज हो जायेगा, इतने पैसे तो चतरा और धनबाद से ही आप के पास आजायेंगे।मुझे बहुत आश्चर्य हुआ लंबे समय से मैं अपना साप्ताहिक समाचार पत्र बहुत मुश्किल से गिरते पड़ते प्रकाशित कर रहा था, मुझे वह पैसे क्यों नही  मिल रहे थे।जब मेरे मित्र ने बताया कि वह पैसे कैसे आयेंगे तब उस पल मुझे यह लगा कि क्या पत्रकारिता करने के लिये हमें इस स्तर तक गिरना होगा, क्या सभी ऐसा ही कर रहे हैं।

मैं ने अपने मित्र का आभार व्यक्त किया और दिल्ली से रांची वापस आगया।मेरे मित्र मुझे सलाह दे रहे थे कि झारखण्ड में पैसों की कोई कमी नहीं है मुझे कोल् माइंस से ही इतने पैसे मिल जायेंगे जिस से चैनल का सारा खर्च मैं आसानी से उठा पाऊंगा।आज इस तरह के खबरिया चैनल पत्रकारों को इस आधार पर ही रखते हैं कि आप उन्हें कितना बिज़नेस देंगे।उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं होता वह पत्रकार उन्हें वह पैसे लाकर कहाँ से देगा।
ऐसे पत्रकारों के लिये नैतिकता के क्या मायने हो सकते हैं, वह सुबह घर से समाचार की तलाश में नहीं निकलते उन्हें तलाश होती है ऐसे बकरों की जो उन्हें आर्थिक रूप से मिले लक्ष्य को पूरा करने में सहायक हो सके।कुछ दो चार अपवाद अवश्य होते हैं।मीडिया की गिरती साख के लिये मैं बार बार यही कहता आया हूँ कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू यही है, पिछले दो दशक में  जब से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बाढ़ दिखाई दे रही है मीडिया अपने मूल उद्देश्य से पूरी तरह भटक चुकी है।और इसका खमियाजा उन पत्रकारों को भुगतना पड़ता है जो आज भी पूरी ईमानदारी से सरोकार की पत्रकारिता कर रहे हैं।आज दूसरी सबसे बड़ी चुनौती डिजिटल मीडिया यूट्यूब एवं वेबपोर्टल है।केंद्र सरकार की ओर से अबतक डिजिटल मीडिया के लिये नियमावली नहीं बनाई गयी है।पांच से दस हजार रुपये देकर वेबपोर्टल बनाकर पत्रकार का टैग लगाकर स्वयं को पत्रकार घोषित कर दे रहे हैं।तीसरी वजह अंचल के वैसे पत्रकार है जो शुद्ध रूप से पत्रकारिता करते हैं और जिनके आय का कोई दूसरा स्रोत नहीं होता।ऐसे पत्रकारों की संख्या बहुत कम है लेकिन वे हर प्रखंड में मौजूद है।प्रबंधन की ओर उन्हें वेतन के नाम पर दो से पांच हजार रुपये दिये जाते हैं और कई ऐसे भी हैं जो निशुल्क कार्य कर रहे हैं।
पत्रकारिता की साख को बचाना है तो हमें अपने अंदर आयी इन कमियों को दूर करना होगा।पत्रकारिता को जबतक मिशन थी तब तक उस पर कोई उंगली नहीं उठती थी,आज यह प्रोफेशन बन गयी है जिसके कारण अपने सिद्धांतों से दूर हो गयी है।पत्रकारिता को धंदा बना लिया गया है और इसे हर अच्छे बुरे कार्यो के लिये उपयोग किया जारहा है।पत्रकारिता में आयी इस गिरावट के भुक्तभोगी वे होते हैं जो आज भी पत्रकारिता को मिशन बनाकर पूरी ईमानदारी से चौघे स्तंभ की रक्षा के लिये कार्य कर रहे होते हैं।कहीं उन्हें बालू माफियाओं द्वारा ट्रक से कुचलवा दिया जाता है तो कहीं उनपर झूठे मुकदमे दर्ज कर जेल भेज दिया जारहा है।पत्रकारिता की साख को बचाये रखना है तो हम पत्रकारों को एक लकीर खींचनी होगी,लकीर के उस पार जो होंगे वे पत्तलकार होंगे, और आप उस लकीर को जबतक पार नहीं करेंगे तबतक आप का  मान सम्माम भी बना रहेगा और पत्रकारिता पर लोगों का विश्वास भी क़ायम होगा।
(लेखक: स्वतंत्र पत्रकार हैं साथ ही भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय संगठन सचिव एवं झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन के संस्थापक हैं)

बहुत चतुर हैं, नशा परोसने वाले कारोबारी, वैध कारोबार और समाजसेवा की कंबल के अंदर बेख़ौफ़ पी रहे हैं घी

याद है आपको ? पिछले वर्ष 22 दिसम्बर को नशे की अंधेरी गलियों में भटकती युवा पीढ़ी और बीमार भविष्य की आशंका से चिंतित वर्तमान (अभिवावक और बुद्धिजीवियों) की चर्चा कर मैंने आपको बताया था, कि इस धंधे में कैसे सफेदपोशों और पुराने शातिरों द्वारा चाँदी काटी जा रही है।

उस लेख से हमारे प्रान्त में तो कुम्भकर्णी नींद नहीं टूटी, लेकिन पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की कालियाचक पुलिस ने तकरीबन पाँच लाख की फेंसीडील सिरफ के साथ एक आदमी को गिरफ़्तार कर लिया था। जी हाँ फेंसीडील सिरफ पाकुड़ में एक ट्रांसपोर्ट से मंगाया जाता है, आमतौर पर ट्रांसपोर्ट कम्पनियों पर इतना विश्वास रहता है, कि उन्हें जाँच या जाँच के नाम पर किसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। फिर ट्रांसपोर्ट में अगर भेजने वाले और रिसीभ करनेवाले भी एक ही गुट के लोग हों और ट्रांसपोर्ट भी अपना ही हो , तो सूचना के लीक होने की संभावना भी शून्य हो जाती है। यहाँ तो ट्रांसपोर्ट में थोक में ये नशीला पेय पदार्थ दवा की चादर ओढ़े पहुँच जाती है, लेकिन यहाँ से इसे पश्चिम बंगाल भेजने का तरीका काफ़ी रईशजादाना है। छोटी चार चक्के वाली बंगाल और खाशकर सिलीगुड़ी के ज़्यादातर नम्बर वाली गाड़ियों से ये खेपें पहुँचाई जाती है। मेरे सूत्रों के अनुसार ऐसी लक्ज़री छोटी प्राइवेट गाड़ियों पर दो या उससे ज़्यादा आदमी रात में ऐसे समय मे निकलते हैं, कि बस वो निकल लेते है आसानी से, ठीक इसी प्रकार यही गाड़ियाँ उधर से विभिन्न तरह के ड्रग्स की खेप लेकर पाकुड़ आते हैं, कभी कभी इन गाड़ियों में एक आध महिलाएं और बच्चों को भी आते जाते साथ ले लिया जाता है, कि सन्देह से परे ….बस समझ लो भैया।

इन लोगों के पाकुड़ में ठहरने की व्यवस्था स्टेशन के पास के एक ऐसे होटल में किया जाता है, या फ़िर एक व्यक्तिगत विवाह भवन के कमरों में किया जाता है, कि सामान्यतया किसी आम आदमी को कुछ समझ में नही आता, या यह कहें कि उनके काम और समझ से परे की बात पर उनका ध्यान नही जाता, और प्रशासन या पारखी नजरें उन तक पहुँच नही पातीं। इस धंधे में स्थानीय तौर पर ऐसे लोग जुड़े हैं, जो ऐसे अबैध धंधों के पुराने खिलाड़ी है, और इतना पैसा बना चुके हैं, कि कभी कभी समाजसेवी का लीबादा भी ओढ़ लेते हैं, और वैध धंधों की ख़ूबशूरत दीवारें तो अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिए उन्होनें बना ही रखा है।
22 दिसम्बर को मैंने आपसे क्या कहा बताया था, एक नज़र यहीं इसी पेज पर नीचे फ़िर से डाल लें—

पाकुड़  जिला मुख्यालय के अभिवावकों और बुद्धिजीवियों में इन दिनों एक चिंता और चर्चा आम है, कि नगर के नवयुवक आहिस्ते से नशे के चंगुल में इस क़दर फँसते जा रहे हैं, कि आनेवाले वर्षों में एक सम्पूर्ण पीढ़ी बर्बादी के जबड़ों में सिमट जाएगा। उल्लेखनीय है,कि पाकुड़ पत्थर, बीड़ी और अब कोयले उद्योग के लिए मशहूर तो रहा है, लेकिन जितना यह वैध उद्योगों के लिए मशहूर रहा है, उतना ही अवैध उद्योगों के लिए बदनाम भी। पश्चिम बंगाल से गलबहियां खेलतीं इस जिले की सीमाएं बंग्लादेश की सीमाओं से भी काफ़ी नजदीक है। स्वाभाविक रूप से ऐसे में तस्करी इस इलाके में एक बड़ी समस्या रही है। पहले भी सी आर, भी सी पी और अवैध हथियार सीमापार से आते थे, बदले में आयोडाइड नमक सहित अन्य कई सामग्रियों को उस पार भेजा जाता था, उसके बाद सूता सहित अन्य सामग्रियों का विनिमय तस्करी इस पार-उस पार होता था, आज के दिनों में नशे की विनिमय तस्करी हो रही है।

सूत्रों के अनुसार बतातें चलें कि इन दिनों इस पार से तस्कर फेंसीडील सिरफ बंग्लादेश भेज रहे हैं और उस पार से ड्रग्स की अवैध आयात कर रहे हैं। इस धंधे में नगर और आस पास के पुराने तस्कर सहित कई सफेदपोशों की संलिप्तता की ओर सूत्र इशारा करते हैं। नक़ली नोटों सहित अन्य बस्तुओं के पुराने खिलाड़ी इस नशे के कारोबार में लगे हैं और स्थानीय भटके हुए युवाओं को इस नशे के भवँर जाल में उपयोग कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं।

पिछले दिनों शहर के बुद्धिजीवियों ने सोसल मीडिया पर इशारों ही इशारों में नशे की जाल में जकड़ते युवाओं पर चिंता जताते हुए, पीढ़ी के बर्बाद होने की आशंका व्यक्त की, साथ ही मीडिया को भी आड़े हाथों लेते हुए नाराजगी जताई, जो स्वाभाविक भी है। लेकिन मीडिया के लोगों की मजबूरी पर किसी आलोचक की नज़र नही जाती। मीडिया के पास कलम तो है, लेकिन सुरक्षा के लिए हथियार नहीं है। अवैध खनन पर लिखने पर माफ़िया धमकियाँ देते हैं, अपनी पहुँच का उपयोग कर निष्पक्ष मिडिया को करते हैं मानसिक रूप से प्रताड़ित।

खैर इस पर अपनी बात बाद में जरूर रखूँगा, लेकिन फ़िल्वक पाकुड़ में नशे की गिरफ्त में जाते पूरी युवा पीढ़ी एक चिंता का विषय तो बन ही गया है। पुलिस और प्रशासन की नज़र भी इस सामाजिक समस्या और नशे के अवैध कारोबार की ओर बरबस खींच ही गया है। मीडिया ने भी अपनी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए इस ओर अपनी शोध शुरू कर दी है।

इधरअनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अजित कुमार बिमल ने कहा कि पुलिस नशीले पदार्थ बेचने वालों पर पैनी नजर रख रही है। अगर कोई व्यक्ति या सिंडिकेट इस तरह का काम कर रही है तो इसकी इसकी सूचना दें, पुलिस कार्रवाई करेगी। किसी भी सूरत में नशीले पदार्थ बेचने वालों को बर्दाश्त नही की जाएगी। लेकिन इसकी सूचना दे कौन ये बड़ा सवाल है ? आख़िर पुलिस का अपना सुचना तंत्र क्या करता है, क्या इस मामले में भी मीडिया ही मुखबिर बने ?
आनेवाले दिनों में शायद इस अवैध कारोबार के खिलाड़ियों के चेहरों से पुलिस नक़ाब खींचने में सफ़ल हो जाए।

वसंत ऋतु में कैसे रखे अपनों का ख्याल

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इन दिनों सर्दी खाँसी और कफ जनित बीमारियों ने मेरे और मेरे घर के साथ घर – घर मे दस्तख दी है। ऋतुओं के सन्धिकाल में ऐसी बीमारियाँ अपनी उपस्थिति मानव जीवन में बनाती रहती हैं।

इस समय कैसे रहा जाय और सावधानियों के साथ किन औषधीय गुणवाले घरेलू उपाय किये जांय, इस विषय पर मेरे फेसबुक मित्र prakash dubey ने एक आलेख बसंत ऋतु के संदेश के नाम से पोष्ट किया है। आप सभी मित्र भी प्रकाश भाई के निम्न आलेख से फ़ायदा लें, इसलिए हु ब हु उसे प्रस्तुत कर रहा हूँ।

वसंत ऋतु का संदेश
खान-पान का ध्यान विशेष-वसंत ऋतु का है संदेश
18 फरवरी 2022 शुक्रवार से वसंत ऋतु प्रारंभ।

ऋतुराज वसंत शीत व उष्णता का संधिकाल है। इसमें शीत ऋतु का संचित कफ सूर्य की संतप्त किरणों से पिघलने लगता है, जिससे जठराग्नि मंद हो जाती है और सर्दी-खाँसी, उल्टी-दस्त आदि अनेक रोग उत्पन्न होने लगते हैं। अतः इस समय आहार-विहार की विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
आहार : इस ऋतु में देर से पचनेवाले, शीतल पदार्थ, दिन में सोना, स्निग्ध अर्थात घी-तेल में बने तथा अम्ल व रसप्रधान पदार्थो का सेवन न करें क्योंकि ये सभी कफ वर्धक हैं। (अष्टांगहृदय ३.२६)

वसंत में मिठाई, सूखा मेवा, खट्टे-मीठे फल, दही, आईसक्रीम तथा गरिष्ठ भोजन का सेवन वर्जित है। इन दिनों में शीघ्र पचनेवाले, अल्प तेल व घी में बने, तीखे, कड़वे, कसैले, उष्ण पदार्थों जैसे- लाई, मुरमुरे, जौ, भुने हुए चने, पुराना गेहूँ, चना, मूँग , अदरक, सौंठ, अजवायन, हल्दी, पीपरामूल, काली मिर्च, हींग, सूरन, सहजन की फली, करेला, मेथी, ताजी मूली, तिल का तेल, शहद, गौमूत्र आदि कफनाशकपदार्थों का सेवन करें।भरपेट भोजन ना करें | नमक का कम उपयोग तथा १५ दिनों में एक कड़क उपवास स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। उपवास के नाम पर पेट में फलाहार ठूँसना बुद्धिमानी नही है।

विहार : ऋतु-परिवर्तन से शरीर में उत्पन्न भारीपन तथा आलस्य को दूर करने के लिए सूर्योदय से पूर्व उठना, व्यायाम, दौड़, तेज चलना, आसन तथा प्राणायाम (विशेषकर सूर्यभेदी) लाभदायी है। तिल के तेल से मालिश कर सप्तधान उबटन से स्नान करना स्वास्थ्य की कुंजी है।

वसंत ऋतु के विशेष प्रयोग
२ से ३ ग्राम हरड चूर्ण में समभाग मिलाकर सुबह खाली पेट लेने से ‘रसायन’ के लाभ प्राप्त होते हैं |
१५ से २० नीम के पत्ते तथा २-३ काली मिर्च १५-२० दिन चबाकर खाने से वर्षभर चर्मरोग, ज्वर, रक्तविकार आदि रोगों से रक्षा होती है।
अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े कर उसमें नींबू का रस और थोडा नमक मिला के सेवन करने से मंदाग्नि दूर होती है।
५ ग्राम रात को भिगोयी हुई मेथी सुबह चबाकर पानी पीने से पेट की गैस दूर होती है।
रीठे का छिलका पानी में पीसकर २-२ बूँद नाक में टपकाने से आधासीसी (सिर) का दर्द दूर होता है।
१० ग्राम घी में १५ ग्राम गुड़ मिलाकर लेने से सूखी खाँसी में राहत मिलती है।
१० ग्राम शहद, २ ग्राम सोंठ व १ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम चाटने से बलगमी खाँसी दूर होती है।

सावधानी : मुँह में कफ आने पर उसे तुरंत बाहर निकाल दें। कफ की तकलीफ में अंग्रेजी दवाइयाँ लेने से कफ सूख जाता है, जो भविष्य में टी.बी., दमा, कैंसर जैसे गम्भीर रोग उत्पन्न कर सकता है| अतः कफ बढ़ने पर ? जकरणी जलनेति का प्रयोग करें।