Saturday, December 6, 2025
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रोजगार के लिए एक सामान्य स्वाभाविक घेराव पर सवालों की बौछार क्यूँ !

रविवार 30 नवम्बर को हिरणपुर में सीतपहाड़ी क्षेत्र के कई गाँव के ग्रामीणों ने झामुमो जिलाध्यक्ष का घेराव किया। ग्रामीणों की मांग थी कि क्षेत्र में चल रहे खनन और क्रशर संचालन को बंद करा दिये जाने के कारण तकरीबन एक माह से लोग बेरोजगार हो गये हैं , और भुखमरी के साथ बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना लोगों के लिए मुश्किल हो गया है , इसलिए सभी बन्द खनन कार्यों और क्रशर को पुनः शुरू कराया जाय।
जिला अध्यक्ष अजीजुल इस्लाम , एवं पहुँचे सी ओ तथा थाना प्रभारी ने लोगों को घण्टों समझा कर सब पूर्ववत आरम्भ होने की बात कह आश्वस्त कर नाराज़ लोगों को वापस भेजा।
झामुमो जिला अध्यक्ष ने बताया कि सामाजिक एवं सांगठनिक कार्य करने के कारण मैं पहले से इस समस्या से वाकिफ़ था , इसलिए मैंने पहले ही प्रशासन के वरियों से बात की है। सांसद और विधायक से भी बात की। सभी का सकारात्मक आश्वासन मिला है, समस्या का समाधान निकलेगा , आवश्यकता पड़ने पर मुख्यमंत्री से भी बात की जाएगी।
आम जनता की स्वाभाविक माँग थी, एक स्वाभाविक तरीके से माँग रखी गई। जनप्रतिनिधि और प्रशासन ने स्वाभाविक रूप से शांति से तत्काल मामले को शांत कर दिया।

घेराव पर सवालों के साथ सोसल मीडिया रंगा।
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अब लोग इशारों में सवाल उठा रहे हैं , घेराव पहली बार किसी पार्टी के जिला अध्यक्ष का दिखा। यह प्रायोजित घेराव था ,आदि इत्यादि ।
वास्तव में सांसद , विधायक और प्रशासन को छोड़ पार्टी के जिला अध्यक्ष का यह एक अस्वाभाविक घेराव पहली बार देखने को मिला।
उसका कारण है झामुमो के जिला अध्यक्ष का आम जनता के साथ सीधा संबंध है। क्षेत्र की समस्याओं पर वे सीधे सजग रहते हैं , तथा चुनाव के समय वे ही पार्टी के लिए क्षेत्र में वोट मांगने जाते हैं । इसलिए पीड़ित जनता ने अपनी मांग अधिकार के साथ सबसे सुलभ सबसे मिलने जुलने वाले अपने सबसे नजदीकी जनप्रतिनिधि जिला अध्यक्ष के पास रखा।
रही बात प्रायोजित होने का तो ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि वहाँ बन्द खनन और क्रशर प्लांट में से “लुत्फुल हक़” का भी प्लांट है।
हाँ ये वही लुत्फुल हक़ हैं , जो कई वर्षों से पाकुड़ स्टेशन में 2-3 सौ गरीबों और जरूरतमन्दों को प्रतिदिन भोजन कराते हैं, त्योहारों में विशेष भोजन परोसते हैं, स्वयं भी उनके साथ भोजन करते हैं। क्षेत्र की सीमाओं से परे झारखंड , पश्चिम बंगाल और अन्य जगहों पर गरीबों के हर सुख-दुख में खुले हाथ खड़े रहते हैं। उनके विषय में बहुत कुछ कहना हमेशा कम पड़ जाता है। इसलिए देश विदेश के कई सम्मानीय मंचों पर वे सम्मानित और अपनी समाजसेवा के लिए सम्मानित हो चुके हैं। तो वे परिचय के मोहताज़ नहीं।
ऐसे में अगर वहाँ उनका भी प्लांट है, और प्रशासन की सामुहिक समुचित करवाई में उनका भी प्लांट बन्द है, तो इसमें उनका क्या दोष है। सरकारी आदेश को मानने में वे कभी अपने प्रभाव का उपयोग नहीं करते।
आम जनता ने पूरे क्षेत्र की बन्दी और बेरोजगारी पर अपनी मांग रखी , तो ये प्रायोजित कैसे हुई !
कानून की पेचीदगियों के बीच अगर उस इलाके में सिर्फ लुत्फुल हक़ के प्लांट पर सबके साथ बंदी का ताला नहीं लटकता तो फिर लोग स्वाभाविक रूप से प्रशासन पर अंगुली उठाते। प्रशासन ने यह सावित किया कि कारवाई में कोई विशेष नहीं , बल्कि सभी बराबर हैं।
इधर आम जनता ने भी अपनी बेरोजगारी पर जायज़ माँग रखी। झामुमो गठबंधन की सरकार है, तो जिला अध्यक्ष के द्वारा अपनी माँग सरकार और प्रशासन के पास परोसा।
कहीं कुछ भी हो तो सवाल उठाने वाले कोई स्पेस ढूंढ लेते हैं । बात बिलकुल साफ़ है अब इस आलेख से मुझे भी सवालों के घेरे में लिया जाएगा।
लेकिन कोई ये तार्किक ढंग से बताए कि इस प्रकरण में कौन है जिसपर सवाल उठाया जा सकता है। प्रशासन से लेकर आम जनता तक सभी अपने अपने जगह सही हैं , और झामुमो जिला अध्यक्ष से लेकर लुत्फुल हक़ तक पर सवालों से संदेह क्यूँ ?
यक्ष प्रश्न है।

Comment box में अपनी राय अवश्य दे....

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