Sunday, December 22, 2024
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झारखंड में पूजाओं की कमी नहीं, पाकुड़ में भी एक पूजा (puja) कर रही संरक्षित अवैध खनन (Illegal mining)

खनन सचिव पूजा सिंघल (Puja singhal) मामले में कुछ जिला खनन पदाधिकारी भी ई डी (ED) द्वारा तलब किये गए हैं। सूत्रों से कई तरह की सूचनाएं मिल रही है, लेकिन पर्दा पूरी तरह हटने में अभी कुछ समय लगेगा। लेकिन तलब किये गए जिला खनन पदाधिकारियों में पाकुड़ का छूट जाना आश्चर्य पैदा करता है। आज बात करेंगे लेडी डॉन के Illegal mining की।

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Illegal mining

खैर ई डी तो ई डी है, शायद देर से ही सही……. आइए हम एक और खनन सचिव न सही लेकिन खनन करनेवाले एक प्रोपराइटर के ज़बरदस्ती बने सचिव की बात करते हैं। ये अपने पिता के नाम से पाकुड़ में अवैध खनन (Illegal mining) करनेवाली की कहानी पूजा से कम नहीं है। जब ये तथाकथित लेडी खनन डॉन पाकुड़ आई। तो अपने पिता के आलीशान घर को छोड़ अपनी पहुँच और रुतवा दिखाने के लिए एक सत्ताधारी पार्टी के बड़े नेता की मेहमान स्वरूपा बन कर सर्किट हाउस में रुकी। समय के साथ ये सिलसिला चलता रहा। वहीं से उसने अपनी धौंस हर स्तर पर उस समय दिखाया था। जब मीडिया की शनिदृष्टि इन पर पड़ी तो सर्किट हाउस की पिंड इनसे छूटी।

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खैर तमाम तरह की सरकारी समितियों और एक्शन फोर्स के बाद भी इस लेडी डॉन ने अपने पिता तक पर पाकुड़ आने पर रोक लगाकर उनके खनन बिजनेस पर अपनी पकड़ बना ली। अवैध कारोवार की पराकाष्ठा को भी अपनी छलांगों से लांघ गई। पाकुड़ में पत्थर खनन की एक कम्पनी एन डी इंटरप्राइजेज (ND Enterprises), जिसके प्रोपराइटर (proprietor) नारायण दास साधवानी हैं। हाँलाकि इनके लीज की तय समय सीमा समाप्त हो चुकी है। वावजूद इसके सदर प्रखंड और अंचल के मोजा- राजबाँध, प्लॉट नम्बर- 625 , 626 , 628 , 629 , 630 , 631 और 651 को मिला कर रकवा 3.05  एकड़ पर लीज था। इन प्लॉट नम्बरों पर सुरसा की तरह मुँह बाए खदान आज भी अवैध तरीके से हुए खनन की गवाही देता मौजूद है।

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इस खदान की नापी और रॉयल्टी रिटर्न की सभी फ़ाइलें लीज के बाद भी अवैध की कहानियाँ बयाँ करेंगी। इन प्लॉटों पर जब सारी मलाई ख़त्म हो गई तो अब लेडी डॉन (lady don) प्लॉट नम्बर (plot number) 627 , 964 , 652 पर बिना लीज  के एक सहयोगी के साथ खनन कर रही है। सहयोगी कौन है, इनकी लम्बी कहानी दूसरे आलेख में डालूँगा, लेकिन सवाल उठता है कि टास्क फोर्स की छापेमारियों में भी ये अधिकारियों को दिखा क्यों नही। आश्चर्य है !   अब पाकुड़ में ई डी से ये सवाल पूछे जा रहे हैं, तुम कितने पूजा पकड़ोगे, हर खनन घपले से पूजा निकलेगी। सवाल ये भी उठ रहे हैं, अवैध पत्थर खनन के बना-रस पाकुड़ अभी तक कैसे छूटा हुआ है ! विष्मय है🤔

अगले अंक में पढ़े – Lady Don का सहयोगी कौन है, किसके बल और सह पर बनी लेडी डॉन

पत्रकारिता पर स्वयं पत्रकार और समाज को चिंतन करना चाहिए…..

हर पीड़ा , तमाम उपलब्धि , सरकारी काम , सूचनाएं ,व्यवसायियों की समस्या , समाज की आकांक्षाऐं सबको अपनी बात कहने के लिए पत्रकारिता की बैसाखी लेनी ही पड़ती है , फ़िर भी बेचारा पत्रकार…….
क्या नेताओं , अफसरों , व्यवसायियों और समर्थवान लोगों ने चाय की चुस्कियों के साथ जो कह दिया , उसे लिखना , अखबारों में जगह देना मात्र पत्रकारिता है ?
उनका क्या होगा जो अपनी दर्द की पीडाओं को अपने ही अंदर घोंट जाते हैं !
क्या उनकी पीड़ाओं को कुरेद कर बाहर निकलना और उसे समाधान तक पहुँचाना पत्रकारिता का धर्म नहीं ?
कभी उस आनन्द से भी पुलकित होने का अहसास कर के देखें , जब आपकी पत्रकारिता किसी की आँखों की आँसू को पोछ और चुरा जाए, तथा उन्ही आंखों में प्रसन्नता और सन्तोष की चमक दिख जाए।
हाँ हम पत्रकार करते हैं ऐसा । हम अपने दर्द को अपने ही अंदर दूर तलक दफ़न कर ढूंढते है , दूसरे की आँखों के सकूँ।
लेकिन जिसे देखो बस पत्रकार को कोसने में लगे है।
हम लोगों की दर्द को सामने लाते हैं, तो लोगों को दर्द पहुँचाने वाले धनपशु हमारी औकात नापने निकल लेते हैं। धमकियाँ ,आक्षेप और न जाने क्या क्या लिए निकल पड़ते हैं घर से , धमकियों और आक्षेप के ढेलों से घायल हमारा वजूद लहूलुहान हो फ़िर भी पीड़ितों के घावों को मलहम लगाते और सहलाते हैं।
और फिर सबों के साथ हम पर पत्थर उछालने वालों की भी अंतिम आस के रूप में हमी सहयोग में उभर कर सामने खड़े होते हैं।
क्यूँ होता है ऐसा , क्यूँ ये धनपशु पत्रकारों को अपनी जागीर समझते हैं। हम मानते हैं , हमारे बीच भी सड़ांध है , लेकिन सभी तो दुर्गंधित नही हैं, कुछ अपनी महक भी महकते हैं मित्र , उन्हें पहचानो वरना देश , राज्य और समाज सब पर इसका असर दिखेगा।
दुख और बढ़ जाता है, जब सरकारी अमलों से भी सौतेलापन मिलता है।
माननीय न्यायालय को बताना पड़ता है, उन उच्च शिक्षित सरकारी अमलों को कि पत्रकार भी अपनी मौलिक अधिकार के साथ जीने के अधिकारी हैं।

ये बात और है, कि आज के समय मे पत्रकारिता के क्षेत्र में अयोग्य लोगों ने अपनी उपस्थिति और डिजिटल तथाकथित पत्रकारिता ने इस पेशे को बदनाम जरूर किया है, लेकिन क्या सभी को एक ही तराजू पर तोलना तर्क और न्याय संगत होगा ? ये यक्ष प्रश्न है।

Mother’s Day पर हम अपनी उजड़ती ,बंजर होती धरती माँ पर भी तो सोचें !

Mother’s day पर आपने कभी पृथ्वी पर कोई लेख आलेख नहीं पढ़ा, सुना या देखा होगा। ऐसे हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। स्वाभाविक रूप से पृथ्वी दिवस पर्यावरण को केंद्र में रख कर ही मनाया जाता है।लेकिन Mothers day पर पृथ्वी पर बात करना भारतीय मान्यताओं के अनुसार कभी बेतुका नहीं लगता।

कम से कम मुझे तो बिलकुल नहीं।
बीते कल मैंनें आनेवाले कल 8 मई को Mothers day को ध्यान में रखकर एक आलेख लिखा था । मेरी एक पाठक बहन ने मुझे धरती माता पर भी लिखने को कहा।
उस बहना के मत के अनुसार धरती भी माँ है, और हमारी करतूतें इस माँ को बंजर बनानेवाली हैं।
बात मुझे घर कर गई, इस बात से मुझे सबसे पहले आज से तकरीबन 8 वर्ष पहले मेरी बेटी वेदिका जो उस समय 6 वर्ष की रही होगी, ने अहसास कराया था।
पाठक (मेरा आलेख पड़नेवाली) बहन की बात सुन मुझे 8 वर्ष पुरानी वो दुपहरिया याद आ गई। मैं सुबह का निकला दोपहर में घर आया था। मेरी 6-7 वर्ष की बेटी वेदिका बरामदे की जमीन पर बैठ कर पेंसिल से कुछ उकेर रही थी। मैंनें पूछा क्या हो रहा है बेटा ?  उसने अपनी उकेरी हुई तश्वीर का वो पन्ना मेरे सामने रख दिया।
उसने मुझसे कहा कि आज मदर्स डे है बाबा इसलिए मैं धरती माँ की चित्र बना रही हूँ।
उस समय मुझे ये इल्म हुआ कि सचमुच आज मदर्स डे है और धरती को हम भारतीय माँ ही तो मानते हैं। मैंनें वेदिका से पूछा तुम्हारे उकेरे चित्र में ये पृथ्वी रोती सी दिख रही है।
वेदिका ने मुझे कहा कि जंगल कट रहे हैं , हमारे आसपास पहाड़ों को लोग खाये जा रहे हैं। उसने मुझसे बड़े निर्दोष से अंदाज़ में शिक़ायत करते हुए कहा , बाबा आप ही तो ख़बरों में लिखते हो, हम सभी को बताते हो। टी भी पर भी तो बाबा दिखाया जाता है, आप भी तो दिखाते हो।
ज्यादा गर्मी , ज्यादा ठंड और बारिश के दिनों में कम बारिश होने पर आप ही तो पर्यावरण असंतुलन की बातें समझाते हो।
वेदिका ने उस मदर्स डे पर रोती हुई पृथ्वी का चित्र दिखाकर जो तर्क दिए , उसने मुझे चिंतन को मजबूर कर दिया। नन्ही वेदिका ने मुझे वेद के ज्ञान का आभास कराया। उसे भी ये ज्ञान वेद की तरह श्रुति से ही प्राप्त हुआ था। कुछ मुझसे कुछ टी भी समाचारों से उजड़ती पृथ्वी और पर्यावरण के बदलाव का ज्ञान नन्ही वेदिका को आया था।
वेदिका अपने प्राप्य श्रुति ज्ञान से रोती हुई पृथ्वी का चित्र बना कर एक संदेश देने में सफ़ल तो दिख रही थी, लेकिन हमलोग तथाकथित सभ्य समाज क्या ऐसा करने में सफल हो रहे हैं।
सेमिनारों और सम्मेलनों में हम माइक की गर्दन पकड़ कर बहुत कुछ बोल-कह जाते हैं। एक शोर मचा जाते हैं , अपने ज्ञान और जानकारियों का लोहा मनवाकर श्रोताओं की तालियाँ बटोर लाते हैं, लेकिन क्या हम कभी कोई ऐसा शंदेश छोड़ पाते हैं, कि उसकी ख़ामोशी से भी एक ऐसी चित्कार निकले , जो छोड़ जाए अमिट छाप।
वेदिका , हाँ नन्हीं वेदिका के रोती पृथ्वी की उस ख़ामोश चित्र की चित्कार ने मुझपर ऐसा छाप छोड़ा है, कि मेरे ब्लॉग के पाठक बहन ने जब धरती माँ पर कुछ लिखने को कहा, तो वेदिका का वेद मुझे बरबस याद आ गया।
सचमुच धरती हमारी माँ है , हम पृथ्वी दिवस जरूर मनाएं, लेकिन मदर्स डे पर हम धरती माँ के आँचल को हरा-भरा रखने की कसम उठाएं।

Mother’s Day खो गयी आँचल की ठंडी छाँव, सुरक्षा का अहसास और सौंधी सुगन्ध

खो गई है Mothers day की एकदिनी आयोजन में इसकी महिमा। माँ (mother) शब्द मात्र नही, एक जीवन पद्धति की पूरी शोधपत्र है। अब माशूका की ज़ुल्फों में वो महक़ कहाँ ? जो सौंधी सुगंध माँ की आँचल से मिलती थी “बच्चन”।

भौतिकता की अंधी दौड़ में माँ के आँचल से बिछड़ने की सज़ा पाता है,
अब तो बच्चे शहरों में हर चीज के तपिश भरी लाइन में ही नज़र आता है

Mathers day 8 मई को है। लेकिन बिना माँ के जीवन (life) की कल्पना ही बेमानी है। एक भी दिन बिना माँ के ? इसके जेहन में आने मात्र से पूरा शरीर, रोम रोम सिहर सा उठता है। इन्सान ही नही सभी जीवों की सबसे अच्छी दोस्त उसकी माँ होती है, जिससे वो अपने दिल की बात करता या कहता है। इंसान (human) या कोई भी जीव जब ज़ुबान से कुछ नहीं बोल पाता तो उसके मौन एक्सप्रेशन को भी सिर्फ़ माँ ही समझ सकती है। माँ शब्द ही अपने आप में एक पूरी थेसिष है, एक ऐसी कहानी है, जिसे कही नहीं बल्कि महसूस की जा सकती है।

World Press Freedom Day 2022, प्रेस फ्रीडम डे, प्रेस की स्वतंत्रता को दर्शाता है

माँ पर कुछ लिखना कहना हमेशा नाकाफ़ी रहेगा। शब्द (word) और तमाम अभिव्यक्तियों के माध्यम माँ शब्द के सामने बौने सावित हो जाते हैं। हलाँकि पत्रकारिता (journalism) के जीवन को जी कर कुछ ऐसे मामलों से भी रूबरू हुआ हूँ, जहाँ इस शब्द को दाग़दार होते भी देखा है। लेकिन कुछ उदाहरण इस शब्द की महत्ता पर भारी नही पड़ सकते, पर चिंता और चिंतन की आवश्यकता पर जरूर जोर देने को मजबूर करता है।

मुझे पता है, इन बातों के कारण लोग इस मामले पर इत्तेफ़ाक़ नहीं रखेंगे। लेकिन मेरी पत्रकारिता ने मुझे हमेशा सत्य के लिए विद्रोही स्वभाव का बनाए रखा। मेरी कलम और लेखन भी मेरे विद्रोही स्वभाव से प्रभावित रहा है। लेकिन माँ की महत्ता को मेरा विद्रोही होना भी नकार नही सकता। आप कितने भी बड़े हो जांय, बादलों सी ज़ुल्फों की छाँव आपको जितनी भी शीतलता दे। प्रेमिका की बाहों की जकड़न आपको किसी तरह महसूस हो, पर माँ की गोद मे उसके आँचल की छाँव जो सकून और सुरक्षा का अहसास कराता है, वो किसी गोद और छाँव से अतुलनीय है। ये और बात है, कि भौतिकता की दौड़ ने साड़ियों को वनवास दे दिया और अब तो आँचल कहीं खो सा गया। कुछ सलवार जंफर की ओढ़नियों में भी आँचल की सुगंध मिलती है, पर भौतिकता और नए फ़ैशन ने उन ओढ़नियों को भी लगभग आधुनिक माँओं से से छीन ही लिया।

Parshuram Jayanti : 2022 परशुराम जयंती की कथा, परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

माँ शब्द इतना सुंदर है, कि इसके सामने सुंदरता के मामले में कोई भी शब्द पानी माँगता सा लगता है। जब शब्द ही सुंदरता का अहसास कराता है, तो बच्चों के लिए माँ के चेहरे की सुंदरता की कल्पना करना भी असंभव सा दिखता है। लेकिन अब तो इस शब्द पर भी शॉर्टकट ने अतिक्रमण कर लिया है। अब माँओं को भी इस शब्द के शॉर्टकट पर्याय ही सुनने में अच्छा लगता है। माँ की ख़ुशियाँ बच्चों की खुशियों में निहित होती है। किसी भी क़ीमत पर माँ अपने बच्चों को खुश देखना चाहती है। एक पति भी पत्नी को खुश रखने के लिए पहले उनके बच्चों को खुश रखने का प्रयास करता है। हमेशा माँ की खुशी बच्चों की खुशी में निहित दिखती है। पर यहाँ भी किट्टी पार्टी ने अतिक्रमण कर रखा है।
माँ घर में कहाँ क्या है , किसे क्या पसंद है से परिचित रहा करतीं है। ये भारतीय परंपरा के अनुसार ही नही पूरे विश्व में माएँ ऐसी ही होती रहीं हैं।

डिजिटली भी सत्संगति से सम्भव है स्वयं का परिष्करण

लेकिन अतिक्रमण ने यहाँ भी अपनी इंट्री मार रखी है। अब तो आया इन बातों के लिए जिम्मेवार हैं। मानवीय मूल्यों (human values) के गिरते स्तर ने तमाम रिश्तों को कमज़ोर कर दिया है। यहाँ इन रिश्तों को भी देशी और पौराणिक जीवनशैली के टॉनिक की आवश्यकता है। ये विद्रोही लेख किसे कितना पसंद आएगा, पता नहीं लेकिन जैसे कुछ उदाहरण आजकल विदेशों से नॉकरी छोड़ कर आये युवाओं को खेती करते देख ऐसा लगता है, कि हमें अपनी ज़मीन पर वापस लौटना होगा।

बस हाथ की लेखनी ही काफ़ी है नन्दलाल परशुराम सर के लिए

ठीक उसी तरह हमें अपनी पारिवारिक संस्कृति की जमीन पर लौटना आवश्यक है। वरना हम बस नकल में अकल खोते रहेंगे और बिना माँ के जीवन की कल्पना न करने वाले बच्चे और आधुनिक माएँ , इस माँ शब्द और इससे जुड़ी भावनाओं, सच्चाइयों से इतर एक दिन Mothers day मना कर रह लिया करेंगें।

World Press Freedom Day 2022, प्रेस फ्रीडम डे, प्रेस की स्वतंत्रता को दर्शाता है

World Press Freedom Day 2022 विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस पर अगर हम भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर विवेचना करें, तो इसके कई पहलुओं में झाँकना होगा।
विश्व की प्रतिष्ठित संस्था के आंकड़ों को यदि हम खंगालें तो प्रेस की स्वतंत्रता के नाम पर भारत 180 देशों में काफ़ी पिछड़ा हुआ है।

अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में भी भारत की स्थिति संतोषजनक आंकड़ों में नहीं दिखती। लेकिन अगर जमीनी स्तर पर हम इसे अपने अनुभव के अनुसार टटोलते हैं, तो प्रेस की स्वतंत्रता के हिसाब से व्यक्तिगत मुझे ऐसा नही दिखता। स्वतंत्र प्रेस पर कोई स्पेसिफिक कानून तो नही है। लेकिन भारत मे कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। ऐसे में यहाँ जो स्पष्ट तौर पर दिखता है, कि कोई भी व्यक्ति लाइव टीभी पर बैठकर सरकार, सरकारी अमलों तथा यहाँ तक कि सरकार के मुखिया की भी आलोचना कर आरोप लगाते हैं। कोई भी चैनल या अखबार एवं मीडिया माध्यम उसे बेख़ौफ़ परोस भी रहे हैं। ऐसे में प्रेस की स्वतंत्रता पर उठने वाले सवाल एवं आंकड़ों पर मुझे आपत्ति दिखती है।

कानूनन धाराओं एवं उप धाराओं के अनुसार भारत में अभिव्यक्ति की बिना किसी अवरोध के पूर्ण रूप से स्वतंत्रता कम से कम मुझे दिखती है। अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर झूठ परोसा जाय तो अगर उस पर किसी भी स्तर पर आपत्ति दर्ज होती है, तो इसकी निंदा नहीं होनी चाहिए। हाँ भारत मे पत्रकारिता, राजनीति की तरह ही विभिन्न रूपों और पहलुओं से स्वार्थजनित हो गईं है। ऐसे में राजनैतिक प्रभाव में अगर पत्रकारिता के स्तर के पतन की बात कही जाय तो अतिश्योक्ति नही होगी। इसके लिए पत्रकार के साथ मीडिया हाउस तथा पत्रकारिता के बाजारीकरण मुख्य रूप से उत्तरदायी है। इस पर विचार और बहस की जरूरत है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता की होड़ में अनुपयुक्त लोगों का इसमें विभिन्न रूपों से जुड़ जाना काफ़ी दुखद और चिंताजनक है। पत्रकारिता का ग्रामीण इलाकों में पतन से स्वाभाविक रूप से इस पेशे में ख़तरा को पैदा करता है। ऐसे सड़क पर चलते, ड्राईभ करते , घर में बैठे लोगों पर भी काफ़ी ख़तरे होते हैं। जरूरी नहीं कि उन पर हमला हो किसी भी तरह की दुर्घटना का भी अंदेशा बना रहता है। ऐसे में आम नागरिकों की आवाज़ बनने और उठाने वाले पत्रकारों पर भी काफ़ी ख़तरे हैं। अगर उन ख़तरों से आपको परहेज है, तो इस पेशे में मत आएं।

मैंनें कई आलेख और रिपोर्ट पढ़े। जिस तरह भारत में पत्रकारिता एवं इससे जुड़े मामलों का मूल्यांकन किया गया है, उसपर मैं सहमत नहीं हूँ। कानून, मानवीय मूल्यों, देश की सुरक्षा तथा किसी भी तरह के स्वार्थ से विरत रह कर भारत में पत्रकारिता अत्यंत स्वतंत्र तथा सुरक्षित है।

अक्षय तृतीया 2022.. क्या करें. क्या न करें. धन प्राप्ति के लिए करें ये उपाय

तृतीया हर हिन्दू कलेंडर के माह में दो बार क्रमशः शुक्ल और कृष्ण पक्ष में आते हैं। साधारणतया इस तिथि को महिलाएं शिवपूजन तथा अपने पति के लिए उपवास रखती हैं। लेकिनअक्षय तृतीया या वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। और इस दिन भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी की पूजा के साथ विष्णु के छठे अवतार Prshuram की भी पूजा करते हैं।

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माना जाता है कि इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैँ उनका अक्षय फल मिलता है। इस कारण इसे अक्षय तृतीया कहते हैँ। इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ और मांगलिक काम किया जा सकता है।
अक्षय तृतीया में क्या करें- इस दिन कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है। जैसे- विवाह, गृह-प्रवेश, जमीन-जायदाद खरीदना, वस्त्र-आभूषण खरीदना आदि। इस दिन सारा दिन शुभ मुहुर्त ही रहता है। इस दिन किए गए जप, तप और दान का कई गुणा अधिक फल मिलता है। इस दिन किया गया जप, तप, हवन और दान अक्षय हो जाता है। इस दिन गंगा स्नान जरूर करे। गंगा स्नान न कर पाने पर, स्नान के पानी मे एक चम्मच गंगाजल मिला दें।यह भी उपलब्ध न हो तो गोक्षरन अर्क एक बूँद मिला कर स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।

शुभ-मुहूर्त-:

अक्षय तृतीया 3 मई 2022
अक्षय तृतीया प्रारंभ 3 मई को सुबह 5:18 से
अक्षय तृतीया तिथि समाप्त 4 मई 2022 को सुबह 7:32 बजे तक
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त सुबह 5:39 बजे से 12:18 तक
सोना खरीदने का शुभ समय – 05:38 से 6:15 तक
रोहिणी नक्षत्र 3 मई सुबह 12:33 से 4 मई को सुबह 3:19 तक

पूजा विधि-:

घर के मंदिर में ईशान कोण में लाल कपड़ा बिछाकर भगवान लक्ष्मीनारायण के की मूर्ति स्थापित कर विधिवत पूजन करें कांसे, सोने , चांदी या मिट्टी के दिये में गाय के घी का दीपक जलाएं,सुगंधित धूप जलाए,गोलोचन से तिलक करें, अक्षत,रोली,सिंदूर,इत्र,अबीर गुलाल आदि 16 चीजों से देवी का षोडशोपचार पूजन करें फिर भगवान लक्ष्मी-नारायण को चावल की खीर का भोग लगाकर भोग को प्रसाद के रुप में बांटे।
अक्षय तृतीया के दिन भगवान लक्ष्मी-नारायण को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप 108 बार करें मंत्र
जो व्यक्ति दीक्षित हैं, वे लक्ष्मीनारायणायय के बीज मन्त्रों का जप करें। बीज मंत्र सभी जगह नही बताए या लिखे जाने की परंपरा नहीं है। अपने गुरु या पुरोहित से पूछकर जान लें।
या फिर सभी लोग ॐ लक्ष्मीनारायणायय नमः का जप करें।

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पूजन में इन बातों का रखें विशेष ध्यान

मां लक्ष्मी की तस्वीर पर सुहाग का सामान अर्पण करें। घर के मंदिर में मां लक्ष्मी के पास 11 गोमती चक्र रखें। लक्ष्मी जी के चाँदी के चरण पादुका मंदिर में रखे। दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें और साथ ही दूध दही अर्पण करें। इस दिन दान करने के लिए बहुत ही खास दिन माना जाता है। चावलों की खीर बनाकर मां लक्ष्मी को भोग लगाकर प्रसाद में बांटे।

अक्षय तृतीया के दिन करें यह दान

गौ ,भूमि,तिल ,स्वर्ण,घी ,वस्त्र,धान्य गुड़,चांदी नमक,शहद ,मटकी,
खरबूजा एवं कन्या दान

क्या करे , क्या न करें

अक्षय तृतीया को उपवास करें। पूरा दिन न कर पाएं तो एक बार ही खाएं। भोजन में नमक का उपयोग न करें।
सात्विक चिंतन-मनन करें। किसी का बुरा न सोचें, चाहें तथा न करें। ब्रम्हचर्य का पालन करें तथा मिथ्यावादन कदापि न करें।

Parshuram Jayanti : 2022 परशुराम जयंती की कथा, परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

3 मई को परशुराम जयंती (parshuram jayanti) है। अक्षय तृतीया वैसाख मास के शुक्ल पक्ष को परशुराम की जयंती मनाई जाती है। महावीर हनुमानजी की तरह परशुराम भी चिरंजीवी हैं। हनुमान जहाँ शिवांश रूद्रावतार हैं, वहीं परशुराम विष्णु के छठे अवतार हैं।

समय समय पर अवतारों ने अवतरित हो कर मानव जीवन को सकारात्मक रूप से जीने का संदेश दिया है। भगवान राम की तरह परशुराम ने भी शास्त्र और शस्त्र की आवश्यकता के अनुसार उपयोग का संदेश दिया है। लेकिन राम जहाँ शांति के प्रतीक के तौर पर माने जाते हैं, वहीं परशुराम उग्रता के प्रतीक हैं। पर परशुराम की उग्रता मानक मूल्यों का अतिरेक कतई नहीं है।

जादोपटिया : कलाकार की कृतियाँ , जो बन गईं भिक्षापात्र

परशुराम की जयंती अक्षय तृतीया को इसका भी प्रतीक है, कि ये अक्षय ज्ञान वाले ब्राह्मणों पूज्य हैं। इस दिन किये गए अच्छे कर्म, दान, जप ,पूजा और स्वर्ण की खरीदारी अक्षय होता है। अक्षय तृतीया पर पशुराम की पूजा कर अक्षय पुण्य और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त की जाने की परंपरा रही है। यह युगादि तिथि यानी सतयुग व त्रेतायुग की प्रारम्भ तिथि है।

श्रीविष्णु का नर-नारायण, हयग्रीव और परशुरामजी के रूप में अवतरण व महाभारत युद्ध का अंत इसी तिथि को हुआ था। इस दिन बिना कोई शुभ मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ या सम्पन्न किया जा सकता है। जैसे – विवाह, गृह – प्रवेश या वस्त्र -आभूषण, घर, वाहन, भूखंड आदि की खरीददारी, कृषिकार्य का प्रारम्भ आदि सुख-समृद्धि प्रदायक है।
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं।
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया।
उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै:।
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव ।। “–
मदनरत्न

श्रीकृष्ण, श्रीराम और जटायु, भीष्म की इच्छा मृत्यु पर उनके कर्मों का असर तथा सीख।

अर्थ : भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठरसे कहते हैं, हे राजन इस तिथि पर किए गए दान व हवन का क्षय नहीं होता है; इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है। इस तिथि पर भगवान की कृपादृष्टि पाने एवं पितरों की गति के लिए की गई विधियां अक्षय-अविनाशी होती हैं। परशुराम जयंती के दिन प्रातः स्नान करना चाहिए। स्नान गंगा, समुद्र या किसी पवित्र नदी में उत्तम माना गया है। आज के नगरीय अपार्टमेंट के जीवन मे आप स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर अपने आराध्य की आराधना कर सकते हैं।
एक बात का स्मरण रहे कि दान सुपात्र को ही करें।

परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

शहरों में कराहती कल का नटखट बचपन, सुनी पड़ी सिसकियाँ लेता बृद्ध वर्तमान

भौतिकता की दौड़ खा गई है बचपन की यादों तक को , वीरान पड़े हैं बचपन की शोर मचाती वो गलियां , जिन पर दोस्तों के साथ दौड़ लगाते खेलते-कूदते हमारी एक अंगड़ाई ने हमें यौवन दिया , और हम खो गए ज़िम्मेदारियों में। पूरा का पूरा हमारा वो बचपन का कुनबा अब सोसल साइट्स पर ही दिखता है। अब हाथ पकड़ तो कभी कांधों पर हाथ रख घूमता हमारा जहां मानो कोई अनजान शक्ति लूट गया हो!

वो कंचे की गोलयों की खनखनाहट वाली हमारी जेबों में अब क्रेडिट कार्ड के जखीरों वाले बटुवों (पर्स) ने छीन लिए हैं। हमारे गुल्ली डंडो वाले फील्ड के खाली पड़े मैदान में उग आई झाड़ियों ने कब्जा जमा रखा है। वो पिट्टओ खेलने की भागदौड़ अब बदल गई है, जिंदगी की अन्य नीरस पहलुओं की भागदौड़ में।
भाग हम आज भी रहे हैं लेकिन उसके उद्देश्य , वज़ह और जगह बदल गए हैं।
इन वजहों में वो निर्दोषता नही , इन वजहों में भी एक स्वार्थजनित वज़ह हैं।
आश्चर्य है ! उन बेवजह की गलियों में दौड़ते बचपन में वजह सिर्फ़ बेवजह होतीं थीं, लेकिन आज वजहों में भी वज़ह की भीड़ है।
जब भी अपने पुराने शहर, गाँव या मुहल्ले की गलियों में जाता हूँ, तो वहाँ बेगाने से लगता हूँ। पुरानी गलियों के पुरानी इमारतों से वो रौनक ग़ायब है, वहाँ का कलरव वो शोर-गुल जिससे गुलज़ार रहता था मुहल्ला , रोशन रहती थीं गलियाँ , वह सभी उजड़े घोसले से दिखते हैं।
उन घोसलों से इक खमोश सिसकियाँ ख़ामोशी से कान नहीं दिमाग़ को सुनाई पड़ती हैं। इन घोसलों से आँख खुलते ही नए आए पँखों को फड़फड़ाते उड़ गए हैं बच्चे, जिनसे गलियाँ गुलज़ार रहा करतीं थीं।
उन नए पँख वालों ने बसा और बना लिया है अबके नया घोसला , जो शहरों के अपार्टमेंट्स में है। वहाँ कोई खुला मैदान नहीं, कोई बच्चों के निर्दोष बचपन से गुलजार गलियाँ नहीं। वहाँ का बचपन लेपटॉप, डेस्कटॉप और मोबाइल स्क्रीन पर ठहर गया है। शहर कराह रहा है, बोझ बहुत है वहाँ ।
ओर वहाँ गाँव मुहल्ले की सुनसान बीरान पड़ी गलियों के पुराने घोसलों में बुढ़ापा सिसकियाँ ले रहा है। खिड़कियों से बूढ़ी गहरी धसीं आँखें , तो कभी दरों दरवाजों पर कोई साया दूर तलक गलियों में किसी की राह तकती नज़र आती है।
इधर सिसकियाँ है, तो उधर कराह,
इधर सूनापन है, तो उधर भीड़ और तपिश,
इधर पिता की छाँव है,
माँ के आँचल की ममता और शीतलता है,
तो उधर बॉस का ऑफिसियल कड़क निगरानी है,
घर पर ठंडक देने के लिए ए सी तो है,
लेकिन यहाँ माँ की आँचल की सकून देनेवाली शीतलता सूनी पड़ी है।
मैं अपने बचपन के कुनबे में अकेला बेरोजगार-बेगार, बेगैरत अपाहिज बोझ बना रहा गया।
इसलिए इन सूनी पड़ी गलियों की सिसकियों से लेकर शहर तक की भागती दौड़ती सड़कों पर बोझ तले दबी कराह तक को टटोलता रहता हूँ।
दोनों ही जगह मुझे एक बेदर्द दर्द दिखता है, जिसे दोनों जगह की महत्वाकांक्षाओं ने जन्म दिया है।
इन पुरानी गलियों को ग्रेंड मोम – पा बोलने वाले नाती-पोतों की चाहत थीं , तो गलियों में गुल्ली डंडो से खेलते बचपन को युवा होते ही शहरों की चकाचौंध , शहरी अंग्रेजी बोलती गोरियों और मम्मी पापा कहलाने की लालसा ने एक ओर अकेलापन, सुनी आँचल और वीरान गलियों में सिसकते मकान रह गए , तो दूसरी ओर शहर की भीड़ में कराहती भागमभाग और स्क्रीनों पर सिमटी नई पीढ़ी मिली।

राजनीति के खेल में हमेशा पिस जाती है आम जनता, तथाकथित पालनहार चट कर जाते रेवड़ियाँ

ऐसे राजनीति आम जनता , राज्य और देश के लिए एक किये जाने का दावा हर राजनेता और पार्टी करती है। अगर ईमानदारी से ये देखा या सोचा जाय ,तो ऐसा ही होना चाहिये , लेकिन राजनीति में ये सारे चीज काफ़ी पीछे छूट गया है।

राजनेता आज राजनीति सिर्फ़ स्वयं की सेवा या परिवार सेवा को ही ध्यान में रख तात्कालिक फ़ायदे को ध्यान में रख कर रहे हैं, इसके लिए कुछ भी करने के लिए वे तैयार दिखते हैं।
जनता , समाज ,राज्य और देश जाए …… बस अपना स्वार्थ सिद्ध होना चाहिए।
अभी स्थानीय समस्याओं को दरकिनार कर, अगर हम बिजली आपूर्ति पर ही सोचें तो , देखते हैं कि अगर उपभोक्ता मतलब सिर्फ़ आम जनता उपभोक्ता ही नही, बल्कि सरकारी संस्थानों जैसे उपभोक्ता अगर समय पर वितरण निगमों को सही समय पर भुगतान कर दे तो , वे बिजली उत्पादन करनेवाले संस्थाओं को भी समय पर भुगतान कर दे, ऐसे में कोल आपूर्ति कम्पनियों को भी समय पर भुगतान मिल जाएगा, तथा आपूर्ति सामान्य रहेगी।
लेकिन ऐसा होता ही नहीं, मतलब साफ़ है कि इन सारी समस्याओं का एकमात्र कारण स्वयं सरकारें ही हैं। अब जब मैंनें सरकार का यहाँ बहुवचन में प्रयोग किया तो समझदार , समझ ही सकते हैं कि मेरा इशारा कहाँ तक है।
राजनीति केंद्र को दोषी ठहराने में व्यस्त है , भुगतान कैसे सुनिश्चित हो इसपर मौन रहकर आम जनता को भरमाने में लगी है।
खैर इधर झारखंड सरकार पर सत्ताधारी पार्टी और उसके मुखिया के अनुभवहीन मूर्ख सलाहकारों ने स्वयं मुख्यमंत्री को ही एक तरफ से कानूनी दाव पेंच में फंसा दिया है , लोभ पालने तथा और थोड़ा और की मंशा पालने वाले सरकारी सर्वेसर्वा बुरी तरह फँसा नज़र आ रहा है। ऐसे में गठबंधन के दूसरे भागीदार कहीं पूरे राज्य में अगले चुनाव में काबिज़ न हो जाय , इसकी जुगत में गठबंधन के सभी पार्टियां अपनी अपनी तरह से रोटियाँ सेंकने में लगी हैं, उधर विपक्ष भी सकारात्मक न दिखकर अगली सरकार अपनी बने की जुगत में राजनीति कर रही है।
नतीजा आम जनता पिस रही है।
आम जनता भी न सुधरने की कसमें खाकर मज़हब , जाती , नमाज़ और हनुमान चालीसा की राजनैतिक साज़िशों में फँसी है।
कुल मिलाकर आम जनता अपने जनतांत्रिक मूल्यों को न समझने की ज़िद पर नेताओं के लिए चारागाह बन गया है। उन्हें ये समझ में नहीं आ रहा कि यहाँ हर नारे और बयानों पर वे छले जा रहे हैं, और रेवड़ियाँ उनके तथाकथित पालनहार चट किये जा रहे हैं।

उपलब्धियों का रहा अप्रेल, के के एम कॉलेज के लिए, नीरज हुए सम्मानित

पाकुड़ के के एम कॉलेज के लिए अप्रैल का महीना उपलब्धियों का महीना सावित हो रहा है। पहले कॉलेज के प्राचार्य डॉ लोहरा को राष्ट्र गौरव से सम्मानित किया गया, तो दूसरी और स्वयं सिद्धो कान्हू मुर्मू के कुलपति सोना झरिया मिंज ने मुख्य सहायक नीरज कुमार यादव को सम्मानित किया।
उल्लेखनीय है, कि पिछले सप्ताह देवघर में शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का राज्यस्तरीय महाधिवेशन हुआ था, जिसमें सिद्धो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के कर्मचारी संघ के संयुक्त सचिव के रूप में नीरज यादव को मनोनीत किया गया।
सांगठनिक रूप से क्षेत्रीय स्तर पर नीरज के चयन से, और स्वयं कुलपति द्वारा सम्मानित किये जाने से कॉलेज एवं पकुड़वासी सहित छात्र छात्राओं तथा शैक्षणिक अधिकारियों में प्रसन्नता का माहौल है। नीरज यादव को इधर बधाईयों का तांता लगा हुआ है।