ये जो चित्र में आँकड़े और एक तरह की चेतावनी नज़र आ रही है, उसपर सोचिए।
चिंतन कीजिए ।
कल ही पाकुड़ में वन विभाग और पुलिस ने संयुक्त रूप से एक घर में छापेमारी कर लाखों के कटे पेड़ों से बने पटरों को जप्त किया। कहीं सेकड़ों पेंड कटे होंगे जरूर।
कोई ऐसा महीना नहीं जब वन विभाग कटे पेड़ों को जप्त न करता हो।
कभी सतपुड़ा के घने जंगलों से जुड़ता झारखंड के जंगल अब दूर दूर तक ठूंठ में बदल गये हैं। संथालपरगना में तो पहाड़ों तक को जंगलों से नँगा कर पत्थर माफिया खा गये।
नङ्गे और पूरी तरह खा चुके पहाड़ों की दुर्दशा देखनी हो तो आँसू पोछने के लिए रूमालों के साथ साहेबगंज और पाकुड़ में आपका स्वागत है। अगर आप संवेदनशील हैं, तो शायद रुमाल कम पड़ जाए।
अभी बढ़ते तापमान पर रोती मानवता की खबरों से अखबारों के पन्ने भरे पड़े हैं।
दो चरणों के मतदान में भी इसका प्रभाव साफ़ दिखता है। लेकिन दुखती मानवता के बीच अमानवीय ढंग से उजड़ते जंगलों की ओर किसी की मानवीय नज़र नहीं पड़ती।
आश्चर्य का विषय है कि अट्टालिकाओं में अपनी ही कब्र खोदती मानवता बड़ी इतराती हुई लकड़ी के फर्नीचरों पर बेशर्म मुस्कुराहट परोसती नहीं थकती।
मकान बनाने की मनाही नहीं है, लेकिन मकान के चारों तरफ़ पेंड भी तो लगाया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो लकड़ियों के फर्नीचरों से ही तौबा कर लो।
जंगलों को बचाओ , वरना ये असन्तुलित होता वातावरण तुम्हें भी नहीं जीने देगा।
हर आदमी दो-दो पेंड़ भी लगाए ……
खैर जंगलों को बचाओ भाई , पेड़ों से वीरान जंगल मानवीय जीवन को लील जाएगी।
अब बहुत दूर नहीं है क़यामत के दिन अगर न चेते ।
ये तपिश लील जाएगी सबकुछ , सबकुछ , हाँ पूरी मानवीय जीवन भी। मत खेलो पेड़ों के जीवन से , इसी की ओट में छुपा है तुम्हारा भी जीवन।
लहलहाते दरख्तों के सौंदर्य और जंगलों की ऊंघती छाँव में मुस्कुराते अपने जीवन को साँसें लेने दो, लेने दो न !
आँखें तरेरती चिलचिलाती धूप कह रही है , जिंदगी की तलाश में मौत के कितने करीब आ गये तुम !
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