Sunday, December 22, 2024
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जब तक आदिवासियों का सम्पूर्ण विकास नहीं होता, शहीदों को सिर्फ़ खास दिनों में माल्यार्पण नाकाफ़ी है

"शहीदों के मज़ार पर हर बरस लगेंगे मेले,
वतन पे मरने वालों का बाँकी यही निशां होगा।"

30 जून को हूल दिवस पर भोगनाडीह में राजनैतिक पार्टियों और नेताओं की भीड़ जुटी। हर साल जुटती है। प्रशासन भी व्यस्त रहता है। माइक की गर्दन पकड़ कर भाषणबाजी होती है। लेकिन अफसोस कि ये बस भाषण तक ही सीमित रह जाती है। मेला तो लगता है,पर श्रद्धांजलि की औपचारिकता ही होती है। जिस महाजनी प्रथा और गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए सिद्धो , कान्हू , चाँद ,भैरो , फूलो और झानो ने क्रांति का बिगुल फूँका था , वो ब्रिटिश सरकार के बाद आज तक सार्थक नहीं हो पाया।

वीर सन्थाल वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति तो दे दी , लेकिन आज उनकी शहीदी पर सिर्फ़ राजनीति होती है। आदिवासियों के किसी भी गाँव में आप घूम आएं , कहीं ऐसा कुछ नहीं मिलेगा जिससे ये दिखे कि शहीदों को वास्तविक रूप से श्रद्धांजलि दी गई हो। जब तक आदिवासी समाज अपनी परंपरा , संस्कृति तथा जल , जंगल , जमीन के साथ विकास की सीमा को नहीं छूता , तब तक शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित नहीं होगा। किसी खाश दिन को मनाने के लिए चँदाजीवियों द्वारा शहीदों की मूर्ति पर माल्यार्पण करने से श्रद्धांजलि नहीं होती। शहीदों ने जिस उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दी , अगर हम उसे मंज़िल नहीं देते , श्रद्धांजलि अधूरी होगी और है भी।
सोचिए लगभग 157 साल पहले इन वीरों ने आज के दिनों में फ्लाइंग डिस्टेंस की दूरी से सन्थाल समाज को हजारों की संख्या में एकत्रित कर ब्रिटिश के विरुद्ध हूल संग्राम किया था। पाकुड़ के धनुषपूजा में अपने धनुष की पूजा के बाद सशत्र विरोध किया। ब्रिटिश सरकार ने इनकी संख्या और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का माद्दा से भयभीत होकर रातोंरात एक किलेनुमा मॉर्टेलो टावर बना डाला। ब्रिटिश सेना टावर के अंदर से गोलियाँ बरसाती रही , सन्थाल वीर सदगति पाते रहे। तकरीबन दस हजार सन्थाल वीरों ने ब्रिटिश गोलयों को अपने सीने पर आने दिया , साथियों के छलनी सीने को देखकर भी वे लड़ते रहे।

एकबार फिर से चिंतन कीजिए कैसा रहा होगा वो संगठन कर्ता, वो नेतृत्व और अडिग निर्णय !
नही नही एकदिवसीय ये माल्यार्पण वाली श्रद्धांजलि नाकाफ़ी है। पूरे आदिवासी समाज का सम्पूर्ण विकास ही सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। अब मत छलिये सरकार। शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कीजिए। संवारिये आज भी पाषाणयुगीन अवस्था मे जीते आदिवासी समाज के जीवन को।

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