हिन्दू परम्पराओं में अनेक प्रकार के पर्व त्यौहार मनाये जाते हैं। हँलांकि हर प्रान्त एवं समाज में हर त्यौहार में भिन्नता होती है , साथ ही उसके पीछे कोई न कोई किंवदन्तियाँ होती हैं।
बंगला ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बंगाल में तथा जहाँ जहाँ बंगाली समाज रहता है, वहाँ जमाई षष्ठी मनाई जाती है।
किंवदंती है कि एक लड़की अपने ससुराल में अपने कर्तब्यों का पालन , जैसे सास ससुर की सेवा तथा अन्य पारिवारिक जनों की सेवा नहीं करती थीं। इससे दामाद यानी लड़की के पति सहित सभी नाराज़ रहते थे। इसी से दुखी लड़की की माँ ने षष्ठी माता से मनोकामना की , कि उसकी लड़की अपने ससुराल वालों को अपने व्यवहार से खुश रखे और अपना घर सही से सम्भाले तथा खुशहाल पारिवारिक जीवन बिताये।
षष्ठी माता ने लड़की के माता की मनोकामना पूरी की, जिससे लड़की के पति सहित पूरा ससुराल वाले प्रशन्न हुए। इसी कारण लड़की की माँ ने षष्ठी ब्रत कर षष्ठी माता की पूजा की।
ऐसे भी बच्चों के जन्म के बाद छठे दिन छटी मनाई जाती है। यहाँ भी बच्चे के स्वास्थ्य एवं सफल जीवन की कामना करने की परंपरा और उद्देश्य रहा है। मतलब बच्चों के कल्याण के लिए माँ षष्ठी की पूजा की परंपरा हिन्दू संस्कृति में रही है।
इसी परंपरा के निर्वहन में अलग अलग प्रान्त और समाज में अलग अलग नियम तथा विधि रही है।
बंगला संस्कृति में दामाद और बेटी की सफल स्वस्थ जीवन के लिए लड़की की माँ षष्ठी पूजा करतीं हैं। इस दिन सास षष्ठी देवी को प्रसन्न करने के लिए षष्ठी पूजा करती हैं और अपनी बेटियों और दामादों के लिए सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद मांगती हैं। दामाद को घर आमंत्रित किया जाता है और सास द्वारा तैयार शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन का शानदार भोज कराया जाता है। इसमें जमाई यानी दामाद को एक थाली में दर्जनों प्रकार के व्यंजन सास स्वयं तैयार कर परोसती है।
संस्कृति समृद्ध बंगाली समाज में क्यों मनाई जाती है जमाई षष्ठी।
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