Tuesday, December 24, 2024
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प्रो० मनमोहन मिश्र स्मृति संगोष्ठी-सह-पुस्तक विमोचन समारोह का होगा आयोजन

पाकुड़। हिंदी के प्रख्यात समालाेचक-साहित्यकार प्रो० मनमोहन मिश्र की चौथी पुण्यतिथि पर 23 अगस्त को पाकुड़ में आयोजित ‘प्रो मनमोहन मिश्र स्मृति संगोष्ठी-सह-पुस्तक विमोचन समारोह‘ में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि ज्ञानेंद्रपति और नीलोत्पल मृणाल (‘डार्क हॉर्स” एवं ‘औघड़‘ के उपन्यासकार), विनय सौरभ, देवेश आत्मजयी, अनिरुद्ध प्रसाद विमल, उपन्यासकार रंजन, डॉ पंकज साहा, वरिष्ठ पत्रकार-संपादक संजय मिश्र, वरिष्ठ कवि शंभुनाथ मिस्त्री, अरुण सिन्हा, बांग्ला के अप्रतिम साहित्यकार बनफूल के उपन्यास ‘डाना’ के अनुवादक जयदीप, संजीव नियागी सहित हिंदी, बांग्ला और अंगिका के झारखंड, बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश से 40 से ज्यादा लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार, समालोचक, पत्रकार और संस्कृतिकर्मी जुटेंगे।

अजित कुमार के अलावा आसनसोल से कवि नवीनचंद्र सिंह, दुमका से डॉ० आरके नीरद, हिमांशु मिश्रा, अमरेंद्र सुमन, विद्यापति झा, दुर्गेश चौधरी, अंजनी शरण, सपन पत्रलेख, नंदन झा, देवघर से डॉ० शंकर मोहन झा, उमाशंकर राव ‘उरेंदु’, अनिल कुमार झा, सर्वेश्वर दत्त द्वारी, हिमांशु कुमार झा, रविशंकर साह, नरेश कुंजिलवार, अशोक कुंजिलवार, नीरज चौधरी, ओमप्रकाश पांडेय एवं नरेश साह, गोड्डा से सुधीर मिश्रा, डाॅ० प्रदीप प्रभात, डॉ० ब्रह्मदेव कुमार, डॉ० मनोज कुमार राही, प्रवीण तिवारी आदि की उपस्थिति इस आयोजन को राष्ट्रीय फलक देगी।

दिन के तीन बजे से आरंभ होने वाला यह कार्यम्रम चार सत्रों में संपन्न होगा। पहले सत्र डॉ० आरके नीरद द्वारा संपादित ‘वाचिक परंपरा के धवल साहित्यकार-समालोचक प्रो मनमोहन मिश्र‘ सहित कई लेखकों और कवियों की पुस्तकों का लोकार्पण होगा।

दूसरे सत्र स्मृति आचमन में प्रो० मनमोहन मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर व्याख्यान होगा। तीसरे सत्र ‘सुरांजलि’ सुर संध्या को समर्पित होगा, जबकि चौथे सत्र काव्यांजलि में काव्य पाठ होगा।

कार्यक्रम के आयोजक-संयोजक रामरंजन कुमार सिंह, गंगाधर मिश्र, कृपासिन्धु बच्चन, कैलाश झा एवं आनंद मिश्र ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक, स्वादिशी विचारक, पाकुड़ की पत्रकारिता के युगस्तंभ स्वर्गीय दिगेश चंद्र त्रिवेदी को भी श्रद्धांजलि दी जायेगी।

पत्रकार किये गए सम्मानित, असहायों में बंटा राशन

कृपासिंधु बच्चन एवं गुंजन साहा की रिपोर्टिग

पाकुड़। बुधवार 15 अगस्त के ठीक एक दिन बाद को वार्ड नंबर 04 के समुदायिक भवन मे “सहयोग संघर्ष समिति” ने पाकुड़ के तीन वरिष्ठतम मूर्धन्य पत्रकार को सम्मानित करने का कार्यक्रम से पत्रकारों का दिल भर आया। हमेशा विभिन्न शिकायतों, समस्याओं और आरोपों को सुनने से इतर जब सम्मान के लिए हमारे बुजुर्ग पत्रकारों का नाम पुकारा गया, तो एक आश्चर्य के साथ मन आह्लादित हो गया।

अमरदीप गोस्वामी की अध्यक्षता में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मंच का संचालन समिति के संगरक्षक बबलू भगत ने किया। मुख्य अथिति के रूप में पाकुड़ सिविल सर्जन उपस्थित रहे।

अमरदीप गोस्वामी ने बताया की मंच को पाकुड़ के कुछ युवाओं द्वारा आर्थिक रूप से सहयोग कर बनाया गया है। इसका उद्देश्य पाकुड़ जिले के उन असमर्थ परिवारों की मदद करनी है जो पूर्ण रूप से लाचार अवस्था में जीवन यापन कर रहे है। इसी के तहत समिति के सदस्यो ने आज अलीगंज निवासी गुड़िया परवीण खदानपाड़ा निवासी 85 वर्षीय वृद्ध दंपत्ति धीरेन राजा माल एवं खदानपाड़ा निवासी टी० बि० से पीड़ित विधवा महिला सुमित्रा देवी जी को एक माह का समस्त राशन गया। इसी के तहत पाकुड़ में पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना सम्पूर्ण जीवन देने वाले तिन वरिष्ठ पत्रकारों जिनमे ओमकार भगत जी, काशीनाथ साहा जी, एवं लाल मोहन साहा जी है, उन्हे पाकुड़ के सिविल सर्जन M K टेबरीवाल, KKM कॉलेज के पूर्व के प्रोफेसर त्रिवेणी भगत जी, पाकुड़ के समाज सेवी प्रवीर भट्टाचार्य जी, पाकुड़ सिविल सर्जन, मीरा फाउंडेशन की मीरा प्रवीण सिंह, वार्ड नंबर 05 की पूर्व वार्ड सदस्य सीमा सोनी भगत, वार्ड नंबर 04 के पूर्व वार्ड सदस्य रुपाली सरकार ने शाल ओढ़ाकर एवं कलम, डायरी देकर सम्मानित किया।

सभी सम्मानित सदस्यों ने बारी बारी अपनी बातों को रखा। सिविल सर्जन ने उपस्थित लोगो को इस समिति के उद्देश्य को लेकर सराहा एवं सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में बताया और गरीबो के लिए हर सम्भव चिकित्सा से मदद का वादा किया। मंच का समापन समिति के संगरक्षक नविन सिंह ने किया। समिति के संगरक्षक नीरज तिवारी की इस कार्यक्रम में अहम भूमिका रही।

इस कार्यक्रम में आलोक साहा, इलू कुमार, नेपु सरदार, उदय सेन, लालू कुमार, छोटन कुमार, गोतम कुमार, खुसबू देवी, अमित तिवारी, अमित मिश्रा, बाबुधन मुर्मू इत्यादि उपस्थित रहे।

मीटिंग ख़बर तो बनी, लेकिन अमृत महोत्सव को जमीन पर उतारने का सही प्रयास ख़बर बनने से छूट गया

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स्वतंत्रता दिवस के अमृत महोत्सव काल में जिलाधिकारी के व्यत्तम समय में मुझे जो सबसे महत्वपूर्ण ख़बर हाथ लगा, वो जिला जनसंपर्क कार्यालय की हु ब हु प्रेस विज्ञप्ति थी।

अमृत महोत्सव काल मे कई दिनों पहले से तैयारियां के बाबत व्यस्त जिले के मुखिया जिलाधिकारी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने के लिए स्वयं बैठकें कर रहे थे। हर नियत कार्यक्रमों में उपस्थिति दर्ज कर रहे थे, स्वयं हर कार्यक्रम की मॉनिटरिंग भी कर रहे थे। कार्यक्रमों की जिम्मेदारी तय कर लेबर डीभाईडेशन कर एक सफल मैनेजर की भूमिका भी निभा रहे थे।

इसके बाद भी 15 अगस्त की तैयारीयों के बीच 14 अगस्त को जनवितरण की सम्पूर्ण जिले की टीम के साथ गरीबों की रसोई तक अनाज पहुँच सके, के लिये बैठक कर अनाज अंतिम व्यक्ति तक पहुँच सके का मंथन कर रहे थे।

गरीबों के हक़ का अनाज उनकी रसोई तक न पहुँचे तो कोई महोत्सव अमृतत्व के साथ कैसे मनाया जा सकता है ! कैसे अमृत महोत्सव कहने भर की कल्पना की जा सकती है। ये नजरिया उन्हें और इस व्यस्तता में की गई इस बैठक ने उनके कार्यशैली को औरों से अलग दिखाया।

15 अगस्त और उससे पहले हुए कार्यक्रम एक रूटिंग वर्क था, इसी जरूरी रूटिंग वर्क के बीच, जनवितरण पर जनोपयोगी मीटिंग का व्यस्तता के बीच नहीं छोड़ना ही मेरे लिए ख़बर है, लिखने का विषय है। हमें हर चीज को अलग नजरिए से देखने को पढ़ाया सिखाया गया है।

पता है, ये आलेख अन्यथा लिया जाएगा।

लेकिन सच्चाई यही है, कि यही असली ख़बर हमसे छूट गया था, हमने सिर्फ़ मीटिंग हुई का ख़बर बनाया था, जो अधूरा जान पड़ता था।
हाँ अगर ये चमचई है तो है, लेकिन सच्चाई भी …

उपायुक्त ने आपूर्ति विभाग के कार्यों की समीक्षा बैठक की

सोमवार को उपायुक्त श्री मृत्युंजय कुमार बरणवाल ने जिला आपूर्ति पदाधिकारी व जिले के सभी एमओ व एजीएम, डीएसडी एवं कंप्यूटर ऑपरेटर के साथ खाद्य आपूर्ति विभाग से संबंधित समीक्षा बैठक की। बैठक में विभिन्न एजेंडों पर विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए।

इस दौरान उपायुक्त ने एनएफएसए, ग्रीन कार्ड, आदिम जनजाति परिवार कल्याण योजना, सोना सोबरन धोती साड़ी योजना, किरासन, चीनी, नमक वितरण इत्यादि का प्रखंडवार समीक्षा करते हुए शत प्रतिशत योग्य लाभुकों को योजनाओं का लाभ प्रदान करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि डीलरों के द्वारा राशन वितरण के दौरान कम वजन, कही अधिक रेट लेने तथा आमजनों के साथ दूर्व्यवहार करने की सूचना मिलेगी तो ऐसे डीलरों के खिलाफ त्वरित करवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार के कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेना लाभार्थियों का हक है और लाभ प्रदान करना हम सबकी जिम्मेदारी है। आधार सिडिंग के सभी कार्यों को शत प्रतिशत पूर्ण किया जाए। उपायुक्त ने प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी को निर्देश दिया कि बिना स्लिप का कोई भी डीलर राशन वितरण ना करें ऐसा करते हुए कोई डीलर मिले उस पर सख्त कार्रवाई करना सुनिश्चित करें। पीटीजी परिवार को डाकिया योजना के तहत उपलब्ध कराए जा रहे खाद्यान्नों की समीक्षा की गई। समीक्षा के क्रम में सभी प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी को निर्देश दिया कि प्राथमिकता के तहत पीटीजी परिवारों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें। साथ ही साथ इसका ऑनलाइन करना भी सुनिश्चित करें। जिला आपूर्ति पदाधिकारी के द्वारा बताया गया कि पाकुड़ जिला अंतर्गत 9 मुख्यमंत्री दाल भात केंद्र संचालित हैं। उपायुक्त ने सभी प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी को निर्देश दिया कि दाल भात केन्द्र का औचक निरीक्षण करते हुए जांच की जाए की केंद्रों का संचालन एवं साफ-सफाई सही तरीके से किया जा रहा है या नहीं। यदि किसी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है तो ऐसे केंद्र पर करवाई करना सुनिश्चित करें। सभी प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी को निर्देश दिया कि यदि कोई मुख्यमंत्री दाल भात केंद्र के संचालक केंद्र चलाने में सक्षम नहीं है तो नये दाल भात केंद्र का विधिवत चयन कर प्रस्ताव देने का निर्देश दिया गया। सभी प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी को निर्देश दिया कि जिन जन वितरण प्रणाली विक्रेताओं का खाद्यान्न वितरण का प्रतिशत कम पाया गया है तो उनके विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई करते हुए निलंबन संबंधी प्रस्ताव भेजे।

स्वतंत्रता दिवस पर कार्यक्रम ने ग्रामीण स्तर तक फैलाई जागरूकता, मॉर्टेलो टावर कहती बलिदानियों की मौन कहानी

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पाकुड़ प्रशासन के दोनों सिविल और पुलिस के मुखिया उपायुक्त और एस पी ने स्वतंत्रता दिवस के पूर्व से ही स्वयं तमाम कार्यक्रमों की शुरुआत से ही नेतृत्व कर स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को एक जनजागरण का रूप दे दिया। समरसता के चिंतन वाले पाकुड़ में दोनों प्रशासनिक प्रधानों ने अपनी सीधी सक्रियता से आमजन के दिलों में जगह बनाई, तो जनता ग्रामीण स्तर तक महोत्सव के रंग में रँगा है। ऐसे में संथाल वीरों की मौन गवाही और कहानी कहता मॉर्टेलो टावर पर कुछ न कहना बेमानी और आश्चर्यजनक होगा।

तकरीबन 156 वर्ष पहले संथाल विद्रोह की कहानी कहता पाकुड़ के सिद्धो-कान्हो पार्क में स्थित मार्टेलो टावर पर चर्चा के बिना के बिना पाकुड़ ही नही बल्कि पूरे संथालपरगना और संथाल जनजाति की वीरता, त्याग तथा स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत के साथ अन्याय प्रतीत होता है। 

मुझे इस समय ये लिखते हुए भी संकोच सा लगता है, कि पार्क के आँगन में ये टावर है, या फ़िर संथाल वीरों की खून से सींची जमीन की गोद मे पार्क है! सन्तोष है, कि पार्क का वीर शहीद सिद्धो-कान्हो के नाम पर रखा गया, और इसमें लगे एक-एक पौधे एक-एक वीर संथाल शहीदों की कहानी कहता नज़र आता है।

अभी समय नहीं था, कि इस पर लिखा जाय, लेकिन मुझे ये कहने में संकोच नहीं होता कि इस टावर को देखते ही कितने सवालों के थपेड़े मस्तिष्क पर पड़ता है, और फ़िर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस तथा हूल दिवस पर वीर शहीदों की कहानियों से अखबारों के पेज इस क़दर भरा-पूरा होता है, कि ये सवाल उस भीड़ में कहीं खो सा जाता है।

लेकिन इससे पावन समय कुछ और इसपे लिखने के लिए नहीं हो सकता। जब भी इस टावर पर कुछ कहा गया, तो संथाल आंदोलन को विद्रोह कह दिया गया, ये विद्रोह मात्र नहीं था, ये देश को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उग्र होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ने को प्रेरित करने की कहानी कहता है। इस आंदोलन ने उग्र विरोध को पँख और सोच दिया, लेकिन इस टावर ने कई सवाल भी खड़े किये, जो आज भी खामोशी से खड़ा हमें पूछता है।

सोचिए ब्रटिश सेना हमारे संथाल वीरों से किस क़दर भयभीत थे, कि एक ही रात में गगनचुम्बी टावर नुमा किला बना डाला! इसके अंदर से गोलियां चलती ब्रिटिश पुलिस-सेना और अपने पारम्परिक हथियारों के साथ सीना ताने खड़ी संथाल वीरों की सेना! कहते हैं दस हज़ार संथाल आंदोलनकर्ता अंग्रेजों की गोली से मारे गये थे। सोचिए गोलियों से छलनी होते अपने साथी को देखने के बाद भी तीर-धनुष लेकर संथाल वीरों ने कैसे उनका सामना किया होगा?

इन सवालों के साथ और कुछ सवाल मुझे हमेशा कुदेरता है, कि

  • क्या ब्रिटिशों ने इस टावर को बनाने के लिए मजदूर भी ब्रिटेन से मंगवाया था?
  • क्या इस ऐतिहासिक टावर के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ होनी चाहिए?
  • क्या पुरातत्व विभाग को इसके स्वरूप को मूल रूप में कायम रखने की जिम्मेदारी नही देनी चाहिए ?
  • क्या इस टावर के मूल स्वरूप पर लालफीताशाही और ठेकेदारी के काले कारनामों ने दाग नही लगा दी?

कई सवाल हैं, जो मुझे कुरेदता है। सबसे बड़ा सवाल कि किन परिस्थितियों में इस टावर के पीछे बिलकुल सटे हुए पत्थर के खदान दशकों पहले खुद गए? सोचिए कि गहरे खुदे पत्थर खदान में कितनी ब्लाष्टिंग हुईं होंगी, लेकिन वीर संथाल शहीदों की कहानी कहता ये टावर खड़ा रहा।

उस समय डॉ आर के नीरद, स्वर्गीय कुमार रवि दिगेश और स्वयं मेरी कलम नही सिसकती और अपनी आँसुओं से अखबारों के सीनों को नहीं चीरती तो शायद किसी दिन पत्थरों के बीच की ब्लाष्टिंग में ये कहानियां सुनता टावर भी पिस गया होता।

खैर अभी कुछ दिन पहले वीर संथाल शहीदों के कहानी पर पर्दा डालने की फिर एक प्रयास हुआ था, लेकिन आदिवासी छात्रों ने आंदोलन कर उसे सफ़ल नहीं होने दिया। अब कम से कम टावर के पीछे के खदानों में भरे पानी और उसके संरक्षण तथा सौंदर्यीकरण के साथ इसकी भब्यता बड़ाई जा सकती है। संथाल शहीदों के नाम और गाँव का सर्वे और एक शहीदों की स्मृति में शहीद स्मारक दिल्ली की तर्ज़ पर बनाया जाय, तो…… मुझे लगता है, ये सच्ची श्रद्धांजलि संथाल वीरों को होगी।

कुछ सवाल उठा कर मैं उन वीरों को 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस, पावन मास सावन, एवं मातृपक्ष दुर्गापूजा से पहले आसन्न पितृपक्ष में उन्हें अपनी शब्दांजलि देने का प्रयास कर रहा हूँ। आप भी इन सवालों पर विचार जरूर करें, निवेदन है।

शिवपूजन ग्रहों कोभी करते है अनुकूल

नौ ग्रहों की शां‍ति के लिए सावन में करें खास उपाय… प्रसन्न होंगे भगवान शिव

#हाई बीपी, हार्ड से जुड़ी समस्याएं या फिर गांव-समाज में कम हो रही है मान सम्मान, सावन में करें खास उपाय, आएंगे अच्छे दिन

शरीर में है खून की कमी या पेट रोग से हैं परेशान, सावन में करें भगवान शिव को प्रसन्न, मिलेगा लाभ ।

शनि-राहु-केतु से हैं परेशान, या फिर मंगल कर रहा है अमंगल, सावन में भगवान भोलेनाथ को बनाए आराध्य, बनेंगे हर बिगड़े काम

सावन का महीना 9 ग्रहों की शांति से जुड़े उपाय करने के लिए भी बहुत असरदार माना जाता है। कुंडली में जिस ग्रह की स्थिति अशुभ हो, उससे संबंधित रुद्राभिषेक के उपाय करने से कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। ग्रहों के दोस्त को शांति करने के लिए सावन के महीने में क्या करें। आखिर भगवान भोलेनाथ को कैसे प्रसन्न करें कि ग्रह दोष शांत हो। आइए “आज का खास” में जानते हैं ग्रह शांति के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के खास उपाय…..

सूर्य ग्रह के उपाय

अगर आपकी कुंडली में सूर्य ग्रह अशुभ स्थिति में हैं तो आपको समाज में बार-बार अपमानित होना पड़ सकता है। इसके साथ आपको हाई बीपी, हार्ट से जुड़ी समस्‍याएं और आंखों में कमजोरी हो सकती है। उपाय के रूप में सावन में रोजाना शिवलिंग पर शुद्ध जल चढ़ाएं और श्वेत चंदन का तिलक लगाएं।

चंद्र ग्रह के उपाय

जिन लोगों की जन्‍म कुंडली में चंद्रमा नीच का होता है उन्‍हें सर्दी जुकाम और अस्‍थमा की समस्‍या रहती है। ऐसे लोगों को आंखों से जुड़ी परेशानियां होती हैं। उपाय के रूप में रोजाना कच्‍चे दूध में सफेद तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें।

मंगल ग्रह के उपाय

जन्‍मकुंडली में मंगल की स्थिति अशुभ होने पर आपके शरीर में खनू की कमी से जुड़ी समस्‍याएं होती है और आप पेट की बीमारियों से परेशान होते है। उपाय के रूप में सावल में शिवलिंग का रोजाना शहद से अभिषेक करें और लाल चंदन लगाएं।

बुध ग्रह के उपाय

आपकी जन्‍मकुंडली में बुध नीच का होने पर आपको पेट और फेफड़ों से बीमारियां होने की आशंका रहती है। उपाय के रूप में सावन के महीने में रोजाना कच्‍चे दूध में कनेर के पीले फूल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें।

गुरु ग्रह के उपाय

जिन लोगों की जन्‍मकुंडली में गुरु अशुभ स्थिति में होता है उन्‍हें अक्‍सर धन कमी का सामना करना पड़ता है। उन्‍हें त्‍वचा, दांत और कफ से जुड़ी समस्‍याएं परेशान करती हैं। ऐसे लोगों को सावन के महीने में रोजाना पानी में पीला चंदन मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।

शुक्र ग्रह के उपाय

जन्मकुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर होने पर आपको शारीरिक दुर्बलता और यौन संबंध समस्‍याओं का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र के कमजोर होने पर वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां आती हैं। उपाय के रूप में शिवलिंग का रोजाना पंचामृत से अभिषेक करें।

शनि ग्रह के उपाय

जिन लोगों की कुंडली में शनि नीच का होता है और उन्‍हें भी आर्थिक कमी और कई बीमारियां झेलनी पड़ सकती हैं। ऐसे लोगों को घुटनों में दर्द और खांसी के साथ ही अस्‍थमा की परेशानी हो सकती है। उपाय के रूप में रोजाना सुगंधित तेल या सरसों तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।

राहु ग्रह के उपाय

कुंडली में राहु ग्रह के कमजोर होने पर आप ड्रिप्रेशन के शिकार होते हैं और आपको अक्‍सर बुखार आता रहता है। शारीरिक रूप से भी दुर्बलता बनी रहती है। उपाय के रूप में आपको सावन के महीने में रोजाना शिवलिंग पर भांग चढ़ानी चाहिए।

केतु ग्रह के उपाय

केतु ग्रह की स्थिति यदि आपकी कुंडली में कमजोर होगी तो आपको शुगर हो सकती है और या फिर यौन समस्‍याओं से जीवन घिरा रहेगा। उपाय के रूप में सावन के महीने में कुशोदक से शिवलिंग का अभिषेक करें।
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आलेख…
पं. चेतन पाण्डेय
जन्मकुण्डली, वास्तु व कर्मकांड परामर्श
संपर्क : 9905507766

जिला अन्तर्गत लंबित शिकायतों का जल्द से जल्द करें समाधान: उपायुक्त

पाकुड़। आम जनमानस के समस्याओं के समाधान और त्वरित निष्पादन को लेकर उपायुक्त मृत्युंजय कुमार बरणवाल के द्वारा समाहरणालय सभागार में जनता दरबार का आयोजन किया गया।

इस दौरान जिले के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने जनता दरबार में आकर अपनी समस्याओं को उपायुक्त के समक्ष रखा। इस दौरान उपायुक्त द्वारा वहां उपस्थित सभी लोगों से एक-एक कर उनकी समस्याएँ सुनी गयी एवं आश्वस्त किया गया कि संज्ञान में आए हुए सभी शिकायतों की जाँच कराते हुए जल्द से जल्द सभी का समाधान किया जाएगा।

इसके अलावे जनता दरबार के दौरान स्वास्थ्य विभाग से संबंधित, अनुकम्पा से संबंधित मामले, समाज कल्याण विभाग से एवं विभिन्न आवेदन शिकायत के रूप में आये, जो कि जिले के विभिन्न विभागों से संबंधित थे। ऐसे में जनता दरबार में सभी शिकायतकर्ता की समस्याएँ को सुनने के पश्चात उपायुक्त ने संबंधित विभाग के अधिकारियों को निदेशित किया गया कि सभी आवेदनों का भौतिक जांच करते हुए, उसका समाधान जल्द से जल्द करें।

इसके अलावे उन्होंने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया कि इन शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए एक सप्ताह के अंदर अपना प्रतिपुष्टि उपायुक्त कार्यालय को समर्पित करे, ताकि शिकायतों के निष्पादन में आसानी हो।

अच्छी संगति एक सत्संग बनाता है, जाने अनजाने में चढ़ा देता है अपना रंग।

प्रतीकात्मक चित्र, फोटो-कैनवा
प्रतीकात्मक चित्र, फोटो-कैनवा

सन्तों की संगति मनुष्य के सिर्फ़ स्वभाव को सुंदर नहीं बनता, बल्कि दिल-दिमाग के साथ व्यक्ति के चिंतन और दूरदृष्टि को भी परिष्कृत तथा स्वस्थ करता है।

ये संगति सन्तों की कई प्रकार की होती है-

पहली संगति तो आप या मैं स्वयं संत के भौतिक रूप के साथ रह कर प्राप्त कर सकते हैं, दूसरी कि हम उनका चिंतन, मनन तथा उनके द्वारा कहे या लिखे गए को पढ़ें सुने आदि।

आज की डिजिटल दुनियाँ में दूसरा पहलू ज़्यादा सुलभ है,ऐसे भी जो संत या महापुरुष भौतिक नश्वर शरीर का त्याग कर चुके हैं, डिजिटल दुनियाँ हमें उनके चिंतनों से भी परिचित करवाता हैं।

बाबा कीनाराम शिष्य परम्परा के अघोरेश्वर संत भगवान स्वरूप को प्राप्त कर अवधूत राम बाबा ने किस तरह अध्यात्म और आध्यात्मिक सिद्धान्तों के परे आध्यात्मिक जीवन और देश तथा पीड़ित समाज की सेवा को ईश्वरीय कार्य से जोड़कर सुलभ बनाया है,इसे मैं फ़िर कभी लिखूँगा , लेकिन समय समय पर उनके चिंतनों का प्रसाद मुझे डिजिटली पठन पाठन में मिलता रहता है। उन्हीं में से एक कथा मैं यहाँ अपने मित्रों से साझा करना चाहता हूँ।

” एक नाविक एक साधु को प्रतिदिन नदी के उसपार ले जाता और ले आता था। 

साधु इस दौरान नाविक को धर्म की कथाएँ सुनता था, नाविक भी आनन्द के साथ चुपचाप साधुवचन का रसास्वादन करता रहता । बदले में नाविक साधु से लाख प्रयासों के बाद भी कोई पारिश्रमिक नही लेता।

मानव स्वभावबस साधु नाविक के साथ उसकी सरलता के कारण बंधता चला गया।

संत कथा श्रवण की पात्रता एवं नाविक के व्यवहार से प्रशन्न साधु ने एक दिन नाविक से अपने आश्रम चलने का आग्रह किया , नाविक संत के आश्रम में गया।

नाविक को साधु ने अपनी कहानी सुनाते हुए बताया कि पहले वह व्यापार करता था , एक सुंदर सांसारिक जीवन व्यतीत करता था।

एक आपदा में उसका पूरा परिवार चल बसा , और वह गृह त्याग कर साधु बन गया।

इसके बाद साधु ने नाविक से कहा कि उसके पास आश्रम में उसके व्यापार से कमाए बहुत धन है, जो वह नाविक को देना चाहता है।

साधु ने कहा कि ये धन अब मेरे किसी काम के नही , तुम परिवार वाले और सांसारिक हो , इस धन से तुम्हारी सभी आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी।

लेकिन नाविक ने वो धन लेने से मना कर दिया।

उसने कहा कि इस धन से मैं और मेरा परिवार न सिर्फ़ अलसी – कामचोर हो जाऊँगा बल्कि मेरे बच्चों का भविष्य भी ऐसे में बर्बाद हो जाएगा।

ऐसे में साधु कौन है ? 

वो जो परिवार के खोने के बाद विरक्ति में गृह त्याग तो सकता है, लेकिन धन आश्रम तक ढो लाया है , या फ़िर वो नाविक जो मुफ़्त में मिल रहे स्वप्नातीत अगाध धन को नकार कर अपने मेहनत पर जीवन यापन चाहता है ?

यहाँ साधु की संगति ने नाविक को साधु से भी बड़ा साधु बना दिया।

खैर यहाँ सिर्फ़ संगति ही अपने गुणों को सावित करता है।

ये मैंनें भी अपने जीवन में अहसास किया है, कि संगति स्वभाव, व्यवहार , चिंतन मनन एवं जीवन पर अपना प्रभाव छोड़ ही जाता है।

इसलिए कम से कम डिजिटली सन्तों के विचारों और जीवन का अध्ययन कर स्वयं के हर पहलू को परिष्कृत जरूर करना चाहिए।

विश्व आदिवासी दिवस को विभिन्न कार्यक्रमों से मनाया जिला प्रशासन और संस्थानों ने, रही धूमधाम।

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पाकुड़। विश्व आदिवासी दिवस-2023” के अवसर जिले भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। डायट भवन, पाकुड़ में भव्य जिला स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपायुक्त मृत्युंजय कुमार बरणवाल, पुलिस अधीक्षक एच.पी जनार्दनन, जिला परिषद अध्यक्ष जूली खिष्टमणी हेम्ब्रम, उप विकास आयुक्त शाहिद अख्तर एवं सहायक समाहर्ता कृष्णकांत कनवाड़िया, अनुमंडल पदाधिकारी हरिवंश पंडित रहे। इस कार्यक्रम की शुरुआत सभी अतिथियों के द्वारा विधिवत रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।

इस अवसर पर जिला परिषद अध्यक्ष जूली खिष्टमणी हेम्ब्रम ने कहा कि आदि का अर्थ है प्राचीन। आदिवासी प्राचीन / मूल निवासी है। हमारे जंगलों, पहाड़ों, प्राकृतिक सम्पदाओं की रक्षा आदिवासी समुदाय के लोग प्राचीन काल से ही करते आ रहे है। आजादी के आंदोलन में आदिवासियों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। चाहे धरती आबा, बिरसा मुण्डा की शहादत हो या वीर सिदो-कान्हू, फूलो-झानो या तिलका मांझी। आदिवासी दिवस के अवसर पर संकल्प लेना होगा कि हम आने वाले पीढ़ी को ज्यादा से ज्यादा शिक्षित बनाये ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रह सकें।

उप विकास आयुक्त शाहिद अख्तर ने कहा कि आज पूरे विश्व में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है। आदिवासी समाज का हमारी धरोहर को संरक्षित रखे में बड़ा योगदान रहा है। आदिवासी संस्कृति को संजोए रखने, स्वाभिमान को जागृत करने और जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए हमेशा एकत्रित होकर कार्य किया है।

इस दौरान उपायुक्त मृत्युंजय कुमार बरणवाल ने विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज हम आदिवासी भाई- बहनों के लिए बड़ा ही गर्व का दिन है। आदिवासी संस्कृति को प्रदर्शित करने का दिन है आदिवासी समाज प्रकृति से जुड़ी है जिसको बचाकर रखना हमारा दायित्व है आदिवासी समाज के लोगों के विकास के लिए सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाएं हैं जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक जिला प्रशासन पहुंचने का कार्य कर रही है।आदिवासी समाज के बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अत्यधिक आवश्यक है। तभी हम अपने समाज को आगे ले जा पाएंगे और एक अच्छे नागरिक बन पाएंगे। सरकार आपके अधिकारों के प्रति दृढ़ संकल्पित है तथा कई लाभकारी योजनाऐं आदिवासियों के हितों के संरक्षण हेतु चलाई जा रही है। सरकार के साथ-साथ युवाओं को भी जिम्मेवारी लेनी चाहिए और इन लाभकारी योजनाओं के बारे में सुदूर गाँव के लोगों को अवगत कराना चाहिए। माननीय मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार आदिवासियों के प्रति संवेदनशील होकर कार्य कर रही है। आने वाले दिनों में हमें इसका सुखद प्रभाव देखने को मिलेगा।

इस दौरान संथाली सांस्कृति कार्यक्रम, ट्राइबल फैशन, पहाड़िया सांस्कृतिक नृत्य, नुक्कड़ नाटक पर विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं द्वारा अपने समाज के बारे में परिचय जैसे कार्यक्रम आयोजित की गए। ट्राइबल फैशन शो के माध्यम से आदिवासी समाज के रहन सहन,परंपरा एवं संस्कृति का विस्तृत चित्रण किया गया।

वही स्थानीय पाकुड़ पॉलिटेक्निक में भी विश्व आदिवासी दिवस बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यह कार्यक्रम कॉलेज परिसर में आयोजित किया गया, जहां संस्थान के निदेशक अभिजीत कुमार, प्राचार्य डॉ. ऋषिकेश गोस्वामी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी निखिल चंद्र और परीक्षा नियंत्रक अमित रंजन ने छात्रों, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की उपस्थिति में दीप प्रज्वलित किया और कार्यक्रम का उद्घाटन किया, जिसमें आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाया गया।

इस उत्सव में आकर्षक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला शामिल थी जो संस्थान के विभिन्न विभागों द्वारा 9 अगस्त को सुबह 9:00 बजे से अपराह्न 1:00 बजे तक आयोजित की गई थी। उत्सव में आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के महत्व पर प्रकाश डाला गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना था बल्कि छात्रों के बीच एकता की भावना को भी बढ़ावा देना था।

पाकुड़ पॉलिटेक्निक कॉलेज के प्राचार्य डॉ ऋषिकेश गोस्वामी ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर अपने व्यावहारिक और प्रेरक शब्दों से प्रतिभागियों को सम्मानित किया। उनके भाषण ने इस दिन के महत्व के बारे में हमारी समझ को समृद्ध किया और आदिवासी समुदायों द्वारा हमारे समाज में निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उनके व्यापक ज्ञान और भावुक प्रस्तुति ने हमें न केवल हमारे आदिवासी भाइयों की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध विरासत के बारे में शिक्षित किया है, बल्कि उनके संरक्षण और जश्न मनाने के महत्व पर भी प्रकाश डाला है। उनके शब्दों ने हमें समावेशिता के महत्व और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता की याद दिलाई है कि आदिवासी समुदायों की आवाज़ और योगदान को स्वीकार किया जाए और उनका सम्मान किया जाए।

वही झामुमों कार्यकर्ताओं ने पाकुड़ जिले के पुराने बस स्टैंड के समीप अवस्थित वीर कुंवर सिंह भवन में जिलाध्यक्ष श्याम यादव के नेतृत्व में विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया।

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ वीर कुंवर सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया। सर्वप्रथम पार्टी के जिलाध्यक्ष श्याम यादव ने वीर कुंवर सिंह के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया तत्पश्चात पार्टी के जिला सचिव सुलेमान बास्की, जिला परिषद अध्यक्षा जुली ख्रिस्टमुनी हेम्ब्रम, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष जोसेफिना हेम्ब्रम ने माल्यार्पण कर आदिवासी परंपरा अनुसार पूजा अर्चना किया।

एक तीर किस विज्ञान से बनते थे सैकड़ों तीर, मंत्र भी क्या है कोई विज्ञान ?

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रामानंद सागर जी की रामायण कुछ वर्ष पहले कोरोना काल में भी टी भी पर प्रसारित किया गया , प्रत्यक्ष उद्देश्य था , घर मे महामारी के कारण कैद जनता को घर में ही बाँधे रखना। अनेक वर्षों पहले जब हम किशोरावस्था में थे तो ऐसी ही वीरानी तथा ख़ामोशी शहरोँ के रास्तों पर नज़र आती थी। उसके भी कारण रामायण और महाभारत का दूरदर्शन पर प्रशारण भारत में उस समय की ख़ामोशी को ही ध्यान में रखकर ये महामारी के समय ऐसे प्रसारण का निर्णय लिया गया होगा। लेकिन रामायण ही क्यूँ , क्या कोइ और सीरियल या कार्यक्रम लोगों को बाँधे रखने के लिए नहीं था ! इस सवाल के कई उप सवाल भी मेरे मन में उठे।

बचपन की कुछ बातें इस पचपन में समझ में आतीं दिखतीं हैं । विचार जो शायद समझ बन मस्तिष्क में आईं तो इसे अपने पाठकों और मित्रों से साझा करने की इच्छा हुई। मेरे पास माध्यम तो बस यही है, इसलिए यहीं साझा कर रहा हूँ। इसमें मेरे एक मित्र उमानाथ पांडे का भी सहयोग रहा है।

बचपन में जब रामायण देखा करता था तो एक मंत्र मात्र बुदबुदा कर तीर चलते ही सैकड़ों तीर दिखते और बन जाते दिखता। उसके आगे आग जलता और विस्फोट होते दिखता , बड़ी हँसी आती थी । खुद से कहता क्या बकवास है यार क्या ऐसा सम्भव है। पत्रकारिता की तार्किक और उससे कुंठित मानसिकता किसी कीमत पर इसे अनेक तीरों की बात मानने को तैयार नहीं होता।

जब इसरो की एक साथ दर्जनों उपग्रहों को अंतरिक्ष के अलग अलग कक्षाओं में उपस्थापित करते टी भी पर देखा सुना तो , लगा विज्ञान ऐसा कर सकता है। अभी अभी अपने पत्रकार मित्र क़ासिम के एक रिपोर्ट पर कई लोगों पर एक साथ एफआईआर की तीर चलते देखा तो लगा ऐसा अच्छी पत्रकारिता की प्रकाशित रिपोर्ट भी कर सकता है। फिर बहुत ही डेसिंग डिसीज़न लेनेवाले मानसिकता के कई अधिकारियों को जीवन में देखा, और उनके कहने , बयान देने मात्र से माफियाओं को हड़कते देखा तो लगा एक तीर अनेक हो सकते हैं।

इस अपनी बात बताने की प्रक्रिया में अगर राजनैतिक निर्णयों पर अपना अनुभव न कहें तो बहुत बेइंसाफी होगी। देश के प्रधानमंत्री ने राम मंदिर का नींव रखने में हाज़री बजा कर सेकुलरिज्म का अनुकरण किया या नहीं, ये तो ऊपरवाला और विद्वान राजनैतिक विश्लेषक जाने , लेकिन इस तीर ने ऐसा निशाना साधा कि मंदिर विरोधी मंदिर-मंदिर दौड़ने लगे, दुश्मन दोस्त बनने लगे , और तो और देश की सीमा के पार भी शिलान्यास की तीर ने कई अंतरराष्ट्रीय हलचलों और बयान को जन्म दिया। पाकिस्तान में भी धार्मिक कट्टरता वाली आवाजें सुनाई देने लगी। इसका व्यापक प्रभाव पड़ा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान और बदनाम हुआ, भारत अंतराष्ट्रीय स्तर पर और ज्यादा बौद्धिक तथा कूटनैतिक मजबूती के साथ उभरा। ओबेसी जैसे विद्वान नेता अबतक उछल कूद कर रहा है। मोदी ने एक तीर से कई निशाने साधा। केंद्र सरकार स्वयं और अपने लोगों से ऐसे ऐसे मामले कोर्ट में ऐसी सटीक समय पर ले गए कि एक ही दिन पिछले दिनों ऐसे दो मामलों में फैसले आये कि एक की खुशी मनाने में दूसरे पर विरोध जताना तक विपक्ष भूल गए , जबकि न्यायप्रणाली का भी सरकार के विरोध में विपक्ष विरोध करने से नहीं चूके😥

लेकिन इतना तय है , कि बचपन के अविश्वास को पचपन तक के सफ़र में कई मामलों पर मेरी अल्पबुद्धि के विश्लेषण ने मुझे इस निर्णय पर पहुँचाया कि ऐसे ही एक तीर से कई निशाने की बात नहीं कही जाती , हमारे पूर्वज योद्धा के साथ साथ मंत्र वैज्ञानिक भी थे, और वो मन्त्रों के काउंटडाउन से एक तीर से सैकड़ों तीरों का प्रक्षेपण कर सकते थे। वर्तमान केंद्र सरकार के कई निर्णय और फैसले भी इसका प्रमाण देता है।

शब्द ब्रम्ह है, जो निर्माण करता है, जीवंत साक्ष्य , बिना कोलाहल, शोर के बनता है एक आवाज़, आंदोलन

किसी भी सकारात्मक सफर की एक मजबूत बुनियाद होती है, जहाँ से प्रेरणा की रक्तसिंचन होती है, वही से लेखन या किसी निर्माण के कल्पनात्मक अदृश्य शरीर की धमनियों में सृजन का रक्त बहकर जीवन का संचार करता है। इसी से परिचय सफ़र शुरुआत की एक भूमिका होती है, और ये भी भूमिका एक आधार या यूँ कहें कि जमीन पर टिकी होती है।
मेरी कलम की चलने की शुरुआत की जमीन मेरे पिता स्वर्गीय प्रोफेसर श्रीकांत तिवारी जी रहे।

उन्होंने कभी ये नही कल्पना की थी, कि उनके पुत्र की कलम पत्रकारिता के रास्ते चलेगी। हिन्दी के प्रोफेसर, संस्कृत के गोल्डमेडलिष्ट, अंग्रेजी व्याकरण के ज्ञाता और गणित के अच्छे जानकार मेरे पिता ने कभी ये नहीं सोचा कि मैं पत्रकारिता की राह चलूँगा।

एक पिता और तीन-तीन लिटलेचर के ज्ञाता मेरे पिता की गणित इस मामले में सटीक नही निकल सकी थी कि मैं इस ओर चल पड़ूँगा। उन्होनें मुझे कलम के सफ़र में बस एक अच्छी लेखनी और शायद किसी सरकारी नौकरी में भेज पाने की मंशा से ही उतारा था। 

खैर उनकी अपेक्षा पर मैं सही नहीं उतर पाया, और कंक्रीट के उस रास्ते चल पड़ा जो आज चुभती हुई गिट्टियों की पथरीली राह बन गई है। कैसे और क्यूँ इसपर अगले आलेख में। अभी बस इतना कि ले कलम का सफ़र शुरू हुआ कैसे और कब?

बात 1980 के दशक की है। उस समय मैं अपनी मेट्रिक यानी 10 वीं की परीक्षा से लगभग चार साल दूर था। हमारे समय मे लेख लिखने की परंपरा थी। परीक्षाओं में लेख आलेख और संक्षेपण जैसे प्रश्न आते थे। मैं नटखट और पढ़ाई के प्रति उदासीन किशोरावस्था को जी रहा था। फलस्वरूप पिता की छड़ियों का अक्सर कोपभाजन बनता था। ऐसी पिता-पुत्र की विरोधावस्था वातावरण के बीच, पिता ने मुझे स्वयं अपने ऊपर एक लेख मुझे अपनी दृष्टिकोण से लिखने को कहा। शर्त ये था, दृष्टिकोण मेरा स्वयं का हो, एक बड़े पृष्ठ में उसी दिन हिन्दी में वो लिख उनके सामने प्रस्तुत करूँ। मैं एक ऐसे पिता पर लेख लिखने जा रहा था, जो करीब रोज मेरी मरम्मत कर अपने कोप सिंचन से मुझे गम्भीर अध्ययन के रास्ते पर लाना चाहते थे। मेरी चंचल मानसिकता, बहिर्गमन बुद्धि, बोद्धिक अकर्मण्यता तथा पढ़ाई के प्रति अरुचि मुझे एक असमंजस में डाले हुए था, कि मैं अपनी दृष्टिकोण से अगर उनपर आलेख लिखूँ तो कैसे।

मुझे याद है, मैं उसदिन काफ़ी विचलित था, उनपर लिखते ही शब्दों की धारा उनकी मेरी होनेवाली आएदिन की मरम्मत की जाल में फँस बिखर जाती। मैंनें स्वयं को लिखने से पहले सम्भाला। स्वयं को हासिये पड़ खड़ा रखा, फिर एक साक्षी बन अपने पिता के सिर्फ़ मेरे नहीं बल्कि औरों के गुण-अवगुणों का आंकलन करते हुए, उनके व्यवहार को टटोला। पिता के मेरे और अन्य सुलझे-अनसुलझे लोगों के प्रति व्यवहार का मूल्यांकन कर मैंनें अपने पिता पर आलेख लिखा। हँलांकि मेरे पिता क्या थे, कैसे थे, इसका मूल्यांकन की औकात मेरी नहीं। आज भी नहीं है, उस समय तो मैं सोच भी नहीं सकता था।

खैर जब मैं हासिये पर खड़ा हो, एक साक्षी भाव से पिता पर आलेख ले उनके सामने खड़ा था, तो मैं हर पंक्ति पर फिसली उनकी नजरों के साथ उनके चेहरे पर उकरती लकीरों की भाव को भी पढ़ने का असफ़ल प्रयास कर रहा था। पूरे पन्ने को वो पढ़ गए, और कई बार पढ़ते रहे, यहाँ भी मन में एक अपराध बोध के साथ मैं ख़ामोश साक्षी बना रहा। अचानक वे उठे और मुझे पूछ बैठे, मैं तुम्हें क्रूर नहीं लगता? मैंनें सिर्फ़ नही कहा, और कहा मैंनें तराशे गए आपके छात्रों को देख आपको हाथ में छेनी हथौड़ा लिए सिर्फ़ एक कारीगर समझा। मैं पन्नों में तो पीड़ित भर स्वयं को समझा था, लेकिन जब हासिये पर खड़ा हो देखा, तो आप कारीगर दिखे, और मैं बिन तराशा गया बेडौल पत्थर सा दिखा।

यहीं से कलम ने पिता के आशीर्वाद से कलम के सफ़र के रास्ते डाल दिया मुझे। उन्होनें कहा इसी तरह हासिये पर खड़े होकर साक्षी भाव से समाज और पीड़ित, शोषित की आवाज़ बनना, स्वयं पीड़ित मत दिखना न ही दिखाना। पीड़ा उनकी कहना जिनके पास अभिव्यक्ति के साधन, शब्द और भाषा नहीं। यही साहित्य है, जो सबके हित की बात करता है। लिखना और लिख कर ही कहना, ये वातावरण में एक शोर बन घुलता और विलीन नहीं होता। शब्द लिखे गए ब्रह्म होते हैं, जो निर्माण करता है, एक जीवंत साक्ष्य, जिसे झुठलाना असम्भव है।

मेरे पिता के कथन ही जीवन बन उतर गए दिल मे, और दिल जो कहता है, मेरी कलम कहती जा रही है, अपने सफ़र में।
मेरी कलम यहीं से अपने सफ़र पर है।