हर सुबह की तरह आज बुधवार को भी मैं राजपाड़ा के ऐतिहासिक नित्यकाली मंदिर में अपनी आस्था की हाज़री लगाने 9 बजे के आसपास पहुँचा। मन्दिर में कबूतरों का एक विशाल झुंड रोज मेरी प्रतीक्षा करता है। जाते ही वे सभी मेरे आसपास फड़फड़ाहट का कोलाहल करते स्नेह लुटाता है। मैं भी कुछ न कुछ उनके लिए ले जाता हूँ।
यहाँ भी कुछ बाँटने का अवसर मैंनें ढूँढ लिया…
लेकिन आज वहाँ मुझे बच्चों का भी स्कूल ड्रेस में एक बड़ा झुंड दिखा। सभी बच्चे मन्दिर के कोने कोने में घूम और देख रहे थे , स्वाभाविक रूप से मोबाइल के कैमरे भी सेल्फी के लिए चमक रहे थे। मैंनें अपनी दैनिक पूजा के बाद उन बच्चों से बातचीत करना चाहा , मैं ने उनसे पूछा कि आज स्कूल के बदले यहाँ आपलोग दिख रहे हैं !
उनके साथ आये शिक्षक भी वहीं थे। पता चला कि आज बेगलेस डे है। उनके शिक्षक उन्हें जिले से रूबरू कराने ऐतिहासिक जगहों पर घुमा रहे हैं। फिर वापस लौट कर विद्यालय में भी कार्यक्रम में भाग लेंगे।
मैंनें उन्हें पूछा मन्दिर घूम लिए ? उन्होंने बताया हाँ। वे फिर सिद्धो कान्हू पार्क भी जाने वाले थे। मैंनें मन्दिर और सिद्धो कान्हू पार्क और वहाँ स्थित मॉर्टेलो टावर तथा सन्थाल हूल के विषय मे विस्तार ऐतिहासिक जानकारी दी। उन्हें कभी पाकुड़ के ऐतिहासिक महत्व की जानकारी किसी ने नहीं दी थी। अपने जिला के इन ऐतिहासिक जानकारी को सुनकर बच्चे बहुत खुश हुए। उन्हें लगा कि इतिहास के दृष्टिकोण से अपना जिला कितना समृद्ध है। उनके शिक्षक ने भी मुझे अपने स्कूल में आमंत्रित कर बच्चों को पाकुड़ और झारखंड के विषय में ऐतिहासिक जानकारी बताने , साझा करने का आग्रह किया। शिक्षक और शिक्षिका जो वहाँ उपस्थित थीं , के प्रयासों से मुझे काफी सन्तोष हुआ।
ऐसे भी किसी भी राज्य की प्रतियोगिता में राज्य के इतिहास से जुड़ी जानकारियों पर प्रश्न पूछे जाते हैं और इस उम्र में ऐसी जानकारियाँ बच्चों की शिक्षा के आधार नींव को मजबूत करेगा।
पाकुड़ उपायुक्त ने बेगेलेष डे के कार्यक्रम को अपनी निगरानी में चलाकर बहुत ख़ूब किया है , लेकिन इसे सिर्फ विद्यालय के कार्यक्रम तक सीमित न रखकर शिक्षकों ने बहुत ही सराहनीय प्रयास का परिचय दिया है।
ऐसे बेगेलेष डे के कार्यक्रमों के समाचार मीडिया में आ रहे हैं लेकिन सिर्फ वहीं तक के जहाँ जिला प्रशासन मौजूद रहता है। प्रशासन अपना काम तो कर ही रहा है, पर उसके सकारात्मक प्रभाव कहाँ तक पड़ा है , यह भी जनता तक आनी चाहिए।
हम पत्रकारों का भी शिक्षा और छात्रों के प्रति यह जिम्मेदारी बनती है कि सिर्फ मध्यान्ह भोजन की कमी की खबरों तक सीमित न रह कम से कम सप्ताह में एक दिन किसी विद्यालय में जाकर बच्चों से वो जानकारी साझा करें , जो उनके जीवन और प्रतियोगी परीक्षाओं में काम आए।
जैसे विकास की रौशनी सिर्फ वहीं तक पहुँचती है, जहाँ तक बाबुओं की गाड़ी के चक्के घूमते हैं लेकिन कुछ बाबू पैदल सुदूर इलाकों तक भी पहुँच कर विकास को वहाँ तक पहुँचाने का काम भी तो कर रहे हैं। क्यूँ न हम पत्रकार भी सकारात्मक पत्रकारिता का परिचय देते हुए , कुछ ऐसा करें जो मील का पत्थर सावित हो।
भ्र्ष्टाचार तो आज की तारीख़ में शिष्टाचार बन गया है , पर कुछ जगहों पर सकारात्मक पहल भी दिखता है , उसे भी समाज को परोसें।
आज बच्चों की जिज्ञासाओं से मैं काफ़ी प्रभावित हुआ और उस विद्यालय के प्रयास से आनन्दित भी।
बिना किसी भेदभाव के अपने जिला के इतिहास को जानकर बच्चे भी आनन्दित और संतुष्ट दिखे।
जय हिंद , जय झारखंड , जिन्दावाद पाकुड़।