Monday, December 23, 2024
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तनि अपन विधायक भाई के बोले बतियाये त सिखाईं हेमन्त जी , अभी त सठियेले नईखे !

 

हेमन्त जी आप हम झारखंड निवासियों के मुखिया हैं।इस नाते राजनैतिक अभिवावक भी ।
निश्चित रूप से आप अपने परिवार में भी तत्काल बड़े हैं , तो अपने परिवार का भी गुरुजी जी के बाद उपमुखिया भी।
आपके अनुज, हाँ छोटे भाई जो दुमका से आपके स्थान पर विधायक हैं , को समझाते नहीं !

ई त आपके पार्टी और परिवार के सम्माने का ढोल बजा रहे हैं।

इधर पेट्रोल छींट कर अपराधी नाबालिग को जिंदा जला रहा है , और वो गंजी जंघिया खरीदने दिल्ली जाते हैं।
कहाँ क्या बोलना है , यह भी…?
खैर ऐसे आदमी की संवेदनहीनता देखकर उन्हें विधायक बनना कहाँ की संवेदनशीलता है ! ये तो आप जरूर आईने के सामने खुद से पूछिएगा।
हे भगवान ! कहाँ गुरुजी , और उनके घर ऐसे ….?
झारखंड की विडंबना है कि , आपका विधायक और विधायक पत्रिनिधि ..!
आश्चर्य नहीं दुख होता है।
अपने कुनबे को संभालिये, और कहीं से बोलने का प्रशिक्षण इन माननीयों को दिलवाइये हजूर।
सिर्फ़ सरकार बचाने में नहीं , गुरुजी का सम्मान भी बचाइए।
और हाँ हमें भी अपने राज्य का निवासी बताने में शर्म न आए, कम से कम इतना तो कीजिए मालिक।
जहाँ विधायक को जो राजनैतिक वातावरण में बचपन से पला-बढ़ा हो उसे बोलते समय स्थान, काल और पात्र का ध्यान न रहे , तो शर्मिंदगी तो हमारी जायज़ है कि नई है ?

दुमका सिसकियों में डूबा है,सरकार अपनी बचाव में व्यस्त, विपक्ष हमलावर और छात्र-छात्राएं ? कोई पूछे तो उनसे !

झारखंड में राजनैतिक अस्थिरता बनी हुई है । कुछ समय के लिए सरकार की समस्या ठहरती भर हैं।
लेकिन फ़िर पक्ष मौका पर मौका देते हैं, तथा विपक्ष हल्ला बोलता है।
इधर उपराजधानी दुमका जल रहा है। जले भी क्यूँ नही !
आशिकी में दिलजले लड़कियों को जिंदा जला रहे हैं , तो वहसी दरिंदे चीरहरण कर लज्जाभंग के साथ हत्याकांड को अंज़ाम दे रहे हैं।
सड़कों पर स्वाभाविक विरोध दिख रहा है।
इसका परिणाम दूर दराज के यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले बच्चों और अभिवावकों पर पड़ रहा है। सभी सशंकित हो बच्चों को क्लास तक एटेंड करने नही भेज रहे ।
अभिवावक और बच्चे, खाशकर लड़कियाँ अपना नाम गोपनीय रखते हुए ऑन लाइन वर्गाध्यापन की बात कर रहीं हैं। पर्याप्त सुरक्षा में परीक्षा की माँग कर रहीं हैं।
इधर अभिवावकों को चिंता है , कि परीक्षा देने बच्चियाँ सुरक्षित परीक्षा हॉल तक कैसे पहुँचे !
कुल मिलाकर इस असुरक्षित माहौल और सड़कों पर विरोध की धधकते आक्रोश के बीच शिक्षा , छात्र और अभिवावक सिसक रहे हैं।
आख़िर कुछ तो करो सरकार !
अंकिता तो वहाँ उसपार ,और परिवार सहित सभ्य समाज इसपार  सिसकियों में डूबा तो है। लेकिन हमारे अंकों के मूल्यांकन की प्रक्रिया पर तो कोई गणित लगाइए हजूर।
बच्चियों के दर्द और आतंक से आतंकित भविष्य पर सोचना तो होगा।
क्यूँ सरकार, राज्यपाल महोदय और यूनिवर्सिटी प्रधान , आपको बच्चियों और अभिवावकों की चिंता जायज नहीं लगती ?
सोचिए , जरूर सोचिए ।

विश्वास भगवान का अटूट हो तो हर समस्या समाधान के साथ आता है, किसी के परिधान का उपहास और अपने चंचला सामर्थ पर अभिमान मत करें।

सभार डॉ योगेश भारद्वाज

*भगवान का भरोसा……*

गर्मी की भरी दोपहरी का समय था, यात्री रेल गाड़ी के डिब्बे में परेशानी में बैठे थे। बहुत सारे अमीर यात्रियों के साथ एक साधू वेषधारी भी यात्रा कर रहा था।

अमीर लोग साधू को कुछ दिए बिना खाना-पीना, हँसी-ठहाके कर रहे थे और साधू का मजाक बना रहे थे। साधू शांत स्वाभाव से बैठा सब देख रहा था, न ही उसे चिढाने पर क्रोध आ रहा था और न ही वो खाने को कुछ मांग ही रहा था।

रेल्वे स्टेशन आने पर अमीर यात्री उतर कर ठंडा पानी खरीद रहे थे, कुल्ले थूक रहे थे और साधू का मजाक बना रहे थे और तरह तरह के संवादों से उसे ताने दे रहे थे “साधू का वेष बना लेने से कोई साधू नहीं हो जाता, भगवा पहन लेने से कोई ज्ञानी नही हो जाता।

जब गरीबों के पास पैसे न रहे तो अच्छा है, भगवा का नाटक कर लेना चाहिए, मुफ्त खाने को मिल जाता है, कमाने की जरूरत क्या है, भीख भी मिल जाती है और लोग पहनने को कपडा भी दे देते है, घुमने को पैसा भी मिल जाता है, लोगो को बेवकूफ बना के पांव भी छुआ लो तो क्या कम है।” और भी न जाने क्या क्या बोल रहे थे !!!

मगर साधू किंचित भी विचलित नहीं हो रहे थे।

अगले ही स्टेशन पर एक सुन्दर वेशधारी वणिक गाड़ी में चढ़ा। उसके हाथ में पानी से भरा कुंजा और खाने का डिब्बा और मिठाई का डिब्बा था। उसने आते से ही साधू को प्रणाम किया और बोला स्वामी जी ये प्रसाद आपके लिए प्रभु श्रीराम ने भेजा है। उसके ऐसे व्यव्हार से अन्य यात्री उसे अचरज भरी नजरो से देख रहे थे।

साधु ने वो प्रसाद लेने से इंकार कर दिया और शांत शब्दों में कहा की “महानुभाव शायद आपको कोई गलत फहमी हो गई है, मै वो व्यक्ति नहीं हूँ जिसके लिए ये आप भोग लाये है, क्योंकि में तो आपको पहचानता भी नहीं।”

वणिक ने उत्तर दिया “नहीं स्वामी जी मुझे प्रभु श्री राम ने आपके ही लिए भोग लेने का आदेश दिया है और मै आपको अच्छी तरह पहचान गया हूँ कि आप ही स्वामी विवेकानंद जी है। मुझे भगवान् ने स्वप्न में आकर आपके लिए भोग लाने का आदेश दिया है।”

सब कुछ जानकर स्वामी विवेकानंद जी की आँखों से स्नेह से भरी अश्रुधारा निकल पड़ी और रेल के अन्य यात्री अपनी गलती पे शर्मिन्दा होकर स्वामी जी के चरणों में गिर पड़े और क्षमा याचना करने लगे।

स्वामी जी ने मीठे और शांत शब्दों में सबको क्षमा करते हुए बोले, “अपने पैसों पे नाज नहीं करना चाहिए, बल्कि अपनी विनम्रता और दयालुता पर नाज़ करना चाहिए। क्योंकि भगवन पे भरोसा रखने वाले को कभी नुकसान नहीं होता न ही कोई परेशानी परेशान करती है। भगवान् ने सबके भाग्य में खाना लिखा है। एक चींटी से लेकर हाथी तक के सभी जीव भूखे उठते जरुर है मगर भूखे सोते नहीं है। अत: भगवान का भरोसा करो कर्म करो कर्म के फल की चिंता मत करो। अच्छे का फल अच्छा और बुरे का फल बुरा ही होता है।”

ये थे सादगी से भरे स्वामी विवेकानंद जी कहीं भी अपना परिचय अपना नाम बताकर नहीं देते थे वरन अपने प्रवचन से लोगो के ह्रदय में बस जाते थे।हम भारत वासी तो केवल इसी बात पे गर्व करते है की विवेकानंद जी ने भारत की भूमि पर जन्म लेकर इस धरती को पावन कर दिया।

मैं स्वामी विवेकानंद जी को शत शत नमन करता हूँ। जिन्होंने भारत माँ का नाम अपने कर्मो से अमर कर दिया। जहाँ जहाँ भारत का नाम आता है पहला नाम स्वामी विवेकानंद जी का आता है।
ऐसे सहनशील भारत पुत्र को मै प्रणाम करता हूँ।

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सत्य और असत्य का रहस्य

सभार डॉ योगेश भारद्वाज

*सत्य और असत्य का फल*

सत्य ओर असत्य नाम के दो भाई थे। सत्य स्वच्छ और सुन्दर, असत्य मलिन और देखने से ही अप्रिय लग रहा था। जहाँ जाता असत्य ठुकराया जाता और दुत्कारा ही जाता, इसलिए उसने बदला लेने का निश्चय कर लिया।

कलियुग आया तो दोनों तीर्थ-यात्रा पर निकले तो शुरू में वही स्थिति रही। सत्य का तो सम्मान होता क्योंकि वह सुन्दर लगता था और असत्य का अनादर क्योंकि न उसके वस्त्र साफ थे, न आकृति।

स्नान के लिये दोनों एक सरोवर में उतरे। सत्य मन-लगाकर स्नान करने में लगा रहा।

इस बीच असत्य चुपचाप उसके कपड़े पहनकर चला गया। बाहर निकलने पर सत्य को विवश होकर असत्य के कपड़े पहनने पड़े।

तब से दानों अलग अलग चल रहे हैं और हर व्यक्ति के पास अलग अलग जाते हैं और अपना अपना लाभ बताते हैं। अधिकतर लोग असत्य की ओर आकृष्ट हो जाते हैं। फलस्वरूप असत्य का परिवार बहुत बड़ा हो गया है और पाप धन खूब आ रहा है, जिसके कारण लोग भोग विलास में डूबे हुए हैं और परिवार आपस में ही लड़ मर रहे हैं। सभी अंदर से अशांत हैं। न नींद आती है न व्यंजन खा पाते हैं।

सत्य का परिवार बहुत छोटा है। सत्य की कमाई है, परिवार में सुमति है और परिवार के साथ आंतरिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।

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प्रतिस्पर्धी दौड़ में कितना कुछ छूट जाता है हमसे, बहुत कुछ अनजाने में खो देते हैं हम वो , जो हमारे ही लिए था

आज सुबह दौड़ते हुए,
एक व्यक्ति को देखा।
मुझ से आधा किलोमीटर आगे था।
अंदाज़ा लगाया कि मुझ से थोड़ा धीरे ही भाग रहा था।
एक अजीब सी खुशी मिली।
मैं पकड़ लूंगा उसे, यकीं था।

मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा।आगे बढ़ते हर कदम के साथ,
मैं उसके करीब पहुंच रहा था।
कुछ ही पलों में,
मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था।
निर्णय ले लिया था कि मुझे उसे पीछे छोड़ना है। थोड़ी गति बढ़ाई।

अंततः कर दिया।
उसके पास पहुंच,
उससे आगे निकल गया।
आंतरिक हर्ष की अनुभूति,
कि मैंने उसे हरा दिया।

बेशक उसे नहीं पता था
कि हम दौड़ लगा रहे थे।

मैं जब उससे आगे निकल गया,
एहसास हुआ
कि दिलो-दिमाग प्रतिस्पर्धा पर इस कद्र केंद्रित था…….

कि

घर का मोड़ छूट गया
मन का सकून खो गया
आस-पास की खूबसूरती और हरियाली नहीं देख पाया,
ध्यान लगाने और अपनी खुशी को भूल गया

और

तब समझ में आया,
यही तो होता है जीवन में,
जब हम अपने साथियों को,
पड़ोसियों को, दोस्तों को,
परिवार के सदस्यों को,
प्रतियोगी समझते हैं।
उनसे बेहतर करना चाहते हैं।
प्रमाणित करना चाहते हैं
कि हम उनसे अधिक सफल हैं।
या
अधिक महत्वपूर्ण।
बहुत महंगा पड़ता है,
क्योंकि अपनी खुशी भूल जाते हैं।
अपना समय और ऊर्जा
उनके पीछे भागने में गवां देते हैं।
इस सब में अपना मार्ग और मंज़िल भूल जाते हैं।

भूल जाते हैं कि नकारात्मक प्रतिस्पर्धाएं कभी ख़त्म नहीं होंगी।
हमेशा कोई आगे होगा।
किसी के पास बेहतर नौकरी होगी।
बेहतर गाड़ी,
बैंक में अधिक रुपए,
अधिक जायदाद,
ज़्यादा पढ़ाई,
खूबसूरत पत्नी,
ज़्यादा संस्कारी बच्चे,
बेहतर परिस्थितियां
और बेहतर हालात।

इस सब में एक एहसास ज़रूरी है
कि बिना प्रतियोगिता किए, हर इंसान श्रेष्ठतम हो सकता है।

असुरक्षित महसूस करते हैं चंद लोग
कि अत्याधिक ध्यान देते हैं दूसरों पर
कहां जा रहे हैं?
क्या कर रहे हैं?
क्या पहन रहे हैं?
क्या बातें कर रहे हैं?

जो है, उसी में खुश रहो।
लंबाई, वज़न या व्यक्तित्व।

स्वीकार करो और समझो
कि कितने भाग्यशाली हो।

ध्यान नियंत्रित रखो।
स्वस्थ, सुखद ज़िन्दगी जीओ।

भाग्य में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है।
सबका अपना-अपना है।

तुलना और प्रतियोगिता हर खुशी को चुरा लेते‌ हैं।
अपनी शर्तों पर जीने का आनंद छीन लेते हैं।

*इसलिए अपनी दौड़ खुद लगाओ बिना किसी प्रतिस्पर्धा के इससे असीम सुख आनंद मिलेगा, मन में विकार नही पैदा होगा शायद इसी को मोक्ष कहते हैं।*

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मोबाइल नशे की तरह उतर चुका है हमारी रगों में , आज इसके बिना कुछ भी सम्भव नही लगता, हमारा बचपन भी मानो छिन गया हो।

*यादें बचपन की। 😊*

वो भी एक दौर था जब…

1.पापा शाम को घर आने में लेट हो जाते और हम चिंता ही करते रह जाते क्योंकि मोबाइल नहीं था..😄

2.घर के बाहर बरामदे में दोस्तों के साथ बैठकर गपशप लड़ाते क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

3.स्कूल की सारी टीचर हमारी कंप्लेन हमारी ही डायरी में लिख कर देती क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

4. दूरदर्शन के 15 मिनट के समाचार शांति से बैठ कर सुन लेते क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

5. इधर-उधर ध्यान दिए बगैर घरवालों के साथ बैठकर खाना खा लेते क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

6. ट्रेन लेट हो जाने पर कई बार रेलवे स्टेशन जाकर बार बार पूछना पड़ता था क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

7. हर बर्थडे पर पापा मम्मी के साथ फोटो स्टूडियो पर एक फोटो खिंचवाने जाते क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

8. पापा-मम्मी को बाजार से क्या सामान लाना है अगर बताना भूल जाते तो फिर से नहीं बता पाते क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

9. बचपन की यादें दिल में है तस्वीरों में नहीं क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

10. दुनिया की चकाचौंध से दूर हमारी खुद की एक दुनिया थी क्योंकि मोबाइल नहीं था…😄

👌👌👌👍👌👌👌
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हमें फ़्री बिजली नहीं, सुविधा का अधिकार चाहिए।😭बापू इन खद्दरधारियों को समझाओ ना !

दीये तले ही अंधेरा क्यूँ है भाई ?

पाकुड़ के कोयले से कई प्रान्त रोशन होते हैं। पाकुड़ के पत्थरों ने कोलकाता, इलाहाबाद, कानपुर और न जाने कहाँ-कहाँ समृद्धि की रोशनी जलाई । पाकुड़ की राजनीति और राजनैतिक प्रतिनिधियों ने कितने दलालों , ईमान के सौदागरों को कई पीढ़ियों तक की रोशन ज़िंदगी एडवांस में दे डाली।

लेकिन यहाँ की जनता आज भी अंधेरे में रहने को विवश है। दिन में बिजली की आँख मिचौली को छोड़ दें, शाम होते ही बिजली अपनी गैरमौजूदगी की बिजली गिराने लगती है।
आये दिन राजनैतिक पार्टियों के व्हाट्सएप ग्रुपों पर डींगें हाँकी जाती हैं, कि फलाना नेता फ़लाने से बिजली के लिए मिले, वार्ता की 🤣।
लेकिन बिजली है कि मानती नहीं। बेचारी जनता…..।

आश्चर्य है कि कुर्सियां एलान करतीं हैं, कि 100 यूनिट बिजली फ्री दी जाएगी। पहले ये बताओ कि बिजली पर सब्सिडी क्यूँ ख़त्म की ? इधर 100 यूनिट फ्री और उधर कोई क्लीयर नहीं कि 101 यूनिट पर क्या और कैसे चार्ज लगेगा ! भोली जनता भोलेनाथ बनकर भष्मासुरों को कुर्सियां दे डालती हैं !

अब बताओ कि ये 100 यूनिट जो फ्री बिजली मिलेगी, वो बिजली क्या तुम्हारे सेफ्टिटेंक के गेस से उत्पादित करोगे ? या फिर राज्य के संसाधनों तथा उलटी नाक पकड़कर हमसे लिए पैसों से ही उत्पादित करोगे ? भैया तुम्हारे पा के पास इतने पैसे तो नहीं कि तुम बाँटते फ़िरो ! और अगर हैं , तो ये ED की गिरफ़्त में कौन से कर्णधार सब हैं जो बिजली पैदा कर रहे हैं ?

मत करो जुमलों की जुगाली। ये जनता जब जुगाली की गुगली फेंकेगी तो सब हिम्मत फ़िक़्क़ा पड़ जायेगा। बिजली के वाज़िब पैसे लो, और बिजली सुचारू रूप से दो। अभी तो बस इतना ही , लेकिन अगर….याद रखो , वोटों का पिटारा जनता के ही पास है, और जनता वोट फ्री में ही देती है। हमें भीख नही , हमारे सुविधा का अधिकार दो, जिसपर ख़ादी कुंडली मार बैठी है।

बापू 😭😭😭इन्हें समझाओ ना 😥😥😥

वो क़त्ल भी करें तो चर्चा नहीं होतीं, मैं आह भी करूँ तो हो जाऊँ बदनाम ! क्यूँ साहब ?

वो बंगाल का था , झूल गया ।  ये संरक्षण में है, आप गिरफ्तारी ही झूला रखे हैं !

पिछले दिनों नगर थाना पाकुड़ के हाज़त में एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली। आरोपी पश्चिम बंगाल के शमशेरगंज थाने क्षेत्र का निवासी था। पाकुड़ मुफस्सिल थाना के एक युवक के अपहरण का आरोप इस युवक पर था।

खैर आरोपी युवक ने अपनी कमीज़ से फाँसी लगा ली। जाँच अभी चल रही है। आरोपी को पुलिस ने बंगाल से पकड़ लिया था। सक्रियता स्वाभाविक रूप से सराहनीय है। लेकिन सरकारी काम मे बाधा और पुलिस अभिरक्षा से डम्फर ले कर भागनेवाले आरोपी थानेदार के सामने राजनैतिक छाँव में कितने सुरक्षित हैं। राजनीति की ठंढी छाँव में कानून व्यवस्था कैसे दम तोड़ती ओर हाँफती नज़र आती है ! आप पाकुड़ में देख सकते है।

यह तश्वीर 3 जुलाई 2022 का है जिसमें कांग्रेस के तनवीर आलम माल पहाड़ी थाना के चेंगा डंगा में एक सभा कर रहे हैं। जिसमे मुफसिल थाना के एक कांड के अभियुक्त बदरुल शेख भी मौजूद है। इसके ऊपर सरकारी कार्य मे बाधा औऱ जप्त ट्रक लेकर भगाने का आरोप है। यह सरेआम पुलिस के सामने घूम रहा है। आश्चर्य तो यह है कि इस सभा में माल पहाड़ी ओ पी प्रभारी भी मौजूद है।

झारखंड की कानून व्यवस्था क्या सवालों के घेरे में नहीं है ? बेचारा बंगाल का आरोपी आत्महत्या कर ले और पाकुड़ का आरोपी …..? दुखद अतिदुखद।

राजवाड़ी मैदान पर नगर परिषद अध्यक्षा ने किया भब्य तोरण द्वार का उद्घाटन

पाकुड़ के जनआस्था का केंद्र मां नित्य काली के अति प्राचीन मंदिर के प्रवेश द्वार पर नगर परिषद पाकुड़ के द्वारा एक भव्य तोरण द्वार का निर्माण कराया गया है। राजापाड़ा स्थित उक्त नवनिर्मित भव्य तोरण द्वार का उद्घाटन समारोह का आयोजन किया गया।

रथयात्रा के शुभ अवसर पर नगर परिषद अध्यक्षा सम्पा साहा ने वार्ड नंबर सात के वार्ड पार्षद राणा ओझा की गरिमामयी उपस्थिति उद्घाटन की। उक्त अवसर पर नगर परिषद के वार्ड पार्षद अशोक प्रसाद, पूनम देवी, अंजना राउत, उज्जवल हाड़ी, फिरदौसी खातुन, रियाज अंसारी इत्यादि मौजूद थे। इस उद्घाटन कार्यक्रम में भाजपा नेता अनुग्राहित प्रसाद साह, पूर्व जिलाध्यक्ष विवेकानंद तिवारी, जिला उपाध्यक्ष हिसाबी राय, भाजयुमो के प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य प्रसन्ना शंकर मिश्रा, अनिकेत गोस्वामी उपस्थित रहे।

इस उद्घाटन कार्यक्रम में उपस्थित नगर परिषद के अध्यक्ष श्रीमती साहा ने कहा कि मां नित्य काली मंदिर की स्थापना 1737 में राजा पृथ्वीचंद्र शाही ने कराया था। 325 साल से मां काली की पूजा अर्चना तांत्रिक विधि से होती आ रही है। कहा तो यहां तक जाता है कि विश्व प्रसिद्ध तंत्र साधक बामाखेपा भी इस मंदिर में साधना कर चुके हैं। इसलिए रामपुरहाट के तारापीठ की तरह मां नित्य काली के प्रति भी यहां के लोगों का आस्था है। न सिर्फ पाकुड़ जिला बल्कि बिहार-पश्चिम बंगाल सहित दूरदराज से लोग मन्नत मांगने यहां आया करते हैं। मान्यता है कि मां काली अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण अवश्य करती है। यहां मां नित्य काली मंदिर में मंगलवार और शनिवार को विशेष पूजा अर्चना होती है इसमें बड़ी संख्या में भक्तगण भाग लेते हैं।

भक्तजनों के आकांक्षानुसार वार्ड पार्षद राणा ओझा ने अथक प्रयास कर मां नित्य काली का भव्य तोरण द्वार बनवाने का सराहनीय कार्य किया है। भव्य तोरण द्वार के निर्माण हो जाने से ना सिर्फ राजापाड़ा बल्कि पूरे पाकुड़ के लोगों में खुशी की लहर है।

इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सुशील साहा, मधुसूदन साहा, मिट्ठू दुबे, कमल राऊत, बमभोला उपाध्याय, अमित साहा, शांतनु मंडल, जयंत चक्रवर्ती, रोहित उपाध्याय, पप्पू दुबे, विशाल भगत, सत्यम भगत सहित सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

जब तक आदिवासियों का सम्पूर्ण विकास नहीं होता, शहीदों को सिर्फ़ खास दिनों में माल्यार्पण नाकाफ़ी है

"शहीदों के मज़ार पर हर बरस लगेंगे मेले,
वतन पे मरने वालों का बाँकी यही निशां होगा।"

30 जून को हूल दिवस पर भोगनाडीह में राजनैतिक पार्टियों और नेताओं की भीड़ जुटी। हर साल जुटती है। प्रशासन भी व्यस्त रहता है। माइक की गर्दन पकड़ कर भाषणबाजी होती है। लेकिन अफसोस कि ये बस भाषण तक ही सीमित रह जाती है। मेला तो लगता है,पर श्रद्धांजलि की औपचारिकता ही होती है। जिस महाजनी प्रथा और गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए सिद्धो , कान्हू , चाँद ,भैरो , फूलो और झानो ने क्रांति का बिगुल फूँका था , वो ब्रिटिश सरकार के बाद आज तक सार्थक नहीं हो पाया।

वीर सन्थाल वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति तो दे दी , लेकिन आज उनकी शहीदी पर सिर्फ़ राजनीति होती है। आदिवासियों के किसी भी गाँव में आप घूम आएं , कहीं ऐसा कुछ नहीं मिलेगा जिससे ये दिखे कि शहीदों को वास्तविक रूप से श्रद्धांजलि दी गई हो। जब तक आदिवासी समाज अपनी परंपरा , संस्कृति तथा जल , जंगल , जमीन के साथ विकास की सीमा को नहीं छूता , तब तक शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित नहीं होगा। किसी खाश दिन को मनाने के लिए चँदाजीवियों द्वारा शहीदों की मूर्ति पर माल्यार्पण करने से श्रद्धांजलि नहीं होती। शहीदों ने जिस उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दी , अगर हम उसे मंज़िल नहीं देते , श्रद्धांजलि अधूरी होगी और है भी।
सोचिए लगभग 157 साल पहले इन वीरों ने आज के दिनों में फ्लाइंग डिस्टेंस की दूरी से सन्थाल समाज को हजारों की संख्या में एकत्रित कर ब्रिटिश के विरुद्ध हूल संग्राम किया था। पाकुड़ के धनुषपूजा में अपने धनुष की पूजा के बाद सशत्र विरोध किया। ब्रिटिश सरकार ने इनकी संख्या और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का माद्दा से भयभीत होकर रातोंरात एक किलेनुमा मॉर्टेलो टावर बना डाला। ब्रिटिश सेना टावर के अंदर से गोलियाँ बरसाती रही , सन्थाल वीर सदगति पाते रहे। तकरीबन दस हजार सन्थाल वीरों ने ब्रिटिश गोलयों को अपने सीने पर आने दिया , साथियों के छलनी सीने को देखकर भी वे लड़ते रहे।

एकबार फिर से चिंतन कीजिए कैसा रहा होगा वो संगठन कर्ता, वो नेतृत्व और अडिग निर्णय !
नही नही एकदिवसीय ये माल्यार्पण वाली श्रद्धांजलि नाकाफ़ी है। पूरे आदिवासी समाज का सम्पूर्ण विकास ही सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। अब मत छलिये सरकार। शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कीजिए। संवारिये आज भी पाषाणयुगीन अवस्था मे जीते आदिवासी समाज के जीवन को।