पैर कुल्हाड़ी पर मत मारिये , सोचिए पल भर रुक कर क्या कर रहे आप, विरोध या उपद्रव!
पिछले कई दिनों से बिहार के एक गांव में फंसा हुआ हूँ। चारों ओर से सिर्फ उपद्रव की ख़बर मिल रही है। जिस गाँव और जिनके घर आया हूँ, उन्होंने रोक रखा है। इस उपद्रव के माहौल में सुरक्षा के मद्देनज़र रोके गए हैं।
खैर सरकार के किसी भी निर्णय पर असंतोष व्यक्त करना, भारत में संवेधानिक अधिकार है। विरोध शांति के साथ सौम्यता के साथ हो, स्वागत है। लेकिन बलात्कारी मानसिकता शांति और सौम्यता की भी चीरहरण कर बैठता है। क्या अभी अग्निपथ विषय पर जो विरोध राह भटक कर हिंसक हो गया है। इस पर विरोध करने वाले लोगों को सोचना नहीं चाहिए ? मैं तो चिंतन करता हूँ। इस हिंसक विरोध पर अनन्त सवाल हैं। स्वयं से सवालों का जवाब भी मिलता है। किंतु इस माहौल में सवालों पर प्रस्तुतिकरण भी बेकार-नाहक़ होगा।
कई ट्रेनों में आग लगाई गई। रेलवे ने ट्रेनों को रद्द किया। हमारे आरक्षित टिकट रद्द हुए। मैं अकेला शिकार नहीं इनका, हजारों ज़ख्म आँसू बहा रहे”बच्चन”।
- ख़ुद उपद्रवी और उनके घरवाले भी परेशान हैं, अपनी ही बेअदबी से। ये कैसा विरोध है ?😢
सोचिए, चिंतन कीजिए।