पाकुड़ पुलिस ने जाली नोट छापने और चलाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया। मामले की सूचना पुलिस को मिली थी। नवपदस्थापित पुलिस कप्तान की सक्रियता और अनुसंधान पर तकनीकी नज़र ने अनुसंधानक को मदद मिली और नोट छापने वाली अंतरजिला गैंग पकड़ा गया। जाली नोट कबसे छप रहा था , कितने नोट अब तक खपाये गये आदि सवालों पर पुलिस अनुसंधान कर रही होगी , लेकिन रथ मेले के दौरान जाली नोट के साथ पकड़ी गई महिला ने शायद पुलिस का ध्यान इस गम्भीर अपराध की ओर खींचा होगा , नतीजा सामने आ गया।
लेकिन इससे पहले ग्रामीण सहित कई इलाकों में अवैध रूप से आधार कार्ड बनाने के मामले भी आ चुके हैं। पुलिसिया कार्रवाई के साथ प्रशासनिक कार्रवाई भी हुई थी , और प्रज्ञा केंद्रों से आधार कार्ड के काम वापस ले लिये गये थे।
उधर बिहार में मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम चल रहा है। रोज इस पर राजनैतिक बहस पक्ष विपक्ष में चल रहा है। मतदाता पुनरीक्षण में 11 कागज़ात में से किसी एक को प्रस्तुत करने की सूचि चुनाव आयोग ने दी है , लेकिन आधार कार्ड को मान्यता नहीं दी गई है। बहस में इसे भी मुद्दा या यूँ कहें प्रमुख मुद्दा पुनरीक्षण का विरोध करने वाले बना रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग आधार कार्ड को न मानने पर अड़ा हुआ है। ऐसा क्यूँ ये सोचने पर मुझे मजबूर होना पड़ा। अंदर ही अंदर बहुत सोचा। विरोध करने वाले राजनैतिक दलों और चुनाव आयोग की ज़िद पर मंथन किया , तो बहुत कुछ समझ में आया कि जमीनी हकीकत पर शायद चुनाव आयोग ठीक है। क्योंकि इन दिनों पूरे देश में हजारों विदेशी नागरिक प्रशासन को ऐसे मिले जिनके पास आधार कार्ड थे , लेकिन वे घुसपैठिये निकले। पर ये आधार कार्ड उन्हें कैसे मिलते हैं , इसके कारण ढूँढने की ज़रूरत है।
जाली आधार कार्ड क्या क्या गुल खिला सकते हैं , इसपर गौर और गम्भीर तरीके से अनुसंधान ज़रूरी है।
एक उदाहरण को समझने की ज़रूरत है।
मान लिया जाय कि मैं अगर अपना आधार कार्ड बनाने जाऊँ , तो मेरे फिंगर प्रिंट और रेटिना की रीडिंग लेते ही स्पस्ट हो जाएगा कि मेरा आधार पहले से बना हुआ है।
अब अगर कोई विदेशी घुसपैठिया मेरे ही नाम से आधार कार्ड बनाने गया , तो नाम कमोबेश कुछ स्पेलिंग के अलावे अलग फिंगरप्रिंट और अलग रेटिना के आधार कार्ड बनवाने में सफल हो जाएगा। जैसे मेरा नाम कृपा सिन्धु तिवारी है , और वो कृपासिंधु तिवारी के नाम से आधार आसानी से बना सकता है।
अब जिस समय बिना आधार के ऑफ लाइन जमीन रजिस्ट्रेशन होती थी, उस जमीन को बृहत मिलीभगत से आराम से मेरे नाम की जमीन दूसरे को ऑन लाईन बेच देगा। और हम अनभिज्ञ रह जाएंगे।
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दूसरी बात यह कि मैनें किसी अपनी दूसरी जमीन जो मैनें ख़रीदा है , और मोटेशन के लिए अंचल कार्यालय में आवेदन दिया। मेरे आवेदन को तकनीकी फॉल्ट के नाम पर अस्वीकृत कर , मेरे ही नाम पर अवैध आधार वाले नाम के आदमी का मोटेशन उसी आवेदन नम्बर पर किसी और को विक्री दिखा कर कर दिया जाता है। सवाल पूछने पर ईरर का हवाला दिया जाता है । ऐसा इरर एक नहीं कई दिखता है , तो इसे क्या समझा जा सकता है !
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पाकुड़ जिले में जमीन के घपलों की है अजब गजब कहानी
पहली बात तो एक ओरिजनल आदमी वेवजह परेशान रहा।
दूसरा कि किसी सम्भावित घुसपैठिया को आधार के साथ इस बात का भी प्रमाण उपलब्ध करा दिया गया कि वो यहाँ का मूल निवासी है और अपनी किसी मजबूरी में जमीन बेच दी। जबकि उसको आधार कार्ड केंद्र से रजिस्ट्रेशन कार्यालय तक क्या हुआ कुछ पता नही , बल्कि इन सबके लिए उससे वसूली भी हुई।
वो बेचारा ही बना रहा , साथ ही कई बेचारे बने , लेकिन जमीन सहित कई चारा सरकारी चरवाहा चरा कर गटक गया।
ऐसे उदाहरण सैकड़ों होंगे ।
अब शिविर लगा कर खैर। आज नहीं तो कल जाँच तो होगी। आख़िर झूठ एक दिन उभर कर महकने ही लगता है। इसीलिए ऐसे मामले बिहार में पकड़े जा रहे हैं, और वोटर लिस्ट से नाम कट रहा है, तो हल्ला मचा हुआ है।
सरकारी वरीय अधिकारी करे तो क्या करें , वे सभी जगह और टेबुल पर स्वयं काम तो नहीं कर सकते, लेकिन नीचे कर्मचारी अपने छोटे मोटे स्वार्थ के लिए बड़ी समस्या और अपराध का कारण बना जाते हैं।
जो राज्य और देश के लिए बाद में खतरा भी बन जाते हैं।
पाकुड़ में सैकड़ों उदाहरण ऐसे अनुसंधान में मिल जाएंगे , जिसमें घुसपैठियों का न सिर्फ आधार कार्ड अवैध रूप बना है बल्कि उन्हें उपयोग कर जमीन की हेराफेरी बड़े पैमाने पर हुई है , और उसी हेराफेरी के आधार पर घुसपैठियों को जमीन बेचने के आधार पर आधार कार्ड भी बन जाता है , तथा वे यहाँ के मूल निवासी भी कागजी तौर पर सावित किये जाने का आधार तैयार कर दिया जाता है , फिर उसी के कारण उनका वोटर कार्ड , राशन कार्ड आदि सभी बन जाता है।
सबूत के तौर पर ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं। ऐसे में पाकुड़ का भगवान ही मालिक है और सरकारी कर्मचारी से लेकर वरीय अधिकारि तक जमीन के मालिक बन बैठे हैं। चूँकि सब चीजें उन्हीं कर्मचारियों और अधिकारियों के जिम्मे है , इसलिए इसका खुलासा मुश्किल हो जाता है। और अगर कोई खुलासे का दुस्साहस मेरे तरह करे , तो झूठे आरोप में जेल जाने तथा प्रताड़ित होने या जान गवांने के लिए तैयार रहे।
अच्छा ऐरर पर सवाल उठाते ही उसे गलत तरीके से ठीक भी दिखा दिया जाता है। लेकिन इस डिजिटल युग में सब कुछ रिकवर हो सकता है इसे लोग भूल जाते हैं।
ऐसे कर्मचारियों पर देश की सुरक्षा से खेल करने के लिए गम्भीर जाँच कर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
जो भी हो अभी तो बिहार के लिए हल्ला मचा है , लेकिन जब पाकुड़ का ऐसा मामला कोर्ट तक पहुँचेगा तब क्या होगा ? यह देखना बाँकी है। क्योंकि यहाँ सिर्फ अवैध आधार की बात नहीं है , यहाँ तो ज़मीनों के घोटाले का मामला भी जमीनी हकीकत बन चुका है।