Sunday, December 22, 2024
Homeआध्यत्मिकभारतीय पुरानी जीवनशैली और वास्तु का मानवीय जीवन पर पड़ता है सकारात्मक...

भारतीय पुरानी जीवनशैली और वास्तु का मानवीय जीवन पर पड़ता है सकारात्मक प्रभाव

पूर्वजों और अवतारों के जीवन जीने के गूढ़ संदेश

श्रीकृष्ण ने नदी में नग्न स्नान करती गोपियों के कपड़े चुराकर सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संदेश देने का मौन लीला किया। भारतीय स्त्रियाँ पर पुरुष के सामने नग्न नहीं होतीं। ये संस्कृति है। क्योंकि मान्यता है कि पानी मे वरुण देवता का निवास है। स्त्रियों के शरीर की रचना ऐसी होतीं हैं । कि नग्न होकर नदी में स्नान से, परजीवी जीवों के द्वारा उनको हानि पहुँचाई जा सकती है। ये वैज्ञानिक सन्देश है। संस्कृति और विज्ञान दोनों स्त्रियों के नग्न स्नान को वर्जित करता है।

हमारे पूर्वजों ने भी अपनी जीवनशैली से हमें कई सन्देश दिए हैं। जो शास्त्र और विज्ञान से जुडा रहा है। निवास भी ग्रहों की युतियों को ध्यान में रखकर बनाई जाती थी।

एक जानकर मित्र के अनुसार–

पहले कैसे किया जाता था अपने घर को शनि राहु और मंगल के नकारात्मक प्रभाव को दूर। कुछ घरों में अभी भी अपनी परम्परा को लोग बहुत अच्छे से निभाते हैं। जिन लोगों को नहीं पता कि हर शुभ कार्य में सबसे पहले घर की दहलीज  के ऊपर तोरण क्यों लगाई जाती है। जब घर पर नई बहू आती है घर की चौखट में क्यों दोनों तरफ तेल गिराया जाता है। तिक्खट की जगह अगर चौखट होगी तो कुनबा बढ़ेगा और संगठित रहेगा। दरवाजे की चौखट और राहु ग्रह ( दहलीज) कोई समय था जब मुख्य दरवाजे पर चौखट रहती थी यानी की फर्श पर भी ऊँचा कर के लकड़ी का बल्ल्म लगाया जाता था ( चार बलियों  का फ्रेम ) परन्तु अब तिखट रह गयी है , ( यानी की तीन बल्लियों का फ्रेम ) जो बल्लम फर्श पर सटा रहता था। उसे शनि के रूप में राहु के बुरे प्रभाव को रोकने के लिए लगाया जाता था और जब भी कोई शुभ वस्तु , पशु , नई बहु , बाहर से आये अंदर आती थी तो उस चौखट के दोनों तरफ सरसों का तेल  गिराया जाता था। और राहु को शनि वास्ता दिया जाता था की तुम्हें तुम्हारे गुरु की सौगंध है कोई गड़बड़ मत करना। जब नई बहू प्रवेश करती थी तो माँ जोड़े के सर से पानी ( चंद्र )  वार कर कुछ पी लेती थी और कुछ दहलीज पर गिरा देती थी की राहु को ‘चन्द्र’ का वास्ता दिया जाता था की कोई दिक्कत न देगा और दरवाजे के ऊपर लाल धागे से तोरण बांध कर ‘मंगल’ का पहरा बिठाया जाता था। तब इस वजह परिवार बड़ा और एक ही जगह रहते हुए सन्तुष्ट था।

मुख्य द्वार पर तिखट नही चौखट लगवाएं। वो भी लकड़ी से बनी, इससे परिवार नहीं टूटेगा

जब से मुख्य द्वार से चौखट गायब हुई परिवार टूटने शुरू हो गए हैं। अब कहां वो बातें , माँ और दादी माँ को याद था, पर अगले बच्चों की माँ को याद  रहेगा या नहीं कोई गारंटी नहीं है क्योंकि दरवाजे की चौखट तो रही नहीं अब तो तिखट  रह गयी है और न ही लोहे की साँकल वाला कुण्डा ( शनि ) रहा जिस पर ताला लगाया जाता था। उस कुण्डे को खड़का कर ही दरवाजा खुलवाया जाता था। जहां शनि की आहट किसी बुजुर्ग के खांसने की तरह  होती थी। वहां सब बहुएं सर को पल्लु से ढक लेती थी और राहु (ससुर) शांत रहता था। अब तो वक्त बदल गया, मुसीबतें बढ गयी।

मेरा आज का पोस्ट से बहुत लोगों को अपना गांव  जरुर याद आयेगा।

Comment box में अपनी राय अवश्य दे....

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments