Sunday, October 19, 2025
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शिवपूजन ग्रहों कोभी करते है अनुकूल

नौ ग्रहों की शां‍ति के लिए सावन में करें खास उपाय… प्रसन्न होंगे भगवान शिव

#हाई बीपी, हार्ड से जुड़ी समस्याएं या फिर गांव-समाज में कम हो रही है मान सम्मान, सावन में करें खास उपाय, आएंगे अच्छे दिन

शरीर में है खून की कमी या पेट रोग से हैं परेशान, सावन में करें भगवान शिव को प्रसन्न, मिलेगा लाभ ।

शनि-राहु-केतु से हैं परेशान, या फिर मंगल कर रहा है अमंगल, सावन में भगवान भोलेनाथ को बनाए आराध्य, बनेंगे हर बिगड़े काम

सावन का महीना 9 ग्रहों की शांति से जुड़े उपाय करने के लिए भी बहुत असरदार माना जाता है। कुंडली में जिस ग्रह की स्थिति अशुभ हो, उससे संबंधित रुद्राभिषेक के उपाय करने से कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। ग्रहों के दोस्त को शांति करने के लिए सावन के महीने में क्या करें। आखिर भगवान भोलेनाथ को कैसे प्रसन्न करें कि ग्रह दोष शांत हो। आइए “आज का खास” में जानते हैं ग्रह शांति के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के खास उपाय…..

सूर्य ग्रह के उपाय

अगर आपकी कुंडली में सूर्य ग्रह अशुभ स्थिति में हैं तो आपको समाज में बार-बार अपमानित होना पड़ सकता है। इसके साथ आपको हाई बीपी, हार्ट से जुड़ी समस्‍याएं और आंखों में कमजोरी हो सकती है। उपाय के रूप में सावन में रोजाना शिवलिंग पर शुद्ध जल चढ़ाएं और श्वेत चंदन का तिलक लगाएं।

चंद्र ग्रह के उपाय

जिन लोगों की जन्‍म कुंडली में चंद्रमा नीच का होता है उन्‍हें सर्दी जुकाम और अस्‍थमा की समस्‍या रहती है। ऐसे लोगों को आंखों से जुड़ी परेशानियां होती हैं। उपाय के रूप में रोजाना कच्‍चे दूध में सफेद तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें।

मंगल ग्रह के उपाय

जन्‍मकुंडली में मंगल की स्थिति अशुभ होने पर आपके शरीर में खनू की कमी से जुड़ी समस्‍याएं होती है और आप पेट की बीमारियों से परेशान होते है। उपाय के रूप में सावल में शिवलिंग का रोजाना शहद से अभिषेक करें और लाल चंदन लगाएं।

बुध ग्रह के उपाय

आपकी जन्‍मकुंडली में बुध नीच का होने पर आपको पेट और फेफड़ों से बीमारियां होने की आशंका रहती है। उपाय के रूप में सावन के महीने में रोजाना कच्‍चे दूध में कनेर के पीले फूल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें।

गुरु ग्रह के उपाय

जिन लोगों की जन्‍मकुंडली में गुरु अशुभ स्थिति में होता है उन्‍हें अक्‍सर धन कमी का सामना करना पड़ता है। उन्‍हें त्‍वचा, दांत और कफ से जुड़ी समस्‍याएं परेशान करती हैं। ऐसे लोगों को सावन के महीने में रोजाना पानी में पीला चंदन मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।

शुक्र ग्रह के उपाय

जन्मकुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर होने पर आपको शारीरिक दुर्बलता और यौन संबंध समस्‍याओं का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र के कमजोर होने पर वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां आती हैं। उपाय के रूप में शिवलिंग का रोजाना पंचामृत से अभिषेक करें।

शनि ग्रह के उपाय

जिन लोगों की कुंडली में शनि नीच का होता है और उन्‍हें भी आर्थिक कमी और कई बीमारियां झेलनी पड़ सकती हैं। ऐसे लोगों को घुटनों में दर्द और खांसी के साथ ही अस्‍थमा की परेशानी हो सकती है। उपाय के रूप में रोजाना सुगंधित तेल या सरसों तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।

राहु ग्रह के उपाय

कुंडली में राहु ग्रह के कमजोर होने पर आप ड्रिप्रेशन के शिकार होते हैं और आपको अक्‍सर बुखार आता रहता है। शारीरिक रूप से भी दुर्बलता बनी रहती है। उपाय के रूप में आपको सावन के महीने में रोजाना शिवलिंग पर भांग चढ़ानी चाहिए।

केतु ग्रह के उपाय

केतु ग्रह की स्थिति यदि आपकी कुंडली में कमजोर होगी तो आपको शुगर हो सकती है और या फिर यौन समस्‍याओं से जीवन घिरा रहेगा। उपाय के रूप में सावन के महीने में कुशोदक से शिवलिंग का अभिषेक करें।
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आलेख…
पं. चेतन पाण्डेय
जन्मकुण्डली, वास्तु व कर्मकांड परामर्श
संपर्क : 9905507766

जिला अन्तर्गत लंबित शिकायतों का जल्द से जल्द करें समाधान: उपायुक्त

पाकुड़। आम जनमानस के समस्याओं के समाधान और त्वरित निष्पादन को लेकर उपायुक्त मृत्युंजय कुमार बरणवाल के द्वारा समाहरणालय सभागार में जनता दरबार का आयोजन किया गया।

इस दौरान जिले के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने जनता दरबार में आकर अपनी समस्याओं को उपायुक्त के समक्ष रखा। इस दौरान उपायुक्त द्वारा वहां उपस्थित सभी लोगों से एक-एक कर उनकी समस्याएँ सुनी गयी एवं आश्वस्त किया गया कि संज्ञान में आए हुए सभी शिकायतों की जाँच कराते हुए जल्द से जल्द सभी का समाधान किया जाएगा।

इसके अलावे जनता दरबार के दौरान स्वास्थ्य विभाग से संबंधित, अनुकम्पा से संबंधित मामले, समाज कल्याण विभाग से एवं विभिन्न आवेदन शिकायत के रूप में आये, जो कि जिले के विभिन्न विभागों से संबंधित थे। ऐसे में जनता दरबार में सभी शिकायतकर्ता की समस्याएँ को सुनने के पश्चात उपायुक्त ने संबंधित विभाग के अधिकारियों को निदेशित किया गया कि सभी आवेदनों का भौतिक जांच करते हुए, उसका समाधान जल्द से जल्द करें।

इसके अलावे उन्होंने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया कि इन शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए एक सप्ताह के अंदर अपना प्रतिपुष्टि उपायुक्त कार्यालय को समर्पित करे, ताकि शिकायतों के निष्पादन में आसानी हो।

अच्छी संगति एक सत्संग बनाता है, जाने अनजाने में चढ़ा देता है अपना रंग।

प्रतीकात्मक चित्र, फोटो-कैनवा
प्रतीकात्मक चित्र, फोटो-कैनवा

सन्तों की संगति मनुष्य के सिर्फ़ स्वभाव को सुंदर नहीं बनता, बल्कि दिल-दिमाग के साथ व्यक्ति के चिंतन और दूरदृष्टि को भी परिष्कृत तथा स्वस्थ करता है।

ये संगति सन्तों की कई प्रकार की होती है-

पहली संगति तो आप या मैं स्वयं संत के भौतिक रूप के साथ रह कर प्राप्त कर सकते हैं, दूसरी कि हम उनका चिंतन, मनन तथा उनके द्वारा कहे या लिखे गए को पढ़ें सुने आदि।

आज की डिजिटल दुनियाँ में दूसरा पहलू ज़्यादा सुलभ है,ऐसे भी जो संत या महापुरुष भौतिक नश्वर शरीर का त्याग कर चुके हैं, डिजिटल दुनियाँ हमें उनके चिंतनों से भी परिचित करवाता हैं।

बाबा कीनाराम शिष्य परम्परा के अघोरेश्वर संत भगवान स्वरूप को प्राप्त कर अवधूत राम बाबा ने किस तरह अध्यात्म और आध्यात्मिक सिद्धान्तों के परे आध्यात्मिक जीवन और देश तथा पीड़ित समाज की सेवा को ईश्वरीय कार्य से जोड़कर सुलभ बनाया है,इसे मैं फ़िर कभी लिखूँगा , लेकिन समय समय पर उनके चिंतनों का प्रसाद मुझे डिजिटली पठन पाठन में मिलता रहता है। उन्हीं में से एक कथा मैं यहाँ अपने मित्रों से साझा करना चाहता हूँ।

” एक नाविक एक साधु को प्रतिदिन नदी के उसपार ले जाता और ले आता था। 

साधु इस दौरान नाविक को धर्म की कथाएँ सुनता था, नाविक भी आनन्द के साथ चुपचाप साधुवचन का रसास्वादन करता रहता । बदले में नाविक साधु से लाख प्रयासों के बाद भी कोई पारिश्रमिक नही लेता।

मानव स्वभावबस साधु नाविक के साथ उसकी सरलता के कारण बंधता चला गया।

संत कथा श्रवण की पात्रता एवं नाविक के व्यवहार से प्रशन्न साधु ने एक दिन नाविक से अपने आश्रम चलने का आग्रह किया , नाविक संत के आश्रम में गया।

नाविक को साधु ने अपनी कहानी सुनाते हुए बताया कि पहले वह व्यापार करता था , एक सुंदर सांसारिक जीवन व्यतीत करता था।

एक आपदा में उसका पूरा परिवार चल बसा , और वह गृह त्याग कर साधु बन गया।

इसके बाद साधु ने नाविक से कहा कि उसके पास आश्रम में उसके व्यापार से कमाए बहुत धन है, जो वह नाविक को देना चाहता है।

साधु ने कहा कि ये धन अब मेरे किसी काम के नही , तुम परिवार वाले और सांसारिक हो , इस धन से तुम्हारी सभी आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी।

लेकिन नाविक ने वो धन लेने से मना कर दिया।

उसने कहा कि इस धन से मैं और मेरा परिवार न सिर्फ़ अलसी – कामचोर हो जाऊँगा बल्कि मेरे बच्चों का भविष्य भी ऐसे में बर्बाद हो जाएगा।

ऐसे में साधु कौन है ? 

वो जो परिवार के खोने के बाद विरक्ति में गृह त्याग तो सकता है, लेकिन धन आश्रम तक ढो लाया है , या फ़िर वो नाविक जो मुफ़्त में मिल रहे स्वप्नातीत अगाध धन को नकार कर अपने मेहनत पर जीवन यापन चाहता है ?

यहाँ साधु की संगति ने नाविक को साधु से भी बड़ा साधु बना दिया।

खैर यहाँ सिर्फ़ संगति ही अपने गुणों को सावित करता है।

ये मैंनें भी अपने जीवन में अहसास किया है, कि संगति स्वभाव, व्यवहार , चिंतन मनन एवं जीवन पर अपना प्रभाव छोड़ ही जाता है।

इसलिए कम से कम डिजिटली सन्तों के विचारों और जीवन का अध्ययन कर स्वयं के हर पहलू को परिष्कृत जरूर करना चाहिए।

विश्व आदिवासी दिवस को विभिन्न कार्यक्रमों से मनाया जिला प्रशासन और संस्थानों ने, रही धूमधाम।

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पाकुड़। विश्व आदिवासी दिवस-2023” के अवसर जिले भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। डायट भवन, पाकुड़ में भव्य जिला स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपायुक्त मृत्युंजय कुमार बरणवाल, पुलिस अधीक्षक एच.पी जनार्दनन, जिला परिषद अध्यक्ष जूली खिष्टमणी हेम्ब्रम, उप विकास आयुक्त शाहिद अख्तर एवं सहायक समाहर्ता कृष्णकांत कनवाड़िया, अनुमंडल पदाधिकारी हरिवंश पंडित रहे। इस कार्यक्रम की शुरुआत सभी अतिथियों के द्वारा विधिवत रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।

इस अवसर पर जिला परिषद अध्यक्ष जूली खिष्टमणी हेम्ब्रम ने कहा कि आदि का अर्थ है प्राचीन। आदिवासी प्राचीन / मूल निवासी है। हमारे जंगलों, पहाड़ों, प्राकृतिक सम्पदाओं की रक्षा आदिवासी समुदाय के लोग प्राचीन काल से ही करते आ रहे है। आजादी के आंदोलन में आदिवासियों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। चाहे धरती आबा, बिरसा मुण्डा की शहादत हो या वीर सिदो-कान्हू, फूलो-झानो या तिलका मांझी। आदिवासी दिवस के अवसर पर संकल्प लेना होगा कि हम आने वाले पीढ़ी को ज्यादा से ज्यादा शिक्षित बनाये ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रह सकें।

उप विकास आयुक्त शाहिद अख्तर ने कहा कि आज पूरे विश्व में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है। आदिवासी समाज का हमारी धरोहर को संरक्षित रखे में बड़ा योगदान रहा है। आदिवासी संस्कृति को संजोए रखने, स्वाभिमान को जागृत करने और जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए हमेशा एकत्रित होकर कार्य किया है।

इस दौरान उपायुक्त मृत्युंजय कुमार बरणवाल ने विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज हम आदिवासी भाई- बहनों के लिए बड़ा ही गर्व का दिन है। आदिवासी संस्कृति को प्रदर्शित करने का दिन है आदिवासी समाज प्रकृति से जुड़ी है जिसको बचाकर रखना हमारा दायित्व है आदिवासी समाज के लोगों के विकास के लिए सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाएं हैं जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक जिला प्रशासन पहुंचने का कार्य कर रही है।आदिवासी समाज के बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अत्यधिक आवश्यक है। तभी हम अपने समाज को आगे ले जा पाएंगे और एक अच्छे नागरिक बन पाएंगे। सरकार आपके अधिकारों के प्रति दृढ़ संकल्पित है तथा कई लाभकारी योजनाऐं आदिवासियों के हितों के संरक्षण हेतु चलाई जा रही है। सरकार के साथ-साथ युवाओं को भी जिम्मेवारी लेनी चाहिए और इन लाभकारी योजनाओं के बारे में सुदूर गाँव के लोगों को अवगत कराना चाहिए। माननीय मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार आदिवासियों के प्रति संवेदनशील होकर कार्य कर रही है। आने वाले दिनों में हमें इसका सुखद प्रभाव देखने को मिलेगा।

इस दौरान संथाली सांस्कृति कार्यक्रम, ट्राइबल फैशन, पहाड़िया सांस्कृतिक नृत्य, नुक्कड़ नाटक पर विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं द्वारा अपने समाज के बारे में परिचय जैसे कार्यक्रम आयोजित की गए। ट्राइबल फैशन शो के माध्यम से आदिवासी समाज के रहन सहन,परंपरा एवं संस्कृति का विस्तृत चित्रण किया गया।

वही स्थानीय पाकुड़ पॉलिटेक्निक में भी विश्व आदिवासी दिवस बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यह कार्यक्रम कॉलेज परिसर में आयोजित किया गया, जहां संस्थान के निदेशक अभिजीत कुमार, प्राचार्य डॉ. ऋषिकेश गोस्वामी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी निखिल चंद्र और परीक्षा नियंत्रक अमित रंजन ने छात्रों, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की उपस्थिति में दीप प्रज्वलित किया और कार्यक्रम का उद्घाटन किया, जिसमें आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाया गया।

इस उत्सव में आकर्षक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला शामिल थी जो संस्थान के विभिन्न विभागों द्वारा 9 अगस्त को सुबह 9:00 बजे से अपराह्न 1:00 बजे तक आयोजित की गई थी। उत्सव में आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के महत्व पर प्रकाश डाला गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना था बल्कि छात्रों के बीच एकता की भावना को भी बढ़ावा देना था।

पाकुड़ पॉलिटेक्निक कॉलेज के प्राचार्य डॉ ऋषिकेश गोस्वामी ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर अपने व्यावहारिक और प्रेरक शब्दों से प्रतिभागियों को सम्मानित किया। उनके भाषण ने इस दिन के महत्व के बारे में हमारी समझ को समृद्ध किया और आदिवासी समुदायों द्वारा हमारे समाज में निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उनके व्यापक ज्ञान और भावुक प्रस्तुति ने हमें न केवल हमारे आदिवासी भाइयों की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध विरासत के बारे में शिक्षित किया है, बल्कि उनके संरक्षण और जश्न मनाने के महत्व पर भी प्रकाश डाला है। उनके शब्दों ने हमें समावेशिता के महत्व और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता की याद दिलाई है कि आदिवासी समुदायों की आवाज़ और योगदान को स्वीकार किया जाए और उनका सम्मान किया जाए।

वही झामुमों कार्यकर्ताओं ने पाकुड़ जिले के पुराने बस स्टैंड के समीप अवस्थित वीर कुंवर सिंह भवन में जिलाध्यक्ष श्याम यादव के नेतृत्व में विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया।

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ वीर कुंवर सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया। सर्वप्रथम पार्टी के जिलाध्यक्ष श्याम यादव ने वीर कुंवर सिंह के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया तत्पश्चात पार्टी के जिला सचिव सुलेमान बास्की, जिला परिषद अध्यक्षा जुली ख्रिस्टमुनी हेम्ब्रम, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष जोसेफिना हेम्ब्रम ने माल्यार्पण कर आदिवासी परंपरा अनुसार पूजा अर्चना किया।

एक तीर किस विज्ञान से बनते थे सैकड़ों तीर, मंत्र भी क्या है कोई विज्ञान ?

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रामानंद सागर जी की रामायण कुछ वर्ष पहले कोरोना काल में भी टी भी पर प्रसारित किया गया , प्रत्यक्ष उद्देश्य था , घर मे महामारी के कारण कैद जनता को घर में ही बाँधे रखना। अनेक वर्षों पहले जब हम किशोरावस्था में थे तो ऐसी ही वीरानी तथा ख़ामोशी शहरोँ के रास्तों पर नज़र आती थी। उसके भी कारण रामायण और महाभारत का दूरदर्शन पर प्रशारण भारत में उस समय की ख़ामोशी को ही ध्यान में रखकर ये महामारी के समय ऐसे प्रसारण का निर्णय लिया गया होगा। लेकिन रामायण ही क्यूँ , क्या कोइ और सीरियल या कार्यक्रम लोगों को बाँधे रखने के लिए नहीं था ! इस सवाल के कई उप सवाल भी मेरे मन में उठे।

बचपन की कुछ बातें इस पचपन में समझ में आतीं दिखतीं हैं । विचार जो शायद समझ बन मस्तिष्क में आईं तो इसे अपने पाठकों और मित्रों से साझा करने की इच्छा हुई। मेरे पास माध्यम तो बस यही है, इसलिए यहीं साझा कर रहा हूँ। इसमें मेरे एक मित्र उमानाथ पांडे का भी सहयोग रहा है।

बचपन में जब रामायण देखा करता था तो एक मंत्र मात्र बुदबुदा कर तीर चलते ही सैकड़ों तीर दिखते और बन जाते दिखता। उसके आगे आग जलता और विस्फोट होते दिखता , बड़ी हँसी आती थी । खुद से कहता क्या बकवास है यार क्या ऐसा सम्भव है। पत्रकारिता की तार्किक और उससे कुंठित मानसिकता किसी कीमत पर इसे अनेक तीरों की बात मानने को तैयार नहीं होता।

जब इसरो की एक साथ दर्जनों उपग्रहों को अंतरिक्ष के अलग अलग कक्षाओं में उपस्थापित करते टी भी पर देखा सुना तो , लगा विज्ञान ऐसा कर सकता है। अभी अभी अपने पत्रकार मित्र क़ासिम के एक रिपोर्ट पर कई लोगों पर एक साथ एफआईआर की तीर चलते देखा तो लगा ऐसा अच्छी पत्रकारिता की प्रकाशित रिपोर्ट भी कर सकता है। फिर बहुत ही डेसिंग डिसीज़न लेनेवाले मानसिकता के कई अधिकारियों को जीवन में देखा, और उनके कहने , बयान देने मात्र से माफियाओं को हड़कते देखा तो लगा एक तीर अनेक हो सकते हैं।

इस अपनी बात बताने की प्रक्रिया में अगर राजनैतिक निर्णयों पर अपना अनुभव न कहें तो बहुत बेइंसाफी होगी। देश के प्रधानमंत्री ने राम मंदिर का नींव रखने में हाज़री बजा कर सेकुलरिज्म का अनुकरण किया या नहीं, ये तो ऊपरवाला और विद्वान राजनैतिक विश्लेषक जाने , लेकिन इस तीर ने ऐसा निशाना साधा कि मंदिर विरोधी मंदिर-मंदिर दौड़ने लगे, दुश्मन दोस्त बनने लगे , और तो और देश की सीमा के पार भी शिलान्यास की तीर ने कई अंतरराष्ट्रीय हलचलों और बयान को जन्म दिया। पाकिस्तान में भी धार्मिक कट्टरता वाली आवाजें सुनाई देने लगी। इसका व्यापक प्रभाव पड़ा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान और बदनाम हुआ, भारत अंतराष्ट्रीय स्तर पर और ज्यादा बौद्धिक तथा कूटनैतिक मजबूती के साथ उभरा। ओबेसी जैसे विद्वान नेता अबतक उछल कूद कर रहा है। मोदी ने एक तीर से कई निशाने साधा। केंद्र सरकार स्वयं और अपने लोगों से ऐसे ऐसे मामले कोर्ट में ऐसी सटीक समय पर ले गए कि एक ही दिन पिछले दिनों ऐसे दो मामलों में फैसले आये कि एक की खुशी मनाने में दूसरे पर विरोध जताना तक विपक्ष भूल गए , जबकि न्यायप्रणाली का भी सरकार के विरोध में विपक्ष विरोध करने से नहीं चूके😥

लेकिन इतना तय है , कि बचपन के अविश्वास को पचपन तक के सफ़र में कई मामलों पर मेरी अल्पबुद्धि के विश्लेषण ने मुझे इस निर्णय पर पहुँचाया कि ऐसे ही एक तीर से कई निशाने की बात नहीं कही जाती , हमारे पूर्वज योद्धा के साथ साथ मंत्र वैज्ञानिक भी थे, और वो मन्त्रों के काउंटडाउन से एक तीर से सैकड़ों तीरों का प्रक्षेपण कर सकते थे। वर्तमान केंद्र सरकार के कई निर्णय और फैसले भी इसका प्रमाण देता है।

शब्द ब्रम्ह है, जो निर्माण करता है, जीवंत साक्ष्य , बिना कोलाहल, शोर के बनता है एक आवाज़, आंदोलन

किसी भी सकारात्मक सफर की एक मजबूत बुनियाद होती है, जहाँ से प्रेरणा की रक्तसिंचन होती है, वही से लेखन या किसी निर्माण के कल्पनात्मक अदृश्य शरीर की धमनियों में सृजन का रक्त बहकर जीवन का संचार करता है। इसी से परिचय सफ़र शुरुआत की एक भूमिका होती है, और ये भी भूमिका एक आधार या यूँ कहें कि जमीन पर टिकी होती है।
मेरी कलम की चलने की शुरुआत की जमीन मेरे पिता स्वर्गीय प्रोफेसर श्रीकांत तिवारी जी रहे।

उन्होंने कभी ये नही कल्पना की थी, कि उनके पुत्र की कलम पत्रकारिता के रास्ते चलेगी। हिन्दी के प्रोफेसर, संस्कृत के गोल्डमेडलिष्ट, अंग्रेजी व्याकरण के ज्ञाता और गणित के अच्छे जानकार मेरे पिता ने कभी ये नहीं सोचा कि मैं पत्रकारिता की राह चलूँगा।

एक पिता और तीन-तीन लिटलेचर के ज्ञाता मेरे पिता की गणित इस मामले में सटीक नही निकल सकी थी कि मैं इस ओर चल पड़ूँगा। उन्होनें मुझे कलम के सफ़र में बस एक अच्छी लेखनी और शायद किसी सरकारी नौकरी में भेज पाने की मंशा से ही उतारा था। 

खैर उनकी अपेक्षा पर मैं सही नहीं उतर पाया, और कंक्रीट के उस रास्ते चल पड़ा जो आज चुभती हुई गिट्टियों की पथरीली राह बन गई है। कैसे और क्यूँ इसपर अगले आलेख में। अभी बस इतना कि ले कलम का सफ़र शुरू हुआ कैसे और कब?

बात 1980 के दशक की है। उस समय मैं अपनी मेट्रिक यानी 10 वीं की परीक्षा से लगभग चार साल दूर था। हमारे समय मे लेख लिखने की परंपरा थी। परीक्षाओं में लेख आलेख और संक्षेपण जैसे प्रश्न आते थे। मैं नटखट और पढ़ाई के प्रति उदासीन किशोरावस्था को जी रहा था। फलस्वरूप पिता की छड़ियों का अक्सर कोपभाजन बनता था। ऐसी पिता-पुत्र की विरोधावस्था वातावरण के बीच, पिता ने मुझे स्वयं अपने ऊपर एक लेख मुझे अपनी दृष्टिकोण से लिखने को कहा। शर्त ये था, दृष्टिकोण मेरा स्वयं का हो, एक बड़े पृष्ठ में उसी दिन हिन्दी में वो लिख उनके सामने प्रस्तुत करूँ। मैं एक ऐसे पिता पर लेख लिखने जा रहा था, जो करीब रोज मेरी मरम्मत कर अपने कोप सिंचन से मुझे गम्भीर अध्ययन के रास्ते पर लाना चाहते थे। मेरी चंचल मानसिकता, बहिर्गमन बुद्धि, बोद्धिक अकर्मण्यता तथा पढ़ाई के प्रति अरुचि मुझे एक असमंजस में डाले हुए था, कि मैं अपनी दृष्टिकोण से अगर उनपर आलेख लिखूँ तो कैसे।

मुझे याद है, मैं उसदिन काफ़ी विचलित था, उनपर लिखते ही शब्दों की धारा उनकी मेरी होनेवाली आएदिन की मरम्मत की जाल में फँस बिखर जाती। मैंनें स्वयं को लिखने से पहले सम्भाला। स्वयं को हासिये पड़ खड़ा रखा, फिर एक साक्षी बन अपने पिता के सिर्फ़ मेरे नहीं बल्कि औरों के गुण-अवगुणों का आंकलन करते हुए, उनके व्यवहार को टटोला। पिता के मेरे और अन्य सुलझे-अनसुलझे लोगों के प्रति व्यवहार का मूल्यांकन कर मैंनें अपने पिता पर आलेख लिखा। हँलांकि मेरे पिता क्या थे, कैसे थे, इसका मूल्यांकन की औकात मेरी नहीं। आज भी नहीं है, उस समय तो मैं सोच भी नहीं सकता था।

खैर जब मैं हासिये पर खड़ा हो, एक साक्षी भाव से पिता पर आलेख ले उनके सामने खड़ा था, तो मैं हर पंक्ति पर फिसली उनकी नजरों के साथ उनके चेहरे पर उकरती लकीरों की भाव को भी पढ़ने का असफ़ल प्रयास कर रहा था। पूरे पन्ने को वो पढ़ गए, और कई बार पढ़ते रहे, यहाँ भी मन में एक अपराध बोध के साथ मैं ख़ामोश साक्षी बना रहा। अचानक वे उठे और मुझे पूछ बैठे, मैं तुम्हें क्रूर नहीं लगता? मैंनें सिर्फ़ नही कहा, और कहा मैंनें तराशे गए आपके छात्रों को देख आपको हाथ में छेनी हथौड़ा लिए सिर्फ़ एक कारीगर समझा। मैं पन्नों में तो पीड़ित भर स्वयं को समझा था, लेकिन जब हासिये पर खड़ा हो देखा, तो आप कारीगर दिखे, और मैं बिन तराशा गया बेडौल पत्थर सा दिखा।

यहीं से कलम ने पिता के आशीर्वाद से कलम के सफ़र के रास्ते डाल दिया मुझे। उन्होनें कहा इसी तरह हासिये पर खड़े होकर साक्षी भाव से समाज और पीड़ित, शोषित की आवाज़ बनना, स्वयं पीड़ित मत दिखना न ही दिखाना। पीड़ा उनकी कहना जिनके पास अभिव्यक्ति के साधन, शब्द और भाषा नहीं। यही साहित्य है, जो सबके हित की बात करता है। लिखना और लिख कर ही कहना, ये वातावरण में एक शोर बन घुलता और विलीन नहीं होता। शब्द लिखे गए ब्रह्म होते हैं, जो निर्माण करता है, एक जीवंत साक्ष्य, जिसे झुठलाना असम्भव है।

मेरे पिता के कथन ही जीवन बन उतर गए दिल मे, और दिल जो कहता है, मेरी कलम कहती जा रही है, अपने सफ़र में।
मेरी कलम यहीं से अपने सफ़र पर है।

किसी ने मुनासिब नही समझा बुलबुली के माँ के दर्द को जानना

बुढ़िया की दर्द की बेचैनी बन जाती थी मनोरंजन का माध्यम

बात बहुत पुरानी है, है तो 1972 के बाद का वाकया, लेकिन कई तरह की सीख देनेवाली इस कहानी को मैनें 1990 के दशक में ख़ोज निकाली थी। हँलांकि कहानी का किरदार सांवली रंग, दुबली-पतली काया, लगभग कंकाल स्वरूपा, गहरी धंसी गोल आँखें जिनपर मोटा सा कांच का चश्मा, एक सफ़ेद साड़ी में लिपटी झारखंड के पाकुड़ जिले के राजापाड़ा की गलियों में घूमती बुढ़िया हर किसी को दिख जाती थी। उसके मोटे चश्में से किसी को निहारती आँखें न जाने कितनी दर्द की कहानियाँ कहतीं सी लगती थी, लेकिन बुलबुली की माँ के नाम से जाना जाने वाली इसके दर्द को कभी किसी ने जानने और समझने की ज़हमत नहीं उठाई थी।

हाँ बच्चों के झुंड और युवकों के समूह के लिए वो कंकालस्वरूपा बुढ़िया एक मनोरंजन का साधन मात्र था। जिस गली से वो गुजर जाती, मानो बच्चों और किशोरों के समूहों के हाथ कोई मनोरंजन की लॉटरी लग गई हो। महिला की वो काली छाया जिस गली में जाती, बच्चों और किशोरों के समूह से एक आवाज़ आती, “आलू पोटोलेर तोरकारी, बुलबुलीर माँ सोरकारी“।

बस ये आवाज़ बुढ़िया के कान तक पहुँचते ही मानो बुढ़िया को करंट लग गया हो, फिर बुढ़िया के हाथ मे पत्थर और गली में दौड़ लगा कर इधर-उधर भागते लोग। ये ज़रूरी नहीं कि वो पत्थर बुढ़िया उसी पर फ़ेंके जिसने उसे चिढ़ाया हो। वो पत्थर जब बुढ़िया के हाथ से छूटता, तो वो किसी को भी लग सकता था और फिर वो आख़री पत्थर भी तो नहीं होता, पूरी गली, मोहल्ले में तूफ़ान खड़ी कर देती थी वो मरियल सी कंकालस्वरूपा। आख़िर क्यूँ ऐसा होता कि जो हवा के एक झोंखे से ख़ुद को न सँभाल पाने की ताक़त रखने वाली बुढ़िया सिर्फ़ “आलू पोटोलेर तोरकारी बुलबुलीर माँ सोरकारी” बोलने भर से तूफ़ान खड़ा कर देती है। कई बार बिना क़सूर के मैं भी बुढ़िया के पत्थरों का शिकार हो चुका था।

बुढ़िया के पत्थरों ने मुझे कभी उतना दर्द नहीं दिया, जितना उसके गुस्से के कारणों की जिज्ञासा ने मुझे कर रखा था। कई बार बुढ़िया से कारण जानने के मेरे प्रयास ने मुझे बुढ़िया से पिटवा तो दिया, लेकिन मैं कारण जानने में असफ़ल रहा। बुलबुली की माँ, हाँ उसका तो अब नाम भी यही था, अपनी पहचान अपना नाम तक भूल चुकी वो बुढ़िया सिर्फ बुलबुली की माँ के नाम से ही जानी जाती थी।

अपने जीवन यापन के लिए बुढ़िया दूसरे के यहाँ झाड़ू पोछा और बर्तन माँजती थी। जिस घर में वो बुढ़िया बर्तन माँजती थी, उस घरवालों से मेरा अच्छा सम्बन्ध था। मैंनें बुलबुली की माँ के दर्द को समझने और उसकी गहरी धंसी आँखों के पीछे छूपी कहानियों को तलाशने के लिए उस घर के कुँए के पास बैठने की जगह बना ली। बुलबुली की माँ बर्तन माँजती और मैं उससे इधर उधर की बातें कर उसके दर्दों में झाँकने की कोशिश करता, लेकिन उस चिढ़ने वाली सवाल पर पहुँचते ही मैं पिट जाता।

मेरी जिज्ञासा ने न ज़िद छोड़ी और हर एक दो दिन के अंतराल पर बुलबुली की माँ ने मुझे पीटना। उस घर के लोग भी मुझे समझाते छोड़िए, आप क्यूँ इस पगली से मार खाते हैं! गर्म और किसी से न दब कर रहनेवाली मेरी आदतों को जानने वाले उस घर के लोग मेरे पिट जाने की धैर्य से अचंभित थे। लेकिन मेरी पत्रकारिता ने मुझे कभी हार न मानने की सीख दे रखी थी, मैं भी उस बुढ़िया में दफ़न दर्द को निकालने को आतुर था।

एक दिन बुढ़िया सब्जी बनाने वाली एक वज़नदार कड़ाई माँज रही थी, मेरे सवाल पर उसने जवाब में वो कड़ाई मेरे सर पर दे मारी, मेरा सर फूट गया, खून का फब्बारा मेरे सर से निकल पड़ा। इधर मेरे सर से खून निकल रहे थे, उधर वो कंकालस्वरूपा फूट फूट कर रो रही थी, मेरे सर और घाव को सहलाते हुए मलहम लगा रही थी। पत्थरों से पीछा कर मरनेवाली आज ममतामयी बन गई थी। मेरे बहते खून ने उसके आँसुओं की बांध को तोड़ दिया था। उसके आँसुओं के साथ उसकी दर्द की कहानी भी निकल आई। मेरा अथक प्रयास, पिटते रहने के धैर्य ने मानो उसे खुली क़िताब बना दिया था।

उसने बताया अपनी शादी से पहले वह एक सामर्थवान समृद्ध परिवार की लड़की थी। उसके पिता ने उसके अन्य भाई बहनों की तरह समय आने पर उसकी भी शादी एक खाते पीते समकक्ष परिवार मे कर दी। कालांतर में देश आज़ाद और विभाजन भी हुआ। विभाजन ने उसके मायके और ससुराल को भी पाकिस्तान (वर्तमान बंग्लादेश ) का नागरिक बना दिया।
और फिर दुर्भाग्य ने यहीं से घेरना शुरू किया। कट्टरपंथ ने उसके मायके को लील लिया।

इसी आग में उसके पति, एक मात्र बेटे की उसके सामने निर्मम हत्या कर दी गई। एक बेटी की सामुहिक ब्लातकार के बाद बीचों बीच उसके शरीर को फाड़ दिया। दो नन्ही जान सी बेटियों को लेकर वो शरणार्थी शिविर में आ गई। वहीं बीमारी से एक और बेटी चल बसी। फिर सबसे छोटी बुलबुली नामक बेटी के साथ वो पाकुड़ अपनी बहन के ससुराल आ गई, यहाँ भी बहन के ससुराल पक्ष ने उसे ज्यादा दिन नही रखा।

फिर घरों में घरेलू नोकरानी का काम कर पाकुड़ में ही भाड़े पर रहने लगी। पूरी दर्द की एक क़िताब बन चुकी और असहनीय दर्द से बेज़ार बुलबुली की माँ को शरणार्थी शिविर में मिलनेवाले खाने में रोज रोज आलू परवल की सब्जी से चीढ़ थी, शिविर में कभी कभी वो विद्रोह भी कर जाती थी। यही ख़बर पाकुड़ के बच्चों को भी पता चल गया था। बंगला में “आलू पोटोलेर तोरकारी बुलबुलीर माँ सोरकारी”

आम बच्चों और युवाओं के लिए तो एक कहावत और बुलबुली माँ की उग्र प्रतिक्रिया एक मनोरंजन मात्र था, लेकिन ये किसी को पता नहीं था, कि इतना कहना भर बुलबुली की माँ के सारे दर्द को कुरेद देता था। बुलबुली की माँ दशक पहले वहाँ चली गई, जहाँ अब उसे कोई दर्द न होगा और न दे पाएगा, लेकिन आज भी उनकी कहानी आज के राजनिज्ञों से सैकड़ों सवाल पूछती है।

अफ़सोस कि इन सवालों के जवाब हमारी राजनीति और व्यवस्था दे पातीं। 😥

गम्भीर विषयों पर सकारात्मक रूप से गम्भीर हैं उपायुक्त पाकुड़; सभी को जेल नहीं भेजना, जागरूकता और रोजगार है उपाय

ग्रामीणों के स्किल डेवलप कर रोजगार उपलब्ध कराने को लेकर पहल करने का दिया निर्देश

कोयला ढुलाई के दौरान चोरी को रोकने के लिए अधिकारियों को दिया जागरूक करने का निर्देश

समाहरण सभागार में उपायुक्त मृत्युंजय कुमार बरणवाल ने कोल कंपनी के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। बैठक में डब्लूपीडीसीएलपीएसपीसीएल के प्रतिनिधि शामिल हुए। बैठक में उपायुक्त ने भूमि अधिग्रहण को लेकर चर्चा करते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण को लेकर जितने मामले लंबित पड़े है। उसका जल्द निपटरा करें. वहीं उपायुक्त ने कोयला ढुलाई के दौरान हो रही चोरी को लेकर एसडीपीओ व संबंधित अधिकारियों को उसपर रोक लगाने की बात कही। साथ ही उन्होंने कहा कि कोयला ढुलाई जिस क्षेत्र होते हुए हो रहा है। वैसे गांवों के ग्रामीणों के साथ बैठक कर उन्हें जागरूक करने का कार्य करें. साथ ही वैसे लोग जिनके द्वारा कोयला चोरी का कार्य किया जा रहा है। वैसे लोगों को चिन्हित करते हुए धारा 107 के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया. साथ ही कोल कपंनी के प्रतिनिधियों को कहा कि ग्रामीणों के रोजगार के लिए पहल करते हुए उनके स्किल डेप्लमेंट के लिए ट्रैनिंग प्रोग्राम चलाए। साथ ही उनके स्किल को डेप्लमेंट करते हुए उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने का प्रयास करें।

अपर समाहर्ता श्रीमती मंजूरानी स्वांसी, अनुमंडल पदाधिकारी श्री हरिवंश पंडित, डीएसपी मुख्यालय वैद्यनाथ प्रसाद, डीपीआरओ डॉ. चंदन, अंचल अधिकारी अमड़ापाड़ा, डब्लूपीडीसीएल व पीएसपीसीएल के प्रतिनिधि मौजूद थे।

वाचिक विराम: प्रोफेसर मनमोहन मिश्र की अनुपम यादें और विचार

अपने बाल सखा श्रीकांत तिवारी के शव को श्मशान में ले जाते वक़्त अपने बूढ़े कांधे पर चचरी को लेते हुए, उन्होंने अनायास ही कहा, “चलिए पंडित आपको आपकी अंतिम यात्रा में अगुआ आएं, आप हमेशा सीनियर रहे, यहाँ भी आप ही सीनियर सही, मैं पीछे से आता हूँ, जगह हमरो राखियो पंडित” और फ़िर छलक पड़े थे उनके आँसू ऐसे
प्रोफेसर स्वर्गीय मनमोहन मिश्र का नाम लेते ही पाकुड़ में एक ऐसे व्यक्तित्व का चेहरा उभर कर सामने आता है, जिनके शब्दों की जादूगरी से हिन्दी साहित्य की समृद्धि का ज्ञान होता है। साहित्य की जितनी विधा है, उन सबके जीवंत रूप थे, अनजाने मन को भी मोह लेनेवाले के के एम कॉलेज पाकुड़ के प्रोफेसर, नगर के सर और मेरे काकू स्वर्गीय मनमोहन मिश्र।

उनके चिर विश्राम में गए कई वर्ष बीत गए, लेकिन हर सुबह आज भी उनकी आवाज़ सुनाई पड़ती है। मेरे पिता के बाल सखा रहे मिश्र साहब उसी कॉलेज में तथा उसी विभाग में व्यख्याता थे, जिसमें पिता श्री स्वर्गीय श्रीकांत तिवारी थे। इसलिए प्रतिदिन सुबह मेरे आवास पर वे आते और दरवाजे पर से ही पंडित की आवाज लगाते। हाँ इसी नाम से वे मेरे पिता को पुकारते थे। घण्टो उनकी बातें मैं सुनता। हिन्दी के व्यख्याता मनमोहन मिश्र में किस विषय की गहरी जानकारी नहीं थीं, यह कह पाना असंभव था।

प्रभात खबर
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साहित्य, इतिहास, अध्यात्म के हर पहलू और उसका विश्लेषण तथा उनपर उनका अनवरत वाचिक प्रस्तुतिकरण अविस्मरणीय था। किसी विषय पर उनको घण्टों सुनना एक विहंगम अनुभूति देता था।

वरिष्ठ पत्रकार, मेरे मित्र और मनमोहन मिश्र के पारिवारिक शिष्य डॉ० आर के नीरद की उनपर लिखी पुस्तक में उनके विषय में विस्तार से लेखन एवं संकलन ने उनपर कुछ और लिखना असम्भव सा कर दिया है। ये पुस्तक मिश्रा जी के साहित्यिक जीवन के तकरीबन हर पहलू को छूता है। (अमेजन पर यह पुस्तक एभेलेबुल है)

उनकी प्रत्युतपनमतित्व और व्यंग पर कुछ ना कहूँ तो शायद अन्यथा हो। एक बार वो मेरे पिता एवं की प्रोफेसरों के साथ मेरे बरामदे पर बातचीत में व्यस्त थे। इसी बीच एक बकरी आँगन में घुसकर फूल के पौधों को खाने लगी, मैं उसे बाहर करने दौड़ा, अचानक वे उठे और बकरी को बमुश्किल पकड़ लिया, उनके आदेश पर मैंने उनके साथ बकरी को करवट कर लिटा दिया, उन्होंने अपने रुमाल को उसके कान पर रखकर एक छोटे से ईंट के टुकड़े को रख दिया। पता नही बकरी इसके बाद घण्टों सोई रही। उसके बाद जब बकरी की मालकिन उसे ढूँढते वहाँ आई तो, बड़े आदर से उन्होंने बकरी की मालकिन से कहा आइये, आपकी बकरीरानी खाना खाकर आराम कर रही है। वहाँ उपस्थित सभी लोग हँस रहे थे, लेकिन मैं अचंभित था कि ज्ञान के इस महाभण्डार में, तथा वाचिक परम्परा के इस गम्भीर महानायक में आज भी एक नटखट बचपना कैसे जिंदा है!

उनके जीवंत व्यंग की दस्तानों में वो वाकया अचानक आज भी गुदगुदा जाता है, जब उन्हें अप्रेल के महीने एक सहकर्मी व्यख्याता ने यह कहा कि अब तो जूता उतार दिया जाय सर, मिश्रा साहब ने तपाक से जवाब दिया नहीं नहीं आपके सुधर जाने की सूचना मिल चुकी है। वहाँ ठहाकों की सम्मलित गूँज थी। किसी बात की क्षणभर में सार्थक प्रतिक्रिया व्यंग की चाशनी में लपेटकर कर देना उनकी विशेषता थी।

उनके मूल गाँव में बारात जाते समय लोग बरातियों में उनकी उपस्थिति की शर्त रखा करते थे। उस समय बाराती और शरतियो के बीच शास्रार्थ की परंपरा थी और प्रोफेसर स्वर्गीय मनमोहन मिश्र की उपस्थिति शास्रार्थ में विजय की गारण्टी होती थी। ज्ञान की पराकाष्ठा का दूसरा नाम थे मिश्रा काकू।

आर के नीरद की पुस्तक, शोध, पत्रकारिता, मेरी पत्रकारिता और न जाने कितने ही शब्द सन्यासियों को प्रोफेसर स्वर्गीय मनमोहन मिश्र ने दीक्षित किया। आज वे उसपार से भी अपने शिष्यों का मूल्यांकन कर रहे होंगे, लेकिन हम और हमारे शब्दों को एक ऐसा सूनापन लगता है, जिसे शब्दों से बयां कर पाना सम्भ नही। वाचिक परम्परा के मिश्रा सर पर कुछ भी लिख पाना हमेशा कम बहुत ही कम रहेगा। सहस्र नमन।

कोयला ढुलाई में मानकों और नियमों का उड़ रहा मख़ौल

पाकुड़। एक ही गोत्र के दो जिले पाकुड़ के रास्ते चल पड़े साहेबगंज के विभिन्न चार स्टोन लोडिंग रेलवे साइडिंग पर एक बड़ी अनिमितता प्रकाश में आया है । इन स्थानों से 623 रैक स्टोन बिना माइनिंग चलान के बंगलादेश और बिहार भेजे जाने का चर्चा जोरों पर है। रेलवे के वरियतम जोनल एवं मंडल के अधिकारियों के पत्राचार से ये मामला खुलने और सामने आने की बात कही जा रही है।

इस बाबत जानकारी के अनुसार साहेबगंज डीएमओ ने तकरीबन 25 व्यवसायियों को पत्राचार कर 1 सौ 23 करोड़ का जुर्माना भी किया है, हाँलाकि डीएमओ बिभूति कुमार को कई बार फोन करने के बाद भी उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। ऐसे में क्या ये मामला ढाक के तीन पात ही सावित होगा? ये बड़ा सवाल है, क्योंकि पाकुड़ में ऐसा हो चुका है। सवालों और ख़बर्नबिशों के फोन से नज़र बचाना क्या किसी बड़ी मिलीभगत की ओर इशारा नहीं करता! कम से कम इतिहास तो इसी ओर इशारा करता है।

पुराना है गडबड़ी का इतिहास

रेलवे के भीजिलेंस ने पाकुड़ लोटामारा कोयला लोड रेलवे साइडिंग पर विगत दिनों कोयला लोड मालगाड़ी से ओभर लोड कोयले उतारने का निर्देश दिया। बाद में उसी मालगाड़ी को सूचना के आधार पर साहेबगंज जिले के एक स्टेशन पर रोक भीजिलेंस ने ओभरलोड कोयला खाली करवाया।

हाँलाकि फ़िलवक्त 40 लाख फाइन किया गया है, लेकिन रेलवे भीजिलेंस को और भी रेलवे सेक्शनों में करवाई करनी होगी, क्योंकि पहले निर्देश का पालन न करना एक संगीन अपराध है तथा ओभरलोड से पाकुड़ से पंजाब तक कि रेलवे ट्रेक को संभावित हानि को नकारा नहीं जा सकता। 

ऐसे झारखंड और खासकर पाकुड़ में इसे नकारा नहीं जा सकता कि इस तरह की अनियमितता यहाँ हमेशा होता आया है। उदाहरण के तौर पर राज्य के वन विभाग द्वारा की गई एक करवाई पर नज़र डालिये। पाकुड़ में वन विभाग ने बिना ट्रांजिट परमिट के कोयला की ढुलाई कर रहे मालगाड़ी की 59 बोगियों को जब्त करने का इतिहास रहा है। यह कारवाई जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी सौरभ चंद्रा के निर्देश के आलोक में तत्कालीन वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने की थीं।

कोयले से लदे मालगाड़ी की बोगियों को गार्ड को हैंड ओवर कर दी गई थी। बिना परमिट के मालगाड़ी से कोयला ढुलाई मामले में पश्चिम बंगाल पावर डेवलोपमेन्ट कॉपोर्रेशन के साइड इंचार्ज राम विलास हांसदा को हिरासत में लिया गया था।वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने बताया था कि बिना ट्रांजिट परमिट के कोयला ढुलाई रेल मार्ग से नही किये जाने को लेकर जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी द्वारा पाकुड स्टेशन मास्टर के जरिये हावड़ा डिवीजन के डिविजनल मैनेजर को पत्र लिखा गया था। बावजूद कोयले की ढुलाई कर सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाया जा रहा था।

राजस्व को पहुँच रहा नुकसान

सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का काम सरकारी अमले और जुमले कर रहे है। जिस विभाग और विभाग के अधिकारियो को शत प्रतिशत राजस्व वसूली में अपनी भूमिका निभानी है वे ही पाकुड़ में कोयला का अवैध परिवहन करवाने में संरक्षक की भूमिका निभा रहे है।

पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड स्थित पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक पश्चिम बंगाल पावर डेवलॉपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को आवंटित किया गया है। आवंटित इस कोयला खदान में कोयला का उत्खनन कर उसका परिवहन बीजीआर माइनिंग एंड इंफ्रा लिमिटेड कर रही है। सरकार ने कोयले को वनोपज मानते हुए इसके परिवहन के लिए ट्रांजिट परमीट की अनिवार्यता सुनिश्चित की है।

सरकार ने प्रति मीट्रिक टन 58 रुपए राजस्व भी कोयले के परिवहन के विरूद्ध निर्धारित किया है। कोयले का परिवहन करने के पहले ट्रांजिट परमीट लिया जाना है, लेकिन पाकुड़ अमड़ापाड़ा लिंक रोड पर पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक से लोटामारा रेलवे साइडिंग तक कोयले की ढुलाई करने वाली कंपनी सरकार के इस आदेश की धज्जी उड़ा रही है। सरकार के आदेश की अनदेखी को लेकर जिले में वन विभाग ने कोयला से लदे आधा दर्जन से ज्यादा वाहनो को जप्त करने की कार्रवाई भी की बावजुद बिना ट्रांजिट परमीट के आज भी कोयला का परिवहन बदस्तूर जारी है।

कोयले के इस अवैध परिवहन का एक आश्यर्चजनक पहलु यह भी है कि जिस विभाग को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 42 का अनुपालन कड़ाई से सुनिश्चित कराना है। उस विभाग के अधिकारी और कर्मी ही बगैर ट्रांजिट परमीट के कोयला से लदे वाहनो को सुरक्षा घेरे में ले जा रहे है।

वन विभाग ने झारखंड वनोपज नियमावली 2020 के आलोक में विधि संवत कार्रवाई करने को लेकर पुलिस अधीक्षक को भी पत्राचार किया था, बावजुद जिले की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकार ने बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला के परिवहन को न केवल संज्ञेय अपराध बल्कि गैर जमानतीय भी माना है।

ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि पाकुड़ जिले में किसके संरक्षण और इशारे पर बिना ट्रांजिट परमीट कोयले का परिवहन कर सरकार के राजस्व को क्षति पहुंचाने का काम हो रहा है। इधर पिछले वर्षों में पाकुड़ के विभिन्न थानों में हुए एफआईआर को खंगाले, तो ये साबित हो जाता है, कि कोयला तस्करी जिले में होती है। तस्करों द्वारा प्रस्तुत कागज़ातों को अगर गहराई से देखें और विवेचना करें तो यह भी साबित होता है, कि इसमें भी बड़े पैमाने पर ओल-झोल है।

अब सवाल उठता है, कि ये कोयला सरकार द्वारा दिए गए खनन पट्टों वाले खदानों से तो आते नहीं हैं, क्योंकि उन कम्पनी वालों की अपनी सुरक्षा के बाद पुलिस सुरक्षा भी उन्हें प्राप्त है। ऐसे में ये भी सावित हो जाता है, कि कोयला से भरे पड़े इस इलाके में अवैध खनन कर ये कोयला लाया जाता है। इसमें कई स्तर पर लोगों की मंडली है, जो संगठित तौर पर ईमानदारी से इस बेमानी के कार्य को अंजाम देते हैं। इस कार्य में सबसे पहली मंडली, जंगल में कहाँ खनन करना है, जहाँ कम लागत में आसानी से खनन कर कोयले को गाड़ी में लोड करना, आस पास की आबादी को भी खुश रखते हुए लोड गाड़ी को जंगली खनन स्थान तक ले जाने तथा मुख्य सड़क तक ले आने के लिए एक मंडली काम करती है।

स्वाभाविक रूप से ये पहली मंडली इलाके से पूरा परिचित होती है और बख़ूबी काम करने का तजुर्बा इनके पास होता है।जैसे “ओरमा” नामक जगह पर हो रहे अवैध कोयला खनन को देख कर इन परतों को खोला और समझा जा सकता है।मुख्य सड़क पर आते ही दूसरी मंडली अपना दायित्व सँभालने लगती है।

हँलांकि ये अवैध कोयला विभिन्न रूटों से पश्चिम बंगाल के विभिन्न स्थानों पर जाता है, इसलिए खाँकि, खादी और तलवार से तेज कलमकारों की स्नेहिल छाँव तले कोयला लदी गाड़ियाँ सरपट दौड़ती है। अमड़ापाड़ा, हिरणपुर, कोटालपोखर, गुमानी, महेशपुर, पाकुड़िया, पाकुड़ सहित पश्चिम बंगाल की विभिन्न मंडली एक अरसे से पाकुड़ के वनोपजों और मिनरल्स की तस्करी करते हैं। अचानक प्रशासन के सक्रिय होने पर इन दिनों रात के अंधेरे होने वाले अंधेर पर मानो कुठाराघात हो गया हो।

ये बताना भी जरूरी है, कि जंगलों के जिन इलाकों में ये अवैध खनन होता है, वो इलाके नक्सलियों का भी प्रभाव क्षेत्र रहा है। ऐसे में इन अवैध कारोबार का हिस्सा उनतक भी निश्चित ही पहुँचता हो इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए इस मामले की प्रोफेशनली उच्चस्तरीय जाँच होनी चाहिए। पाकुड़ के इतिहास से क्या साहेबगंज के वर्तमान और फिलवक्त पाकुड़ में चल रहे सबकुछ ठीक है, की छाँव में क्या सबकुछ ठीक भी है? यक्ष प्रश्न है।