आख़िर किसी इंसान की मौत में हम देश, राज्य , जाति , सम्प्रदाय , धर्म आदि पर ध्यान देते हुए या समीक्षा करते हुए अपनी प्रतिक्रिया कैसे दे सकते है ?
हमारी सोच , मानसिकता और चिंतन इतना पंगु, इतना विकलांग कैसे हो सकता है ?
कल तक कश्मीरी पंडितों पर बनी फ़िल्म पर नफ़रतों के आरोप का रुदन करनेवाले रुदालियों को क्या हो गया, कि पश्चिम बंगाल के वीरभूम की घटना पर क्या हो गया कि उनके दहाड़ें मारती रुदन ख़ामोश हैं ?
हँलांकि यहाँ ममता शासन है, और मरने – मारने वाले एक ही समुदाय के हैं, तो क्या वे इंसान नहीं है ?
यह भी सच है, कि दीदी हर जगह और हर किसी को मानसिकता और कर्मों पर स्वयं पहरेदारी नही कर सकती, लेकिन ऐसी विकलांग और हिंसक तथा कानून को धता बतानेवाली मास मानसिकता कहाँ से आईं ?
बहुत दुखद घटना
वहाँ पार्टी वाले नही, हिन्दू मुस्लिम नही इंसानियत को जलाया गया है, इंसानियत की हत्या हुई है।
फ़िर भी तथाकथित इंसानियत पर मगरमच्छी आँसू बहाकर दहाड़ें मार कर रोने वाले चुप्प ?
इतनी ख़ामोशी क्यूँ है भाई !😢
घटना इतनी शर्मनाक और अमानवीय है, कि स्वयं भी आईने के सामने जाने में मुझे व्यक्तिगत रुप से झिझक होती है, हम भी तो उन्हीं मरने- मरनेवालों और गहरी बेशर्म चुप्पी साधनेवाले जैसे ही दिखते हैं 😢
हे भगवान अब तुम्हीं इन दोपायों को जो दिखते सिर्फ़ मनुष्य जैसे हैं, इन्हें मनुष्य बनाओ।
तुम ही सिर्फ़ तुम ही , जिस भी नाम से जाने जाओ , तुम ईश्वर , अल्लाह ,भगवान जो भी हो इन्हें मनुष्य बनाओ हे सर्वशक्तिमान ।
अब नीचे वालों पर विश्वास , कम से कम मेरी तो नही रह गई है।
देखो तुम्हारे बनाये इन्सानों को —😢