Saturday, October 18, 2025
Home Blog Page 26

गृहस्थजीवन और सन्यास में कौन श्रेष्ठ है ?

*गृहस्थ जीवन और संन्यास में कौन श्रेष्ठ ?*

एक नौजवान व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला, मेरी शिक्षा समाप्त हो गई है।

अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, “एक यह कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूँ या संन्यास धारण करूँ?
इन दोनों में से मेरे लिये क्या अच्छा रहेगा यह बताइए?”

कबीर ने कहा, दोनों ही बातें अच्छी हैं जो भी करना हो वह उच्चकोटि का करना चाहिए।

उस व्यक्ति ने पूछा, ’उच्चकोटि का कैसे?’

कबीर ने कहा,’किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बतायेंगे।’

वह व्यक्ति रोज उत्तर की प्रतीक्षा में कबीर के पास आने लगा।

एक दिन कबीर दिन के बारह बजे कपड़ा बुन रहे थे।

खुली जगह में प्रकाश काफी था फिर भी कबीर ने अपनी धर्म पत्नी को दीपक लाने का आदेश दिया।

वह तुरन्त जलाकर लाई और उनके पास रख गई। दीपक जलता रहा वे कपड़ा बुनते रहे।

सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीर एक पहाड़ी पर गये। जहाँ काफी ऊँचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे।

कबीर ने साधु को आवाज दी,’ महाराज ! आपसे कुछ जरूरी काम है कृपया नीचे आइए।’

बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊँचाई से उतर कर नीचे आया।

कबीर ने पूछा , ‘आपकी आयु कितनी है यह जानने के लिये नीचे बुलाया है।’

साधु ने कहा ,’अस्सी बरस। यह कह कर वह फिर से ऊपर चढ़कर बड़ी कठिनाई से अपनी कुटी में पहुँचे।

कबीर ने फिर आवाज दी और नीचे बुलाया। साधु फिर आये।

उनसे पूछा,’आप यहाँ पर कितने दिन से निवास कर रहे हैं?

उन्होंने बताया चालीस वर्ष से। फिर जब वह कुटी में पहुँचे तो तीसरी बार फिर उन्हें इसी प्रकार बुलाया और पूछा,’ आपके सब दाँत उखड़ गये या नहीं?’

उन्होंने उत्तर दिया। आधे उखड़ गये। तीसरी बार उत्तर देकर वह ऊपर जाने लगे। इतने चढ़ने उतरने से साधु की साँस फूलने लगी, पाँव काँपने लगे।

वह बहुत अधिक थक गये थे फिर भी उन्हें तनिक भी क्रोध न था।

अब कबीर अपने साथी समेत घर लौटे तो साथी ने अपने प्रश्न का उत्तर पूछा।

उसने कहा ,’तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में ये दोनों घटनायें तुम्हारे सामने उपस्थित है।’

यदि गृहस्थ बनाना हो तो ऐसा बनाना चाहिए जैसे हमारे स्नेह , प्रेम , विश्वास और सद्व्यवहार से मेरी पत्नी का मुझ पर पूर्ण विश्वास और एकत्व स्थापित है।

उसे दिन में भी दीपक जलाने की मेरी बात अनुचित नहीं मालूम पड़ती और साधु बनना हो तो ऐसा बनना चाहिए कि कोई कितना ही परेशान करे, कष्ट दे, दुर्व्यवहार करें, क्रोध का नाम भी न आये।

🙏🙏🙏
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

क्या है सही तरीके से नहाने का तरीका , कैसे बच सकते हैं विभिन्न शारिरिक अकस्मात समस्याओं से तथा असामयिक मृत्यु से।

*क्या है नहाने का वैज्ञानिक तरीका?*

क्या आपने कभी अपने आस पास देखा या सुना है कि नहाते समय बुजुर्ग को लकवा लग गया?

दिमाग की नस फट गई (ब्रेन हेमरेज), हार्ट अटैक आ गया।

छोटे बच्चे को नहलाते समय वो बहुत कांपता रहता है, डरता है और माता समझती है कि नहाने से डर रहा है, लेकिन ऐसा नहीँ है; असल में ये सब गलत तरीके से नहाने से होता है ।

दरअसल हमारे शरीर में गुप्त विद्युत शक्ति रुधिर (खून) के निरंतर प्रवाह के कारण पैदा होते रहती है, जिसकी स्वास्थ्यवर्धक प्राकृतिक दिशा ऊपर से आरम्भ होकर नीचे पैरों की तरफ आती है।

सर में बहुत महीन रक्त् नालिकाएं होती है जो दिमाग को रक्त पहुँचाती है।

यदि कोई व्यक्ति निरंतर सीधे सर में ठंडा पानी डालकर नहाता है तो ये नलिकाएं सिकुड़ने या रक्त के थक्के जमने लग जाते हैं।

और जब शरीर इनको सहन नहीं कर पाता तो ऊपर लिखी घटनाएं वर्षो बीतने के बाद बुजुर्गो के साथ होती है।

सर पर सीधे पानी डालने से हमारा सर ठंडा होने लगता है, जिससे हृदय को सिर की तरफ ज्यादा तेजी से रक्त भेजना पड़ता है, जिससे या तो बुजुर्ग में हार्ट अटैक या दिमाग की नस फटने की अवस्था हो सकती है।

ठीक इसी तरह बच्चे का नियंत्रण तंत्र भी तुरंत प्रतिक्रिया देता है जिससे बच्चे के काम्पने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है , और माँ समझती है की बच्चा डर रहा है ।

गलत तरीके से नहाने से बच्चे की हृदय की धड़कन अत्यधिक बढ़ जाती है स्वयं परीक्षण करिये।
.
तो आईये हम आपको नहाने का सबसे सही तरीका बताते है |

बाथरूम में आराम से बैठकर या खड़े होकर सबसे पहले पैर के पंजो पर पानी डालिये , रगड़िये, फिर पिंडलियों पर, फिर घुटनो पर, फिर जांघो पर पानी डालिये और हाथों से मालिश करिये|

फिर हाथों से पानी लेकर पेट को रगड़िये | फिर कंधो पर पानी डालिये, फिर अंजुली में पानी लेकर मुँह पर मलिए | हाथों से पानी लेकर सर पर मलिए।

इसके बाद आप शावर के नीचे खड़े होकर या बाल्टी सर पर उड़ेलकर नहा सकते है।

इस प्रक्रिया में केवल 1 मिनट लगता है लेकिन इससे आपके जीवन की रक्षा होती है। और इस 1 मिनट में शरीर की विद्युत प्राकृतिक दिशा में ऊपर से नीचे ही बहती रहती है क्योंकि विद्युत् को आकर्षित करने वाला पानी सबसे पहले पैरो पर डाला गया है।

बच्चे को इसी तरीके से नहलाने पर वो बिलकुल कांपता डरता नहीं है।

इस प्रक्रिया में शरीर की गर्मी पेशाब के रास्ते बाहर आ जाती है आप कितनी भी सर्दी में नहाये कभी जुखाम बुखार नहीं होगा।

 

वर्तमान परिदृश्य में भी सार्थक सन्देश देते हैं सनातनी शास्त्रों में वर्णित वरदानों से प्रोटेक्टेड अ-सुरों के वध की कथाएँ ।

डॉ योगेश भारद्वाज

*एक गहरी सोच वाली पोस्ट किसी मित्र ने भेजी है।*

अपने धर्मग्रंथों को पढ़िए , ये सारे राक्षसों के वध से भरे पड़े हैं।

राक्षस भी ऐसे-ऐसे वरदानों से प्रोटेक्टेड थे कि दिमाग घूम जाए….

एक को वरदान प्राप्त था कि वो न दिन में मरे, न रात में, न आदमी से मर , न जानवर से, न घर में मरे, न बाहर, न आकाश में मरे, न धरती पर …

तो दूसरे को वरदान था कि वे भगवान भोलेनाथ और विष्णु के संयोग से उत्पन्न पुत्र से ही मरे।
तो, किसी को वरदान था कि… उसके शरीर से खून की जितनी बूंदे जमीन पर गिरें ,उसके उतने प्रतिरूप पैदा हो जाएं।

तो, कोई अपने नाभि में अमृत कलश छुपाए बैठा था।

*लेकिन… हर राक्षस का वध हुआ !!!!!*

हालाँकि… सभी राक्षसों का वध अलग अलग देवताओं ने अलग अलग कालखंड एवं भिन्न भिन्न जगह किया।

लेकिन… सभी वध में एक बात कॉमन रही और वो यह कि… किसी भी राक्षस का वध उसका वरदान विशेष निरस्त कर अर्थात उसके वरदान को कैंसिल कर के नहीं किया गया…

ये नहीं किया गया कि, तुम इतना उत्पात मचा रहे हो इसीलिए तुम्हारा वरदान कैंसिल कर रहे हैं..
और फिर उसका वध कर दिया.

बल्कि… हुआ ये कि… देवताओं को उन राक्षसों को निपटाने के लिए उसी वरदान में से रास्ता निकालना पड़ा कि इस वरदान के मौजूद रहते हम इनको कैसे निपटा सकते हैं।

और अंततः कोशिश करने पर वो रास्ता निकला भी…
सब राक्षस निपटाए भी गए।

*तात्पर्य यह है कि… परिस्थिति कभी भी अनुकूल होती नहीं है, अनुकूल बनाई जाती हैं।*

आप किसी भी एक राक्षस के बारे में सिर्फ कल्पना कर के देखें कि अगर उसके संदर्भ में अनुकूल परिस्थिति का इंतजार किया जाता तो क्या वो अनुकूल परिस्थिति कभी आती ??

उदाहरण के लिए चर्चित राक्षस रावण को ही ले लेते हैं.

रावण के बारे में ये _विवशता_ कही जा सकती थी कि…
भला रावण को कैसे मार पाएंगे?

पचासों तीर मारे और बीसों भुजाओं व दसों सिर भी काट दिए..
लेकिन, उसकी भुजाएँ व सिर फिर जुड़ जाते हैं तो इसमें हम क्या करें ???

इसके बाद अपनी असफलता का सारा ठीकरा ऐसा वरदान देने वाले ब्रह्मा पर फोड़ दिया जाता कि… उन्होंने ही रावण को ऐसा वरदान दे रखा है कि अब उसे मारना असंभव हो चुका है।

और फिर.. ब्रह्मा पर ये भी आरोप डाल दिया जाता कि जब स्वयं ब्रह्मा रावण को ऐसा अमरत्व का वरदान देकर धरती पर राक्षस-राज लाने में लगे हैं तो भला हम कर भी क्या सकते हैं?

लेकिन… ऐसा हुआ नहीं …
बल्कि, भगवान राम ने उन वरदानों के मौजूद रहते हुए ही रावण का वध किया।

*क्योंकि, यही “सिस्टम” है.*

तो… पुरातन काल में हम जिसे वरदान कहते हैं… आधुनिक काल में हम उसे संविधान द्वारा प्रदत्त स्पेशल स्टेटस कह सकते हैं…
जैसे कि… अल्पसंख्यक स्टेटस, पर्सनल बोर्ड आदि आदि.

इसीलिए… आज भी हमें राक्षसों को इन वरदानों (स्पेशल स्टेटस) के मौजूद रहते ही निपटाना होगा..
जिसके लिए इन्हीं स्पेशल स्टेटस में से लूपहोल खोजकर रास्ता निकालना होगा।

और, आपको क्या लगता है कि… इनके वरदानों (स्पेशल स्टेटस) को हटाया जाएगा…

क्योंकि, हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में ऐसा एक भी साक्ष्य नहीं मिलता कि किसी राक्षस के स्पेशल स्टेटस (वरदान) को हटा कर पहले परिस्थिति अनुकूल की गई हो तदुपरांत उसका वध किया गया हो।

और, जो हजारों लाखों साल के इतिहास में कभी नहीं हुआ… अब उसके हो जाने में संदेह लगता है.

*परंतु… हर युग में एक चीज अवश्य हुई है…*
*और, वो है राक्षसों का विनाश.*
*एवं, सनातन धर्म की पुनर्स्थापना।*

इसीलिए… इस बारे में जरा भी भ्रमित न हों कि ऐसा नहीं हो पायेगा।

लेकिन, घूम फिर कर बात वहीं आकर खड़ी हो जाती है कि…. भले ही त्रेतायुग के भगवान राम हों अथवा द्वापर के भगवान श्रीकृष्ण..

राक्षसों के विनाश के लिए हर किसी को जनसहयोग की आवश्यकता पड़ी थी।

और, जहाँ तक धर्मग्रंथों का सार की बात है
तो वो भी यही है कि हर युग में राक्षसों के विनाश में सिर्फ जनसहयोग की आवश्यकता पड़ती है..

ये इसीलिए भी पड़ती है ताकि… राक्षसों के विनाश के बाद जो एक नई दुनिया बनेगी…
उस नई दुनिया को उनके बाद के लोग संभाल सके, संचालित कर सकें।

नहीं तो इतिहास गवाह है कि…. बनाने वालों ने तो भारत में आकाश छूती इमारतें और स्वर्ग को भी मात देते हुए मंदिर बनवाए थे…

लेकिन, उसका हश्र क्या हुआ ये हम सब जानते हैं.

इसीलिए… राक्षसों का विनाश जितना जरूरी है…
उतना ही जरूरी उसके बाद उस धरोहर को संभाल के रखने का भी है।

और… अभी शायद उसी की तैयारी हो रही है।

*अर्थात… सभी समाज को गले लगाया जा रहा है.. और, माता शबरी को उचित सम्मान दिया जा रहा है.*

वरना, सोचने वाली बात है कि जो रावण … पंचवटी में लक्ष्मण के तीर से खींची हुई एक रेखा तक को पार नहीं कर पाया था…भला उसे पंचवटी से ही एक तीर मारकर निपटा देना क्या मुश्किल था?

अथवा… जिस महाभारत को श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र के प्रयोग से महज 5 मिनट में निपटा सकते थे भला उसके लिए 18 दिन तक युद्ध लड़ने की क्या जरूरत थी?

लेकिन… रणनीति में हर चीज का एक महत्व होता है… जिसके काफी दूरगामी परिणाम होते हैं.

इसीलिए… कभी भी उतावलापन नहीं होना चाहिए.
और फिर वैसे भी कहा जाता है कि *जल्दी का काम शैतान का*

क्योंकि, ये बात अच्छी तरह मालूम है कि…. रावण, कंस, दुर्योधन, रक्तबीज और हिरणकश्यपु आदि का विनाश तो निश्चित है तथा यही उनकी नियति है..!!
*लंका जल रही है,*
*अयोध्या सज रही है और शबरी राष्ट्रपति बन रही है… इतिहास से सीख लेकर कार्य जारी है!*

_जय महाकाल, जय सनातन जय मौलिक भारत…!!!_

*नोट : धर्मग्रंथ रोज सुबह नहा धो कर सिर्फ पुण्य कमाने के उद्देश्य से पढ़ने के लिए ही नहीं होते ..*

*बल्कि, हमारे धर्मग्रंथों के रूप में हमारे पूर्वज/देवताओं ने अपने अनुभव हमें ये बताने के लिए लिपिबद्ध किया ताकि आगामी पीढ़ी ये जान सके कि अगर फिर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो उससे कसे निपटा जाए।*
🙏🙏🙏
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

डर के आगे जीत है, कोई काम शर्तो को स्वीकार मत करो, करो तो बाजी अपने हाथ रखो

एक गुंडा शेविंग और
हेयर कटिंग कराने के लिये
सैलून में गया.

नाई से बोला -”अगर मेरी
शेविंग ठीक से से बिना कटे
छंटे की तो मुहमाँगा दाम दूँगा !
अगर कहीं भी कट गया तो
गर्दन उड़ा दूंगा !”
नाई ने डर के मारे मना कर दिया.

गुंडा शहर के दूसरे नाइयों के पास गया और वही बात कही.
लेकिन सभी नाईयो ने डर के
मारे मना कर दिया.

अंत में वो गुंडा एक गाँव के
नाई के पास पहुँचा.
वह काफी कम उम्र का लड़का था.
उसने कहा – “ठीक है,
बैठो मैं बनाता हूँ”.

उस लड़के ने काफी बढ़िया
तरीके से गुंडे की शेविंग
और हेयर कटिंग कर दी.
गुंडे ने खुश होकर लड़के
को दस हजार रूपये दिए.
और पूछा – “तुझे अपनी
जान जाने का डर नहीं था क्या ?”

लड़के ने कहा – “डर ? डर
कैसा…?
पहल तो मेरे हाथ में थी…”.

गुंडे ने कहा – “‘पहल तुम्हारे
हाथ में थी’ .. मैं मतलब नहीँ
समझा ?”

लड़के ने हँसते हुये कहा –:
“भाईसाहब,
उस्तरा तो मेरे
हाथ में था…
अगर आपको खरोंच भी
लगती तो आपकी गर्दन
तुरंत काट देता !!!”

बेचारा गुंडा ! यह जवाब
सुनकर पसीने से लथपथ हो
गया।

Moral : जिन्दगी के हर मोड
पर खतरो से खेलना पडता है
नही खेलोगे तो कुछ नही कर
पाओगे
यानि
डर के आगे ही जीत है…
बेच सको तो बेच के दीखाओ
अपने अहंकार (Ego) को
OLX पर.,

एक रुपीया भी नहीं मीलेगा !!
तभी पता चलेगा की
क्या फालतु चीज पकड रखी थी अब तक…!
..ye hai thoughts..

स्वास्थ्य पर सोचना ज़रुरी है, सोचें, बाँकी मर्जी आपकी, मेरी।सुनना नही ज़रूरी, पढ़ना आवश्यक है।

✍️✍️
*क्या मेडिकल माफिया सही में सक्रिय है? 🤔*

_नीचे दी गईं कुछ बातों को अपने जीवन से तालमेल करते हुए विचार करें कि……_

*1. पहले सिगरेट को प्रमोट किया ।*

*2. फिर प्राणघातक रिफाइंड को promote किया।*

*3. सरसों के शुद्ध तेल और देशी घी का विरोध किया।*

*4. बच्चों के लिये अमृत समान देशी गाय के दूध और शहद के स्थान पर, कैंसर कारक sikkmed milk powder को promote किया।*

*5. खिचड़ी के स्थान पर 7 दिन पुरानी ब्रेड को promote किया।*

*6. सेंधा नमक के स्थान पर समुद्री नमक को promote किया।*

*7. मधुमेह एवं रक्तचाप के मानक क्यों बदले जाते रहे हैं?*

*8. बीमारी के समय खाने पीने के निर्देश देने की प्रथा बंद करके क्यों अन्य बीमारियों को बढा़ने में सहयोग किया गया?*

*9. आपरेशन से बच्चा पैदा होना, घुटनों का निरन्तर बढ़ता प्रत्यारोपण, जीवन पर्यंत रक्तचाप व मधुमेह की गोलियां खाना क्या कहीं माफिया का कुचक्र तो नहीं?*

*क्या मेडिकल माफिया ने इन सबको आपकी भलाई के लिये prmote किया 👇👇👇*

*1.क्या किसी मेडिकल माफिया ने आपको बताया कि 👉 उच्च रक्तचाप (BP) , URIC ACID और अन्य acid आदि की समस्या की जड़ चाय है ?*

— *मैंने जब चाय छोड़ दी दोनों समस्याओं ने मेरा पीछा भी छोड़ दिया।*

*2.क्या किसी मेडिकल माफिया ने आपको 👉 मधुमेह (शुगर) की जड़ गेहूँ के आटे के बारे में बताया ? कि अगर आप ज्वार, बाजरा, जौ, चने के मिश्रित आटे का प्रयोग करेंगे तो मधुमेह आपका पीछा छोड़ देगा!*

*3. क्या किसी मेडिकल माफिया ने 👉 केमिकल युक्त चीनी के स्थान पर देशी खांड जिसमे कोई केमिकल नहीं पड़ता उसके बारे में बताया ?*

*4.क्या किसी मेडिकल माफिया ने 👉 फ्रिज के ठंडे पानी से होने वाले सिरदर्द के बारें में बताया ? मैंने ठंडा पानी छोड़ दिया उसके बाद मेरा सिरदर्द से पीछा छूटा!*

*5 क्या किसी मेडिकल माफिया ने 👉 AC कि हवा से शरीर कि पसीने से होने वाली प्रक्रिया मे बाधा बताया जो कालान्तर मे शरीर कि प्राकृतिक सफाई न होने से किडनी व हृदय रोग का कारण बनता है?*

*6.क्या किसी मेडिकल माफिया ने हानिकारक विटामिन D के स्थान धूप- स्नान लेने की सलाह दी,*

*कैल्शियम की गोलियों जिससे कब्ज़ हो जाती है उसके स्थान पर चूने की गोलियों के सेवन की सलाह दी,*

*विटामिन C की गोलियों के स्थान पर खट्टे फल खाने की सलाह दी,*

*zinc की गोलियों के स्थान पर प्रातः ताम्रपत्र में जल पीने की सलाह दी।*

*7. अब चाउमिन, मोमोज जो गली गली बेचा जा रहा है उस के मैदे, अझिनोमोट्टो व एसिड से होने वाले नुकसान के बारे मे किसी भी मेडिकल डाक्टर से कभी सुना है कि किसी ने परहेज करवाया ??*

*इस का परिणाम भयंकर कैन्सर होगा जो जीवन भर कि कमाई, दवाई के नाम पर इन को दे दो और जान से हाथ धो बैठो । दर्द जो होगा वह अलग ।*

*जीवनशैली रोगों की बात तो हो रही है परंतु जीवनशैली सुधार की बात क्यों नहीं हो रही?* 🧐

*अगर मेडिकल माफिया आपको सही सलाह देगा तो एक तो यह इससे हाथ धो बैठगा दूसरा रोगी से*

*या तो यह तथाकथित-*

*MEDICAL SCIENCE झूठी है या इसकी नीयत में खोट है। मानना न मानना भी आपकी मर्जी है। आज के समय डाक्टर बनने में जो लाखों-करोड़ खर्चा आता है वो मजबूरन कहीं से तो निकालना पडेगा।*

👉 *लेकिन इन सब प्रश्नों पर विचार अवश्य करें, कुछ और भी प्रश्न आपके मन में आये होंगे उनको भी विचारें और आगे बढ़े……..*

*आपका स्वास्थ्य आपके हाथ में है न कि डॉक्टर के हाथ में* 💯 ℅

*प्राथमिक स्वास्थ्य शिक्षा हम सभी के लिए अति आवश्यक है।* 👌

  1. 🙏🙏🙏
    🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

तनि अपन विधायक भाई के बोले बतियाये त सिखाईं हेमन्त जी , अभी त सठियेले नईखे !

 

हेमन्त जी आप हम झारखंड निवासियों के मुखिया हैं।इस नाते राजनैतिक अभिवावक भी ।
निश्चित रूप से आप अपने परिवार में भी तत्काल बड़े हैं , तो अपने परिवार का भी गुरुजी जी के बाद उपमुखिया भी।
आपके अनुज, हाँ छोटे भाई जो दुमका से आपके स्थान पर विधायक हैं , को समझाते नहीं !

ई त आपके पार्टी और परिवार के सम्माने का ढोल बजा रहे हैं।

इधर पेट्रोल छींट कर अपराधी नाबालिग को जिंदा जला रहा है , और वो गंजी जंघिया खरीदने दिल्ली जाते हैं।
कहाँ क्या बोलना है , यह भी…?
खैर ऐसे आदमी की संवेदनहीनता देखकर उन्हें विधायक बनना कहाँ की संवेदनशीलता है ! ये तो आप जरूर आईने के सामने खुद से पूछिएगा।
हे भगवान ! कहाँ गुरुजी , और उनके घर ऐसे ….?
झारखंड की विडंबना है कि , आपका विधायक और विधायक पत्रिनिधि ..!
आश्चर्य नहीं दुख होता है।
अपने कुनबे को संभालिये, और कहीं से बोलने का प्रशिक्षण इन माननीयों को दिलवाइये हजूर।
सिर्फ़ सरकार बचाने में नहीं , गुरुजी का सम्मान भी बचाइए।
और हाँ हमें भी अपने राज्य का निवासी बताने में शर्म न आए, कम से कम इतना तो कीजिए मालिक।
जहाँ विधायक को जो राजनैतिक वातावरण में बचपन से पला-बढ़ा हो उसे बोलते समय स्थान, काल और पात्र का ध्यान न रहे , तो शर्मिंदगी तो हमारी जायज़ है कि नई है ?

दुमका सिसकियों में डूबा है,सरकार अपनी बचाव में व्यस्त, विपक्ष हमलावर और छात्र-छात्राएं ? कोई पूछे तो उनसे !

झारखंड में राजनैतिक अस्थिरता बनी हुई है । कुछ समय के लिए सरकार की समस्या ठहरती भर हैं।
लेकिन फ़िर पक्ष मौका पर मौका देते हैं, तथा विपक्ष हल्ला बोलता है।
इधर उपराजधानी दुमका जल रहा है। जले भी क्यूँ नही !
आशिकी में दिलजले लड़कियों को जिंदा जला रहे हैं , तो वहसी दरिंदे चीरहरण कर लज्जाभंग के साथ हत्याकांड को अंज़ाम दे रहे हैं।
सड़कों पर स्वाभाविक विरोध दिख रहा है।
इसका परिणाम दूर दराज के यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले बच्चों और अभिवावकों पर पड़ रहा है। सभी सशंकित हो बच्चों को क्लास तक एटेंड करने नही भेज रहे ।
अभिवावक और बच्चे, खाशकर लड़कियाँ अपना नाम गोपनीय रखते हुए ऑन लाइन वर्गाध्यापन की बात कर रहीं हैं। पर्याप्त सुरक्षा में परीक्षा की माँग कर रहीं हैं।
इधर अभिवावकों को चिंता है , कि परीक्षा देने बच्चियाँ सुरक्षित परीक्षा हॉल तक कैसे पहुँचे !
कुल मिलाकर इस असुरक्षित माहौल और सड़कों पर विरोध की धधकते आक्रोश के बीच शिक्षा , छात्र और अभिवावक सिसक रहे हैं।
आख़िर कुछ तो करो सरकार !
अंकिता तो वहाँ उसपार ,और परिवार सहित सभ्य समाज इसपार  सिसकियों में डूबा तो है। लेकिन हमारे अंकों के मूल्यांकन की प्रक्रिया पर तो कोई गणित लगाइए हजूर।
बच्चियों के दर्द और आतंक से आतंकित भविष्य पर सोचना तो होगा।
क्यूँ सरकार, राज्यपाल महोदय और यूनिवर्सिटी प्रधान , आपको बच्चियों और अभिवावकों की चिंता जायज नहीं लगती ?
सोचिए , जरूर सोचिए ।

विश्वास भगवान का अटूट हो तो हर समस्या समाधान के साथ आता है, किसी के परिधान का उपहास और अपने चंचला सामर्थ पर अभिमान मत करें।

सभार डॉ योगेश भारद्वाज

*भगवान का भरोसा……*

गर्मी की भरी दोपहरी का समय था, यात्री रेल गाड़ी के डिब्बे में परेशानी में बैठे थे। बहुत सारे अमीर यात्रियों के साथ एक साधू वेषधारी भी यात्रा कर रहा था।

अमीर लोग साधू को कुछ दिए बिना खाना-पीना, हँसी-ठहाके कर रहे थे और साधू का मजाक बना रहे थे। साधू शांत स्वाभाव से बैठा सब देख रहा था, न ही उसे चिढाने पर क्रोध आ रहा था और न ही वो खाने को कुछ मांग ही रहा था।

रेल्वे स्टेशन आने पर अमीर यात्री उतर कर ठंडा पानी खरीद रहे थे, कुल्ले थूक रहे थे और साधू का मजाक बना रहे थे और तरह तरह के संवादों से उसे ताने दे रहे थे “साधू का वेष बना लेने से कोई साधू नहीं हो जाता, भगवा पहन लेने से कोई ज्ञानी नही हो जाता।

जब गरीबों के पास पैसे न रहे तो अच्छा है, भगवा का नाटक कर लेना चाहिए, मुफ्त खाने को मिल जाता है, कमाने की जरूरत क्या है, भीख भी मिल जाती है और लोग पहनने को कपडा भी दे देते है, घुमने को पैसा भी मिल जाता है, लोगो को बेवकूफ बना के पांव भी छुआ लो तो क्या कम है।” और भी न जाने क्या क्या बोल रहे थे !!!

मगर साधू किंचित भी विचलित नहीं हो रहे थे।

अगले ही स्टेशन पर एक सुन्दर वेशधारी वणिक गाड़ी में चढ़ा। उसके हाथ में पानी से भरा कुंजा और खाने का डिब्बा और मिठाई का डिब्बा था। उसने आते से ही साधू को प्रणाम किया और बोला स्वामी जी ये प्रसाद आपके लिए प्रभु श्रीराम ने भेजा है। उसके ऐसे व्यव्हार से अन्य यात्री उसे अचरज भरी नजरो से देख रहे थे।

साधु ने वो प्रसाद लेने से इंकार कर दिया और शांत शब्दों में कहा की “महानुभाव शायद आपको कोई गलत फहमी हो गई है, मै वो व्यक्ति नहीं हूँ जिसके लिए ये आप भोग लाये है, क्योंकि में तो आपको पहचानता भी नहीं।”

वणिक ने उत्तर दिया “नहीं स्वामी जी मुझे प्रभु श्री राम ने आपके ही लिए भोग लेने का आदेश दिया है और मै आपको अच्छी तरह पहचान गया हूँ कि आप ही स्वामी विवेकानंद जी है। मुझे भगवान् ने स्वप्न में आकर आपके लिए भोग लाने का आदेश दिया है।”

सब कुछ जानकर स्वामी विवेकानंद जी की आँखों से स्नेह से भरी अश्रुधारा निकल पड़ी और रेल के अन्य यात्री अपनी गलती पे शर्मिन्दा होकर स्वामी जी के चरणों में गिर पड़े और क्षमा याचना करने लगे।

स्वामी जी ने मीठे और शांत शब्दों में सबको क्षमा करते हुए बोले, “अपने पैसों पे नाज नहीं करना चाहिए, बल्कि अपनी विनम्रता और दयालुता पर नाज़ करना चाहिए। क्योंकि भगवन पे भरोसा रखने वाले को कभी नुकसान नहीं होता न ही कोई परेशानी परेशान करती है। भगवान् ने सबके भाग्य में खाना लिखा है। एक चींटी से लेकर हाथी तक के सभी जीव भूखे उठते जरुर है मगर भूखे सोते नहीं है। अत: भगवान का भरोसा करो कर्म करो कर्म के फल की चिंता मत करो। अच्छे का फल अच्छा और बुरे का फल बुरा ही होता है।”

ये थे सादगी से भरे स्वामी विवेकानंद जी कहीं भी अपना परिचय अपना नाम बताकर नहीं देते थे वरन अपने प्रवचन से लोगो के ह्रदय में बस जाते थे।हम भारत वासी तो केवल इसी बात पे गर्व करते है की विवेकानंद जी ने भारत की भूमि पर जन्म लेकर इस धरती को पावन कर दिया।

मैं स्वामी विवेकानंद जी को शत शत नमन करता हूँ। जिन्होंने भारत माँ का नाम अपने कर्मो से अमर कर दिया। जहाँ जहाँ भारत का नाम आता है पहला नाम स्वामी विवेकानंद जी का आता है।
ऐसे सहनशील भारत पुत्र को मै प्रणाम करता हूँ।

🙏🙏🙏
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

सत्य और असत्य का रहस्य

सभार डॉ योगेश भारद्वाज

*सत्य और असत्य का फल*

सत्य ओर असत्य नाम के दो भाई थे। सत्य स्वच्छ और सुन्दर, असत्य मलिन और देखने से ही अप्रिय लग रहा था। जहाँ जाता असत्य ठुकराया जाता और दुत्कारा ही जाता, इसलिए उसने बदला लेने का निश्चय कर लिया।

कलियुग आया तो दोनों तीर्थ-यात्रा पर निकले तो शुरू में वही स्थिति रही। सत्य का तो सम्मान होता क्योंकि वह सुन्दर लगता था और असत्य का अनादर क्योंकि न उसके वस्त्र साफ थे, न आकृति।

स्नान के लिये दोनों एक सरोवर में उतरे। सत्य मन-लगाकर स्नान करने में लगा रहा।

इस बीच असत्य चुपचाप उसके कपड़े पहनकर चला गया। बाहर निकलने पर सत्य को विवश होकर असत्य के कपड़े पहनने पड़े।

तब से दानों अलग अलग चल रहे हैं और हर व्यक्ति के पास अलग अलग जाते हैं और अपना अपना लाभ बताते हैं। अधिकतर लोग असत्य की ओर आकृष्ट हो जाते हैं। फलस्वरूप असत्य का परिवार बहुत बड़ा हो गया है और पाप धन खूब आ रहा है, जिसके कारण लोग भोग विलास में डूबे हुए हैं और परिवार आपस में ही लड़ मर रहे हैं। सभी अंदर से अशांत हैं। न नींद आती है न व्यंजन खा पाते हैं।

सत्य का परिवार बहुत छोटा है। सत्य की कमाई है, परिवार में सुमति है और परिवार के साथ आंतरिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

प्रतिस्पर्धी दौड़ में कितना कुछ छूट जाता है हमसे, बहुत कुछ अनजाने में खो देते हैं हम वो , जो हमारे ही लिए था

आज सुबह दौड़ते हुए,
एक व्यक्ति को देखा।
मुझ से आधा किलोमीटर आगे था।
अंदाज़ा लगाया कि मुझ से थोड़ा धीरे ही भाग रहा था।
एक अजीब सी खुशी मिली।
मैं पकड़ लूंगा उसे, यकीं था।

मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा।आगे बढ़ते हर कदम के साथ,
मैं उसके करीब पहुंच रहा था।
कुछ ही पलों में,
मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था।
निर्णय ले लिया था कि मुझे उसे पीछे छोड़ना है। थोड़ी गति बढ़ाई।

अंततः कर दिया।
उसके पास पहुंच,
उससे आगे निकल गया।
आंतरिक हर्ष की अनुभूति,
कि मैंने उसे हरा दिया।

बेशक उसे नहीं पता था
कि हम दौड़ लगा रहे थे।

मैं जब उससे आगे निकल गया,
एहसास हुआ
कि दिलो-दिमाग प्रतिस्पर्धा पर इस कद्र केंद्रित था…….

कि

घर का मोड़ छूट गया
मन का सकून खो गया
आस-पास की खूबसूरती और हरियाली नहीं देख पाया,
ध्यान लगाने और अपनी खुशी को भूल गया

और

तब समझ में आया,
यही तो होता है जीवन में,
जब हम अपने साथियों को,
पड़ोसियों को, दोस्तों को,
परिवार के सदस्यों को,
प्रतियोगी समझते हैं।
उनसे बेहतर करना चाहते हैं।
प्रमाणित करना चाहते हैं
कि हम उनसे अधिक सफल हैं।
या
अधिक महत्वपूर्ण।
बहुत महंगा पड़ता है,
क्योंकि अपनी खुशी भूल जाते हैं।
अपना समय और ऊर्जा
उनके पीछे भागने में गवां देते हैं।
इस सब में अपना मार्ग और मंज़िल भूल जाते हैं।

भूल जाते हैं कि नकारात्मक प्रतिस्पर्धाएं कभी ख़त्म नहीं होंगी।
हमेशा कोई आगे होगा।
किसी के पास बेहतर नौकरी होगी।
बेहतर गाड़ी,
बैंक में अधिक रुपए,
अधिक जायदाद,
ज़्यादा पढ़ाई,
खूबसूरत पत्नी,
ज़्यादा संस्कारी बच्चे,
बेहतर परिस्थितियां
और बेहतर हालात।

इस सब में एक एहसास ज़रूरी है
कि बिना प्रतियोगिता किए, हर इंसान श्रेष्ठतम हो सकता है।

असुरक्षित महसूस करते हैं चंद लोग
कि अत्याधिक ध्यान देते हैं दूसरों पर
कहां जा रहे हैं?
क्या कर रहे हैं?
क्या पहन रहे हैं?
क्या बातें कर रहे हैं?

जो है, उसी में खुश रहो।
लंबाई, वज़न या व्यक्तित्व।

स्वीकार करो और समझो
कि कितने भाग्यशाली हो।

ध्यान नियंत्रित रखो।
स्वस्थ, सुखद ज़िन्दगी जीओ।

भाग्य में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है।
सबका अपना-अपना है।

तुलना और प्रतियोगिता हर खुशी को चुरा लेते‌ हैं।
अपनी शर्तों पर जीने का आनंद छीन लेते हैं।

*इसलिए अपनी दौड़ खुद लगाओ बिना किसी प्रतिस्पर्धा के इससे असीम सुख आनंद मिलेगा, मन में विकार नही पैदा होगा शायद इसी को मोक्ष कहते हैं।*

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩