” झारखंड, बिहार और बंगाल के घुसपैठ प्रभावित जिलों को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाय ” संसद में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की मांग के बाद अचानक एक राजनैतिक भूचाल सा आया ।
हाँलाकि सांसद निशिकांत दुबे ने घुसपैठ के मुद्दे को संसद में दर्जनों बार उठाया , लेकिन किसी भी स्तर पर इस ज्वलंत समस्या पर किसी का प्रतिक्रियात्मक ध्यान नहीं गया, लेकिन जैसे ही इस मुद्दे को अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग के साथ जोड़ा गया , पत्रकारिता से लेकर राजनीति तक बरबस इस घुसपैठ के मुद्दे पर मुखर हो गए।
यह बात अलग है कि कौन किस तरह मुखर हुए , लेकिन विषय ने तेजी से चर्चा में स्थान बना लिया। संयोग से इसी बीच ऐसी कुछ घटनाएं हुईं , जिसने इस मुद्दे को और बल दे दिया।
1990 के दशक में नवभारतटाइम्स पटना तथा आज हिन्दी दैनिक में संथालपरगना में घुसपैठ तथा घुसपैठिये द्वारा जमीन हथियाने की खबरों पर जब मैंनें कई बार लिखा तो उस समय मैं हास्य व्यंग्य का पात्र बनता था , लेकिन उस समय से देश विदेश के विषयों पर अच्छी पकड़ रखने और चर्चा करनेवाले निशिकांत दुबे इस मुद्दे पर भी चर्चाओं में बोलते थे। 2009 में संसद पहुँचने के बाद उन्होंने दर्जनों बार इस मुद्दे को उठाया।
खैर सांसद निशिकांत ने एक सवाल के जवाब में कहा कि वे इस मुद्दे पर संथालपरगना के गाँवों का दौरा करते रहेंगे, लेकिन उनका दौरा हिन्दू-मुसलमान करने के लिए नहीं , बल्कि घुसपैठ के विरोध और आदिवासियों सहित सीमाई क्षेत्रों के लोगों की सुरक्षा की मांगों को लेकर रहेगा। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारतीय मुसलमानों से हमारा कोई विरोध नहीं , वे तो भारतीय नागरिक हैं , और हमारे हैं, लेकिन भर्मित करनेवाले राजनैतिक स्वार्थवश अफवाह फैलाते हैं , लेकिन तुष्टिकरण के नाम पर भाजपा और मैं स्वयं किसी कीमत पर घुसपैठ से नज़र नहीं मोड़ सकता। उन्होंने कहा कि मैं संथालपरगना का दौरा करता रहूँगा।
मैं यहाँ हिन्दू-मुसलमान करने नहीं आया , घुसपैठ का विरोध और आदिवासियों की घटती जनसंख्या पर चिंता व्यक्त करने आया हूँ : निशिकांत
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