हाइलाइट्स
- अवैध पत्थर के साथ अवैध कोयला खनन परिवन भी ED को दे रहा मौन आमंत्रण।
- कब आओगे ? एक बार कोयले की कालिमा में खँगाल तो जाओ माननीयों के सफ़ेद चेहरे !
- कलम की छाँव भी कोयले को मिलता है भाई।
- सन 2020 में घटी थी ग़ज़ब की घटना। पूरी मालगाड़ी किया गया था जप्त।
- एक बार पीछे झाँक कर जानिए पाकुड़ के अवैध खनन की अंधेरी गलियों को।
वन विभाग ने बिना जब्त किया था। यह कारवाई जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी सौरभ चंद्रा के निर्देश के आलोक में तात्कालीन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने की थी। कोयले से लदे मालगाड़ी की बोगियों को गार्ड को हैंड ओवर करने की कार्रवाई हुई थीं।
बिना परमिट के मालगाड़ी से कोयला ढुलाई मामले में पश्चिम बंगाल पावर डेवलोपमेन्ट कॉपोर्रेशन के साइड इंचार्ज राम विलास हांसदा को हिरासत में लिया गया था।वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने बताया ।कि बिना ट्रांजिट परमिट के कोयला ढुलाई रेल मार्ग से नही किये जाने ।को लेकर जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी द्वारा पाकुड स्टेशन मास्टर के जरिये। हावड़ा डिवीजन के डिविजनल मैनेजर को पत्र लिखा गया था। बावजूद कोयले की ढुलाई कर सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाया जा रहा था।
सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का काम सरकारी अमले और जुमले कर रहे है। जिस विभाग और विभाग के अधिकारियो को शत प्रतिशत राजस्व वसूली में अपनी भूमिका निभानी है वे ही पाकुड़ में कोयला का अवैध परिवहन करवाने में संरक्षक की भूमिका निभा रहे है। पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड स्थित पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक पश्चिम बंगाल पावर डेवलॉपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को आवंटित किया गया है। आवंटित इस कोयला खदान में कोयला का उत्खनन कर उसका परिवहन बीजीआर माइनिंग एंड इंफ्रा लिमिटेड कर रही थी।
सरकार ने कोयले को वनोपज मानते हुए इसके परिवहन के लिए ट्रांजिट परमीट की अनिवार्यता सुनिश्चित की है। सरकार ने प्रति मीट्रिक टन 58 रुपए राजस्व भी कोयले के परिवहन के विरूद्ध निर्धारित किया है। कोयले का परिवहन करने के पहले ट्रांजिट परमीट लिया जाना है। लेकिन पाकुड़ अमड़ापाड़ा लिंक रोड पर पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक से लोटामारा रेलवे साइडिंग तक कोयले की ढुलाई करने वाली कंपनी सरकार के इस आदेश की धज्जी उड़ा रही है। सरकार के आदेश की अनदेखी को लेकर जिले में वन विभाग ने कोयला से लदे आधा दर्जन से ज्यादा वाहनो को जप्त करने की कार्रवाई भी की बावजुद बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला का परिवहन जारी है।
कोयले के इस अवैध परिवहन का एक आश्यर्चजनक पहलु यह भी है कि जिस विभाग को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 42 का अनुपालन कड़ाई से सुनिश्चित कराना है उस विभाग के अधिकारी और कर्मी ही बगैर ट्रांजिट परमीट के कोयला से लदे वाहनो को सुरक्षा घेरे में ले जा रहे है। वन विभाग ने झारखंड वनोपज नियमावली 2020 के आलोक में विधि संवत कार्रवाई करने को लेकर पुलिस अधीक्षक को भी पत्राचार किया था, बावजुद जिले की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकार ने बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला के परिवहन को न केवल संज्ञेय अपराध बल्कि गैर जमानतीय भी माना है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि पाकुड़ जिले में किसके संरक्षण और इशारे पर बिना ट्रांजिट परमीट कोयले का परिवहन कर सरकार के राजस्व को क्षति पहुंचाने का काम हो रहा है। बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला का हो रहे परिवहन को लेकर वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने बताया कि कई कोयला से लदे वाहनो को जप्त किया गया है। रेंजर श्री सिंह ने कहा था कि बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला का परिवहन करने वाले ट्रांसपोर्टरो के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी।
इतना करने और कहने भर पर अनिल जी को जबरन रिटायर्ड कर दिया गया।
कारण साफ़ है। माननीयों के स्वार्थजनित लगाव। कितने ही माननीयों का डायरेक्ट-इनडायरेक्ट है इस धंधे से जुड़ाव। सभी परतें खुलेंगी धीरे-धीरे।
पिछले वर्षों के पाकुड़ के विभिन्न थानों में हुए एफआईआर को खंगाले। तो ये सावित हो जाता है। कि कोयला तश्करी जिले में होती है। तस्करों द्वारा प्रस्तुत कागज़ातों को अगर गहराई से देखें और विवेचना करें तो यह भी सावित होता है, कि इसमें भी ग़ज़ब बड़े पैमाने पर ओल-झोल है।
अब सवाल उठता है कि ये कोयला सरकार द्वारा दिए गए खनन पट्टों वाले खदानों से तो आते नहीं हैं। क्योंकि उन कम्पनी वालों की अपनी सुरक्षा के बाद पुलिस सुरक्षा भी उन्हें प्राप्त है। ऐसे में ये भी सावित हो जाता है, कि कोयला से भरे पड़े इस इलाके में अवैध खनन कर ये कोयला लाया जाता है। इसमें कई स्तर पर लोगों की मंडली है, जो संगठित तौर पर ईमानदारी से इस बेमानी के कार्य को अंजाम देते हैं। इस कार्य सबसे पहली मंडली जंगल मे कहाँ खनन करना है, जहाँ कम लागत में आसानी से खनन कर कोयले को गाड़ी में लोड करना। आस पास की आवादी को भी खुश रखते हुए। लोड गाड़ी को जंगली खनन स्थान तक ले जाने तथा मुख्य सड़क तक ले आने के लिए एक मंडली काम करती है।स्वाभाविक रूप से ये पहली मंडली इलाके से पूरा परिचित होती है और बख़ूबी काम करने तजुर्बा इनके पास होता है। चित्रों में अवैध कोयला खनन को देख कर इन परतों को खोला और समझा जा सकता है।
मुख्य सड़क पर आते ही दूसरी मंडली अपना दायित्व सँभालने लगती है। हँलांकि ये अवैध कोयला विभिन्न रूटों से पश्चिम बंगाल के विभिन्न स्थानों पर जाता है। इसलिए खाँकि खादी और तलवार से तेज कलमकारों की स्नेहिल छाँव तले कोयला लदी गाड़ियाँ सरपट दौड़ती है। अमड़ापाड़ा, कोटालपोखर, गुमानी, महेशपुर, पाकुड़िया, पाकुड़ सहित पश्चिम बंगाल की विभिन्न मंडली एक अरसे से पाकुड़ के वनोपजों और मिनरल्स की तस्करी करते हैं। अचानक प्रशासन के सक्रिय होने पर इनदिनों रात के अंधेरे में होने वाले अंधेर पर मानो कुठाराघात हो गया हो। लेकिन फिर भी कोयला दौड़ रहा है अंधेरे में अंधेरी सड़कों पर।
ये बताना भी जरूरी है, कि जंगलों के जिन इलाकों में ये अवैध खनन होता है। वो इलाके नक्सलियों का भी प्रभाव क्षेत्र रहा है। ऐसे में इन अवैध कारोबार का हिस्सा उन तक भी निश्चित ही पहुँचता हो इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए इस मामले की प्रोफेशनली उच्चस्तरीय जाँच होनी चाहिए।