रामानंद सागर जी की रामायण कुछ वर्ष पहले कोरोना काल में भी टी भी पर प्रसारित किया गया , प्रत्यक्ष उद्देश्य था , घर मे महामारी के कारण कैद जनता को घर में ही बाँधे रखना। अनेक वर्षों पहले जब हम किशोरावस्था में थे तो ऐसी ही वीरानी तथा ख़ामोशी शहरोँ के रास्तों पर नज़र आती थी। उसके भी कारण रामायण और महाभारत का दूरदर्शन पर प्रशारण भारत में उस समय की ख़ामोशी को ही ध्यान में रखकर ये महामारी के समय ऐसे प्रसारण का निर्णय लिया गया होगा। लेकिन रामायण ही क्यूँ , क्या कोइ और सीरियल या कार्यक्रम लोगों को बाँधे रखने के लिए नहीं था ! इस सवाल के कई उप सवाल भी मेरे मन में उठे।
बचपन की कुछ बातें इस पचपन में समझ में आतीं दिखतीं हैं । विचार जो शायद समझ बन मस्तिष्क में आईं तो इसे अपने पाठकों और मित्रों से साझा करने की इच्छा हुई। मेरे पास माध्यम तो बस यही है, इसलिए यहीं साझा कर रहा हूँ। इसमें मेरे एक मित्र उमानाथ पांडे का भी सहयोग रहा है।
बचपन में जब रामायण देखा करता था तो एक मंत्र मात्र बुदबुदा कर तीर चलते ही सैकड़ों तीर दिखते और बन जाते दिखता। उसके आगे आग जलता और विस्फोट होते दिखता , बड़ी हँसी आती थी । खुद से कहता क्या बकवास है यार क्या ऐसा सम्भव है। पत्रकारिता की तार्किक और उससे कुंठित मानसिकता किसी कीमत पर इसे अनेक तीरों की बात मानने को तैयार नहीं होता।
जब इसरो की एक साथ दर्जनों उपग्रहों को अंतरिक्ष के अलग अलग कक्षाओं में उपस्थापित करते टी भी पर देखा सुना तो , लगा विज्ञान ऐसा कर सकता है। अभी अभी अपने पत्रकार मित्र क़ासिम के एक रिपोर्ट पर कई लोगों पर एक साथ एफआईआर की तीर चलते देखा तो लगा ऐसा अच्छी पत्रकारिता की प्रकाशित रिपोर्ट भी कर सकता है। फिर बहुत ही डेसिंग डिसीज़न लेनेवाले मानसिकता के कई अधिकारियों को जीवन में देखा, और उनके कहने , बयान देने मात्र से माफियाओं को हड़कते देखा तो लगा एक तीर अनेक हो सकते हैं।
इस अपनी बात बताने की प्रक्रिया में अगर राजनैतिक निर्णयों पर अपना अनुभव न कहें तो बहुत बेइंसाफी होगी। देश के प्रधानमंत्री ने राम मंदिर का नींव रखने में हाज़री बजा कर सेकुलरिज्म का अनुकरण किया या नहीं, ये तो ऊपरवाला और विद्वान राजनैतिक विश्लेषक जाने , लेकिन इस तीर ने ऐसा निशाना साधा कि मंदिर विरोधी मंदिर-मंदिर दौड़ने लगे, दुश्मन दोस्त बनने लगे , और तो और देश की सीमा के पार भी शिलान्यास की तीर ने कई अंतरराष्ट्रीय हलचलों और बयान को जन्म दिया। पाकिस्तान में भी धार्मिक कट्टरता वाली आवाजें सुनाई देने लगी। इसका व्यापक प्रभाव पड़ा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान और बदनाम हुआ, भारत अंतराष्ट्रीय स्तर पर और ज्यादा बौद्धिक तथा कूटनैतिक मजबूती के साथ उभरा। ओबेसी जैसे विद्वान नेता अबतक उछल कूद कर रहा है। मोदी ने एक तीर से कई निशाने साधा। केंद्र सरकार स्वयं और अपने लोगों से ऐसे ऐसे मामले कोर्ट में ऐसी सटीक समय पर ले गए कि एक ही दिन पिछले दिनों ऐसे दो मामलों में फैसले आये कि एक की खुशी मनाने में दूसरे पर विरोध जताना तक विपक्ष भूल गए , जबकि न्यायप्रणाली का भी सरकार के विरोध में विपक्ष विरोध करने से नहीं चूके😥
लेकिन इतना तय है , कि बचपन के अविश्वास को पचपन तक के सफ़र में कई मामलों पर मेरी अल्पबुद्धि के विश्लेषण ने मुझे इस निर्णय पर पहुँचाया कि ऐसे ही एक तीर से कई निशाने की बात नहीं कही जाती , हमारे पूर्वज योद्धा के साथ साथ मंत्र वैज्ञानिक भी थे, और वो मन्त्रों के काउंटडाउन से एक तीर से सैकड़ों तीरों का प्रक्षेपण कर सकते थे। वर्तमान केंद्र सरकार के कई निर्णय और फैसले भी इसका प्रमाण देता है।