आश्चर्य है पूरे साल सिचाई योजना पर विभाग, ठेकेदार, दलाल सब व्यस्त मस्त रहते हैं, और जब उपयोगिता सावित करने का वक़्त आता है, तो…..
देश के कुछ राज्य अतिवर्षा से जलमग्न हैं, जीवन असामान्य तथा जनजीवन अस्तव्यस्त है, तो वहीं थोड़ा विलम्ब से आये मानसून ने झारखंड को एक तरीके से लुकाछिपी खेलते बादलों से छला है। विलम्ब से ही सही धान की रोपाई तो हो गई, लेकिन तेज धूप और बादलों की ललचाती लुका छिपी ने खेतों को सुखा सा दिया था।
पीले पड़े धान की फसल को दो-तीन दीनी रुक रुक कर हुई बारिश ने थोड़ा जान तो फूँका, लेकिन अबभी कुछ जिलों को छोड़ झारखंड में आवश्यकता से अपेक्षाकृत कम बारिश ने किसानों के चेहरे की रंगत उड़ा रखी है। राजनीति के गलियारों से सूखा घोषणा की मांग उठ रही है, तो कृषिमंत्री बादल पत्रलेख को मीडिया के सामने यह कहना पड़ा कि हम पूरे देश और राज्य के आँकड़े जुटा रहे हैं, अगस्त को वेट एन्ड वाच पर रखने की बात कह पत्रलेख साहब ने कहा कि उचित समय और परिस्थिति पर सूखा तथा राहत की घोषणा की जाएगी। ये तो मानसून और सरकार की बात है।
लेकिन सबसे बड़ी बात ये है, कि पिछले वर्षों में जितने सिंचाई तालाब, कुआं, गढ़िया खुदे वे सब कहाँ हैं। रोपाई से पहले जितनी बारिष हो चुकी थी, कागजों पर बनी सिचाई योजनाओं में जमीनी स्तर पर तो इतना पानी आसानी से रहना चाहिए, फिर फसलों के सूखने का सवाल ही कहाँ है। सबसे पहले पिछले कुछ वर्षों में बने तालाबों सहित गढ़िया और सिचाई कूपों को खोजने की व्यवस्था होनी चाहिए।
जहाँ ये योजनाएं जमीन पर मिल जाय तो उसमें जमा पानी से उसकी उपयोगिता की मान्यता मिल जाएगी जहाँ न मिले तो भगवान मालिक।
पाँच वर्षों की सूचि हर विभाग से निकाल कर बस जमीनी हकीकत जान लें। योजनाएं अपनी उपयोगिता को सार्थक करते हुए उपस्थित हैं तो “यस सर” उपस्थिति दर्ज, नहीं है तो उपस्थिति दर्ज करो भाई। काम कर जाओ बस, कोई कारवाई नहीं, काम कर दो।
गड़े मुर्दे उखाड़ कर गन्ध नहीं फैलाना है, योजनाएं जमीन पर उतर जाय सुगंध स्वयं सुवासित हो जाएगा। उपयोगिता उपयुक्त हो जाएगा, मानसून को अगली बार बिना बरसे धन्यवाद देंगे किसान। किसान कहेंगे भाई मानसून इस बार भले आराम कर लो, पिछली बार जितना अधिक दिया था, हमने जमा कर रखा है।
आश्चर्य है पूरे साल सिचाई योजना पर विभाग, ठेकेदार, दलाल सब व्यस्त मस्त रहते हैं, और जब उपयोगिता सावित करने का वक़्त आता है, तो…..
खैर सभी योजनाएं जमीन पर उतरीं होतीं तो, भूगर्भीय जल के साथ सिंचाई के लिए सिर्फ़ आसमान नहीं ताकना पड़ता, भले मानसून देर सबेर आये हमारी योजनाएं वक़्त बेवक़्त सब सँभाल लेते , लेकिन योजनाएं जमीन पर होना भी तो चाहिए।
फिलवक्त इतना ही🙏